बाबरी मस्जिद विवाद पर आखिरकार मनमोहन सिंह सरकार ने अपने सॉफ्ट हिन्दू कार्ड को चल ही दिया। कांग्रेस की नजर आने वाले उत्तर प्रदेश चुनावों पर है और कांग्रेस अपनी सॉफ्ट हिन्दुत्व की इमेज को भी खोना नहीं चाहती। यही वजह है कि आरएसएस के सरसंघचालक के बयान आते ही कांग्रेस ने 48 घंटे बाद ही संदेश भेजा है कि वह भी आने वाले दिनों में बाबरी मस्जिद को लेकर सॉफ्ट हिन्दू कार्ड खेलने जा रही है। आज प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की बैठक हुई और उस बैठक में यह फैसला लिया गया कि "The government appeals to the people of India to ensure that the delivery of the judgment is seen in its proper perspective as a path of judicial process. The government further appeals to all sections of society to maintain peace and order after the delivery of the judgment,"
यानी आम जनता आने वाले फैसले को सही परिप्रेक्ष्य में समझे। यह सही परिप्रेक्ष्य क्या है ? न्यायिक प्रक्रिया सही परिप्रेक्ष्य नहीं है।
केन्द्र सरकार के बयान का सॉफ्ट हिन्दू है यह कथन,बयान में कहा गया है "The determination on the issues need not necessarily end with this judgment unless it is accepted by all parties. In case any of the parties feels that further judicial consideration is required, there are legal remedies available which can be resorted to,"
यानी जब तक अदालत का फैसला सभी पक्षों को मान्य नहीं हो जाता तब तक अदालत का फैसला लागू नहीं होगा। कांग्रेस और केन्द्र सरकार की पुरानी नीति के संदर्भ में इस नई नीति में यह बड़ा शिफ्ट है।
अभी तक कांग्रेस का मानना था कि दोनों पक्ष अदालत का फैसला मानें, उसका सम्मान करें और कांग्रेस अदालत के फैसले को मानेगी और लागू करेगी। संघ परिवार इस राय का यह कहकर विरोध करता रहा है कि राममंदिर आस्था का प्रश्न है अतः इस पर न्यायालय की वही बात मानी जाएगी जो उनके पक्ष में होगी अन्यथा वे अदालत के फैसले को नहीं मानेंगे। एक तरह से केन्द्र सरकार की उपरोक्त घोषणा से अदालत का फैसला आने के पहले ही निरर्थक हो गया है। क्योंकि केन्द्र सरकार ने दोटूक ढ़ंग से कहा है कि अदालत के फैसले को सभी पक्ष मानेंगे तब ही बाबरी मस्जिद केस का फैसला लागू होगा। इसका अर्थ है कि बाबरी मस्जिद को तोड़ने वालों को अब यदि अदालत भी दण्डित करे तो उन्हें दण्ड नहीं दिया जाएगा। यदि अदालत यह कहती है कि राममंदिर विवादास्पद जगह पर बनाओ तब भी फैसला लानू नहीं होगा क्योंकि विवाद में शामिल मुस्लिम संगठन नहीं चाहेंगे। यदि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का फैसला आता है तो संघ परिवार विरोध करेगा और ऐसी अवस्था में भी फैसला लागू नहीं होगा। ऐसी स्थिति में बाबरी मस्जिद की विवादास्पद जगह पर बनाया गया नकली राममंदिर चलता रहेगा। अभी यह टेंट में चल रहा है। क्योंकि अदालत ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मस्जिद की जमीन पर बनाए इस मंदिर को गिराने का आदेश नहीं दिया था,सरकार ने भी अदालत से इस मंदिर को हटाने का अनुरोध नहीं किया था।
असल समस्या बाबरी मस्जिद गिराए जाने से जुड़ी है। संघ परिवार इसके लिए दोषी है इसे सारा देश जानता है। श्रीकृष्ण कमीशन ने भी इस संदर्भ में अपनी रिपोर्ट दे दी है जिसमें बाबरी मस्जिद गिराए जाने को लेकर संघ परिवार पर उंगलियां उठी हैं। संघ परिवार 24 सितम्बर2010 को आने वाले अदालती फैसले को लेकर कमर कस चुका है और मोहन भागवत के संदेश को केन्द्र सरकार ने सही पढ़ा है उसमें निहित आशंकाओं के बारे में समझ बनाते हुए शांति बनाए रखने की अपील की है। साथ ही संदेश दिया है कि बाबरी मस्जिद मामले पर यथास्थिति बदलने वाली नहीं है।
बाबरी मस्जिद के मसले पर विवाद में शामिल सभी पक्षों को एकमत करना असंभव है ऐसी स्थिति में बाबरी मस्जिद को तोड़ने वाले छुट्टा सांड की तरह घूमते रहेंगे। अनंतकाल तक अदालत का फैसला लागू नहीं हो पाएगा। यानी संघ परिवार के लिए यह मसला लंबे समय तक बनाए रखने की व्यवस्था कांग्रेस ने कर दी है। कांग्रेस के नेतृत्व की मान्यता यह है कि राममंदिर के मसले को जितना लंबा खींचा जाएगा संघ परिवार और भाजपा को इससे राजनीतिक फायदा उठाने में असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस नेतृत्व यह भूल रहा है कि धार्मिक -साम्प्रदायिक मसलों को लटकाए रखने से मसले मरते नहीं हैं बल्कि अनुकूल माहौल में पुनः उभरकर सामने आ जाते हैं।
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