रविवार, 22 मई 2016

चुनावी हिंसा का मतलब


        पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव खत्म हुए हैं लेकिन दो राज्य ऐसे हैं जहां चुनाव के बाद हिंसा अभी जारी  है।ये हैं पश्चिम बंगाल और केरल। संयोग की बात है दोनों ही राज्यों में वाम निशाने पर है या निशाना लगा रहा है।सवाल यह है वाम जहां रहता है वहां पर चुनावी हिंसा क्यों होती रही है बिहार में कुछ महिना पहले चुनाव हुए उसके पहले दिल्ली में चुनाव हुए,हाल ही में तमिलनाडु,असम और पांडुचेरी में भी चुनाव हुए लेकिन कहीं पर चुनावी हिंसा नहीं हुई।संयोग की बात है इन सब राज्यों में वाम नहीं के बराबर है।
    पश्चिम बंगाल में विगत पाँच सालों में वामदलों खासकर माकपा पर असंख्य हमले हुए हैं।इसबार भी  चुनाव के पहले और बाद में असंख्य हमले हुए हैं।वाम पर हमले ऐसे समय में हो रहे हैं जब टीएमसी को अपार बहुमत मिला है।टीएमसी वाले जीत के बाद भी उदार बनने को तैयार नहीं हैं।लगातार हिंसक हमले कर रहे हैं।
    सवाल उठता है इस हिंसा की जड़ कहां है हिंसा वे लोग करते हैं जिनका जनता पर विश्वास नहीं होता।जो जनता के दिलो-दिमाग पर हिंसा के जरिए कब्जा या वर्चस्व रखना चाहते हैं।जिस दल का जनता में असर होगा वह हिंसा का सहारा नहीं लेगा लेकिन जो दल हिंसा का सहारा लेता है वह सतह पर कहता है कि आत्मरक्षा के लिए हिंसा कर रहा है या बदले की भावना से कर रहा है।
    असल में, हिंसा का असल मकसद है वर्चस्व स्थापित करना।वर्चस्व स्थापित करने वाली मनोदशा राजनीतिक कमजोरी से पैदा होती है। हिंसा जिस इलाके में होती है वहां पर वह तो असर छोड़ती ही है,इसके अलावा उन इलाकों में भी असर छोड़ती है जो दूर पड़ते हैं।लेकिन हिंसा हमेशा एक वृत्त में केन्द्रित रहती है।मसलन्,केरल के जिस जिले में माकपा-आरएसएस के बीच हिंसा हो रही है वह अधिक से अधिक केरल तक या सबंधित जिले तक सीमित रहेगी,उसके बाहर नहीं जाएगी।इस अर्थ में हिंसा स्थानीय और प्रांतीय होती है।

     मौजूदा हिंसा की जड़ें राजनीतिक असहिष्णुता में छिपी हैं।फिलहाल सभी राजनीतिकदलों में असहिष्णुता चरम पर है।कोई असहिष्णुता छोड़ने को तैयार नहीं है।मौजूदा हिंसा को पहल करके रोकने के लिए कोई दल तैयार नहीं है,उलटे गरम-गरम बयान आ रहे हैं या फिर उपेक्षा करके चुपचाप हिंसा देख रहे हैं।यह मनोदशा अ-लोकतांत्रिक और हिंसक है।हिंसा का जबाव हिंसा नहीं है,हिंसा का जबाव पुलिस भी नहीं है।हिंसा जबाव है शांति और वह संवाद-सहयोग के बिना स्थापित नहीं हो सकती।लोकतंत्र के ये दोनों महत्वपूर्ण तत्व हैं।जो दल लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कल तक वोट मांग रहा था वही दल आज मुँह फुलाए,गुस्से में ऑफिस में बैठा है या हिंसा में मशगूल है।हिंसा को हिंसा या घृणा या निंदा से खत्म नहीं कर सकते। हिंसा को खत्म करने के लिए शांति,सहयोग और संवाद की जरूरत है।

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