फेसबुक पर अश्लील वीडियो पोस्ट करने,अश्लील गालियां लिखने,औरतों के प्रति अशालीन आचरण करने,गद्दी बातें लिखने वालों की संख्या बढ़ रही है। कायदे से फेसबुक प्रबंधकों को अश्लील, अपमानजनक भाषा और कामुक सामग्री आदि को निजी पहल करके सेंसर करना चाहिए। अश्लील -कामुक सामग्री और गालियां फेसबुक की आचारसंहिता का उल्लंघन है।सभी यूजरों को अश्लील भाषा और कामुक सामग्री के फेसबुक पर प्रचार-प्रसार का विरोध करना चाहिए.
फोटोग्राफी,डिजिटल तकनीक और विज्ञापनों के दबाब ने हमारे चेहरे-मोहरे सब बदल दिए हैं। खासकर नकली शरीर और नकली शक्ल की जो संस्कृति पैदा हुई है उसने असली चेहरे और असली शरीर के बोध ही खत्म कर दिया है। सवाल यह है कि नकली शक्ल और नकली स्कीन से हमारे नकली विचारों और व्यवहार का संबंध भी बन रहा है क्या ?उल्लेखनीय है भारत के मीडिया और सोशलमीडिया में बेरोजगारी, निरूद्योगीकरण और किसानों की बदहाली पर न्यूनतम कवरेज है । मीडिया से लेकर इंटरनेट तक सैलीब्रिटी चेहरे,फिल्म-टीवी,क्रिकेट आदि का ज्यादा कवरेज है। यह वस्तुतः डिजिटल संस्कृति है।इससे राजनीतिक अचेतनता बढती है।
सोशल नेटवर्क और खासकर फेसबुक को जो लोग आजादी का मंच समझ रहे हैं वे गलतफहमी के शिकार हैं। फेसबुक का अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठानों ,जैसे सीआईए,एफबीआई आदि से याराना है,वे सभी फेसबुक यूजरों की नजरदारी कर रहे हैं,अब इसी पैटर्न पर भारत सरकार भी नजरदारी कर रही है। फेसबुक यूजर शालीनता,लोकतांत्रिकबोध और परिपक्व नागरिक की तरह इस माध्यम का इस्तेमाल करें।
हमारे समाज में मध्यवर्ग के एक बड़े तबके में फैशन की तरह ग्लोबलाईजेशन का प्रभाव बढ़ा है,सरकार की नीतियों में ग्लोबलाइजेशन का अंधानुकरण चल रहा है,यहां तक कि अब तो वे लोग भी ग्लोबलाइजेशन के पक्ष में बोलने लगे हैं जो कल तक उसका विरोध करते थे,ऐसे विचारकों और राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं की तादाद तेजी से बढ़ रही है, वे यह कह रहे हैं कि पूंजीवाद का अब कोई विकल्प नहीं है,ग्लोबलाईजेशन के तर्कों को मानने के अलावा और कोई विकल्प नहीं हैं। यही स्थिति ग्लोबल मीडिया चैनलों की है, उनके उपभोक्ताओं में किसी भी किस्म का प्रतिवाद का स्वर दिखाई नहीं देता बल्कि उल्टे राजनीतिक हल्कों में ज्यादा से ज्यादा चैनल और अखबार समूहों को अपने राजनीतिक रुझान के पक्ष में करने की होड़ चल निकली है।
समग्रता में देखें तो फेसबुक पर हम असहिष्णु समाज बना रहे हैं ?सामान्यतौर पर कम्युनिकेशन सहिष्णु बनाता है,लेकिन फेसबुक ने यूजर के अवचेतन को जगाया है। अवचेतन में पड़ी घृणा,गंदगी, अश्लीलता आदि को अभिव्यक्त करने का सहज मौका दिया है। हमें सोचना चाहिए कि चेतनमन को जगाते हैं या अवचेतन मन को? फिलहाल तो अवचेतन की हवा बह रही है। कम्युनिकेशन के लिए चेतनमन सक्रिय रहे तो सुरक्षा है वरना खतरे ही खतरे हैं।
सोशलमीडिया को लेकर भारत सरकार की सचेतनता का कोई अर्थ नहीं है। असलमें ,सबसे पहले भारत सरकार को पोर्न सामग्री के वितरण पर पाबंदी लगानी चाहिए। पोर्न दिखाना-बेचना अपराध है।इसके सामाजिक दुष्प्रभावों पर सारी दुनिया में बहस हो रही है। लेकिन केन्द्र सरकार और उसके विरोधीदल पोर्न के मामले पर चुप हैं।महिला संगठन भी चुप्पी लगाए हुए हैं।इंटरनेट पर आपत्तिजनक सामग्री की निगरानी को लेकर जारी विवाद के बीच नामी सर्च पोर्टल गूगल ने अपनी पारदर्शिता रिपोर्ट में जनवरी 2011 से लेकर जून 2011 के बीच सरकार की ओर से सामग्री हटाने की सिफारिशें जारी की हैं। गूगल ने बताया है कि इस अवधि में सरकार ने उससे 358 आइटम और 68 कंटेंट हटाने की मांग की थी, जिसमें से कंपनी ने 51 फीसदी मांगों को आंशिक या पूरे तौर पर मान लिया था।
गूगल ने बताया, 'राज्य और स्थानीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने हमसे सामाजिक नेताओं के विरोध में प्रदर्शन, आपत्तिजनक भाषा वाले वीडियो यू ट्यूब से हटाने के लिए कहा था। हमने इनमें से ज्यादातर वीडियो हटाने से मना कर दिया था और महज उन्हीं वीडियो को हटाया था, जिनके कारण समुदायों में रंजिश बढऩे की आशंका थी।
सोशल मीडिया के नियंत्रण के बारे में केन्द्र सरकार की चिन्ताएं अन्ना आंदोलन के समय सामने आ गयी थीं। मोदी सरकार आने के बाद भी केन्द्र सरकार का पुराना नजरिया बदला नहीं है।यह एक तरह से सोशल मीडिया की संचालक कंपनियों को धमकी है कि 'सावधान रहो अपने दायरे के बाहर मत जाओ।' विचारणीय बात यह है जो केन्द्र सरकार दूरसंचार विभाग को नहीं चला पायी और उसे निजी स्वामित्व में दे दिया। वह सोशलमीडिया को क्या नियंत्रित करेगी ! ये सिर्फ कागजी कानूनी शेरों की बातें हैं ! इसके बावजूद हम यह कहना चाहेंगे कि हमारे फेसबुक बंधुओं को शालीन भाषा,सभ्य राजनीति और संस्कृति के नए मानकों को बनाना चाहिए। फेसबुक पर गली-मोहल्लों की भाषा ,खासकर गाली-गलौज की भाषा से बचना चाहिए। अन्ना भक्तमंडली से लेकर भाजपा की वानरटोली तक यह फिनोमिना देखा गया है। इन लोगों के एक धड़े ने फेसबुक पर आएदिन जो गंदगी की है,उसने सोशलमीडिया की साख को बट्टा लगाया है।
फेसबुक पर यूजर्स की निजी सूचना निकालने और उसे विज्ञापनदाताओं को 'बेचने' का
आरोप है और इस मुद्दे पर उसे यूरोप में कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है। ' संडे टेलिग्राफ ' की एक रिपोर्ट के अनुसार , फेसबुक अपने यूजर्स के राजनीतिक विचार, लैंगिक पहचान, धार्मिक आस्थाएं और यहां तक कि उनका अता-पता भी जमा कर रही है। यूरोपीय आयोग इस मुद्दे पर कार्रवाई करने की योजना बना रहा है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि लोग चाहे अपना 'प्राइवेसी सेटिंग' कुछ भी रखें, फेसबुक अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर का उपयोग कर सोशल नेटवर्किंग साइट पर लोगों की गतिविधियों की सूचना जमा कर रही है और उसे विज्ञापनदाताओं को उपलब्ध करा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोपीय आयोग 2012 जनवरी में एक नया निर्देश जारी करने वाला है जिसमें इस तरह के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।
दूसरे उद्योगों की तरह भारतीय दूरसंचार के आंकड़े भ्रमित करने वाले हैं। देश में 85 करोड़ से अधिक पंजीकृत मोबाइल नंबर हैं। पर स्पेक्ट्रम आवंटन का ढांचा सेवा प्रदाताओं के लिए इनकी संख्या बढ़ाने में मदद करता है। इसमें से एक तिहाई नंबर ऐक्टिव नहीं हैं। बाकी बचे नंबरों में से भी कई उन ग्राहकों के नाम पर पंजीकृत हैं जो ऑफिस या निजी इस्तेमाल के लिए अलग-अलग नंबर रखते हैं। पिछले कुछ वर्षों से लगातार प्रति ग्राहक औसत राजस्व घटा है। इस कारण से सेवा प्रदाताओं का मुनाफा भी कम हुआ है। हर सर्किल में दर्जनों टेलीकॉम सेवा प्रदाता कंपनियां हैं। इनमें से कुछ ही पैसा बना पाती हैं और नई कंपनियां तो अब तक अपने निवेश का बड़ा हिस्सा तक नहीं वसूल पाई हैं। इस बदहाल अवस्था के बाद तो दूरसंचार क्षेत्र के निजीकरण को यहीं रोकना चाहिए।
सीईए के साथ समझौते और तकनीकी सहमेल के कारण फेसबुक अपने यूजर की प्राइवेसी में हस्तक्षेप और तांक-झांक कर रहा है। फेसबुक अधिकारियों के अनुसार फेसबुक अपने यूज़र के लॉग ऑफ करने के बाद भी इस बात पर नजर रखता है कि उसके यूजर्स कौन सी वेबसाइट विजिट कर रहे हैं।
चीन में इंटरनेट के 50 करोड़ के करीब यूजर हैं और सबसे शक्तिशाली इंटरनेट सेंसरशिप भी है। सर्वसत्तावादी एकतंत्र में यह व्यवस्था बेहद परेशानी खड़ी करने वाली है। नव्य आर्थिक उदारीकरण और विश्व व्यापार संगठन की नीतियों के दायरे में आने के बावजूद वहां पर इंटरनेट सेंसरशिप में कोई ढ़ील नहीं आयी है। कायदे से उसे अपने सिस्टम को और उदार बनाना था,लेकिन उन्होंने नहीं किया। चीन पर विश्व जनमत का भी कोई दबाव नहीं है।इसका अर्थ यही है कि लूट की उदारता में चीन हिस्सेदार है,लोकतांत्रिक छूट देने के मामले में चीन आज भी कंजरवेटिव है। चीन का मॉडल है राजनीति में सर्वसत्तावाद,आर्थिक क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कारपोरेट तंत्र,उपभोक्तावाद और सख्त सेंसरशिप।
भारत में फेसबुक और इंटरनेट पर साइबर हैकरों के हमले बढ़ गए हैं। अभी तक भारत फेसबुक संतों की शांत रमणस्थली था लेकिन विगत एक सप्ताह से साइबर अशांति की खबरें आ रही हैं। भारत सरकार के संस्थानों की बेवसाइट हैक करके नकली लोग अन्य देशों की बेवसाइट पर हमले कर रहे हैं। इसी तरह फेसबुक को बाजार में डाउन करने के लिए नए तरीकों से पोर्न सामग्री फेसबुक पर भेजी जा रही है। साइबर हैकरों की इन शैतानियों के प्रति सजगता जरूरी है। इस विषय पर फेसबुक दोस्तों को अपनी वॉल पर लिखना चाहिए।भारत में संचार क्रांति के दुरूपयोगों के प्रति सचेतनता बढ़ रही है। इंटरनेट,फेसबुक,सोशल साइट ,ब्लॉग आदि पर अपमानजनक बातें लिखने वालों के प्रति अब आम यूजर सचेत हो रहा है। इस सचेतनता के कारण ही एक युवक को एक लड़की के प्रति अपमानजनक और अशालीन बातें नेट पर लिखने के लिए अदालत ने 20हजार रूपये का जुर्माना लगाया है। आप भी आई टी एक्ट के प्रति जागरूक बनें ।
दूसरी ओर सीआईए ने फेसबुक और ट्विटर पर निगरानी तेज कर दी है। वे विभिन्न देशों में चल रही राजनीतिक और अन्य किस्म की गतिविधियों पर गहरी नजर रखे हैं। इसके आधार पर वे अपने रणकौशल को भी बदल रहे हैं ,साथ ही यूजरों का व्यापक प्रोफाइल भी बना रहे हैं। यह यूजरों की निजता का उल्लंघन है ?
इंटरनेट आने के बाद से ऑनलाइन छेडखानी ,उत्पीड़न और अपमान की घटनाओं में इजाफा हुआ है। मसलन् ,आस्ट्रेलिया में 2008 में की गयी रिसर्च में पाया कि 42प्रतिशत युवाओं को ह्रासमेंट का सामना करना पड़ा।एक अन्य सर्वे में 36 फीसद लड़कियों और 32 फीसद लड़कों ने ह्रासमेंट की शिकायत की। ऑनलाइन ह्रासमेंट की घटनाओं से भारत में भी एक बड़ा तबका परेशान है । लेकिन अभी तक ऑनलाइन ह्रासमेंट की सटीक अवधारणा विकसित नहीं हो पायी है ।
फेसबुक के 80 करोड़ यूजर हैं और उसकी विज्ञापनों से इस साल 4.27 बिलियन डालर की आमदनी हुई है जो उसकी सकल आय का 85 फीसदी है। ऐसे में फेसबुक पर मंथली चार्ज लेने की अफवाह उसके प्रतिद्वंद्वी सोशल मीडिया साइट के लोगों ने ही उड़ायी है। फेसबुक पर जो लिखा जाता है उस पर सहज में विश्वास न करें। उसकी अन्य स्रोतों से पुष्टि करें। फेसबुक पर अफवाहें भी चलती हैं।
फेसबुक पर कभी आर्थिक तबाही के घटनाक्रमों पर मित्रलोग बहस क्यों नहीं करते ? क्या भारत में आर्थिक खुशहाली आ गयी है ? क्या मंदी की मार के सवाल सताते हैं ? सवाल यह है फेसबुक को हम भारत की मूल समस्याओं का मंच क्यों नहीं बना पाए हैं ?
फेसबुक पर वर्चुअल कामुक औरतें सक्रिय हैं।ये फेसबुक और चैटिंग के बहाने मोहित करती हैं। वर्चुअल प्रेम में फंसाती हैं और अंतमें गहरी निराशा और हताशा में धकेल देती हैं। आज इनके एक शिकार युवा ने फेसबुक से विदा ले ली। कहने का अर्थ है फेसबुक पर वर्चुअल औरतों से चैटिंग ओर वर्चुअल प्रेम न करें। यह आत्मघाती है।
नए साइबर जमाने के युवाओं में लोकतांत्रिक प्रतिवाद की आकांक्षाएं कम है। यह समाज से विच्छिन्न है और पूरी तरह मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग से सम्बद्ध है। इस युवा की मनोसंरचनाएं उपभोग,अकेलेपन , क्षण में पाने की आकांक्षा और प्रतिहिंसा ने निर्मित की है।
इंटरनेट महान है,फेसबुक महानतम है और लुढ़कता बाजार और आर्थिक मंदी इन सबसे महान है। संचार क्रांति और भूमंडलीकरण जिस स्वर्ग का सपना लेकर आए थे वहां इन दिनों वैचारिक-सांस्कृतिक सन्नाटा पसरा हुआ है। हमारे दोस्त इन सब सवालों पर चुप हैं । क्या ये सवाल बहस के लायक नहीं हैं ॽ
फेसबुक तो स्वर्ग की इन्द्रसभा है इसमें सुख है,आनंद है,विचार हैं,अमरता है,गान,संगीत, नृत्य, चित्र,मित्र सब हैं,इन्द्रसभा की तरह यहां रसोई ,खाना ,महंगाई ,मंदी ,राक्षस ,पति, पत्नी, संतान,समाज आदि की चिन्ता नहीं है। यहां सिर्फ रस , आनंद और अभिव्यक्ति है।यह सुखियों का संसार है।फेसबुक क्षणिक और अधूरी अभिव्यक्ति का माध्यम है।फेसबुक सिरपड़ों का खेल है,यहां अपरिचय के परिचय,बिना दीवार के वॉल,बिना स्याही कागज का लेखन,मुँह देखी मीठी बातें और खोखली प्रशंसाओं की लंबी सूची,सूचनाओं का ढ़ेर, बिना मांगे उपदेश,मजे की बातें,बोरिंग बातें,विज्ञापन और नकली व्यक्तिवाद का खोखला ताण्डव और फेसबुक का अरबों का धंधा।यानी फेसबुक उल्लू है उसकी सवारी लक्ष्मी करती है।फेसबुक में स्वर्ग और नरक भी हैं , स्वर्ग में उत्तर अमेरिका है वहां की 41 प्रतिशत आबादी ऑनलाइन है । नरक में विश्व की बाकी आबादी है जिसमें मात्र 10 प्रतिशत लोग ऑनलाइन हैं।अफ्रीका की मात्र 1 प्रतिशत आबादी ऑनलाइन है। ऑनलाइन स्वर्ग है और जो लाइन में है वो नरक में हैं। फेसबुक पर कुछ लोग हैं जो 11बजे के बाद अवतरित होते हैं वे फेसबुक के यक्ष-यक्षिणी हैं।
परवर्ती पूंजीवाद में सबसे बड़े किराए वसूलने वाले कारपोरेट घराने हैं। वे केबल टीवी से लेकर डीटीएच तक,इंटरनेट से टेलीफोन तक,डिस्नी लैंड से लेकर साइंस सिटी तक आम जनता से आनंद और कम्युनिकेशन के बदले किराया वसूलते हैं। यह किराया ही मोनोपोली कैपीटलिज्म के मुनाफे और आनंद का मूल स्रोत है। क्या इसके बाद भी हमें पूंजीवाद से प्यार करना चाहिए ?
पूंजीवाद में कोई भी कम्युनिकेशन फोकट में नहीं होता।दूरसंचार -मीडिया के इजारेदार घरानों की मुनाफाखोरी के बिना नहीं होता। मसलन् फेसबुक,ब्लॉग आदि इंटरनेट कम्युनिकेशन के लिए हम किराया देते हैं। दूरसंचार मुगल इस किराए से अमीर बनते हैं।यह परवर्ती पूंजीवाद का किराए का कम्युनिकेशन है और इसी अर्थ में बुर्जुआ कम्युनिकेशन है।
फेसबुक के मित्र किस विचारधारा के हैं यह जानने का आसान तरीका है कि वे किन विषयों पर वॉल पर लिखते हैं,किन विषयों पर अन्यत्र जाकर पढ़ते हैं और आमतौर पर उनकी किस तरह के राजनीतिक-आर्थिक सवालों में रूचि रखते हैं ? टिप्पणी करते हैं ?सवाल यह है कि क्या फेसबुक विचारधारारहित कम्युनिकेशन है ? फेसबुक पर शिक्षित युवा और अधेड़ आमतौर पर जिस भाषा का प्रयोग करते हैं वो प्रतिगामी भाषिक- सांस्कृतिक मनोदशा की अभिव्यक्ति है। ये,नकली फोटो लगाना, गलत सूचनाएं देना,विभ्रम की बातें करना,अश्लील भाषा या द्वयर्थक भाषा में लिखना,चैट करते हुए किसी भी लिंक को भेज देना आदि। अनेक लोग हैं जो फेसबुक पर लड़की देखी और लगे पीछा करने, ये लोग फेसबुक पर लड़की को पीछा किए बिना क्यों नहीं रह पाते ? पहले दोस्त बनाते हैं फिर चैट में पीछा करते हैं,क्या यह नेट पर स्त्री उत्पीड़न है ?
इंटरनेट पर सत्ता की नजरदारी लगातार बढ़ रही है।लैटिन अमेरिका में इंटरनेट को राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।प्रतिवादियों पर नजर रखी जा रही है,उन पर नियंत्रण लगाया जा रहा है। पेरू से लेकर बोलविया तक इंटरनेट की नजरदारी हो रही है। ईमेल,फेसबुक,ब्लॉग,ई मूवमेंट आदि पर विभिन्न तरीकों से नजर रखी जा रही है। यह नेट प्राइवेसी का अंत है।
इंटरनेट और कम्प्यूटर का ज्यादा उपयोग स्मृति में संचित करने की दिशा बदल सकता है। आमतौर पर अभी वैज्ञानिक नहीं जानते कि इससे मनुष्य की स्मृति का क्षय हो रहा है या स्मृति समृद्ध हो रही है। लेकिन मन के बाहर जो चीज संग्रहीत करना चाहते हैं उसके लिए इंटरनेट और कम्प्यूटर सुंदर माध्यम और संग्रहशाला है। मनुष्य का दिमाग इस मीडिय़म की संगति में धीरे धीरे बदल रहा है।
यह संचार क्रांति की आजादी के अंत की बेला है। संचार क्रांति ने जिस तरह की स्वतंत्रता और प्राइवेसी का आरंभ में वायदा किया था उसका धीरे धीरे अंत हो रहा है। आम लोगों की प्राइवेसी को नियंत्रित और नियोजित किया जा रहा है। बेहतर है नेट की दुनिया में हम अपने निजी पत्ते न खोलें।
साइबर साँड मात्र शब्दों से ही अपमानित नहीं करते वे इलैक्ट्रोनिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। मसलन वे किसी को अपमानित या परेशान करने के लिए गंदे,अश्लील वीडियो फेसबुक की वॉल पर लगा देते हैं।अपमानजनक एमएमएस या ईमेल करते हैं। अपमानजनक या नेगेटिव साइबर टेक्स्ट भेज देते हैं।
साइबर बांस करने के तरीके क्या हैं- पहला तरीका है आघात पहुँचा,अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करना,सेक्सुअल लैंग्वेज का इस्तेमाल करना, परेशान करना,मसलन् , बार-बार यह कहना 'बात कीजिए प्लीज' आदि । जो व्यक्ति इस तरह की भाषा का प्रयोग कर रहा है वह कितनी बार दोहराता है अपने व्यवहार को,महिने में एक बार,दो बार ,तीनबार या रोज।इससे आप उसके असंतुलन का अंदाजा सहज ही लगा सकते हैं।साइबर साँड मूलतःसामाजिक जीवन में मौजूद दादागिरी का ही साइबर रूप है। साइबर साँड ज्यादातर वे युवा और तरूण हैं जो एडजेस्टमेंट प्रॉब्लम के शिकार हैं। इसे साइबर भाषा में रिस्क ग्रुप में रखा जाता है और ये लोग भिन्न किस्म के व्यवहार की मांग करते हैं।साइबर पंगेबाज को साइबर बैल कहना ज्यादा सही होगा।वे अपनी नेगेटिव हरकत को बार बार दोहराते हैं। मसलन् साइबर बैल चैट में आकर पूछते हैं '' क्या आप मुझे पसंद करते हैं'। 'सेक्स करोगे',या वे कोई व्यक्तिगत आक्षेप करने वाले वाक्य या शब्द का इस्तेमाल कर बैठते हैं। साइबर स्पेस में किया गया एक नेगेटिव एक्शन दूरगामी असर छोड़ता है। नेगेटिव एक्शन की पुनरावृत्ति तुरंत प्रतिक्रिया पैदा कर सकती है।साइबर पंगेबाज कैसे लोग होते हैं ,किस उम्र के होते हैं,उनके पंगा लेने का तरीका क्या वे साइबर कम्युनिकेशन में कैसे परेशान करते हैं। इसे साइबर में 'बांस' करना भी कहते हैं।पश्चिम में इसमें ज्यादातर 10-18साल की उम्र के तरूण आते हैं।भारत में ऐसे लोगों में वयस्कों की संख्या ज्यादा है। इन लोगों का काम है नेट,फेसबुक,ब्लॉग,ईमेल,चाट आदि के जरिए आघात पहुँचाना।ये नेगेटिव एक्शन में ज्यादा रहते हैं।
नेट पर किए गए अनेक अनुसंधान बताते हैं कि जो ज्यादा चैट ,ईमेल और शॉपिंग करते हैं उनमें अवसाद के लक्षण ज्यादा होते हैं।ताइवान के कॉलेज छात्रों में किए अध्ययन से पता चला है कि इंटरनेट की लत का पढ़ाई ,दैनिक रूटीन पर असर होता है। जिनको लत है वे अवसाद में कष्ट पाते हैं।फेसबुक की बढ़ती आदत ने अमेरिकी तरूणों की स्कूली पढ़ाई को प्रभावित किया है।इंटरनेट में उन्हीं यूजरों के साथ दुर्व्यवहार या एब्यूज की घटनाएं देखी गयी हैं जिनमें आमने-सामने बात करने की क्षमता का अभाव होता है अथवा जो अवसाद में रहते हैं।रिसर्च में पाया गया है कि इंटरनेट यूजरों में जो अकेलेपन में नहीं हैं वे भावनात्मक सहयोगी की तलाश में नेट पर आते हैं। ऑनलाइन मित्र यहां ऑफलाइन मित्रों से मिलकर संतोष पाते हैं। इस तरह के यूजर भी हैं जो मनो व्यथाओं के शिकार हैं और अपनी व्यथा का समाधान खोजने आते हैं। इनमें बेचैनी,अवसाद और आत्मविश्वास की कमी देखी गयी है।
सन् 1990 के आसपास जब इंटरनेट का चलन तेज हुआ तो उस समय इसे लेकर भय और उत्साह का भाव था।आरंभ के शोध बताते हैं इंटरनेट के उपयोग ने अकेलेपन ,अवसाद और तनाव में वृद्धि की।नेट विशेषज्ञों का मानना है कि संचार की नई तकनीक के कारण हठात कम्युनिकेशन बढ़ जाने का सामाजिक-मनोवैज्ञानिक नकारात्मक असर होता है। इससे लत और अवसाद की जुगलबंदी पैदा होती है।क्या सोशल मीडिया नेटवर्क में गालियों का वही स्थान है जो उसे हमने सामाजिक जीवन में दिया है ? क्या सोशल मीडिया गालियों से ऊर्जा प्राप्त करता है ?गालियां संवादहीनता का संकेत है ।
फेसबुक आने के बाद विरही-विरहिणियों की संख्या बढ़ी है या घटी है ? विरह का प्रसार हुआ है या अवसान हुआ है ?मनमाने ढ़ंग से अपनी बात कहने का ढ़ंग अभागों का ढ़ंग है।कहते-कहते ऐसा भी कुछ सुनने को मिल जाता है जो पहले कभी नहीं सुना था।कहने के स्रोत में जब ज्वार आता है तब न जाने किस गुफा के भीतर की अनजान सामग्री बहती-बहती आकर घाट पर लग जाती है। क्या आपने ऐसा अनुभव किया है ?
सौंदर्य मनुष्य को संयम की ओर खींचता है,शालीनता का विकास करता है। इसके अलावा हमारी क्षुधा तृप्ति के साथ -साथ सदा उच्चतर सुर जगाता है।फेसबुक ने आम लोगों में खासकर मध्यवर्ग के लोगों में झूठ बोलने,फुसलाने,हां में हां मिलाने या निरर्थक समय खर्च करने की आदत में इजाफा किया है। छद्म या आभासी यथार्थ में जीने की भावना को पुख्ता बनाया है। आदमी का कम्युनिकेशन फास्ट किया है लेकिन संचार ,समाज ,व्यक्ति और वस्तु के बीच में महा-अंतराल पैदा किया है।फेसबुक यूजरों की संख्या 70 करोड़ के करीब हो गई है। आश्चर्यजनक बात है कि अमेरिका में फेसबुक यूजरों की संख्या में 6 मिलियन की गिरावट आई है।इसी तरह कनाडा,रूस,ब्रिटेन,नार्वे में फेसबुक यूजरों की संख्या घटी है। लेकिन विकासशील देशों में बढ़ रही है। क्या अमेरिकी लोग त्रस्त हैं फेसबुक से ?क्या फेसबुक सामाजिक-भावनात्मक अलगाव पैदा कर रहा है ?फेसबुक की खूबी है "जान ना पहचान मैं तेरा मेहमान",अनजाने लोगों से राजनीतिक-सामाजिक चर्चा तो ठीक है लेकिन इमोशनल बातें करना,व्यक्तिगत जानकारियां देना खतरनाक है।
फोटोग्राफी,डिजिटल तकनीक और विज्ञापनों के दबाब ने हमारे चेहरे-मोहरे सब बदल दिए हैं। खासकर नकली शरीर और नकली शक्ल की जो संस्कृति पैदा हुई है उसने असली चेहरे और असली शरीर के बोध ही खत्म कर दिया है। सवाल यह है कि नकली शक्ल और नकली स्कीन से हमारे नकली विचारों और व्यवहार का संबंध भी बन रहा है क्या ?उल्लेखनीय है भारत के मीडिया और सोशलमीडिया में बेरोजगारी, निरूद्योगीकरण और किसानों की बदहाली पर न्यूनतम कवरेज है । मीडिया से लेकर इंटरनेट तक सैलीब्रिटी चेहरे,फिल्म-टीवी,क्रिकेट आदि का ज्यादा कवरेज है। यह वस्तुतः डिजिटल संस्कृति है।इससे राजनीतिक अचेतनता बढती है।
सोशल नेटवर्क और खासकर फेसबुक को जो लोग आजादी का मंच समझ रहे हैं वे गलतफहमी के शिकार हैं। फेसबुक का अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठानों ,जैसे सीआईए,एफबीआई आदि से याराना है,वे सभी फेसबुक यूजरों की नजरदारी कर रहे हैं,अब इसी पैटर्न पर भारत सरकार भी नजरदारी कर रही है। फेसबुक यूजर शालीनता,लोकतांत्रिकबोध और परिपक्व नागरिक की तरह इस माध्यम का इस्तेमाल करें।
हमारे समाज में मध्यवर्ग के एक बड़े तबके में फैशन की तरह ग्लोबलाईजेशन का प्रभाव बढ़ा है,सरकार की नीतियों में ग्लोबलाइजेशन का अंधानुकरण चल रहा है,यहां तक कि अब तो वे लोग भी ग्लोबलाइजेशन के पक्ष में बोलने लगे हैं जो कल तक उसका विरोध करते थे,ऐसे विचारकों और राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं की तादाद तेजी से बढ़ रही है, वे यह कह रहे हैं कि पूंजीवाद का अब कोई विकल्प नहीं है,ग्लोबलाईजेशन के तर्कों को मानने के अलावा और कोई विकल्प नहीं हैं। यही स्थिति ग्लोबल मीडिया चैनलों की है, उनके उपभोक्ताओं में किसी भी किस्म का प्रतिवाद का स्वर दिखाई नहीं देता बल्कि उल्टे राजनीतिक हल्कों में ज्यादा से ज्यादा चैनल और अखबार समूहों को अपने राजनीतिक रुझान के पक्ष में करने की होड़ चल निकली है।
समग्रता में देखें तो फेसबुक पर हम असहिष्णु समाज बना रहे हैं ?सामान्यतौर पर कम्युनिकेशन सहिष्णु बनाता है,लेकिन फेसबुक ने यूजर के अवचेतन को जगाया है। अवचेतन में पड़ी घृणा,गंदगी, अश्लीलता आदि को अभिव्यक्त करने का सहज मौका दिया है। हमें सोचना चाहिए कि चेतनमन को जगाते हैं या अवचेतन मन को? फिलहाल तो अवचेतन की हवा बह रही है। कम्युनिकेशन के लिए चेतनमन सक्रिय रहे तो सुरक्षा है वरना खतरे ही खतरे हैं।
सोशलमीडिया को लेकर भारत सरकार की सचेतनता का कोई अर्थ नहीं है। असलमें ,सबसे पहले भारत सरकार को पोर्न सामग्री के वितरण पर पाबंदी लगानी चाहिए। पोर्न दिखाना-बेचना अपराध है।इसके सामाजिक दुष्प्रभावों पर सारी दुनिया में बहस हो रही है। लेकिन केन्द्र सरकार और उसके विरोधीदल पोर्न के मामले पर चुप हैं।महिला संगठन भी चुप्पी लगाए हुए हैं।इंटरनेट पर आपत्तिजनक सामग्री की निगरानी को लेकर जारी विवाद के बीच नामी सर्च पोर्टल गूगल ने अपनी पारदर्शिता रिपोर्ट में जनवरी 2011 से लेकर जून 2011 के बीच सरकार की ओर से सामग्री हटाने की सिफारिशें जारी की हैं। गूगल ने बताया है कि इस अवधि में सरकार ने उससे 358 आइटम और 68 कंटेंट हटाने की मांग की थी, जिसमें से कंपनी ने 51 फीसदी मांगों को आंशिक या पूरे तौर पर मान लिया था।
गूगल ने बताया, 'राज्य और स्थानीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने हमसे सामाजिक नेताओं के विरोध में प्रदर्शन, आपत्तिजनक भाषा वाले वीडियो यू ट्यूब से हटाने के लिए कहा था। हमने इनमें से ज्यादातर वीडियो हटाने से मना कर दिया था और महज उन्हीं वीडियो को हटाया था, जिनके कारण समुदायों में रंजिश बढऩे की आशंका थी।
सोशल मीडिया के नियंत्रण के बारे में केन्द्र सरकार की चिन्ताएं अन्ना आंदोलन के समय सामने आ गयी थीं। मोदी सरकार आने के बाद भी केन्द्र सरकार का पुराना नजरिया बदला नहीं है।यह एक तरह से सोशल मीडिया की संचालक कंपनियों को धमकी है कि 'सावधान रहो अपने दायरे के बाहर मत जाओ।' विचारणीय बात यह है जो केन्द्र सरकार दूरसंचार विभाग को नहीं चला पायी और उसे निजी स्वामित्व में दे दिया। वह सोशलमीडिया को क्या नियंत्रित करेगी ! ये सिर्फ कागजी कानूनी शेरों की बातें हैं ! इसके बावजूद हम यह कहना चाहेंगे कि हमारे फेसबुक बंधुओं को शालीन भाषा,सभ्य राजनीति और संस्कृति के नए मानकों को बनाना चाहिए। फेसबुक पर गली-मोहल्लों की भाषा ,खासकर गाली-गलौज की भाषा से बचना चाहिए। अन्ना भक्तमंडली से लेकर भाजपा की वानरटोली तक यह फिनोमिना देखा गया है। इन लोगों के एक धड़े ने फेसबुक पर आएदिन जो गंदगी की है,उसने सोशलमीडिया की साख को बट्टा लगाया है।
फेसबुक पर यूजर्स की निजी सूचना निकालने और उसे विज्ञापनदाताओं को 'बेचने' का
आरोप है और इस मुद्दे पर उसे यूरोप में कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है। ' संडे टेलिग्राफ ' की एक रिपोर्ट के अनुसार , फेसबुक अपने यूजर्स के राजनीतिक विचार, लैंगिक पहचान, धार्मिक आस्थाएं और यहां तक कि उनका अता-पता भी जमा कर रही है। यूरोपीय आयोग इस मुद्दे पर कार्रवाई करने की योजना बना रहा है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि लोग चाहे अपना 'प्राइवेसी सेटिंग' कुछ भी रखें, फेसबुक अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर का उपयोग कर सोशल नेटवर्किंग साइट पर लोगों की गतिविधियों की सूचना जमा कर रही है और उसे विज्ञापनदाताओं को उपलब्ध करा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोपीय आयोग 2012 जनवरी में एक नया निर्देश जारी करने वाला है जिसमें इस तरह के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।
दूसरे उद्योगों की तरह भारतीय दूरसंचार के आंकड़े भ्रमित करने वाले हैं। देश में 85 करोड़ से अधिक पंजीकृत मोबाइल नंबर हैं। पर स्पेक्ट्रम आवंटन का ढांचा सेवा प्रदाताओं के लिए इनकी संख्या बढ़ाने में मदद करता है। इसमें से एक तिहाई नंबर ऐक्टिव नहीं हैं। बाकी बचे नंबरों में से भी कई उन ग्राहकों के नाम पर पंजीकृत हैं जो ऑफिस या निजी इस्तेमाल के लिए अलग-अलग नंबर रखते हैं। पिछले कुछ वर्षों से लगातार प्रति ग्राहक औसत राजस्व घटा है। इस कारण से सेवा प्रदाताओं का मुनाफा भी कम हुआ है। हर सर्किल में दर्जनों टेलीकॉम सेवा प्रदाता कंपनियां हैं। इनमें से कुछ ही पैसा बना पाती हैं और नई कंपनियां तो अब तक अपने निवेश का बड़ा हिस्सा तक नहीं वसूल पाई हैं। इस बदहाल अवस्था के बाद तो दूरसंचार क्षेत्र के निजीकरण को यहीं रोकना चाहिए।
सीईए के साथ समझौते और तकनीकी सहमेल के कारण फेसबुक अपने यूजर की प्राइवेसी में हस्तक्षेप और तांक-झांक कर रहा है। फेसबुक अधिकारियों के अनुसार फेसबुक अपने यूज़र के लॉग ऑफ करने के बाद भी इस बात पर नजर रखता है कि उसके यूजर्स कौन सी वेबसाइट विजिट कर रहे हैं।
चीन में इंटरनेट के 50 करोड़ के करीब यूजर हैं और सबसे शक्तिशाली इंटरनेट सेंसरशिप भी है। सर्वसत्तावादी एकतंत्र में यह व्यवस्था बेहद परेशानी खड़ी करने वाली है। नव्य आर्थिक उदारीकरण और विश्व व्यापार संगठन की नीतियों के दायरे में आने के बावजूद वहां पर इंटरनेट सेंसरशिप में कोई ढ़ील नहीं आयी है। कायदे से उसे अपने सिस्टम को और उदार बनाना था,लेकिन उन्होंने नहीं किया। चीन पर विश्व जनमत का भी कोई दबाव नहीं है।इसका अर्थ यही है कि लूट की उदारता में चीन हिस्सेदार है,लोकतांत्रिक छूट देने के मामले में चीन आज भी कंजरवेटिव है। चीन का मॉडल है राजनीति में सर्वसत्तावाद,आर्थिक क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कारपोरेट तंत्र,उपभोक्तावाद और सख्त सेंसरशिप।
भारत में फेसबुक और इंटरनेट पर साइबर हैकरों के हमले बढ़ गए हैं। अभी तक भारत फेसबुक संतों की शांत रमणस्थली था लेकिन विगत एक सप्ताह से साइबर अशांति की खबरें आ रही हैं। भारत सरकार के संस्थानों की बेवसाइट हैक करके नकली लोग अन्य देशों की बेवसाइट पर हमले कर रहे हैं। इसी तरह फेसबुक को बाजार में डाउन करने के लिए नए तरीकों से पोर्न सामग्री फेसबुक पर भेजी जा रही है। साइबर हैकरों की इन शैतानियों के प्रति सजगता जरूरी है। इस विषय पर फेसबुक दोस्तों को अपनी वॉल पर लिखना चाहिए।भारत में संचार क्रांति के दुरूपयोगों के प्रति सचेतनता बढ़ रही है। इंटरनेट,फेसबुक,सोशल साइट ,ब्लॉग आदि पर अपमानजनक बातें लिखने वालों के प्रति अब आम यूजर सचेत हो रहा है। इस सचेतनता के कारण ही एक युवक को एक लड़की के प्रति अपमानजनक और अशालीन बातें नेट पर लिखने के लिए अदालत ने 20हजार रूपये का जुर्माना लगाया है। आप भी आई टी एक्ट के प्रति जागरूक बनें ।
दूसरी ओर सीआईए ने फेसबुक और ट्विटर पर निगरानी तेज कर दी है। वे विभिन्न देशों में चल रही राजनीतिक और अन्य किस्म की गतिविधियों पर गहरी नजर रखे हैं। इसके आधार पर वे अपने रणकौशल को भी बदल रहे हैं ,साथ ही यूजरों का व्यापक प्रोफाइल भी बना रहे हैं। यह यूजरों की निजता का उल्लंघन है ?
इंटरनेट आने के बाद से ऑनलाइन छेडखानी ,उत्पीड़न और अपमान की घटनाओं में इजाफा हुआ है। मसलन् ,आस्ट्रेलिया में 2008 में की गयी रिसर्च में पाया कि 42प्रतिशत युवाओं को ह्रासमेंट का सामना करना पड़ा।एक अन्य सर्वे में 36 फीसद लड़कियों और 32 फीसद लड़कों ने ह्रासमेंट की शिकायत की। ऑनलाइन ह्रासमेंट की घटनाओं से भारत में भी एक बड़ा तबका परेशान है । लेकिन अभी तक ऑनलाइन ह्रासमेंट की सटीक अवधारणा विकसित नहीं हो पायी है ।
फेसबुक के 80 करोड़ यूजर हैं और उसकी विज्ञापनों से इस साल 4.27 बिलियन डालर की आमदनी हुई है जो उसकी सकल आय का 85 फीसदी है। ऐसे में फेसबुक पर मंथली चार्ज लेने की अफवाह उसके प्रतिद्वंद्वी सोशल मीडिया साइट के लोगों ने ही उड़ायी है। फेसबुक पर जो लिखा जाता है उस पर सहज में विश्वास न करें। उसकी अन्य स्रोतों से पुष्टि करें। फेसबुक पर अफवाहें भी चलती हैं।
फेसबुक पर कभी आर्थिक तबाही के घटनाक्रमों पर मित्रलोग बहस क्यों नहीं करते ? क्या भारत में आर्थिक खुशहाली आ गयी है ? क्या मंदी की मार के सवाल सताते हैं ? सवाल यह है फेसबुक को हम भारत की मूल समस्याओं का मंच क्यों नहीं बना पाए हैं ?
फेसबुक पर वर्चुअल कामुक औरतें सक्रिय हैं।ये फेसबुक और चैटिंग के बहाने मोहित करती हैं। वर्चुअल प्रेम में फंसाती हैं और अंतमें गहरी निराशा और हताशा में धकेल देती हैं। आज इनके एक शिकार युवा ने फेसबुक से विदा ले ली। कहने का अर्थ है फेसबुक पर वर्चुअल औरतों से चैटिंग ओर वर्चुअल प्रेम न करें। यह आत्मघाती है।
नए साइबर जमाने के युवाओं में लोकतांत्रिक प्रतिवाद की आकांक्षाएं कम है। यह समाज से विच्छिन्न है और पूरी तरह मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग से सम्बद्ध है। इस युवा की मनोसंरचनाएं उपभोग,अकेलेपन , क्षण में पाने की आकांक्षा और प्रतिहिंसा ने निर्मित की है।
इंटरनेट महान है,फेसबुक महानतम है और लुढ़कता बाजार और आर्थिक मंदी इन सबसे महान है। संचार क्रांति और भूमंडलीकरण जिस स्वर्ग का सपना लेकर आए थे वहां इन दिनों वैचारिक-सांस्कृतिक सन्नाटा पसरा हुआ है। हमारे दोस्त इन सब सवालों पर चुप हैं । क्या ये सवाल बहस के लायक नहीं हैं ॽ
फेसबुक तो स्वर्ग की इन्द्रसभा है इसमें सुख है,आनंद है,विचार हैं,अमरता है,गान,संगीत, नृत्य, चित्र,मित्र सब हैं,इन्द्रसभा की तरह यहां रसोई ,खाना ,महंगाई ,मंदी ,राक्षस ,पति, पत्नी, संतान,समाज आदि की चिन्ता नहीं है। यहां सिर्फ रस , आनंद और अभिव्यक्ति है।यह सुखियों का संसार है।फेसबुक क्षणिक और अधूरी अभिव्यक्ति का माध्यम है।फेसबुक सिरपड़ों का खेल है,यहां अपरिचय के परिचय,बिना दीवार के वॉल,बिना स्याही कागज का लेखन,मुँह देखी मीठी बातें और खोखली प्रशंसाओं की लंबी सूची,सूचनाओं का ढ़ेर, बिना मांगे उपदेश,मजे की बातें,बोरिंग बातें,विज्ञापन और नकली व्यक्तिवाद का खोखला ताण्डव और फेसबुक का अरबों का धंधा।यानी फेसबुक उल्लू है उसकी सवारी लक्ष्मी करती है।फेसबुक में स्वर्ग और नरक भी हैं , स्वर्ग में उत्तर अमेरिका है वहां की 41 प्रतिशत आबादी ऑनलाइन है । नरक में विश्व की बाकी आबादी है जिसमें मात्र 10 प्रतिशत लोग ऑनलाइन हैं।अफ्रीका की मात्र 1 प्रतिशत आबादी ऑनलाइन है। ऑनलाइन स्वर्ग है और जो लाइन में है वो नरक में हैं। फेसबुक पर कुछ लोग हैं जो 11बजे के बाद अवतरित होते हैं वे फेसबुक के यक्ष-यक्षिणी हैं।
परवर्ती पूंजीवाद में सबसे बड़े किराए वसूलने वाले कारपोरेट घराने हैं। वे केबल टीवी से लेकर डीटीएच तक,इंटरनेट से टेलीफोन तक,डिस्नी लैंड से लेकर साइंस सिटी तक आम जनता से आनंद और कम्युनिकेशन के बदले किराया वसूलते हैं। यह किराया ही मोनोपोली कैपीटलिज्म के मुनाफे और आनंद का मूल स्रोत है। क्या इसके बाद भी हमें पूंजीवाद से प्यार करना चाहिए ?
पूंजीवाद में कोई भी कम्युनिकेशन फोकट में नहीं होता।दूरसंचार -मीडिया के इजारेदार घरानों की मुनाफाखोरी के बिना नहीं होता। मसलन् फेसबुक,ब्लॉग आदि इंटरनेट कम्युनिकेशन के लिए हम किराया देते हैं। दूरसंचार मुगल इस किराए से अमीर बनते हैं।यह परवर्ती पूंजीवाद का किराए का कम्युनिकेशन है और इसी अर्थ में बुर्जुआ कम्युनिकेशन है।
फेसबुक के मित्र किस विचारधारा के हैं यह जानने का आसान तरीका है कि वे किन विषयों पर वॉल पर लिखते हैं,किन विषयों पर अन्यत्र जाकर पढ़ते हैं और आमतौर पर उनकी किस तरह के राजनीतिक-आर्थिक सवालों में रूचि रखते हैं ? टिप्पणी करते हैं ?सवाल यह है कि क्या फेसबुक विचारधारारहित कम्युनिकेशन है ? फेसबुक पर शिक्षित युवा और अधेड़ आमतौर पर जिस भाषा का प्रयोग करते हैं वो प्रतिगामी भाषिक- सांस्कृतिक मनोदशा की अभिव्यक्ति है। ये,नकली फोटो लगाना, गलत सूचनाएं देना,विभ्रम की बातें करना,अश्लील भाषा या द्वयर्थक भाषा में लिखना,चैट करते हुए किसी भी लिंक को भेज देना आदि। अनेक लोग हैं जो फेसबुक पर लड़की देखी और लगे पीछा करने, ये लोग फेसबुक पर लड़की को पीछा किए बिना क्यों नहीं रह पाते ? पहले दोस्त बनाते हैं फिर चैट में पीछा करते हैं,क्या यह नेट पर स्त्री उत्पीड़न है ?
इंटरनेट पर सत्ता की नजरदारी लगातार बढ़ रही है।लैटिन अमेरिका में इंटरनेट को राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।प्रतिवादियों पर नजर रखी जा रही है,उन पर नियंत्रण लगाया जा रहा है। पेरू से लेकर बोलविया तक इंटरनेट की नजरदारी हो रही है। ईमेल,फेसबुक,ब्लॉग,ई मूवमेंट आदि पर विभिन्न तरीकों से नजर रखी जा रही है। यह नेट प्राइवेसी का अंत है।
इंटरनेट और कम्प्यूटर का ज्यादा उपयोग स्मृति में संचित करने की दिशा बदल सकता है। आमतौर पर अभी वैज्ञानिक नहीं जानते कि इससे मनुष्य की स्मृति का क्षय हो रहा है या स्मृति समृद्ध हो रही है। लेकिन मन के बाहर जो चीज संग्रहीत करना चाहते हैं उसके लिए इंटरनेट और कम्प्यूटर सुंदर माध्यम और संग्रहशाला है। मनुष्य का दिमाग इस मीडिय़म की संगति में धीरे धीरे बदल रहा है।
यह संचार क्रांति की आजादी के अंत की बेला है। संचार क्रांति ने जिस तरह की स्वतंत्रता और प्राइवेसी का आरंभ में वायदा किया था उसका धीरे धीरे अंत हो रहा है। आम लोगों की प्राइवेसी को नियंत्रित और नियोजित किया जा रहा है। बेहतर है नेट की दुनिया में हम अपने निजी पत्ते न खोलें।
साइबर साँड मात्र शब्दों से ही अपमानित नहीं करते वे इलैक्ट्रोनिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। मसलन वे किसी को अपमानित या परेशान करने के लिए गंदे,अश्लील वीडियो फेसबुक की वॉल पर लगा देते हैं।अपमानजनक एमएमएस या ईमेल करते हैं। अपमानजनक या नेगेटिव साइबर टेक्स्ट भेज देते हैं।
साइबर बांस करने के तरीके क्या हैं- पहला तरीका है आघात पहुँचा,अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करना,सेक्सुअल लैंग्वेज का इस्तेमाल करना, परेशान करना,मसलन् , बार-बार यह कहना 'बात कीजिए प्लीज' आदि । जो व्यक्ति इस तरह की भाषा का प्रयोग कर रहा है वह कितनी बार दोहराता है अपने व्यवहार को,महिने में एक बार,दो बार ,तीनबार या रोज।इससे आप उसके असंतुलन का अंदाजा सहज ही लगा सकते हैं।साइबर साँड मूलतःसामाजिक जीवन में मौजूद दादागिरी का ही साइबर रूप है। साइबर साँड ज्यादातर वे युवा और तरूण हैं जो एडजेस्टमेंट प्रॉब्लम के शिकार हैं। इसे साइबर भाषा में रिस्क ग्रुप में रखा जाता है और ये लोग भिन्न किस्म के व्यवहार की मांग करते हैं।साइबर पंगेबाज को साइबर बैल कहना ज्यादा सही होगा।वे अपनी नेगेटिव हरकत को बार बार दोहराते हैं। मसलन् साइबर बैल चैट में आकर पूछते हैं '' क्या आप मुझे पसंद करते हैं'। 'सेक्स करोगे',या वे कोई व्यक्तिगत आक्षेप करने वाले वाक्य या शब्द का इस्तेमाल कर बैठते हैं। साइबर स्पेस में किया गया एक नेगेटिव एक्शन दूरगामी असर छोड़ता है। नेगेटिव एक्शन की पुनरावृत्ति तुरंत प्रतिक्रिया पैदा कर सकती है।साइबर पंगेबाज कैसे लोग होते हैं ,किस उम्र के होते हैं,उनके पंगा लेने का तरीका क्या वे साइबर कम्युनिकेशन में कैसे परेशान करते हैं। इसे साइबर में 'बांस' करना भी कहते हैं।पश्चिम में इसमें ज्यादातर 10-18साल की उम्र के तरूण आते हैं।भारत में ऐसे लोगों में वयस्कों की संख्या ज्यादा है। इन लोगों का काम है नेट,फेसबुक,ब्लॉग,ईमेल,चाट आदि के जरिए आघात पहुँचाना।ये नेगेटिव एक्शन में ज्यादा रहते हैं।
नेट पर किए गए अनेक अनुसंधान बताते हैं कि जो ज्यादा चैट ,ईमेल और शॉपिंग करते हैं उनमें अवसाद के लक्षण ज्यादा होते हैं।ताइवान के कॉलेज छात्रों में किए अध्ययन से पता चला है कि इंटरनेट की लत का पढ़ाई ,दैनिक रूटीन पर असर होता है। जिनको लत है वे अवसाद में कष्ट पाते हैं।फेसबुक की बढ़ती आदत ने अमेरिकी तरूणों की स्कूली पढ़ाई को प्रभावित किया है।इंटरनेट में उन्हीं यूजरों के साथ दुर्व्यवहार या एब्यूज की घटनाएं देखी गयी हैं जिनमें आमने-सामने बात करने की क्षमता का अभाव होता है अथवा जो अवसाद में रहते हैं।रिसर्च में पाया गया है कि इंटरनेट यूजरों में जो अकेलेपन में नहीं हैं वे भावनात्मक सहयोगी की तलाश में नेट पर आते हैं। ऑनलाइन मित्र यहां ऑफलाइन मित्रों से मिलकर संतोष पाते हैं। इस तरह के यूजर भी हैं जो मनो व्यथाओं के शिकार हैं और अपनी व्यथा का समाधान खोजने आते हैं। इनमें बेचैनी,अवसाद और आत्मविश्वास की कमी देखी गयी है।
सन् 1990 के आसपास जब इंटरनेट का चलन तेज हुआ तो उस समय इसे लेकर भय और उत्साह का भाव था।आरंभ के शोध बताते हैं इंटरनेट के उपयोग ने अकेलेपन ,अवसाद और तनाव में वृद्धि की।नेट विशेषज्ञों का मानना है कि संचार की नई तकनीक के कारण हठात कम्युनिकेशन बढ़ जाने का सामाजिक-मनोवैज्ञानिक नकारात्मक असर होता है। इससे लत और अवसाद की जुगलबंदी पैदा होती है।क्या सोशल मीडिया नेटवर्क में गालियों का वही स्थान है जो उसे हमने सामाजिक जीवन में दिया है ? क्या सोशल मीडिया गालियों से ऊर्जा प्राप्त करता है ?गालियां संवादहीनता का संकेत है ।
फेसबुक आने के बाद विरही-विरहिणियों की संख्या बढ़ी है या घटी है ? विरह का प्रसार हुआ है या अवसान हुआ है ?मनमाने ढ़ंग से अपनी बात कहने का ढ़ंग अभागों का ढ़ंग है।कहते-कहते ऐसा भी कुछ सुनने को मिल जाता है जो पहले कभी नहीं सुना था।कहने के स्रोत में जब ज्वार आता है तब न जाने किस गुफा के भीतर की अनजान सामग्री बहती-बहती आकर घाट पर लग जाती है। क्या आपने ऐसा अनुभव किया है ?
सौंदर्य मनुष्य को संयम की ओर खींचता है,शालीनता का विकास करता है। इसके अलावा हमारी क्षुधा तृप्ति के साथ -साथ सदा उच्चतर सुर जगाता है।फेसबुक ने आम लोगों में खासकर मध्यवर्ग के लोगों में झूठ बोलने,फुसलाने,हां में हां मिलाने या निरर्थक समय खर्च करने की आदत में इजाफा किया है। छद्म या आभासी यथार्थ में जीने की भावना को पुख्ता बनाया है। आदमी का कम्युनिकेशन फास्ट किया है लेकिन संचार ,समाज ,व्यक्ति और वस्तु के बीच में महा-अंतराल पैदा किया है।फेसबुक यूजरों की संख्या 70 करोड़ के करीब हो गई है। आश्चर्यजनक बात है कि अमेरिका में फेसबुक यूजरों की संख्या में 6 मिलियन की गिरावट आई है।इसी तरह कनाडा,रूस,ब्रिटेन,नार्वे में फेसबुक यूजरों की संख्या घटी है। लेकिन विकासशील देशों में बढ़ रही है। क्या अमेरिकी लोग त्रस्त हैं फेसबुक से ?क्या फेसबुक सामाजिक-भावनात्मक अलगाव पैदा कर रहा है ?फेसबुक की खूबी है "जान ना पहचान मैं तेरा मेहमान",अनजाने लोगों से राजनीतिक-सामाजिक चर्चा तो ठीक है लेकिन इमोशनल बातें करना,व्यक्तिगत जानकारियां देना खतरनाक है।
समझदारी की बात।
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