रविवार, 15 मई 2016

गरीब के पांच स्टीरियोटाइप –

        गरीबी समस्त सामाजिक विपदा की जड़ है।गरीबी को आमतौर पर हम देखकर भी अनदेखा करते हैं या फिर उसके स्टीरियोटाइप रूप से बंधकर सोचते हैं।मीडिया के प्रचार ने हमारे मन में गरीब विरोधी धारणाएं बिठा दी हैं।ये सभी धारणाएं विभिन्न किस्म के स्टीरियोटाइप के जरिए मन में आती हैं। गरीब को लेकर पहला स्टीरियोटाइप तो यही है कि गरीब पढ़ना नहीं चाहता,शिक्षा को महत्व नहीं देता।इस तरह के स्टीरियोटाइप में गरीबों के बच्चों का स्कूल न जाना,मिड डे मिल के लिए स्कूल जाना,बीच में ही पढ़ाई छोड़ देना आदि चीजें हैं जो इस स्टीरियोटाइप को पुख्ता बनाते हैं।इस स्टीरियोटाइप को बनाने में गरीब के परिवार की भी भूमिका है,गरीब के परिवार की यह स्थिति नहीं होती कि वह अपने बच्चे का ठीक से ख्याल रख सके,उसके शैक्षणिक कार्य-व्यापार पर नजर रख सके।गरीब की पढ़ने में रूचि नहीं है यह स्टीरियोटाइप तुरंत नष्ट हो जाए यदि गरीब का परिवार बच्चे पर नजर रखे,उसके शिक्षा संबंधी कार्य-व्यापार में शिरकत करे।शिक्षा का संबंध सिर्फ स्कूल से ही नहीं है उसमें परिवार की बहुत बड़ी भूमिका है। गरीब यदि शिक्षा के प्रति उपेक्षा भाव व्यक्त कर रहा है तो उसका कारण यह नहीं है कि वह पढ़ना नहीं चाहता या बच्चों को स्कूल भेजना नहीं चाहता,उसका प्रधान कारण है उसकी दयनीय आर्थिक दशा,जिसके कारण वह दो-जून की रोटी जुटाने में ही उलझा रहता है,उस समय उसके सामने अस्तित्व रक्षा का सवाल ही प्रमुख होता है।उसकी समस्या यह है कि वह अपनी और बच्चों की जान बचाए या पढ़ाए। गरीबों में एक वर्ग वह है जिसकी न्यूनतम आय है लेकिन फिर भी वह बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाता,क्योंकि स्कूल भेजने के संसाधनों का उसके पास अभाव है।कोशिश हो कि सरकार इस मामले में पहल करके गरीबों के बच्चों को स्कूल पहुँचाने में मदद करे।

गरीबों के बारे में दूसरा स्टीरियोटाइप यह है कि वे आलसी होते हैं।सच इसके विपरीत है।वे आलसी नहीं होते।बल्कि इस तरह का प्रचार उनके मनोबल को तोड़ता है।बल्कि यह देखा गया है कि गरीब लोग ज्यादा सक्रिय होते हैं,चुस्त होते हैं।तीसरा स्टीरियोटाइप है कि गरीब नशा करता है।सच यह है खाए-अघाए लोग नशा ज्यादा करते हैं,गरीब तुलनात्मक तौर पर कम नशा करते हैं।नशे की लत उनमें पैदा की जाती है जिससे वे हमेशा गरीब बने रहें।गरीबों के बारे में चौथा मिथ है कि वे संप्रेषण के मामले में कमजोर होते हैं।हम उनको इस रूप में इसलिए देखते हैं क्योंकि हम भाषा को अस्मिता का आधार बनाकर देखते हैं।गरीब के पास सुसंस्कृत भाषा नहीं होती,लेकिन लोकल भाषा का अक्षय भंडार होता है,जिसका शिक्षितों में अभाव होता है।गरीबों के बारे में पांचवां स्टीरियोटाइप यह है कि वे अभिभावक के रूप में बहुत खराब अभिभावक होते हैं।सच यह नहीं है ।गरीब एक अभिभावक के रूप में सजग रहता है लेकिन बच्चों की स्वतंत्रता को मान्यता देता है।उसके पास स्थान का अभाव होता है जिसके कारण वह बच्चों को घर में पर्याप्त समय नहीं दे पाता। वे अपने बच्चों की बुनियादी जरूरतों के प्रति बेहद सचेत और सतर्क होते हैं और यथासंभव हिदायतें भी देते रहते हैं कि क्या करो और क्या न करो।



समस्या यह है कि हम स्टीरियोटाइप ढ़ंग से गरीबों को देखना कब बंद करते हैं।गरीबों को स्टीरियोटाइप नजरिए से देखने की बजाय मित्रवत नजरिए से देखें तो सामाजिक भेदभाव और अलगाव को कम करने में मदद मिलेगी,वरना स्टीरियोटाइप नजरिया तो भेदभाव बढ़ाता है।

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