गुरुवार, 6 अगस्त 2009

लालगढ़ में पुलि‍स मुहि‍म की टांय-टांय फि‍स्‍स

पश्‍चि‍म बंगाल के लालगढ़ इलाके में सैन्‍यबलों के आपरेशन को जो सफलता मि‍लनी चाहि‍ए थी वह नहीं मि‍ली। यह बात मैं नहीं कह रहा,बल्‍कि‍ पश्‍चि‍म बंगाल के गृहसचि‍व ने आज एक प्रेस सम्‍मेलन में सीधे स्‍वीकार की है।लोकसभा पराजय से नि‍कलकर लालगढ़ में अपनी प्रशासनि‍क दक्षता का जो प्रदर्शन माकपा और बुद्धदेव प्रशासन करना चाहता था वह तथाकथि‍त बंदूक का जादू चल नहीं पाया। इसके वि‍परीत लालगढ़ इलाके में माकपा और उसके समर्थकों के जानोमाल पर माओवादी हत्‍यारे गि‍रोहों के हमले और बढ गएहैं।
लालगढ़ में माओवादि‍यों के हिंसाचार की कि‍सी भी तर्क से हि‍मायत नहीं की जा सकती,किंतु राज्‍य प्रशासन ने इस इलाके की जनता का दि‍ल जीतने के लि‍ए कुछ भी नहीं कि‍या उलटे सभी शि‍क्षा संस्‍थानों को बंद कराके पुलि‍स कैम्‍पों में बदल दि‍या,इसके कारण इलाके की जनता और भी भ्‍ाड़क गयी और आए दि‍न प्रति‍वाद होने लगा। यह अभी तर्क के परे है कि‍ पुलि‍सबलों को स्‍कूलों की इमारतों में क्‍यों टि‍काया गया। क्‍या यह साधारण सी बात समझ में नहीं आयी कि‍ अनंत काल तक स्‍कूलों को बंद नहीं रखा जा सकता और मात्र पुलि‍सबलों के सहारे इलाके में शांति‍ स्‍थापि‍त करना संभव नहीं है।
अब लालगढ़ से कैसे लौटें ,यही मूल समस्‍या है। लालगढ़ में पुलि‍स कैंप स्‍थापि‍त होने के बाद से 24 से ज्‍यादा माकपा कार्यकर्त्‍ताओं की हत्‍या हो चुकी है। माओवादि‍यों के नि‍रंतर हमले बढ़ रहे हैं। क्‍या राज्‍य सरकार के पास कोई राजनीति‍क समाधान है जो इस इलाके के माकपा कार्यकर्त्‍ताओं के जानो-माल की हि‍फाजत कर सके। अपने राजनीति‍क जीवन में माकपा इतनी असहाय कभी नहीं रही जि‍तनी लालगढ़ में दि‍ख रही है। अपने कार्यकर्त्‍ताओं को इस तरह मौत के हवाले करके उसने जघन्‍य अपराध कि‍या है।

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