प्रभाष जोशी के संपादकत्व में ‘जनसत्ता’ में किस तरह की अ-धर्मनिरपेक्ष पत्रकारिता हो रही थी,उसके संदर्भ में प्रभाष जोशी के भक्तों के लिए यही सुझाव दूंगा कि वे सिर्फ राममंदिर आंदोलन के दौर के जनसत्ता को देखें,कम समय हो तो ‘टाइम्स सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज’ के द्वारा उस दौर के कवरेज के बारे में तैयार की गयी विस्तृत सर्वे रिपोर्ट ही पढ़ लें, यह रिपोर्ट प्रसिद्ध पत्रकार मुकुल शर्मा ने तैयार की थी, जो इन दिनों अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन की भारत शाखा के प्रधान हैं।’टाइम्स सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज’ की रिपोर्ट के अनुसार ‘जनसत्ता’ अखबार ने जो उन दिनों दस पन्ने का निकलता था। लिखा है ” दस पेज के इस अखबार में 20 अक्टबर से 3 नवंबर तक कोई दिन ऐसा नहीं रहा,जिस दिन रथयात्रा अयोध्या प्रकरण पर 15 से कम आइटम प्रकाशित हुए हों। किसी -किसी रोज तो यह संख्या 24-25 तक पहुंच गई है। ” इसी प्रसंग में ‘जनसत्ता’ की तथाकथित स्वस्थ और धर्मनिरपेक्ष पत्रकारिता की भाषा की एक ही मिसाल काफी है। ‘जनसत्ता’ ने (३ नवंबर 1990 ) प्रथम पृष्ठ पर छह कॉलम की रिपोर्ट छापी। लिखा ” अयोध्या की सड़कें,मंदिर और छावनियां आज कारसेवकों के खून से रंग गईं।अर्द्धसैनिक बलों की फायरिंग से अनगिनत लोग मरे और बहुत सारे घायल हुए।” यहां पर जो घायल हुए उनकी संख्या बताने की बजाय ‘बहुत सारे’ कहा गया लेकिन मरने वाले उनसे भी ज्यादा थे। उन्हें गिना नहीं जा सकता था। ‘अनगिनत’ थे। प्रभाष जोशी के संपादकत्व में ‘जनसत्ता’ ने संघ की खुलकर सेवा की है,समूचा अखबार यही काम करता था। इसका एक ही उदाहरण काफी है। 27 अक्टूबर के जनसत्ता में निजी संवाददाता की एक रिपोर्ट छपी है।इस रिपोर्ट में लिखा है ” भारत के प्रतिनिधि राम और हमलावर बाबर के समर्थकों के बीच संघर्ष लंबा चलेगा।” क्या यह पंक्तियां संघ पक्षधरता के प्रमाण के रूप में काफी नहीं हैं ? संघ के भोंपू की तरह ‘जनसत्ता’ उस समय कैसे काम कर रहा था इसके अनगिनत उदाहरण उस समय के अखबार में भरे पडे हैं। कहीं पर भी प्रभाष जोशी के धर्मनिरपेक्ष विवेक को इस प्रसंग में संपादकीय दायित्व का पालन करते नहीं देखा गया, बल्कि उनके संपादनकाल में संघ के मुखर प्रचारक के रूप में ‘जनसत्ता’ का कवरेज आता रहा। संपादक महोदय ने तथ्य ,सत्य और झूठ में भी अंतर करने की कोशिश नहीं की।
(मोहल्ला डाट कॉम पर अविनाश के आलेख पर लिखी प्रतिक्रिया )
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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