जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
स्वाइन फ्लू पर दहशतजनक टीवी प्रचार बेअसर
स्वाइन फ्लू को लेकर अभी टीवी चैनलों का हंगामा, बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के हितों से परिचालित प्रचार अभियान थमा भी नहीं था कि कृष्ण जन्माष्टमी आ गयी और उसने मीडिया,खासकर बहुराट्रीय निजी समाचार चैनलों की साख को मिट्टी में मिला दिया। कहने को महाराष्ट्र प्रशासन ने सात दिनों के लिए मुंबई में स्कूल,कॉलेजों को बंद करने की घोषणा कर दी थी,मल्टीप्लेक्स आदि बंद करने के आदेश दिए। ये सारे कदम स्वाइन फ्लू से जनता को बचाने के नाम पर उठाए गए। जबकि डाक्टर बार-बार यही कह रहे हैं कि इससे घबड़ाने की जरूरत नहीं है,इसके बावजूद महाराष्ट्र सरकार ने लगातार गलत और अवैज्ञानिक कदम उठाए हैं और यह सारा फैसला चैनलों के प्रचार से परिचालित होकर किया गया है। स्वाइन फ्लू को लेकर जनता में किस तरह का मीडिया असर है और जनता कितनी विवेकवान है यह बात आज मुंबई के 'गोविन्दा आला' सांस्कृतिक कार्यक्रम में जगह-जगह हजारों लोगों की भागीदारी को देखकर लगा सकते हैं। टेलीविजन की मूर्खताएं जगजाहिर हैं इसके बावजूद टीवी वाले अपनी आदतों से बाज नहीं आते और स्वाइन फ्लू के नाम पर जो गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग की गयी है उसे लेकर आम जनता को शिक्षित करने की जरूरत है,चैनलों ने स्वाइन फ्लू के नाम पर भय और दहशत का माहौल बनाने की पूरी कोशिश की है ,राज्य और केन्द्र सरकार उनके दबाव में रही हैं, लेकिन जनता ने मीडिया के स्वाइन फ्लू प्रचार से अप्रभावित रहकर एक ऐसी मिसाल कायम की है जिसकी सराहना की जानी चाहिए। मुंबई में खासकर कृष्ण जन्माष्टमी के महोत्सव ने स्वाइन फ्लू के टीवी प्रचार को एकसिरे से अर्थहीन बना दिया है। इससे यह भी पता चलता है कि लोग ज्यादा विवेकवान और समझदार हैं टीवी अभी इडियट बाक्स की कोटि के बाहर नहीं आ पाया है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मेरा बचपन- माँ के दुख और हम
माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...
-
लेव तोलस्तोय के अनुसार जीवन के प्रत्येक चरण में कुछ निश्चित विशेषताएं होती हैं,जो केवल उस चरण में पायी जाती हैं।जैसे बचपन में भावानाओ...
-
मथुरा के इतिहास की चर्चा चौबों के बिना संभव नहीं है। ऐतिहासिक तौर पर इस जाति ने यहां के माहौल,प...
-
काव्य या साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन करने ज्यों ही जाते हैं बड़ी समस्या उठ खड़ी होती है। पहली अनुभूति यह पैदा होती है कि हिन्दी की...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें