मैं अपने जीवन में सुहेल हाशमी को कभी नहीं भूल सकता।उनके कारण मुझे जमकर लाठियां खानी पड़ीं,नई कमीज फट गयी।वाकया है जेएनयू में श्रीमती इंदिरा गांधी के आने का ,संभवतः1981-82 का सत्र था।छात्रसंघ ने फैसला लिय़ा था कि इंदिरा गांधी के कैंपस प्रवेश का विरोध किया जाए।जेएनयू के पुराने कैंपस में अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान के सामने मैदान में पंडाल बनाकर श्रीमती गांधी के लिए मंच सजाया गया था। कैंपस के मुख्य गेट पर तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष अमरजीत सिंह सिरोही,महामंत्री अजय पटनायक,(सम्प्रति, जेएनयू शिक्षकसंघ के अध्यक्ष) नेतृत्व दे रहे थे।छात्रसंघ के ऑफिस के सामने तकरीबन 2000छात्र-कर्मचारी, मैं,सुहेल हाशमी,उपाध्यक्ष आर.वेणु आदि थे।हमलोगों के साथ इतिहासकार हरबंस मुखिया भी थे।इंदिरा गांधी के मुख्य गेट से प्रवेश करते ही सिरोही ने हाईजंप लिया और कमांडो घेरा तोड़ते हुए सीधे इंदिरा गांधी की कार के ऊपर जाकर गिरे,इसके बाद मुख्यगेट पर जमकर लाठी चार्ज शुरू हो गया।छात्रसंघ के सामने हम लोग नारे लगा रहे थे,पुलिस हमें ठेल रही थी,अचानक सुहेल ने मुझे उत्साहित किया औरमैंने पुलिस के घेरे को तोड़ा और इसके बाद जमकर लाठी चार्ज हुआ,सैंकड़ों लोग घायल हुए,पुलिस मुझे बेरहमी से मारते हुए ले गयी,उस समय छात्रों-कर्मचारियों का हजारों कंठो से प्रतिवाद सुनकर सारा कैंपस गूँज उठा इंदिरा गांधी वापस जाओ । उस लाठी चार्ज में सैंकड़ों छात्र घायल हुए लेकिन छात्रों ने वि वि की संपत्ति पर हमला नहीं किया,गुस्सा था और नारेथे।सारा आंदोलन अहिंसक था।दूसरे दिन के अखबारों में आंदोलन की खबर सुर्खियों में थी,इंदिरा गांधी का भाषण कहीं नहीं था।छात्रों ने बड़े कौशल के साथ इंदिरा गांधी के भाषण के दौरान पंडाल के अंदर लगातार उठकर पूरे भाषणभर प्रतिवाद किया और प्रतिवाद करने वाले छात्रों को पुलिस उठाती रही।पंडाल में अंदर गांधी बोल रही थीं,बाहर हजारों छात्र इंदिरा गांधी मुर्दाबाद,इंदिरा गांधी वापस जाओ,के नारे लगा रहे थे,डीडी टीवी चैनल ने पूरा भाषण रिकॉर्ड किया और उसका जो अंश टीवी पर दिखाया उसमें भाषण के समानांतर नारे जमकर गूंज रहे थे। इस बीच में एक घटना और घटी पुलिस वाले मुझे मारते -मारते वीसी ऑफिस के नीचे गाडियों के गैराज में ले गए ,वहां खड़ा करके चले गए,मैं कुछ देर बाद मौका निकालकर वहां से निकलकर फिरसे भीड़ में आ गया।इंदिरा गांधी के कैंपस से जाने के बाद हमलोग तत्कालीन वीसी नायडुम्मा से मिलने गए उनको मांगपत्र दिया,सवाल किया कि पुलिस को कैंपस में क्या उन्होंने बुलाया था तो उन्होंने कहा नहीं,हमने कहा पुलिस लाठीचार्ज के लिए माफी मांगो,उन्होंने वाकायदा माफी मांगी,प्रेस रिलीज जारी करके पुलिस लाठीचार्ज की निंदा की। पुलिस को फोन करके कहा कि गिरफ्तार छात्रों को तुरंत रिहा करो।इस तरह हम लोगों ने शांतिपूर्ण-अहिंसक प्रतिवाद का एक अध्याय पूरा किया।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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