(आरएसएस की शाखा का एक दृश्य)
राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के कल कहा कि अधिकांश हिन्दू चाहते हैं कि राम जन्मभूमि की जगह पर राममंदिर बने। उल्लेखनीय है 24 सितम्बर 2010 को उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट का बाबरीमस्जिद विवाद पर फैसला आने वाला है। इसके पहले अदालत ने दोनों पक्षों को बुलाया है जिससे इस विवाद का कोई सामंजस्यपूर्ण हल निकल आए। इस फैसले के आने के पहले ही संघ प्रमुख ने कहा है कि वे चाहते हैं कि रामजन्मभूमि की जगह पर ही राममंदिर बने।
मोहन भागवत चाहते हैं मंदिर निर्माण में मुस्लिम मदद करें। यदि फैसला राममंदिर निर्माण के पक्ष में नहीं आता है तो संघ परिवार कानूनी लड़ाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय जाएगा। इसी क्रम में मोहन भागवत ने कहा कि राम हमारी राष्ट्रीय पहचान के प्रतीक हैं। मंदिर बनने से मुसलमानों के प्रति अविश्वास खत्म होगा। और मुसलमानों का राष्ट्र के साथ एकीकरण होगा।
इस बयान में कई खतरनाक बातें हैं जो मोहन भागवत के फासीवादी नजरिए को व्यक्त करती हैं। पहली बात यह है कि मोहन भागवत ने राष्ट्र की पहचान के साथ राम को जोड़ा है। हिन्दू धर्म को जोड़ा है। राष्ट्र के रूप में भारत की पहचान का आधार धर्म नहीं हो सकता। धर्म के आधार पर ही वे राम को राष्ट्र की पहचान के साथ जोड़ रहे हैं। राम स्वयं में हिन्दू धर्म के एकमात्र प्रतिनिधि देवता नहीं हैं।
जनश्रुति के अनुसार भारत में हिन्दू धर्म में तैतीस करोड़ देवी-देवता हैं और उनमें से एक राम भी हैं। मोहन भागवत बताएं कि उन्होंने किस तर्क के आधार पर राष्ट्र की पहचान के साथ जोड़ा है। आधुनिक समाज में सिर्फ कट्टर ईसाईयत वाले अपने लेखन और नजरिए में धर्म के साथ राष्ट्र को जोड़ते हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान भी अनेक साम्राज्यवादी विचारक धर्म की पहचान और राष्ट्र की पहचान को जोड़ते थे। मोहन भागवत ने राम की पहचान से राष्ट्र को जोड़कर खतरनाक साम्राज्यवादी संदेश दिया है।
उनका दूसरा संदेश यह है कि भारत में मुसलमानों का अभी तक एकीकरण नहीं हुआ है। यदि वे बाबरी मस्जिद की जगह राममंदिर बनाने में मदद दें तो उन्हें राष्ट्र के साथ एकीकरण का मौका मिलेगा।
संघ मार्का फासीवाद की खूबी है कि ये लोग अपने अपनी गलती नहीं मानते। अपनी भूमिका और अन्यायपूर्ण काम के लिए दूसरों के सिर पर जिम्मेदारी ड़ालते हैं। संघ परिवार और उसके संगठन ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए जिम्मेदार हैं। इस विध्वंस के लिए उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए। बाबरी मस्जिद को गिराकर उन्होंने अपराध किया था । उन्होंने एक ऐतिहासिक इमारत गिराने के साथ ही साथ राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को भी खण्डित किया।साम्प्रदायिक सौहार्द को नष्ट किया । इसके कारण भारत के अनेक शहरों में साम्प्रदायिक दंगे हुए जिनमें मुसलमानों की करोड़ों रूपये की संपत्ति नष्ट हुई। अनेक निर्दोष लोगों को दंगाईयों ने मौत के घाट उतार दिया। बाबरी मस्जिद का मामला सामाजिक और राजनीतिक अपराध की कोटि में आता है।
कायदे से संघ परिवार को इस मुद्दे को लेकर लचीला नजरिया अपनाना चाहिए। हिन्दू-मुसलमानों के संबंधों में आयी खटास और देश में फैले जहरीले वातावरण को खत्म करने में संघ भूमिका अदा कर सकता है बशर्ते वह दोबारा बाबरी मस्जिद का पुरानी जगह पर निर्माण कराकर दे। अदालत को भी इस पर ध्यान देना चाहिए कि बाबरी मस्जिद ऐतिहासिक इमारत थी जिसे राममंदिर के नाम पर आंदोलन कर रहे संघ परिवार के नेताओं की मौजूदगी में अवैध ढ़ंग से गिराया गया। इस पाप में संघ परिवार के साथ अप्रत्यक्ष ढ़ंग से कांग्रेस भी शामिल है। बाबरी मस्जिद की जमीन पर स्व.राजीव गांधी ने राममंदिर का शिलान्यास करके अपने चुनाव अभियान की अयोध्या से ही शुरूआत की थी।
अदालत का यह फर्ज बनता है कि वह सरकार को बाबरी मस्जिद बनाने का आदेश दे और यह मस्जिद केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार के सरकारी धन से बनायी जाए क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभायी, भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अदालत को दिया वायदा पूरा नहीं किया जिसके लिए वे सुप्रीम कोर्ट से दण्डित भी हुए हैं।
दूसरी बात यह कि बाबरी मस्जिद तोड़ने लिए उन नेताओं और दलों को दण्डित किया जाए जो इस पाप में शामिल थे। उनसे बाबरी मस्जिद नवनिर्माण की पूरी कीमत दण्ड स्वरूप वसूल की जाय। इस प्रसंग में केन्द्र सरकार को पहल करनी चाहिए और जिस तरह ब्लूस्टार ऑपरेशन के बाद स्वर्णमंदिर को बनाया गया वैसे ही बाबरीमस्जिद का भी निर्माण किया जाना चाहिए। सेना की कार्रवाई से ब्लूस्टार ऑपरेशन के दौरान स्वर्णमंदिर को जबर्दस्त क्षति पहुँची थी। यहां पर भी वही हुआ लेकिन भिन्न तरीके से हुआ है।
बाबरीमस्जिद का पुरानी जगह पर नवनिर्माण का आदेश नहीं आता है तो इससे मुसलमानों का मन गहरे सदमे में चला जाएगा और उससे होने वाली सामाजिक क्षति की भरपाई करना संभव नहीं होगा। मुसलमानों का दिल जीतने और इस देश के कानून में आस्था पुख्ता करने लिए जरूरी है कि बाबरी मस्जिद का पुरानी जगह पर निर्माण कराया जाए। मस्जिद गिराने वालों को कड़ी सजा दी जाए।
संघ परिवार के लिए राममंदिर एक नकली विवाद है ,यह मंदिर कभी अयोध्या में नहीं था। उस मंदिर को किसी ने नहीं देखा था। वे जनता में इसे लेकर अलगाव की भावनाएं फैलाते हुए स्वयं अलगाव के शिकार बन गए हैं। संघ परिवार के खिलाफ अदालत का एक कड़ा फैसला आता है तो इससे भारत के धर्मनिरपेक्ष वातावरण को बचाए रखने में मदद मिलेगी। मुसलमानों का भारत के कानून पर विश्वास बढ़ेगा। संघ परिवार के हौंसले पस्त होंगे। वे आगे किसी भी मस्जिद को गिराने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे। यदि अदालत ने किसी भी कारण से यह फैसला बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण के पक्ष में नहीं दिया तो इससे भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की अपूरणीय क्षति होगी। बाबरी मस्जिद गिराने के लिए संघ परिवार दोषी है और बाबरी मस्जिद की जगह रामंदिर बनाने के नाम पर हिन्दू-मुसलमानों के बीच गंभीर सामाजिक विभाजन बनाने का काम कर रहा है। उनके इस कदम से देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की गंभीर क्षति हुई है।
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