जेएनयू के प्रतीक पुरूषों में तीन कॉमरेडों का नाम आता है ये हैं देवीप्रसाद त्रिपाठी, प्रकाश कारात और सीताराम येचुरी। इनमें से एकमात्र देवी प्रसाद त्रिपाठी ने सबसे ज्यादा कुर्बानियां दीं। आपातकाल में 18 महीनों तक जेल में रहे। जबकि बाकी दोनों का किसी भी किस्म की कुर्बानी देने का रिकॉर्ड नहीं है। यह बात दीगर है कि प्रकाशकारात और सीताराम येचुरी को माकपा के शीर्ष नेतृत्व में जगह मिली। इन दोनों नेताओं के व्यक्तित्व की अपनी-अपनी निजी विशेषताएं हैं। किंतु कुछ साझा विशेषताएं भी हैं। दोनों माक्र्सवाद की किताबी भाषा से अच्छी तरह वाकिफ हैं। दोनों का माक्र्सवाद और हिंदुस्तान के प्रति दर्शकीय संबंध है। प्रकाश कारात ने जेएनयू में सन् 1980 में भास्कर वेंकटरमन के अध्यक्ष पद हेतु आखिरी चुनाव प्रचार सभा की। तब से प्रकाशकारात ने कभी छात्र चुनाव सभाओं में हिस्सा नहीं लिया।इसी साल से चुनाव के मुख्य वक्ताओं में मेरा नाम शामिल हुआ जो 1987तक बना रहा। प्रकाश कारात का भाषण पार्टी प्रेस विज्ञप्ति, पार्टी कक्षा और पार्टी के संपादकीय शैली का मिश्रित रूप था ,उसके भाषणों में जिंदगी की धड़कनों का अभाव खटकता था, चाहकर भी वह अंत तक इस कमजोरी से मुक्त हो पाया। प्रकाश के इस स्वभाव का जीवन और पार्टी के प्रति यांत्रिक और संवेदनाहीन समझ से गहरा संबंध है। कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर जो लोग स्टालिन टाइप व्यक्तित्व से प्रभावित हैं उन्हें प्रकाश अपील करता है। साधारण छात्रों में उसके भाषण्ाों की न्यूनतम अपील होती थी, सिर्फ एसएफआई के सदस्यों का एक हिस्सा ही उसे आदर्श वक्ता के रूप में पसंद करता था। इसके विपरीत सीताराम येचुरी के भाषणों में पब्लिक स्कूल के डिबेटरों की शैली थी, यह शैली जेएनयू के पब्लिक स्कूल मार्का छात्रों को अपील करती थी, इसी शैली के कारण सीताराम को मीडिया में भी ज्यादा पसंद किया जाता है। पब्लिक स्कूल मार्का वक्तृता शैली मूलत: आभिजात्य पापुलिज्म को संबोधित करती है। आभिजात्य पृष्ठभूमि के छात्रों में सीताराम की जनप्रियता जबर्दस्त थी । उल्लेखनीय है आभिजात्य की जनप्रियता खोखली और अस्थायी होती है। यही वजह है सीता के भाषणों का क्षणिक प्रभाव होता था। वह जिस क्षण बोलता है तत्काल ही प्रभावहीन हो जाता है। आप जब तक भाषण सुनते हैं अच्छा लगता है, भाषण बंद और प्रभाव भी खत्म। इसके विपरीत डीपीटी के भाषणों में आख्यान और विचार की सम्मिश्रित पध्दति का प्रयोग था। डीपीटी का भाषण सुनते हुए छात्र आनंद लेते थे बाद में उसे स्मरण करके बहस करते थे। बहस अंतर्वस्तु और भाषणकला दोनों को लेकर होती थी। जेएनयू की वामपंथी छात्र संस्कृति को बनाने में जिन छात्रों की भूमिका महत्वपूर्ण थी और जो आइकॉन नहीं थे किंतु अपने जमाने के जेएनयू के बेहतरीन छात्र होने के साथ बेहतरीन संगठनकर्ता थे इनमें सर्वप्रथम दो नाम आते हैं पहला रमेश दीक्षित का और दूसरा है सुनीत चोपड़ा का। इन दोनों ने अपने-अपने तरीके से जेएनयू के छात्र आंदोलन की बुनियाद का निर्माण किया।ये दोनों देश में एसएफआई जैसे विशाल छात्र संगठन के संस्थापक सदस्यों में भी हैं। सुनीत इन दिनों माकपा में हैं,खेतमजदूर यूनियन के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं,वर्षों माकपा की केन्द्रीय कमेटी के सदस्य रहे हैं जबकि रमेश दीक्षित राष्ट्रवादी कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व का अंग हैं। इन दोनों छात्रनेताओं ने लंबे समय तक जेएनयू के उदात्त मानवीय चरित्र को अपने दैनन्दिन व्यवहार और विचारधारात्मक कार्यों से आगे बढ़ाया। इनके अलावा उस जमाने में छात्र आंदोलन के अग्रणी नेताओं में दिनेश अवरोल, प्रबीर पुरकायस्थ, अशोकलता जैन, इंदु अग्निहोत्री,सुहैल हाशमी, दिलीप उपाध्याय ,सीताराम प्रसाद सिंह, कैशर शमीम, रमेश दधीचि ,मनमोहन ,अनिल चौधरी ,डी.रघुनंदन आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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