रविवार, 8 मई 2016

माँ सोशलमीडिया और भाषा

        इंटरनेट का पहला सुख है आत्माभिव्यक्ति।दूसरा सुख है वर्चुअल प्रशंसा।इन दो सुखों ने सोशलमीडिया पर निजी जीवन के अनुभवों की बाढ़ पैदा कर दी है।जाहिर है आत्भिव्यक्ति की यह विश्वव्यापी सुविधा पहले कभी उपलब्ध नहीं थी।आज है तो लोग बढ़-चढ़कर माँ के साथ अपनी तस्वीरें शेयर कर रहे हैं,बहुत कम लोग हैं जो निजी अनुभव शेयर कर रहे हैं।यह सच है फोटो बहुत कुछ कहता है।लेकिन आत्माभिव्यक्ति का अभी भी सबसे ताकतवर मीडियम भाषा है।समस्या यह है कि भाषा में माँ के अनुभव कैसे व्यक्त करें ॽ अभी भी बहुतों के पास माँ के बारे में सही भाषा नहीं है।मात्र फोटो हैं।यह मूलतःआदिम अभिव्यंजना है। माँ को भाषा में लाना चाहिए।माँ जितनी भाषा में आएगी स्त्री की ताकत और स्पेस का उतना ही विकास होगा। भाषा में अभिव्यक्त करने के बाद ही मनुष्य को स्थान मिलता है,पहचान मिलती है।फोटो दें ,लेकिन फोटो को भाषा भी दें,फोटो को गद्य-पद्य से जब तक नहीं जोड़ेंगे, जीवन संघर्ष सामने नहीं आएंगे।जीवन संघर्ष के बिना मां या किसी का भी रूप निरर्थक है।माँ हमें भाषा देती है,भाषा बनाने में मदद करती है,वह जब भी मिलेगी भाषा में मिलेगी।

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