हमारे फेसबुक मित्र
उन्मादियों की तरह ,भाजपा के प्रचारक की तरह जीत गए जीत गए हल्ला मचाए हुए हैं ! उनकी
इन हरकतों को देखकर हंसी भी आ रही है ,गुस्सा भी आ रहा है,मित्रो,फेसबुक
कम्युनिकेशन है, कम्युनिकेशन की शर्त है कि दिमाग की खिड़कियां खुली रहें,दिमाग की
खिड़कियां बन्द करके लोकतंत्र नहीं बचता।लोकतंत्र बचता है विवेकपूर्ण कम्युनिकेशन
से,असहमतियों की गंभीर मीमांसा करने से। आपलोग पढ़े-लिखे हो,आप लोग किसी के
कार्यकर्ता के तौर पर फेसबुक में दाखिल नहीं होते।आप निजी व्यक्ति के नाते यहां
संवाद करते हो।यह भी जानते हो कि यह संवाद वोटरों में नहीं हो रहा,फिर इस तरह की
विवेकहीनता क्यों ॽ
विवेकहीनता सबसे बड़ी पूंजी है फासिज्म
की।लोकतंत्र बचे और समृद्ध बने,यह आप-हम सबको देखना होगा।लेकिन आपलोग तो अपने
कम्युनिकेशन से उलटी दिशा में दौड़ रहे हैं।मसलन्, हाल के विधानसभा चुनावों को ही
लें तो अनेक नई चीजें देख पाएंगे,इन पर हमें खुलकर बातें करनी चाहिए।मसलन्,नीतियों
के सवाल को प्रमुख सवाल बनाया जाना चाहिए,लेकिन आपलोग नीतियों पर तो बात नहीं करना
चाहते। नीतिहीनता और अवसरवाद को लोकतंत्र के लिए कैंसर माना जाता है। कमोबेश सभी
दल इसकी गिरफ्त में हैं।
दूसरी बड़ी समस्या यह है भारत को उदार
पूंजीवाद के मार्ग पर चलना है या अनुदार पूंजीवाद के मार्ग पर चलना है।हमारे
मोदीभक्त मित्र कांग्रेस विरोध की विवेकहीन पगडंडी पर चलकर यदि उदारवाद का मार्ग
ग्रहण करते तो हमें कोई आपत्ति नहीं थी लेकिन वे तो भाजपा के अनुदार पूंजीवादी
मार्ग पर बढ़ चले हैं,वे भाजपा की हर जीत पर इस तरह खुश हो रहे हैं गोया वे
उदारतावाद के मार्ग पर एक और कदम आगे बढ़े हों ! लेकिन मित्रो,भारत में पहले से ही
सामंती दौर की संकीर्णताएं,अनुदार भावनाएं,मूल्य आदि मौजूद हैं इनमें भाजपा का
अनुदारवादी राजनीतिक अर्थशास्त्र इजाफा कर रहा है।
मोदीजी अनुदारवाद की हर स्तर नग्नतम रूप में
वकालत कर रहे हैं,अनुदारवाद के स्थानीय दलों को एकजुट कर रहे हैं,इससे भारत कभी
आगे नहीं जाएगा।दुर्भाग्य की बात है कारपोरेट मीडिया इस काम में उनकी मदद कर रहा
है,बहुराष्ट्रीय कंपनियां मदद कर रही हैं,क्योंकि वे भारत को अनुदार देश के रूप
में देखना चाहते हैं।मेरी निजी तौर पर कांग्रेस के साथ कोई मोहब्बत नहीं है।लेकिन
कम से कम कांग्रेस घोषित तौर पर,नीति के तौर पर अनुदारवाद की पक्षधर नहीं है,इसलिए
तुलनात्मक तौर पर भाजपा से बेहतर है।कांग्रेस की उदारवादी नीतियों ने धीमी गति से
ही सही लेकिन देश में उदार मूल्यों,संरचनाओं और संस्कारों के निर्माण में
केन्द्रीय भूमिका अदा की है,इसको स्वीकार करने में झिझक नहीं होनी चाहिए।कांग्रेस
का हारना उदारतावाद की पराजय है।अब आपलोग तय करें भारत को उदारतावाद के मार्ग पर
बढ़ते देखना चाहते हैं या फिर अनुदार मार्ग आगे बढ़ते देखना चाहते हैं।
फेसबुक पर तथ्य और सत्य के आधारपर बातें
होनीं चाहिए।मसलन्,मोदी की नीतियों पर खुलकर बातें हों,जमीनी हकीकत बड़ी भयावह है
सरकारी बैंकों से केन्द्र सरकार के इशारे पर जनता के धन की खुली लूट मची हुई है।यह
लूट बताती है मोदीजी किन वर्गों की सेवा
कर रहे हैं।मोदी प्रशासन का आलम यह है कि प्रचार के अलावा कोई काम नहीं हो
रहा।तमाम किस्म के संवैधानिक संस्थानों पर नियोजित हमले किए जा रहे हैं और यह काम
और कोई नहीं संघ परिवार कर रहा है जो सत्ता चला रहा है। आपातकाल को छोड़कर
संवैधानिक संस्थाओं पर हमले कभी किसी शासकदल ने नहीं किए लेकिन मोदीजी मजे में
हमले कर रहे हैं और इसके लिए ´कांग्रेस नष्ट करो ´का नारा लगाकर ध्यान हटा रहे
हैं। मोदी सरकार के अगले निशाने पर बैंकिग सिस्टम है।हमलोग यदि सावधान नहीं हुए तो
बाद में बहुत पछताएंगे।
ये सब नक्कारखाने में अपने अपने कानों को निकाल कर अपनी जेबों में रखे हुऐ लोगों की दुनियाँ है कुछ नहीं होना बजती रहे तूती भी :)
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