आज मजदूरों के विभिन्न संगठनों ने मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर मंहगाई और दूसरी समस्याओं को लेकर राष्ट्रीय हड़ताल की। विभिन्न कल-कारखानों और औद्योगिक क्षेत्रों में यह हड़ताल बेहद सफल रही है। मैंने फेसबुक के जरिए जानने कोशिश की थी कि विभिन्न इलाकों में हड़ताल कैसी रही और इस कुछ दोस्तों ने जो प्रतिक्रिया भेजी है वह देखने लायक है इससे हड़ताल का अंदाजा लगेगा साथ ही दोस्त कैसे देख रहे हैं इसका भी अंदाजा लगेगा।
उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और मजदूरों तथा कर्मचारियों के फेडरेशनों बीएमएस, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, एआईसीसीटीयूयूटीयूसी तथा एलपीएफ ने गत जुलाई को नयी दिल्ली में मजदूरों की दूसरी अखिल भारतीय कन्वेन्शन का आयोजन किया था। केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और मजदूरों तथा कर्मचारियों के फेडरेशनों के प्रतिनिधि गत जुलाई को मजदूरों की दूसरी राष्ट्रीय कन्वेंशन में एकत्रित हुए और उन पांच साझा मांगों पर संयुक्त कार्रवाई के कार्यक्रम की समीक्षा की। देश की सामाजिक , आर्थिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों पर गहन विचार-विमर्श किया गया।
पिछले अधिवेशन में लिए गए निर्णय जिसमें विरोध दिवस, प्रदर्शन, धरना, सत्याग्रह, जेल भरो आंदोलन जिसमें लगभग 10 लाख से ज्यादा मजदूरों ने भाग लिया था, की भी समीक्षा करते हुए इन कार्यवाहियों के बाद पैदा हुई स्थितियों पर विचार करते हुए 7 सितम्बर 2010 को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान करते हुए सर्वसम्मति से निम्नलिखित घोषणा पत्र पारित किया।
महंगाई पर खासतौर से खाद्य कीमतों में बढ़ोत्तरी पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाने की ट्रेड यूनियनों की मांग के बावजूद खाद्य कीमतें बढ़कर 17 फीसदी तक पहुंच गयी हैं। तथा मुद्रास्फीति बढ़कर दो अंकों में पहुंच गयी है और सरकार मेहनतकश अवाम की भारी तकलीफों को कम करने के मामले में पूरी तरह उदासीन बनी हुई है।
श्रम कानून तथा ट्रेड यूनियन अधिकारों के निर्बाध उल्लंघन पर ट्रेड यूनियनों द्वारा चिंता व्यक्त किए जाने के बावजूद स्थिति हर दिन गंभीर तथा दमनकारी बनती जा रही है। रोजगार हानि, अर्द्ध रोजगार असहनीय जीवन स्थितियों, बढ़ते काम के घंटों, अंधाधुंध ठेकाकरण, अस्थायीकरण तथा आउटसोर्सिंग के खिलाफ ट्रेड यूनियनों के विरोध के बावजूद मेहनतकश अवाम की जीवन स्थितियों में गिरावट तथा अमानवीय शोषण को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा।
मुनाफे वाले सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश के खिलाफ ट्रेड यूनियनों के विरोध के बावजूद कोल इंडिया लि., बीएसएनएल, सेल, एनएलसी, हिन्दुस्तान कॉपर, एनडीएमसी आदि में ताजा विनिवेश को लागू किया जा रहा है और अंधाधुंध विनिवेश की हानिकर नीति बेरोकटोक जारी है। ट्रेड यूनियनों के यह मांग करने के बावजूद असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए बिना किसी पाबंदी के सार्वभौम सर्वसमावेशी सामाजिक सुरक्षा कवरेज की खातिर एक भारी कल्याण फंड की स्थापना की जाए, फंड आबंटन मामूली बना हुआ है और प्रतिबंधात्मक प्रावधान जारी है।
कन्वेन्शन चिंता के साथ यह नोट करता हैकि न सिर्फ ट्रेड यूनियनों के विरोधों की अनदेखी की जा रही है बल्कि उस नीति को भी जोरशोर से लागू किया जा रहा है जिससे खाद्यान्नों की कीमत बढ़ी हैं। इनमें ताजातरीन है पेट्रोलियम कीमतों को नियंत्रण मुक्त करके उन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाजार से जोडऩा जिसके चलते मिट्टी के तेल, रसोई गैस, डीजल तथा पेट्रोल की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है। इसलिए यह कन्वेशन 7 सितम्बर 2010 को अखिल भारतीय आम हड़ताल के लिए आव्हान करने का संकल्प लेता है। कन्वेन्शन संबद्धताओं के आर-पार देश के पूरे मेहनतकश अवाम का आह्वान करता है कि देशव्यापी आम हड़ताल को पूरी तरह सफल बनाने के लिए और संघर्ष को और सघन बनाने के लिए नंवबर / दिसम्बर 2010 को संसद पर मजदूरों के जबर्दस्त प्रदर्शन की तैयारी के लिए लामबंद करें। इस संदर्भ में ही मैंने फेसबुक पर लिखा था - भारत में आज केन्द्रीय मजदूर संगठनों के आह्वान पर राष्ट्रीय हड़ताल चल रही है। मेरे शहर कोलकाता और समूचे प्रांत में इस हड़ताल ने आम हड़ताल की शक्ल ले ली है। यह मजदूर संगठनों की मंहगाई के विरोध की गई जायज हड़ताल है। आपके शहर और प्रांत में यह हड़ताल कैसी रही कृपया बताएं ?
उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और मजदूरों तथा कर्मचारियों के फेडरेशनों बीएमएस, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, एआईसीसीटीयूयूटीयूसी तथा एलपीएफ ने गत जुलाई को नयी दिल्ली में मजदूरों की दूसरी अखिल भारतीय कन्वेन्शन का आयोजन किया था। केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और मजदूरों तथा कर्मचारियों के फेडरेशनों के प्रतिनिधि गत जुलाई को मजदूरों की दूसरी राष्ट्रीय कन्वेंशन में एकत्रित हुए और उन पांच साझा मांगों पर संयुक्त कार्रवाई के कार्यक्रम की समीक्षा की। देश की सामाजिक , आर्थिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों पर गहन विचार-विमर्श किया गया।
पिछले अधिवेशन में लिए गए निर्णय जिसमें विरोध दिवस, प्रदर्शन, धरना, सत्याग्रह, जेल भरो आंदोलन जिसमें लगभग 10 लाख से ज्यादा मजदूरों ने भाग लिया था, की भी समीक्षा करते हुए इन कार्यवाहियों के बाद पैदा हुई स्थितियों पर विचार करते हुए 7 सितम्बर 2010 को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान करते हुए सर्वसम्मति से निम्नलिखित घोषणा पत्र पारित किया।
महंगाई पर खासतौर से खाद्य कीमतों में बढ़ोत्तरी पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाने की ट्रेड यूनियनों की मांग के बावजूद खाद्य कीमतें बढ़कर 17 फीसदी तक पहुंच गयी हैं। तथा मुद्रास्फीति बढ़कर दो अंकों में पहुंच गयी है और सरकार मेहनतकश अवाम की भारी तकलीफों को कम करने के मामले में पूरी तरह उदासीन बनी हुई है।
श्रम कानून तथा ट्रेड यूनियन अधिकारों के निर्बाध उल्लंघन पर ट्रेड यूनियनों द्वारा चिंता व्यक्त किए जाने के बावजूद स्थिति हर दिन गंभीर तथा दमनकारी बनती जा रही है। रोजगार हानि, अर्द्ध रोजगार असहनीय जीवन स्थितियों, बढ़ते काम के घंटों, अंधाधुंध ठेकाकरण, अस्थायीकरण तथा आउटसोर्सिंग के खिलाफ ट्रेड यूनियनों के विरोध के बावजूद मेहनतकश अवाम की जीवन स्थितियों में गिरावट तथा अमानवीय शोषण को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा।
मुनाफे वाले सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश के खिलाफ ट्रेड यूनियनों के विरोध के बावजूद कोल इंडिया लि., बीएसएनएल, सेल, एनएलसी, हिन्दुस्तान कॉपर, एनडीएमसी आदि में ताजा विनिवेश को लागू किया जा रहा है और अंधाधुंध विनिवेश की हानिकर नीति बेरोकटोक जारी है। ट्रेड यूनियनों के यह मांग करने के बावजूद असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए बिना किसी पाबंदी के सार्वभौम सर्वसमावेशी सामाजिक सुरक्षा कवरेज की खातिर एक भारी कल्याण फंड की स्थापना की जाए, फंड आबंटन मामूली बना हुआ है और प्रतिबंधात्मक प्रावधान जारी है।
कन्वेन्शन चिंता के साथ यह नोट करता हैकि न सिर्फ ट्रेड यूनियनों के विरोधों की अनदेखी की जा रही है बल्कि उस नीति को भी जोरशोर से लागू किया जा रहा है जिससे खाद्यान्नों की कीमत बढ़ी हैं। इनमें ताजातरीन है पेट्रोलियम कीमतों को नियंत्रण मुक्त करके उन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाजार से जोडऩा जिसके चलते मिट्टी के तेल, रसोई गैस, डीजल तथा पेट्रोल की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है। इसलिए यह कन्वेशन 7 सितम्बर 2010 को अखिल भारतीय आम हड़ताल के लिए आव्हान करने का संकल्प लेता है। कन्वेन्शन संबद्धताओं के आर-पार देश के पूरे मेहनतकश अवाम का आह्वान करता है कि देशव्यापी आम हड़ताल को पूरी तरह सफल बनाने के लिए और संघर्ष को और सघन बनाने के लिए नंवबर / दिसम्बर 2010 को संसद पर मजदूरों के जबर्दस्त प्रदर्शन की तैयारी के लिए लामबंद करें। इस संदर्भ में ही मैंने फेसबुक पर लिखा था - भारत में आज केन्द्रीय मजदूर संगठनों के आह्वान पर राष्ट्रीय हड़ताल चल रही है। मेरे शहर कोलकाता और समूचे प्रांत में इस हड़ताल ने आम हड़ताल की शक्ल ले ली है। यह मजदूर संगठनों की मंहगाई के विरोध की गई जायज हड़ताल है। आपके शहर और प्रांत में यह हड़ताल कैसी रही कृपया बताएं ?
इसके जबाब में दोस्तों ने बताया-
Subhash Rai- 08 सितंबर 2010 को 04:32 बजे
Jagdishwar jee, Agra mandal men bhee hadtal ka vyaapak asar raha. sadakon par aavajaahee kam rahee, sarkaree daftar soone rahe.
.
Niranjan Shrotriya- September 8, 2010 at 6:41am
जगदीश्वर भाई! दुखद है की मध्य प्रदेश में अब ट्रेड यूनियन्स का वह प्रभाव अब नहीं रहा! केवल बॅंक्स में छुटपुट असर दिखा! कुल मिलाकर हड़ताल निष्प्रभावी ही रही
Kishan Kaljayee - wrote:
"Delhi me bhi mujhe band ka koee khas asar nahi dikha.Lekin yah hadtal jaruri mudde par thi."
Divik Ramesh commented -
"दिल्ली महानगर ही नहीं देश की राजधानी हॆ । फिर भी काफ़ी अचर रहा हॆ । मुझे १९७३-७४ के दिन याद आ गये । महगाई के विरोध में ही मॆने भी धारा १४४ तोड़ी थी ऒर भूपेश गुप्त जॆसे बड़े नेताओं के साथ जेल (तिहाड़ जेल) में भी रहा था । शायद अध्यापक होने के नाते नॊकरी नहीं गई ।"
Ashish Tripathi - yahan banaras men to kuch ka pata hi nahin chal raha hai...
Asrar Khan -
"Delhi samet NCR mein hadtal kafee had tak kamyaab rahi ..Trade unions ne jamkar akta dikhai jise dekhkar aissa laga ki vartmaan sarkar se log keval asantust hi nahin valki sarkar se logon ka vishvaas uth gaya hai... mujhe lagta hai ki hamara desh bahut bade asantosh ki taraf badh raha hai."
ent you a message.
Jitendra Srivastava- 08 सितंबर 2010 को 08:52 बजे
dilli men vasa hee hai jaisa aksar hota hai.
Abdul wrote:
"yes com this is Indian Historic movment, long live All india UTUC ..........."
and Ajay Kamath like this.
Tapan Dasgupta -All Central Trade Union called an all India industrial stike agaist price rise, contract system, rights of the unorganised workers, privatisation etc., which got tremendous support and has been a great sucess. In Vadodara thousands of workers took out a rally from Mandvi - a historic central place of Vadodara to Collector Office and submitted a memorundum to him.
message.
Shri Krishna Sharma- 07 September 2010 at 17:34
दिल्ली के मजदूरों की स्थिति दूसरे राज्यों के मजदूरों से ज्यादा खराब है। कभी किसी बहाने तो कभी किसी वजह से , उन्हें एक जगह पर रहने तक
नहीं दिया जाता है इसलिए वे हक की लडाई तक में पीछे रह जाते हैं। एक तो कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी, ऊपर से घनी बरसात ने मजदूरों को बिखेर कर रखा है। इस वजह से यहाँ उतना प्रभाव दिखाई नहीं दिया जितना आप वहाँ बता रहे हैं।
Pankaj Chaturvedi- 08 September 2010 at 09:42
delhi is the capital and i saw little bit effect on auto rickshaw, except life was normal
Anupam Ojha - "Mumbai me atyant safal rahi ye hadataal !"
Vineet Kumar-
सॉरी सर,अभी आपका मैसेज देख पाया। दिन में फर्स्ट हाफ में थोड़ा असर दिखा लेकिन शाम के वक्त सीपी में तो सारी दूकानें खुली दिखी। काफी-चहल पहल भी। मयूर विहार में रहता हूं,वहां कोई असर नहीं दिखा।
ent you a message.
Meethesh Nirmohi- samanya rukh hee raha.
Sudha Tiwari - "चंडीगढ़ में बंद का असर मिला- जुला रहा.बैंक वगैरह बंद थे,स्कूल सारे खुले रहे और सड़क पर निजी वाहन ही चल रहे थे,बस- ऑटो वालो ने बंद का साथ पूरी तरह से दिया जबकि टैक्सी वालों ने आंशिक रूप से ."
Satyanand Nirupam -
dilli mein kuchh pata nahin chal paya, jahan tak main dekh paya...
Ajay Saklani - जगदीश्वर जी, मैं दिल्ली में रहता हूँ और यहाँ हड़ताल के लिए कोई जगह नहीं है| जंतर मंतर में जो लोग आन्दोलन करते हैं वो वहां आन्दोलनकारियों की भीड़ में खो जाते हैं| रोजाना वहां जा पाना नहीं हो पता है और समाचार वाले तो सर्कार और पूंजीपतियों के गुलाम हैं| तो असर कैसा है उसे जान पाना थोड़ा मुश्किल है| गरीबों को इस आन्दोलन के बारे में या तो पता नहीं है क्योंकि वो अपने जीने के लिए दो पैसे कमाने में व्यस्त हैं और अमीर इसे तमाशा समझते हैं| कौन जी रहा है और कौन मर रहा है इस से अमीरों को कुछ लेना देना नहीं है| उन्हें तो बस हराम की कमाई पसंद है|
कुछ आन्दोलन ऐसे भी हैं जिन्हें समझ पाना बहुत मुश्किल है| उन आंदोलनों में बैठे ज़्यादातर लोग यह भी नहीं जानते की वो यहाँ क्यों बैठे हैं क्योंकि उन्हें राजनीति के तहत किसी राजनीतिक दल के स्वार्थ के लिए उपयोग किया जा रहा है|
कुछ आन्दोलन ऐसे भी हैं जिन्हें समझ पाना बहुत मुश्किल है| उन आंदोलनों में बैठे ज़्यादातर लोग यह भी नहीं जानते की वो यहाँ क्यों बैठे हैं क्योंकि उन्हें राजनीति के तहत किसी राजनीतिक दल के स्वार्थ के लिए उपयोग किया जा रहा है|
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