शनिवार, 1 अगस्त 2009

कारपोरेट लूट के नए मसीहा

पहले झूठ बोलो। अति‍रंजि‍त सपने पैदा करो। अति‍रंजि‍त सपनों के बहाने सस्‍ते श्रम का दोहन करो। बाजार,बैंक,राज्‍य,संस्‍कृति‍,राजनीति‍,मीडि‍या आदि‍ का अति‍रंजि‍त सपने को वैध बनाने के लि‍ए इस्‍तेमाल करो और फि‍र कुछ समय बाद फि‍र संकट पैदा होने पर बचाओ बचाओ की दुहाई दो और फि‍र आर्थि‍क मदद और आर्थि‍क सहूलि‍यतों की मांग करो। इस तरह की पद्धति‍ के जरि‍ए कारपोरेट घरानों ने भूमंडलीकरण की सामयि‍क प्रक्रि‍या के दौरान सभी देशों में जबर्दस्‍त लूट मचायी है। भारत में नि‍जी एयर लाइंस कंपनि‍यों के द्वारा आर्थि‍क पैकेज की मांग भी उसी बृहत्‍तर प्रक्रि‍या का हि‍स्‍सा है।

कारपोरेट घरानों ने एक नया पैंतरा चला है अब वे आर्थि‍कमंदी के बहाने उद्योगों के लि‍ए आर्थि‍क पैकेज की मांग करने लगे हैं और सरकार ने अपनी दरि‍यादि‍ली का परि‍चय देते हुए लोकसभा चुनाव के ठीक पहले तकरीबन दो लाख करोड रूपये के दो आर्थि‍क सहायता पैकेजों की घोषणा भी की थी। अब वि‍भि‍न्‍न नि‍जी एयर लाइंस कंपनि‍यां अपने लि‍ए आर्थि‍क पैकेज की मांग कर रही हैं उन्‍होंने धमकी दी है अगर ऐसा नहीं होता तो वे आगामी 18 अगस्‍त को अनि‍श्‍चि‍तकालीन हडताल पर चले जाएंगे।

केन्‍द्र सरकार ने आर्थि‍क मंदी का बहाना लेकर पहले ही कारपोरेट घरानों को दो लाख करोड रूपये से ज्‍यादा की आर्थि‍क मदद का पैकेज दि‍या हुआ है । इस पैकेज का नि‍चले स्‍तर तक जनता कोई लाभ नहीं मि‍ला है। कारपोरेट घरानों के प्रति‍ केन्‍द्र सरकार की दरि‍यादि‍ली का ही आलम है कि‍ लोकसभा चुनाव के परि‍णाम आने के बाद से मंहगाई सातवें आसमान पर पहुंच चुकी है,कालाबाजारी करने वालों के खि‍लाफ कोई भी एक्‍शन नहीं लि‍या गया है और सारा देश एकसि‍रे से कालाबाजारि‍यों के रहमोकरम पर जिंदा है।

नि‍जी एयर लाइंस कंपनि‍यों का दावा है कि‍ उन्‍हें सन् 2009 में दस हजार करोड रूपये का घाटा उठाना पडा है। इस प्रसंग में पहली बात यह है कि‍ अगर कोई कंपनी व्‍यापार करती है तो जि‍स तरह उसका मुनाफे होता है ,वैसे ही उसका घाटा भी होता है। जो मुनाफा कमाएगा वह घाटा भी उठाएगा। इन कंपनि‍यों की सबसे बुरी बात यह है कि‍ ये कंपनि‍यां केन्‍द्र सरकार के द्वारा जब भी हवाई ईंधन के दाम घटाए गए तो उन्‍होंने उसका लाभ ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया। दूसरी सबसे बडी समस्‍या यह है कि‍ केन्‍द्र सरकार यदि‍ कारपोरेट घरानों को घाटे के कारण यदि‍ आर्थि‍क पैकेज देती है तो उसे आम नागरि‍कों को भी राहत देने के बारे में सोचना चाहि‍ए। मसलन् छठे वेतन आयोग की सि‍फारि‍शों के आधार पर नए वेतनमान लागू हो रहे हैं किंतु इनकम टैक्‍स वसूली का पुराना पैटर्न और नि‍यम बरकरार है जि‍सके चलते कर्मचारि‍यों के लि‍ए नया वेतनमान बेमानी होकर रह गया है। वास्‍तव अर्थों में कर्मचारि‍यों की आय में कोई वृद्धि‍ नहीं हुई है। कारपोरेट लूट के इस दौर में यह सवाल भी कि‍या जाना चाहि‍ए कि‍ यदि‍ ये कंपनि‍यां बेशुमार घाटे में चल रही थीं तो इनके मालि‍कों की पूंजी में बेतहाशा वृद्धि‍ कैसे होती रही है।

नि‍जी एयरलाइन कंपनि‍यों के बारे में दूसरी महत्‍वपूर्ण बात यह है कि‍ केन्‍द्र सरकार ने समस्‍त आलोचनाओं को दरकि‍नार करके वायु सेवाओं का नि‍जीकरण करके अंतत: सरकारी वायुयान कंपनि‍यों को पूरी तरह बर्बाद कर दि‍या और आज स्‍थि‍ति‍ यह है कि‍ सरकारी वायुयान कंपनि‍यां बंद होने के कगार पर हैं, सवाल यह है कि‍ यदि‍ आर्थि‍क उदारीकरण इतना ही अच्‍छा था तो हवाई सेवा के क्षेत्र में इतनी तबाही क्‍यों मची हुई है। कारपोरेट घराने पहले बेहतर सेवा के नाम पर समस्‍त सरकारी सुवि‍धाओं का कौडी के भाव पर लाभ उठाते रहे और अब यह मांग कर रहे हैं कि‍ उन्‍हें और भी सुवि‍धाएं दी जाएं यह एक तरह से सरकारी संपत्‍ति‍ को लूटने का मामला है और इसके खि‍लाफ जमकर प्रति‍वाद कि‍या जाना चाहि‍ए।

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