परिवार का यह रूप बर्बर युग की मध्यम तथा उन्नत अवस्थाओं के बीच के युग में युग्म-परिवार से उत्पन्न होता है। उसकी अंतिम विजय सभ्यता के युग के आरंभ होने का सूचक थी। एकनिष्ठ विवाह वाला परिवार पुरुष की प्रधानता पर आधारित होता है। उसका स्पष्ट उद्देश्य ऐसे बच्चे पैदा करना होता है जिनके पितृत्व के बारे में कोई विवाद न हो। यह इसलिए जरूरी होता है कि समय आने पर ये बच्चे अपने पिता के सीधे उत्तराधिकारियों के रूप में उसकी दौलत विरासत में पा सकें। युग्म-परिवार से एकविवाह परिवार इस माने में भिन्न होता है कि इसमें विवाह का संबंध कहीं ज्यादा दृढ़ होता है और दोनों में से कोई भी पक्ष उसे जब चाहे तब नहीं तोड़ सकता। अब तो नियम यह बन जाता है कि केवल पुरुष को ही विवाह के संबंध को तोड़ देने और अपनी पत्नी को त्याग देने का अधिकार होता है। अपनी पत्नी के प्रति वफादार न रहने का उसका अधिकार अब भी कायम रहता है, कम से कम रीति-रिवाज इस अधिकार को मान्यता प्रदान करते हैं (नेपोलियन की विधि संहिता में तो साफ तौर पर पति को यह अधिकार दिया गया है, बशर्ते कि वह अपनी रखैल को अपने घर के अंदर न लाए30) और समाज के विकास के साथ-साथ पुरुष इस अधिकार का अधिकाधिक प्रयोग करता है। लेकिन यदि पत्नी प्राचीन यौन-संबंधों की प्रथा की याद करके उन्हें फिर से लागू करना चाहे तो उसे पहले से भी अधिक सख्त सजा दी जाती है।
परिवार के इस नए रूप को, ऐसी हालत में, जब उसमें जरा भी नरमी नहीं रह गई है, हम यूनानियों के बीच देखते हैं। जैसा कि मार्क्स ने कहा था, यूनानियों की पुराणकथाओं में देवियों का जो स्थान है, वह उस पूर्व काल का प्रतिनिधित्व करता है जब स्त्रियों की स्थिति अधिक सम्मानप्रद और स्वतंत्र थी। लेकिन वीरगाथा काल में ही हम यूनानी स्त्रियों को, पुरुष की प्रधानता और दासियों की होड़ के कारण, निरादृत पाते हैं। 'ओडीसी' में आप पढ़ेंगे कि टेलेमाकस किस प्रकार अपनी मां को डांटकर चुप कर देता है। होमर की रचनाओं में यह वर्णन मिलता है कि जब कभी युवतियां युध्द में पकड़ी जाती हैं, तो वे विजेताओं की कामलिप्सा का शिकार बनती हैं। विजयी सेना के नायक अपने पदों के क्रमानुसार सबसे सुंदर युवतियों को अपने लिए छांट लेते हैं। यह सुविदित है कि 'इलियाड' महाकाव्य की पूरी कथावस्तु का केंद्रीय तत्व ऐसी ही एक दासी के बारे में एकिलीज और एगामेम्नोन का झगड़ा है। होमर की रचनाओं में प्रत्येक महत्वपूर्ण नायक के संबंध में एक ऐसी वंदिनी युवती का जिक्र आता है जो उसकी हमबिस्तर है और हमसफर भी। इन युवतियों को उनके मालिक अपने घर ले जाते हैं, जहां उनकी विवाहित पत्नियां होती हैं, जैसे कि ईस्खिलस का एग्गामेन्नोन कसांड्रा को अपने घर ले गया था। इन दासियों से जो पुत्र पैदा होते हैं, उनको पिता की जायदाद में से एक छोटा सा हिस्सा मिल जाता है और वे स्वतंत्र नागरिक समझे जाते हैं। तेलामोन का एक ऐसा ही जारज पुत्र त्यूक्रोस है, जिसे अपने पिता का नाम ग्रहण करने की इजाजत है। विवाहित पत्नी से उम्मीद की जाती थी कि वह इन सारी बातों को चुपचाप सहन करेगी और खुद कठोर पातिव्रत्य धर्म का पालन करेगी तथा पतिपरायण रहेगी। यह सच है कि वीरगाथा काल में यूनानी पत्नी का सभ्यता के युग की पत्नी से अधिक आदर होता था, लेकिन पति के लिए उसका केवल यही महत्व था कि वह उसके वैध उत्तराधिकारियों की मां है, उसके घर की प्रमुख प्रबंधकर्त्री है और उसकी उन दासियों की दारोगा है, जिनको वह जब चाहे अपनी रखैल बना सकता है और बनाता भी है। एकनिष्ठ विवाह के साथ-साथ चूंकि समाज में दासता भी प्रचलित थी और सुंदर दासियां पूर्णत: पुरुष की संपत्ति होती थीं, इसलिए एकनिष्ठ विवाह पर शुरू से ही यह छाप लग गई कि वह केवल नारी के लिए एकनिष्ठता है, पुरुष के लिए नहीं। और आज तक उसका यही स्वरूप चला आया है।
जहां तक वीरगाथा काल के बाद के यूनानियों का सवाल है, हमें डोरियनों और आयोनियनों में भेद करना चाहिए। कई बातों में डोरियन लोगों में, जिनकी ठेठ मिसाल स्पार्टा है, होमर द्वारा वर्णित वैवाहिक संबंधों से भी अधिक प्राचीन संबंध मिलते हैं। स्पार्टा में हम एक ढंग का युग्म-विवाह पाते हैं, जिसे वहां के राज्य ने प्रचलित विचारों के अनुसार थोड़ा परिवर्तित कर दिया था। युग्म-विवाह का वह एक ऐसा रूप है, जिसमें यूथ-विवाह के भी अनेक अवशेष मिलते हैं। जिस विवाह से संतान नहीं होती थी उसे भंग कर दिया जाता था। राजा अनेक्सांद्रिदस ने (560 ई.पू. के लगभग) एक दूसरा विवाह किया, क्योंकि उसकी पहली पत्नी से संतान नहीं हुई थी और इस प्रकार दो गृहस्थियां कायम रखीं। इसी काल के एक और राजा एरिस्टोनस ने अपनी पहली दो बांझ पत्नियों के अलावा एक तीसरी स्त्री से विवाह किया था लेकिन उसने पहली दो पत्नियों में से एक को अपने यहां से चले जाने दिया था। दूसरी ओर, कई भाई मिलकर एक सामूहिक पत्नी भी रख सकते थे। यदि किसी को अपने मित्र की पत्नी पसंद आ जाती थी, तो वह भी हिस्सेदार हो सकता था। बिस्मार्क के शब्दों में, और किसी कामुक 'सांड़' के आ जाने पर, यदि वह सहनागरिक नहीं हो तो भी, अपनी पत्नी को उसके उपभोग के लिए प्रस्तुत करना उचित समझा जाता था। शोमान के अनुसार, प्लुटार्क की वह कथा और भी अधिक यौन-स्वच्छंदता की ओर इंगित करती है, जिसमें स्पार्टा की एक स्त्री अपने एक प्रेमी को, जो उसके पीछे पड़ा हुआ था, अपने पति से बात करने को भेज देती है। इस प्रकार, वास्तविक व्यभिचार, यानी पति की पीठ पीछे पत्नी का किसी और पुरुष के साथ यौन-संबंध उन दिनों सुनने में नहीं आता था। दूसरी ओर, स्पार्टा में कम से कम उसके उत्कर्ष काल में घरेलू दासप्रथा नहीं थी। स्पार्टियेटों में हीलोटों की स्त्रियों के साथ संभोग करने का कम प्रलोभन होता था, क्योंकि हीलोट लोग अलग बस्तियों में रहते थे। यदि इन सब परिस्थितियों में स्पार्टा की नारियां यूनान की और सब नारियों से अधिक सम्मान और आदर की पात्र समझी जाती थीं तो यह स्वाभाविक था। प्राचीन युग के लेखक यूनानी स्त्रियों में केवल स्पार्टा की नारियों और एथेंस की विशिष्ट हैटेराओं को ही इस काबिल समझते थे कि उनका जिक्र आदर के साथ करें, उनकी उक्तियों को अपनी रचनाओं में स्थान दें।
आयोनियन लोगों में हालत बिलकुल भिन्न थी जिनका लाक्षणिक उदाहरण एथेंस था। वहां लड़कियों को केवल कातना-बुनना और सीना-पिरोना सिखाया जाता था। बहुत हुआ तो वे थोड़ा पढ़ना-लिखना भी सीख लेती थीं। उन्हें करीब-करीब परदे में रखा जाता था और वे केवल दूसरी स्त्रियों से ही मिल-जुल सकती थीं। जनानखाना घर का एक खास और अलग हिस्सा होता था। यह आम तौर पर ऊपर की मंजिल पर या मकान के पिछले हिस्से में होता था। यहां पुरुषों की, खास तौर पर अजनबियों की आसानी से पहुंच नहीं हो सकती थी। जब मेहमान आते, औरतें वहां चली जाती थीं। स्त्रियां अकेले और बिना एक दासी को साथ लिए बाहर नहीं जाती थीं। घर में उन पर पहरा सा रहता था। एरिस्टोफेनस कहता है कि व्यभिचारियों को पास न फटकने देने के लिए मोलोस्सियन कुत्ते घर में रखे जाते थे और, कम से कम एशिया के शहरों में, औरतों पर पहरा देने के लिए हिजड़े रखे जाते थे। हेरोडोटस के काल से ही कियोस द्वीप में बेचने के लिए हिजड़े बनाए जाते थे। वाक्समुथ का कहना है कि वे केवल बर्बर लोगों के लिए ही नहीं बनाए जाते थे।यूरिपिडीज में पत्नी को ओइकुरेमा यानी गृह-प्रबंध के लिए एक वस्तु (यह शब्द नपुंसक लिंग का है) की संज्ञा दी गई है क्योंकि बच्चे पैदा करने के सिवा एक एथेंसवासी की दृष्टि में पत्नी का महत्व प्रमुख नौकरानी से अधिक कुछ नहीं था। पति अखाड़े में जाकर कसरत करता था, सार्वजनिक जीवन में भाग लेता था, पर इस सबसे पत्नी को अलग रखा जाता था। इसके अलावा उसके पास दासियां भी होती थीं और एथेंस के उत्कर्ष काल में तो वहां बड़े व्यापक रूप में वेश्यावृत्ति भी होती थी। कम से कम यह तो कहा ही जा सकता है कि इसे राज्य की तरफ से बढ़ावा मिलता था। इस वेश्यावृत्ति के आधार पर ही यूनान का वह एकमात्र प्रसिध्द नारी वर्ग विकसित हुआ था। यह अपने बुध्दिबल और कलाप्रेम के कारण प्राचीन काल की नारियों के साधारण स्तर से उतना ही ऊपर उठ गया था, जितना ऊपर स्पार्टा की नारियां अपने चरित्र के कारण उठ गई थीं। एथेंस की पारिवारिक व्यवस्था पर इससे भयंकर इलजाम और क्या लगाया जा सकता है कि सही मानों में नारी बनने के लिए पहले हैटेरा बनना पड़ता था।
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं