मंगलवार, 4 अगस्त 2009

स्‍वाइन फ्लू : बहुराष्‍ट्रीय दवा कंपनि‍यों का लालची खेल और मीडि‍या

पूना में 14 साल की एक लड़की की स्‍वाइन फ्लू के कारण मौत हुई है। इस लड़की की असामयि‍क मौत नि‍श्‍चि‍त रूप से दुखद घटना है। जब से स्‍वाइन फ्लू आया है तब से इसका व्‍यापक प्रचार हो रहा है। कि‍सी और बीमारी को इतना व्‍यापक कवरेज नहीं मि‍ल रहा। इसके पहले सि‍र्फ एडस को व्‍यापक कवरेज मि‍ला था। स्‍वाइन फ्लू को मि‍लने वाले व्‍यापक कवरेज का रहस्‍य क्‍या है ,क्‍या सचमुच में मीडि‍या का रूझान वि‍कासमूलक हो गया है अथवा इसका रहस्‍य कुछ और है।

स्‍वाइन फ्लू के नाम पर मीडि‍या लोगों को सचेत कम और भयभीत ज्‍यादा कर रहा है। सारी दुनि‍या में स्‍वाइन फ्लू के मात्र 1,34,503 मरीज पाए गए हैं।इससे मरने वालों की संख्‍या 816 है। भारत में मात्र 558 केस पाए गए हैं। इनमें 470 मरीज अस्‍पताल से स्‍वस्‍थ होकर घर वापस जा चुके हैं। इतनी कम मात्रा में मरीज होने के बावजूद मीडि‍या ने जि‍स तरह का हल्‍ला मचाया हुआ है,वह चि‍न्‍ता की चीज है।

स्‍वाइन फ्लू के बारे में जि‍स तरह का हंगामा मीडि‍या ने मचाया है वैसा हंगामा वह अन्‍य कि‍सी बीमारी को लेकर नहीं करता। दूसरी बात यह कि‍ आमतौर पर प्रति‍दि‍न हजारों लोगों को फ्लू होता रहता है। मीडि‍या के पास स्‍वाइन फ्लू के बारे में अभी तक प्रमाण नहीं हैं। जैसा साधारण तौर पर डाक्‍टर कहते हैं,वैसा ही मीडि‍या रि‍पोर्ट कर देता है। अगर यह स्‍वाइन फ्लू है तो इसे संक्रामक तौर पर फैलने में ज्‍यादा समय नहीं लगेगा। यदि‍ यह संक्रामक शक्‍ल नहीं लेता और इसे समय रहते नि‍यंत्रि‍त कर लि‍या जाता है तो सारी स्‍थि‍ति‍यां सही हो जाएंगी। स्‍वाइन फ्लू के बारे में वि‍श्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने जि‍स तरह का गैर जि‍म्‍मेदाराना और कारपोरेट परस्‍त रवैयया अपनाया है वह चि‍न्‍ता की बात है।

वि‍श्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के साथ फार्मास्‍युटि‍कल कंपनि‍यों का गहरा रि‍श्‍ता है। ये कंपि‍नयों अपने तारनहार के रूप में वि‍श्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन को देख रही हैं। स्‍वाइन फ्लू के बारे में यूरोप और तमाम पश्‍चि‍मी देशों के संदर्भ में सभी भवि‍‍ष्‍यवाणि‍यां गलत साबि‍त हुई हैं। उल्‍लेखनीय है कि‍ मैक्‍सि‍को को भूमंडलीकरण की प्रयोगशाला माना जाता है और स्‍वाइन फ्लू भी वहीं से सारी दुनि‍या में फैला है। यानी जि‍स तरह भूमंडलीकरण का मैक्‍सि‍को को परमतीर्थ माना जाता है वैसे ही स्‍वाइन फ्लू का भी यह परम तीर्थ है।

स्‍वाइन फ्लू का जब से आगमन हुआ है,बहुराष्‍ट्रीय दवा कंनि‍यों के पौ- बारह हो गए हैं। मसलन् ब्रि‍टि‍श दवा कंपनी ग्‍लैक्‍सो स्‍मि‍थ क्‍लीनी को 16 देशों में 195 मि‍लि‍यन खुराक की दवा सप्‍लाई के ऑर्उर मि‍ल चुके हैं, बाकी पचास देशों के साथ बात चीत चल रही है। इस कंपनी ने इनफ्लुएंजा की दवा उत्‍पादन क्षमता कई गुना बढ़ाने का फैसला भी कि‍या है। इसके अलावा अन्‍य कई दवा कंपनि‍यां हैं जो स्‍वाइन फ्लू की दवा बनाकर बाजार में लाने जा रही हैं। जब भी कभी कि‍सी बीमारी के बारे में मीडि‍या हल्‍ला मचाना शुरू करता है तो हमें यह देखना चाहि‍ए कि‍ आखि‍रकार इस बीमारी से कौन लाभान्‍वि‍त होने वाला है। मीडि‍या के द्वारा कि‍सी बीमारी के बारे में तेज प्रचार अभि‍यान महज खबर देने के मकसद से नहीं कि‍या जाता बल्‍कि‍ प्रचार अभि‍यान का मकसद होता है कि‍सी कंपनी वि‍शेष को लाभान्‍वि‍त करना। ये दवा कंपनि‍यां अपने छद्म लेखकों और चाकर वैज्ञानि‍कों के जरि‍ए पत्र पत्रि‍काओं में इस कदर हंगामा खडा करती हैं कि‍ आम आदमी भयाक्रांत हो जाता है। सरकारें डरने लगती हैं।

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