भू.पू.सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में समाजवाद के पराभव के बाद सारी दुनिया में कम्युनिस्टों के प्रति संशय और अविश्वास में इजाफा हुआ है। कम्युनिस्टों की भावनाओं को गहरा धक्का लगा है। इस धक्के और संशय को तोड़ने का काम लैटिन अमेरिका के क्रांतिकारियों ने किया है। हम सबके ऊपर शीतयुद्धकालीन समाजवाद का इतना गहरा असर रहा है कि हमने कभी सोवियत संघ से अलग हटकर समाजवाद के बारे में सोचा ही नहीं।
लैटिन अमेरिका के मार्क्सवादियों ने क्रांति के देशी मॉडल बनाए हैं और समाजवाद के पराभव के युग में भी मार्क्सवाद के देशी प्रयोग किए हैं। क्रांति का वरनाकुलर मॉडल बनाया है। क्यूबा के अनुभव उसका ही हिस्सा हैं। देशी मार्क्सवाद के निर्माण में लैटिन अमेरिका ने लैटिन अमेरिका को रास्ता दिखाया है। नव्य-उदारतावाद की आंधी में जब समाजवाद का पराभव हो रहा था ऐसे में लैटिन अमेरिका में समाजवाद के विचारों की सार्थकता को सिद्ध किया है। इस संदर्भ में देखें तो क्यूबा की शिक्षा के अनुभव हमारे काम के हैं।
ये अनुभव क्यूबा का वर्तमान भी हैं। फिदेल कास्त्रो ने कहा ''अब तक जो कुछ कहा गया है, उसका मतलब यह है कि क्यूबा, जहां आप आठवीं बार मिल रहेहैं, में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति आ रही है। यह 44 वर्ष से चल रही घेराबंदी, राजनीतिक और आर्थिक युध्द विशेषकर समाजवादी जगत तथा सोवियत संघ के टूट जाने के बाद 10 वर्षों के दौरान स्थिति से निपटने की आवश्यकता का परिणाम है।''
''पिछले तीन वर्षों में जीवन हमें विचारों की महान लड़ाई के बीच ले आया है। हम अपने कार्यों तथा अपने ऐतिहासिक ध्येयों की आत्मतुष्टि के साथ नहीं बल्कि आलोचनात्मक समीक्षा करते हैं।नई ऊंची चुनौतियां हैं तथा एक महत्वपूर्ण सबक भी। इस समय हम ऐसे कार्यक्रम चला रहे हैं जिनके बारे में में युवा क्रांतिकारियों के रूप में हमने उस समय सपने में भी नहीं सोचा था जब हमने मोनकाडा गैरिसन पर हमला किया था, ग्रानमा केबिन क्रूजर उतरे थे तथा 25 महीने के युध्द के बाद 1959 में विजय हासिल की थी। ''
''हममें से जो बच गए उनका कई वर्षों तक जीवित रहना तथा वह अनुभव संचित करना कोई योग्यता नहीं है। यह तो सौभाग्य है जिसमें संयोग ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। अभी जो समय बीता है उसमें दुनिया, उसकी जटिलता और समस्याएं काफी बदल गई हैं। वे अधिक गंभीर हो गई हैं। नए और अकल्पनीय शिल्प विज्ञान विकसित हो गए हैं। यह सही है कि एक वर्ष के भीतर निरक्षरता का पूरी तरह से उन्मूलन बहुत बड़ा काम था। निरक्षरता बने रहने पर यह सब काम करने में काफी देर लगती। लेकिन अब हमारे पास मानवीय और नैतिक पूंजी है, एक महान अंतर्राष्ट्रीयवादी भावना तथा उदात्त राजनीतिक संस्कृति है। इसलिए अब इतिहास, अर्थशास्त्र, मानविकी और विज्ञान के बुनियादी ज्ञान सहित शिक्षा और संस्कृति संबंधी कोई भी ध्येय, कलात्मक तथा राजनीतिक दोनों, हमारी पहुंच के बाहर नहीं हैं।"
"मैंने जिस शैक्षिक क्रांति का जिक्र किया है उसे ये ठोस शब्द संश्लिष्ट रूप में पेश कर देते हैं।
ज्ञान और संस्कृति के संचार के आश्चर्यजनक साधनों को देखते हुए मैंने अपने बच्चों, अपने किशोरों, अपने युवा छात्रों को प्रदत्त ज्ञान में स्थिति के अनुसार तीन गुनी, चार गुनी यहां तक पांच गुनी वृध्दि की बात कही है।
हमारी शिक्षा में भावी परिवर्तनों के उल्लेखनीय राजनीतिक, सामाजिक और मानवीय अर्थ होंगे। मेरे विचार से यह बहुत बड़ा पहलू है जिसके बारे में मैं इस कांग्रेस में आपको बता सकता हूं।
आज हमारी जाति द्वारा अपने अस्तित्व की लड़ाई में विचार अनिवार्य उपकरण हैं। विचार शिक्षा से पैदा होते हैं। नैतिक मूल्यों सहित बुनियादी मूल्य इसी तरह से बोए जाते हैं। शिक्षा क्लासरूम से शुरू नहीं होती बल्कि बच्चे के जन्म के क्षण से ही शुरू हो जाती है। सबसे पहले सच्ची शिक्षा की माता-पिताओं को जरूरत है, विशेष रूप से मांओं को जो बच्चों को इस दुनिया में लाती हैं।माताओं-पिताओं तथा वयस्कों के लिए यह समझना अनिवार्य है कि बच्चों के साथ क्या किया जाए और क्या नहीं। इसके अंतर्गत आवाज के लहजे से लेकर अन्य तमाम बातों को ध्यान में रखा जाए क्योंकि इससे बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत असर पड़ता है। उनके खिलाने-पिलाने पर पूरा ध्यान दिया जाए क्योंकि यह उनके जीवन के पहले दो या तीन वर्षों में उनकी बौध्दिक क्षमता के विकास की दृष्टि से बहुत महत्वूपर्ण है। अन्यथा वे जन्म के समय संभावित मानसिक क्षमता से कम क्षमता के साथ शिशु कक्षा में जाएंगे। यह सब गैर औपचारिक शिक्षा से ताल्लुक रखता है। यह निर्णायक व्यवस्था माता के सहजबोध जैसे असाधारण प्राकृतिक तत्व पर निर्भर होगी।साफ शब्दों में कहें तो शिक्षा ऐसा उपकरण है जो जीव सुलभ स्वाभाविक वृत्तियों के साथ जन्मे बच्चे को मानव में बदलता है। मानव समाज में समानता, न्याय, स्वतंत्रता तथा अन्य विचार अपेक्षाकृत नए हैं। हजारों वर्षों तक दासता, शोषण, क्रूरतम विषमताओं तथा तरह-तरह की बुराइयों और अपराधों का आधिपत्य रहा। दुनिया के अधिकांश देशों में ये अभी भी किसी न किसी रूप में मौजूद हैं।"
"लाखों शिक्षाविदों और सामाजिक नेताओं ने घोषणा की है कि 'बेहतर दुनिया संभव है।' यह बेहतर दुनिया कई तत्वों पर आधारित है। लेकिन शिक्षा के बगैर उसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। मानव समाज की क्रूरतम तकलीफ नस्ली भेदभाव है। मैंने जानबूझकर इसका उल्लेख किया है। इसके कारण बाद में स्पष्ट होंगे। अफ्रीका से उखड़े स्त्री-पुरुषों पर क्यूबा सहित इस गोलार्ध के कई देशों में शताब्दियों तक खून खराबे और बंदूक के जोर पर दासता लादी जाती रही। लाखों मूल इंडियनों को भी यह सब सहना पड़ा।"
विज्ञान ने निर्विवाद रूप से दरशा दिया है कि मानवों में समानता है, लेकिन भेदभाव चल रहा है। क्यूबा जैसे समाजों, जो बुनियादी सामाजिक क्रांतियों से उभर कर सामने आए हैं, जहां लोगों को पूरी कानूनी बराबरी मिल गई है और शिक्षा का एक क्रांतिकारी स्तर प्राप्त कर लिया गया है जिससे भेदभाव का आत्मगत तत्व दूर हो जाता है, इन समाजों में भी यह भेदभाव किसी न किसी रूप में चल रहा है। मैं इसे वस्तुपरक भेदभाव कहूंगा। यह तत्व गरीबी तथा ज्ञान पर ऐतिहासिक एकाधिकार से जुड़ा है।
अपनी विशेषताओं के कारण वस्तुपरक भेदभाव अश्वेतों, मिश्रित प्रजाति के लोगों और श्वेतों को प्रभावित करता है; अर्थात उन लागों को जो ऐतिहासिक तौर पर सबसे अधिक गरीब और आबादी के सीमांत हिस्से रहे हैं। हालांकि हमारे देश से दास प्रथा का 117 साल पहले औपचारिक रूप से उन्मूलन कर दिया गया था लेकिन इस प्रथा के शिकार लोग पर उसके बाद भी 75 वर्षों तक (क्रांति की जीत तक) गांवों और शहरों में झोंपड़ियों में जाहिर तौर पर मुक्त मजदूरों के रूप में जीते रहे। यहां बड़े परिवार बगैर किसी स्कूल या अध्यापक तथा बहुत कम आय वाले काम करके एक कमरे में सिमटे रहते थे। गांवों से शहरों में आए बहुत से श्वेत गरीब परिवारों की भी यही दशा थी।
सबसे दु:खद बात यह है कि किस प्रकार ज्ञान के अभाव से उत्पन्न गरीबी खुद गरीबी पैदा करती है। कुछ बेहतर जीवन और कार्य स्थितियों में रहने वाले तथा साधारण पृष्ठभूमि वाले लोगों ने क्रांति द्वारा उत्पन्न अध्ययन संभावनाओं का लाभ उठाया। इनमें से ढेर सारे विश्वविद्यालय स्नातक हैं। वे शिक्षा के कारण सुधरी सामाजिक स्थितियों से बेहतर स्थितियां पैदा कर रहे हैं।
हमने अपने समाज में इस हद तक बुनियादी परिवर्तन कर दिए हैं कि स्त्रियां, अब समाज का निर्णायक और सम्मानजनक हिस्सा बन गई हैं, जिनका पहले भयंकर शोषण होता था और जिनके लिए केवल अपमानजक कार्य बचे थे। वे देश के तकनीकी और वैज्ञानिक बल के 65 फीसदी के बराबर हैं । यह किसी नस्ली मूल के सभी नागरिकों द्वारा अर्जित अधिकारों से कहीं अधिक है। लेकिन मैं बड़े साफ शब्दों में कहना चाहता हूं कि क्रांति देश की अश्वेत जनसंख्या के सामाजिक और आर्थिक स्तर में विषमता को दूर नहीं कर पाई है हालांकि शिक्षा और स्वास्थ्य सहित कई अत्यधिक महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उनकी अहम भूमिका है।"
"संपूर्ण न्याय और बहुत अधिक मानवीय समाज की तलाश के दौरान हमने एक ऐसी बात देखी है जो सामाजिक नियम लगती है। वह यह कि ज्ञान और संस्कृति तथा अपराध में उलटा समानुपातिक संबंध है।इस बात में और गहराई तक जाए बगैर यह देखा जा सकता है कि आबादी के जो तबके हमारे शहरी समुदाय के सीमांत पड़ोस में रहते हैं और जिनके पास कम ज्ञान और संस्कृति है उनके युवक ही अधिकांश कैदी हैं। उनका प्रजाति मूल चाहे जो हो। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दुनिया के सबसे अधिक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज में भी कुछ वर्ग सर्वोत्तम शिक्षा संस्थानों में सर्वाधिक अच्छे स्थान पाते हैं। ये स्थान व्यक्तिगत विवरण और परीक्षाओं के जरिए पाए जाते हैं जहां परिवार द्वारा अर्जित ज्ञान का प्रभाव देखा जा सकता है। इन्हें ही बाद में महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व मिलते हैं। लेकिन कम ज्ञान वाले अन्य दूसरे तबकों के बच्चे ऊपर बताए गए कारणों से कम मांग वाले और कम आकर्षक स्कूलों में चले जाते हैं। इनमें से अधिकांश इंटरमीडिएट स्तर पर पढ़ाई छोड़ देते हैं, विश्वविद्यालयों में कम स्थान ग्रहण कर पाते हैं तथा सामान्य अपराध करने वाले कैदी युवकों की जमात में शामिल हो जाते हैं।"
"इसके अतिरिक्त इस समूह के बच्चे टूटे हुए परिवारों से आते हैं और अपनी मां या पिता के साथ रहते हैं या अकेले रहते हैं। टूटा हुआ परिवार यदि विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त या उच्च शिक्षा प्राप्त माताओं और पिताओं का है तो बच्चों की दुर्दशा इस हद तक नही होती। शिक्षा बराबरी, कल्याण और सामाजिक न्याय लाने का उत्कृष्ट उपकरण है। यही कारण है कि गंभीर क्रांति जैसे ऊंचे उद्देश्यों की तलाश में लगी मौजूदा क्यूबाई शिक्षा के बारे में मैंने यह सब कहा है। इस गंभीर क्रांति का मतलब समाज का पूरी तरह से रूपांतरण है जिसका एक सुफल सभी नागरिकों को उपलब्ध एकीकृत संस्कृति के रूप में होगा। इन ध्येयों से जुड़े 100 से अधिक कार्यक्रम हैं जो विचारों की लड़ाई के साथ चलाए जाएंगे। इनमें से कुछ तो पूरी आशा के साथ साकार होने शुरू हो गए हैं।"
"हमारे लोगों का भविष्य ज्ञान और संस्कृति पर आधारित होगा। इस समय दुनिया में आए जबर्दस्त आर्थिक संकट के बीच हमारा देश शिक्षा से जुड़े विभिन्न लक्ष्यों की ओर आगे बढ़ रहा है। तीन प्रतिशत से कम बेकारी के लक्ष्य तक हम लगभग पहुंच चुके हैं। तकनीकी तौर पर हम पूर्ण रोजगार वाला देश बन गए हैं। 17 से 30 वर्ष की आयु वाले 1 लाख युवा जो कि न तो पढ़ते थे और न काम करते थे, अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए पूरे उत्साह के साथ पाठयक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं जिसके लिए उन्हें पारितोषिक मिलता है। संभवत: हाल ही में लिया गया सबसे अधिक निर्भीक निर्णय अध्ययन को रोजगार में बदलने का है। इस सिध्दांत के आधार पर कम सक्षम 70 चीनी मिलों को बंद कर दिया गया है क्योंकि उन पर दुर्लभ मुद्रा लागत उनसे होने वाली आय से अधिक थी।"
"कंप्यूटर शिक्षा शिशु कक्षा से शुरू हो जाती है। दृश्य-श्रव्य सहायक सामग्री का व्यापक रूप से प्रयोग होता है। इस सहायक सामग्री को इस्तेमाल करने के लिए बहुत कम कीमत पर सौर ऊर्जा की व्यवस्था की गई है जो बगैर बिजली वाले गांवों के सभी स्कूलों को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करते हैं।
नए शिक्षा टी वी चैनल विकसित किए जा रहे हैं। इनके जरिए यूनिवर्सिटी फॉर ऑल कार्यक्रम स्कूलों के लिए अध्ययन सामग्री के साथ-साथ भाषा तथा अन्य विषयों की शिक्षा दे रहा है।
वार्षिक पुस्तक मेले अब द्वीप के बड़े शहरों में 30 स्थानों पर लगाए जाते हैं। कलाओं में जबर्दस्त काम हो रहा है। 12000 के आसपास युवा कठोर चयन प्रक्रिया के बाद 15 कला शिक्षक प्रशिक्षण केंद्रों में अध्ययन कर रहे हैं। हजारों सामाजिक कार्यकर्ता हर साल स्नातक बन रहे हैं। मैंने कुछेक कार्यक्रमों के ही उदाहरण दिए हैं। लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि उच्च शिक्षा केवल विश्वविद्यालयों पर आधारित नहीं रह गई है। पूरे देश में नगर स्तर पर युवाओं और कर्मचारियों के लिए कॉलेज स्थापित किए जा रहे हैं ताकि उन्हें शिक्षा के लिए बड़े शहरों में न जाना पड़े। उच्च शिक्षा की पुरानी अवधारणाएं अपने आप खत्म हो गई हैं। काफी प्रभावशाली ढंग से नए विचार लाए जा रहे हैं और नई पहल की जा रही है। मुझे नहीं मालूम कि इस कांग्रेस के दौरान आपको क्या बताया गया है क्योंकि मैं काम के बहुत ज्यादा दबाव तथा अन्य क्षेत्रों में टाली न जा सकने वाली व्यस्तता के कारण इसमें भाग नहीं ले सका। फिर भी मैंने आयोजकों द्वारा आपकी ओर से आमंत्रित किए जाने पर दिमाग में एक सूची बनाई तथा जल्दी से ये पंक्तियां लिख डालीं। इसकी वजह से आप घंटों लंबा भाषण सुनने से बच गए । शिक्षा के प्रति उत्साह और प्यार के कारण मैं लंबा भाषण तैयार करता।"
"पहले मैंने कहा था कि मानवता को बचाने के लिए विचार सर्वाधिक महत्वपूर्ण संसाधन हैं। ऐसा मैं आदर्शवादी विश्वास के कारण नहीं कह रहा था कि विचार अपने आप कोई चमत्कार कर देते हैं। वे संकट कालों में एक आवश्यकता के रूप में बढ़ते और फैलते हैं और बसंत या शीतकाल के आगमन की सूचना देने वाले पक्षियों की तरह संकट कालों से पहले आते हैं। दुनिया बहुत बड़े तथा अभूतपूर्व संकट में धीरे-धीरे डूब रही है। मानवता के लिए सबसे पवित्र कार्य अर्थात शिक्षा के लिए संसाधन उपलब्ध न कराने पर आप जो रोष व्यक्त करते हैं तथा और स्पष्टता के साथ कर रहे हैं, उसके लिए भी पुरस्कार, प्रकाश और आशा के क्षण आएंगे। इसलिए आप दिल छोटा न करें और मैंने पहले जो कहा उसे न भूलें : 'एक बेहतर दुनिया संभव हैं।' मैं सपने देखकर जिया हूं और मैंने बहुत बार अकल्पनीय सपनों को वास्तविकता में तब्दील होते हुए देखा है। इसलिए यह सब होकर रहेगा।"
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