प्रसिद्ध कवि नारायण सुर्वे का लंबी बीमारी के बाद कल यहां निधन हो गया। वह 83 वर्ष के थे। श्री सुर्वे को ठाणे के हेल्थ केयर अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां रविवार को उनका निधन हो गया। श्री सुर्वे कवि के अलावा समाज सेवक भी थे। उन्होंने मुंबई में कामगार संगठन आंदोलन में भी काम किया। उनके निधन पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कहा.. हमने आम आदमी का प्रतिनिधित्व करने वाले एक महान कवि एवं विचारक को खो दिया।. उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल ने कहा.. श्री सुर्वे दलितों की आवाज अपनी कविता के जरिए उठाते रहे।. श्री सुर्वे की कुछ प्रसिद्ध कृतियों में .माझे विद्यापीठ. जाहीरनामा. और .ऐसा गा मी ब्रह्मा. शामिल हैं।. श्री सुर्वे का जन्म 15 अक्तूबर 1926 में हुआ। उनका बचपन मुंबई की गलियों में बीता। मुंबई की गलियों में ही उनका रैन बसेरा हुआ करता था। जीविका चलाने के लिए वह सभी काम कर लेते थे। उन्होंने खुद ही पढ़ने और लिखने की जिम्मेदारी उठायी। उनकी कविता की पहली पुस्तक .माझे विद्यापीठ. 1966 में प्रकाशित हुयी। श्री सुर्वे को उनकी कविता के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने 1999 में स्वर्ण कमल पुरस्कार और कबीर सम्मान से पुरस्कृत किया था।
कामगार कवि के नाम से प्रसिद्घ वरिष्ठ मराठी जनकवि नारायण सुर्वे (८३) का आज सुबह लंबी बीमारी के बाद ठाणे में देहांत हो गया। १५ अक्टूबर १९२६ को मुंबई के गिरणगाव में जन्मे अनाथ कामरेड़ सुर्वे का बचपन बड़ी मुफलीसी और गरीबी में फुटपाथ पर सोकर छोटे-मोटे काम करते हुए बीता, इसी बीच आपने कविता लिखना शुरू किया। १९६६ में कामगारों के जीवन पर आधारित आपका प्रथम काव्य संग्रह 'माझे विद्यापीठ' प्रकाशित हुआ जिसे बड़ी प्रसिद्घि मिली। इसके अलावा आपके द्घारा लिखित जाहीरनामा (१९७८), ऐसा गामी ब्रह्म, सनद, मानुष कलावंत, आणि समाज, सर्व सुर्वे (वसंत शिरवाडकर संपादीत) काव्य संग्रह भी प्रसिद्घ हुवे। अध्यापन कार्य के साथ-साथ आप मुंबई के श्रमिक आंदोलन के साथ निरंतर जुड़े रहे व आपको श्रमिको के हक के लिये लंबे संघर्ष करने वाले जुझारू साथी के रूप में जाना जाता है।
कामरेड सुर्वे को १९९८ में पद्मश्री व १९९९ में कबीर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। १९९५ में परभणी में संपन्न मराठी साहित्य सम्मेलन के आप अघ्यक्ष थे। कामगार नेता व कामगार कवी कामरेड़ नारायण सुर्वे को जनवादी लेखक संघ की श्रंद्घाजलि।
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