गुरुवार, 20 अगस्त 2009

मोदी साहब काश आज बल्‍लभ भाई पटेल होते

गुजरात के मुख्‍यमंत्री की स्‍थि‍ति‍ भी वही है जो भाजपा की है। भाजपा गलतफहमी की शि‍कार है कि‍ उसने जसवंत सिंह को नि‍कालकर पार्टी को वैचारि‍क प्रदूषण से बचा लि‍या। गुजरात के मुख्‍यमंत्री ने एक कदम आगे जाकर तुरंत ही जसवंत सिंह की कि‍ताब पर पाबंदी लगाकर कहा कि‍ इस कि‍ताब से बल्‍लभभाई पटेल की छवि‍ खराब हो सकती है अत: राज्‍य में इसके वि‍तरण और बि‍क्री पर पाबंदी लगायी जाती है। यह पाबंदी वैसे ही है जैसे शराब के खि‍लाफ गुजरात में पाबंदी लगी हुई है लेकि‍न दुकान के पि‍डवाड़े से शराब खुलेआम बि‍क रही है,यहां तक कि‍ जहरीली शराब भी बि‍क रही है।
पटेल की इमेज कहीं नष्‍ट न हो जाए इसलि‍ए जसवंत सिंह की कि‍ताब पर पाबंदी लगाने की जरूरत नहीं थी,सवाल यह है कि‍ क्‍या पटेल असहि‍ष्‍णु थे ? क्‍या पटेल का अभि‍व्‍यक्‍ति‍ की आजादी में वि‍श्‍वास नहीं था ?क्‍या पटेल के जीते जी कि‍सी ने उन्‍ाकी आलोचना नहीं की ?
भाजपा की गुजरात सरकार कूपमंडूकों की सरकार है और बगैर सोचे कि‍सी चीज,कि‍सी भी वि‍चार,कि‍सी धर्म के मानने वालों के बारे में राजाज्ञा,राजदंड कुछ भी जारी करने की पुरानी आदत से लाचार है। आज के यु्ग में कि‍सी भी कि‍स्‍म की पाबंदी बेमानी है,खासकर कि‍ताब पर पाबंदी तो एकदम बेअसर साबि‍त होगी,तसलीमा की कि‍ताब के संदर्भ में हम पाबंदि‍यों को धराशायी होते देख चुके हैं।
पटेल देशभक्‍त थे,लेकि‍न साम्‍प्रदायि‍क नहीं थे, अपने वि‍चारों के पक्‍के थे,लेकि‍न भाजपा के नेताओं की तरह रंग बदलने वाले नहीं थे, बुद्धि‍मान,मेधावी और कुशल राजनीति‍ज्ञ थे लेकि‍न भाजपा के नेताओं की तरह बेबकूफ नहीं थे,पटेल के हाथ कि‍सी की हत्‍या के खून के रंग से सने नहीं थे,उन्‍होंने कभी कि‍सी समुदाय अथवा धर्म के मानने वालों,खासकर मुसलमान और ईसाई सम्‍प्रदाय के लोगों के प्रति‍ कभी जहर नहीं उगला,काश ,नरेन्‍द्र मोदी और उनके गुजरात प्रशासन में बैठे नेतागण यह सब पटेल से सीख पाते। लेकि‍न मोदी एंड कंपनी से पटेल जैसी बुद्धि‍,परि‍श्रम,ईमानदारी, देशभक्‍ति‍ और राजनीति‍क कौशल की उम्‍मीद करना रेगि‍स्‍तान में पानी की बूंद ढूंढने जैसा है।
काश पटेल आज जिंदा होते और देश के गृहमंत्री होते तो अपनी आंखों से वह सब कुछ देखते जो नरेन्‍द्र मोदी की सरकार ने अब तक कि‍या है ,पटेल यदि‍ आज गृहमंत्री होते तो नरेन्‍द्र मोदी और उनके भाजपा के नेतागण पटेल की भक्‍तमंडली की बजाय जेल की सलाखों के पीछे होते।

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