रविवार, 1 मई 2016

छात्र राजनीति का महाख्यान है जेएनयू -2-

       जेएनयू की 'स्प्रि ‍ट' का स्रोत हैं छात्र। छात्रों की एकता,सहनशीलता,मि‍तव्ययता, अनौपचारि‍कता, बौद्धि‍कता आदि‍ के सामने सभी नतमस्तंक होते हैं। जेएनयू की पहचान जी.पार्थसारथी, नायडूम्मा, मुनीस रजा,जीएस भल्ला या नामवर सिंह से नहीं बनती। जेएनयू की पहचान की धुरी है ''छात्र स्प्रिट'। यह 'छात्र स्प्रिट' सारी दुनि‍या में कहीं पर भी देखने को नहीं मि‍लेगी। जेएनयू की 'छात्र स्प्रिट' का आधार न वाम वि‍चारधारा है न दक्षि‍णपंथी वि‍चारधारा है। बल्कि लोकतांत्रि‍क अकादमि‍क वातावरण,वि‍चारधारात्मक वैवि‍ध्य, और लोकतांत्रि‍क छात्र राजनीति‍ इसकी आत्मा है। जेएनयू के वातावरण और 'छात्र स्प्रि ‍ट' को नि‍र्मि‍त करने में अनेक वि‍चारधाराओं की सक्रि‍य भूमि‍का रही है। जेएनयू का अकादमि‍क वातावरण वि‍चारधाराओं के संगम से बना है। जेएनयू में आपको एक नहीं अनेक वि‍चारधाराओं के अध्ययन-अध्यापन और सार्वजनि‍क वि‍मर्श का अवसर मि‍लता है । इस अर्थ में जेएनयू वि‍चारधाराओं का वि‍श्ववि‍द्यालय है। सि‍र्फ वाम वि‍चारधारा का वि‍श्ववि‍द्यालय नहीं है।फर्क इतना है कि‍ अन्यत्र वि‍श्ववि‍द्यालयों में वि‍चारधाराओं के अध्ययन -अध्यापन को लेकर इस तरह का खुलापन,सहि‍ष्णु और लोकतांत्रि‍क भाव नहीं है जि‍स तरह का यहां पर है।
जेएनयू की 'छात्र स्प्रिट' के अनेक नजारे हमारी आंखों से गुजरे हैं। आज भी इस 'छात्र स्प्रिट' को आप व्यंजि‍त होते देख सकते हैं। मुझे मई 1983 का ऐति‍हासि‍क क्षण याद आ रहा है। यह क्षण कई अर्थों में छात्र राजनीति‍ के सभी पुराने मानक तोड़ता है और नए मानकों को जन्मं देता है। यह वह ऐति‍हासि‍क क्षण है जि‍समें जेएनयू अपना समस्त पुराना कलेवर त्यागकर नया कलेवर धारण करता है। छात्रों में अभूतपूर्व एकता,अभूतपूर्व भूल और अभूतपूर्व क्षति‍ के दर्शन एक ही साथ हुए हैं। जेएनयू की अभूतपूर्व क्षति‍ के लि‍ए सि‍र्फ उस समय के छात्रसंघ के नेतृत्व को दोष देना सही नहीं होगा। मई 1983 की जेएनयू की तबाही के लि‍ए छात्र बहानाभर थे। असल खेल तो प्रशासकों ने खेला था। उस खेल में अधि‍कांश नामी गि‍रामी शि‍क्षकों ने प्रशासन का समर्थन कि‍या था। एकमात्र जीपी देशपाण्डे ,प्रभात पटनायक, सुदीप्ति‍‍ कवि‍राज, उत्सा पटनायक, पुष्पेंशपंत आदि ने खुलेआम छात्रों का पक्ष लि‍या था,प्रशासकों के खि‍लाफ आवाज उठायी थी। बाकी सब तो 'बदलो' ,' बदलो' कर रहे थे। मई 83 की घटना के साथ जेएनयू की समस्त पुरानी ऐति‍हासि‍क मान्याताएं, धारणाएं, वि‍श्वास, संस्कार,आदतें, राजनीति‍क मान्यताएं, प्रशासनि‍क नजरि‍या,प्रशासकीय नीति‍यां सब कुछ धराशायी हो गए । मई 83 की घटना को बहाना बनाकर जेएनयू को सुनि‍योजि‍त ढ़ंग से प्रशासकों ने तोड़ा। इस कार्य में लोकल प्रशासकों से लेकर केन्द्रीय शि‍क्षा मंत्रालय तक सभी का हाथ था। छात्र आंदोलन को तो महज बहाने के रूप में इस्तेमाल कि‍या गया था। मई छात्र आंदोलन नहीं होता तब भी जेएनयू में बुनि‍यादी परि‍वर्तन आते। मई 83 के भयानक दमन के बाद भी 'छात्र स्प्रि ट' खत्म नहीं हुई । सारे प्रशासकीय और नीति‍गत परि‍वर्तनों को लाने का बुनि‍यादी लक्ष्य था 'छात्र स्प्रिट' को नष्ट करना। छात्रों ने कभी भी यह लक्ष्य हासि‍ल करने दि‍या।उल्लेखनीय है मई आंदोलन के कारण 170 से अधिक छात्र निष्कासित हुए,एक साल दाखिले नहीं हुए,370से अधिक छात्रों पर 20 से अधिक केस दो साल तक चलते रहे। मई 83 के भयानक उत्पीडन और दमन के बावजूद छात्रों की एकता,भाईचारा, राजनीति‍क सहि‍ष्णुता और बंधुत्व बना रहा। उल्लेखनीय है मई 83 में मैं वहां की राजनीति‍ का अनि‍वार्य हि‍स्सा‍ था। जेएनयू की स्टूडेण्ट फेडरेशन ऑफ इण्डिया की जेएनयू यूनि‍ट का अध्यक्ष और दि‍ल्ली राज्य का उपाध्यक्ष था। बाद में सन् 1984 -85 के छात्रसंघ चुनाव में अध्यक्ष बनने वाला जेएनयू का एकमात्र हि‍न्दीभाषी छात्र था। जेएनयू कि‍सी व्यक्ति का बनाया नहीं है, कुछ व्यंक्तियों का भी बनाया नहीं है। वह प्रोफेसरों का भी बनाया नहीं है। जेएनयू को बनाया है छात्र स्प्रिट ने। कि‍सी महापंडि‍त ने जेएनयू नहीं बनाया। जेएनयू में व्यक्ति नहीं 'स्प्रिट' महत्वपूर्ण है। कर्मण्यता और छात्रसेवा महत्वपूर्ण है। जेएनयू 'छात्र स्प्रिट' की धुरी है कर्मण्यता। जो छात्रों के लि‍ए काम करेगा उसे वे प्यार करते हैं। वे राजनीति‍ पर ध्यान पीछे देते हैं कर्मण्यता पर ध्यान पहले देते हैं। अकर्मण्यक होने पर वे कि‍सी भी धाकड़ नेता को घूल चटा सकते हैं। छात्रों के बीच कौन कि‍तना समय देता है, उनकी तकलीफों में कौन कि‍तना ध्यान देता है,कि‍तना समय उनकी सुख दुखभरी जिंदगी में शेयर करता है। इन चीजों को जेएनयू की 'छात्र स्प्रिट' पहचानती है। कोई बढ़ि‍या नेता हो लेकि‍न छात्रों के बीच में नहीं छात्रसंघ के दफतर में क्लर्क की तरह बैठा रहे। छात्रसंघ की कार्रवाईयों को ही महत्व दे। सार्वजनि‍क तौर पर कम मि‍ले या लोगों में कम घुले मि‍ले तो ऐसे नेता को जेएनयू के छात्र पसंद नहीं करते।

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