मंगलवार, 17 अगस्त 2010

वर्चुअल रियलिटी में सिस्टम और अस्मिता के खेल



     डिजिटल युग में 'सिस्टम' महत्वपूर्ण है। सारा विमर्श 'सिस्टम' के संदर्भ में निर्मित होता है। चीजें, विचार, इमेज आदि 'सिस्टम' से निकलते हैं और अंत में 'सिस्टम' में समा जाते हैं। अर्थात् चीजें जहां से शुरू होती हैं फिर वहीं पहुँच जाती हैं। इस क्रम में जो चीज नष्ट होती है वह ' अदरनेस' अथवा 'अन्यत्व'। ओबामा के चुनाव प्रचार में जो चीज सामने आती है वह है ओबामा की अश्वेत पहचान का अंत और अमरीकी अस्मिता में विलय। ओबामा की पहचान का आरंभ अफ्रीकी-अमरीकी अश्वेत से हुआ और समाहार अमरीकी पहचान में हुआ। ओबामा के चुनावी घोषणापत्र में अफ्रीकी-अमरीकियों की कोई मांग शामिल नहीं की गयी। अफ्रीकी-अमरीकियों ने ओबामा के सामने अपनी कोई मांग ही नहीं रखी। क्या अफ्रीकी-अमरीकियों की कोई मांगें नहीं हैं ? मांगें थीं तो उन्हें उठाया क्यों नहीं गया ? यानी जहां से शुरू हुआ था वहीं पहुँचे और इस प्रसंग में अश्वेत की पहचान का लोप हो गया। इस पूरी प्रक्रिया में सभ्यताओं का संघर्ष,आतंकवाद आदि सभी विषयों के विमर्श अमरीकी सिस्टम से आरंभ होते हैं और अमरीकी सिस्टम में ही जाकर थमते हैं। अमरीका में 'सिस्टम' महान् है।
     डिजिटल युग में प्रत्येक विषय पहले संवाद,मिथ और कहानी की शक्ल में आता है। ओबामा का आख्यान संवाद,मिथ और कहानी के क्रम से गुजरा है। यह ऐसी कहानी है जो अश्वेतों के महाख्यान के निषेध पर सवार होकर आयी है। ओबामा अपनी कहानी के जरिए अश्वेतों की वैधता अर्जित करते हैं। यह वैधता श्वेत और अश्वेत के बीच में विभाजन पैदा करके नहीं बल्कि 'अमरीकी' के नाम पर अर्जित करते हैं।
      श्वेत-अश्वेत का खेल बहुत सारे उत्तर आधुनिक खेलों में से एक खेल है। ओबामा इस खेल के जरिए छद्म सामाजिक-नैतिक विविधता के यथार्थ और प्रतिस्पर्धी विजन को अभिव्यक्ति करते हैं। मीडिया यह संदेश दे रहे हैं कि अमरीकी समाज में अश्वेतों के साथ जो भेदभाव चल रहा है उसकी अब कोई वैधता नहीं है। नस्ली भेदभाव अब अमरीकी समाज का बड़ा मुद्दा नहीं है। ओबामा का जीतना मूलत: अश्वेत नैतिकता की जीत है।
        डिजिटल युग में नैतिकता सर्वोपरि है। नैतिकता सही है या गलत ,इसका पैमाना है 'जनसमर्थन।' यदि 'जनसमर्थन' नहीं है तो अनैतिक है, 'जनसमर्थन' है तो नैतिक है। अश्वेत के रूप में ओबामा अपनी ऐतिहासिक सीमाओं का अतिक्रमण कर चुके हैं।  अमरीकी महाख्यान का अंश है अश्वेत । अमरीकी महाख्यान के सामने ओबामा के समस्त लघु आख्यान गौण हैं। ओबामा ने अपने विजय भाषण में अश्वेत आख्यान के परिप्रेक्ष्य से बातें शुरू करते हुए उसका समाहार अमरीकी महाख्यान में किया। यह मूलत: अश्वेत आख्यान का अस्वीकार है। श्वेत-अश्वेत भेद का अस्वीकार है। अमरीकी सिस्टम में विलय है।
      डिजिटल संस्कृति की निर्मिति होने के कारण ओबामा ने राष्ट्र-राज्य की सीमाओं का अतिक्रमण किया। अमरीका के बाहर प्रभावित और प्रेरित किया। वर्चस्वशाली तबकों के हितों के साथ नजर आए। ओबामा मूलत: दर्शकीय जनता का नायक है। यह ऐसी जनता है जो सिर्फ देख रही है। नजारे देख रही है। वह टेलीविजन नजारे का महानायक है।
         ओबामा को हम जब टीवी पर देखते हैं तो व्यक्ति के रूप में नहीं देखते, अश्वेत के रूप में नहीं देखते बल्कि अमरीकी राष्ट्र के प्रतिनिधि के रूप में देखते हैं। ओबामा की इमेज अमरीकी मासकल्चर की देन है। वह मासकल्चर का उत्पाद है और मासकल्चर का संकटमोचन भी है। ओबामा की इमेज देती नहीं है बल्कि अपहरण ज्यादा करती है। दर्शक के शरीर,मन,विचार और यथार्थ का अपहरण करके अमरीकी संस्कृति के साथ एकीकृत करता है। ओबामा को देखते हुए हम स्वयं पर नजरदारी नहीं रख पाते। ओबामा को देखना उसे सौंपना है। ओबामा की इमेज की आभा सामाजिक यथार्थ को देखने नहीं देती।
      कुछ लोगों का  मानना है ओबामा की जीत सांस्कृतिक बहुलतावाद की जीत है। सांस्कृतिक बहुलतावाद का सम्मान है। यह बयान एकसिरे से गलत है। अमरीकी में उपभोक्तावाद ने किसी भी किस्म के सांस्कृतिक बहुलतावाद के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी है। किसी भी किस्म की संस्कृति के लिए सम्मानजनक स्थिति नहीं छोड़ी है।
    आज अमरीकी संस्कृति के सामने ईसाई,मुस्लिम,हिन्दूवैज्ञानिक,समाजवादी आदि किसी भी किस्म की संस्कृति की कोई औकात और पहचान नहीं बची है। अमरीकी संस्कृति ने सांस्कृतिक वैविध्य को एकसिरे से ध्वस्त किया है। ओबामा को वोट देने का अर्थ है ? शून्य। वोट मूलत: लोकतंत्र में वोट आत्मसात्करण की प्रक्रिया है। समाहित करने का औजार है। नीति के स्तर पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार के बीच में बुनियादी तौर पर कोई अंतर नहीं है।
    अमरीकी संस्कृति सांस्कृतिक गुलामी है। हम नहीं जानते इससे कैसे मुक्ति प्राप्त करें। अमरीकी संस्कृति के खिलाफ कैसे बगावत करें ? यह गुई देवोर्द के शब्दों में दर्शकीय अलगाव है। आज ऐसे वातावरण में जी रहे हैं जिसमें दमनात्मक नियंत्रण और मुनाफे का वर्चस्व है। इसके कारण कभी कभी गुंडागर्दी के दृश्य भी नजर आते हैं। पूंजीवाद ने प्रत्येक अर्थहीन चीज को पुनर्निमित किया है। अमरीका में सभी दल अश्वेतों को किसी किसी रूप में समाहित करना चाहते हैं। जिससे उनकी नस्लवाद विरोधी छवि बने। सच यह है कि अश्वेत आज भी बड़े पैमाने पर भयानक तकलीफों और घेटो में रह रहे हैं।
      ओबामा लोकतंत्र का भ्रष्टाचार है। जिससे सारी दुनिया में कोई नहीं बच सकता। ओबामा अमरीका की ग्लोबल शक्ति का प्रतीक है ओबामा को व्यक्ति विशेष में खोज ही लोकतंत्र का भ्रष्टाचार है। ओबामा जनतंत्र के नागरिक को बाजार के ग्राहक में तब्दील कर रहा है। बाजार के मॉडल में तब्दील कर रहा है। आर्थिक संकट की घड़ी में ओबामा सबको अनुशासित भी कर रहा है। सामूहिक प्रतिवाद के स्वरों को कमजोर बना रहा है।
    यथार्थ कभी भी इलैक्ट्रोनिकली निर्मित यथार्थ में रूपान्तरित नहीं होता। इलैक्ट्रोनिकली यथार्थ के रूपान्तरण का अर्थ है विषय को अतिरिक्त मूल्य में बदलना। यथार्थ का इलैक्ट्रोनिकली सामग्री में रूपान्तरण यथार्थ का विषयीकरण है। नयी वर्चुअल तकनीक नियंत्रण  और जोड़ने का काम करती है।
    महायथार्थ या वर्चुअल रियलिटी कभी भी दैनन्दिन यथार्थ को अस्वीकार नहीं करती। बल्कि हम सभी दैनन्दिन यथार्थ में ही अपनी भूमिकाएं निभाते हैं। ओबामा को जिताने के लिए '' सम्मोहन की रणनीति'' का इस्तेमाल किया गया है। इस रणनीति के तहत अमूमन 'अस्मिता' को आधार बनाकर अस्मिता के दमन,उत्पीडन और वंचना का वातावरण तैयार किया जाता है और इसमें नेता को उस वंचना के प्रतिनिधि के रूप में पेश किया जाता है। नेता के कारनामों पर किए गए हमले या आलोचना को अस्मिता पर हमला मान लिया जाता है। इसे 'अस्मिता की सम्मोहन रणनीति' कहते हैं। इस रणनीति के केन्द्र में जो भी होता है उस पर हमला नहीं कर सकते। हमला करते है समूह विशेष उद्वेलित महसूस करने लगता है। मसलन् ओबामा या मायावती को ही लें। इन लोगों की प्रौपेगैण्डा रणनीति का लक्ष्य है उन लोगों का समर्थन हासिल करना जो उनके उद्देश्यों के प्रति वचनबध्द नहीं हैं। ओबामा अश्वेत हैं, उनका परिवार गुलाम था,मायावती दलित हैं,दलित के रूप में उपेक्षा और अवहेलना की वह शिकार रही हैं। इसका वैचारिक दोहन किया जाता है। अश्वेत ,गुलाम या दलित के मिथकीय दोहन से व्यापक सामाजिक आधार तैयार करने में मदद मिली।
        दूसरी ओर ओबामा ने विरोधियों को मजबूर किया कि वे आगे आएं और इस पहलू पर हमला करें। यदि वे अश्वेत और पूर्व गुलामों पर हमले करते हैं तो अपना ही मुँह नोंच रहे होंगे। इससे उनका जनाधार कम होगा। दूसरी ओर इससे चुनावों में नैतिकता के सवालों ने प्रमुखता अर्जित कर ली। भारत में मायावती का दलितपंथ इसी ' अस्मिता के सम्मोहन' की राजनीति पर टिका है।  ज्योंही मायावती की आलोचना करते हैं वह आलोचना दलितों की आलोचना और दलितों के प्रति चली रही उपेक्षा ,अवहेलना और घृणा में तब्दील हो जाती है। मीडिया में स्वयं ही दलित विरोधी इमेज बनने लगती है।
     ओबामा ने अश्वेत इमेज को आगे रखा। ठीक यही काम मायावती करती है और दलित इमेज को आगे रखती है। 'अस्मिता सम्मोहन' की रणनीति में तीन महत्वपूर्ण चीजें हैं, 1. आपके विरोधी क्या कह रहे हैं , 2. स्वयं की भूमिका किस तरह परिभाषित करते हैं, 3. किनसे मुखातिब हैं। विरोधी को उन विषयों पर बोलने को मजबूर करते हैं जो आपने तय किए हैं। विरोधी और अपनी भूमिका स्वयं तय करते हैं। विरोधियों को भूमिका तय नहीं करने देते। बार-बार लक्ष्यीभूत जनता को 'अस्मिता' के आधार पर वर्गीकृत करके सम्बोधित करते हैं। सम्बोधन के केन्द्र में 'नैतिकता' को रखते हैं।
       उत्पीडन,दमन,उपेक्षा,अवहेलना,असमानता आदि का नैतिक आख्यान सुनाते हैं। किसी भी किस्म के सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक पैरामीटर अथवा नीतिगत प्रश्न सामने नहीं आने देते। 'अस्मिता सम्मोहन की राजनीति' में नैतिकताया भावना प्रमुख है। विवेक,वैज्ञानिक तर्क आदि का कोई स्थान नहीं है। 'अस्मिता सम्मोहन' की राजनीति के लिए साधन की पवित्रता गौण है। सामाजिक समीकरण की पवित्रता गौण है। महत्वपूर्ण है 'अस्मिता का सम्मोहन' इसकी धुरी है 'अस्मिता की नैतिकता' नैतिकता के आधार पर जब राजनीतिक किला बनाते हैं तो इसके लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं होती। 'अस्मिता का सम्मोहन' सामंजस्य के मुहावरों का बार-बार प्रयोग करता है। इस बात पर जोर रहता है कि अन्य लोग,अन्य समूह 'अस्मिता' के साथ सामंजस्य बिठाएं। 'अस्मिता' के श्रेष्ठत्व को मानें। 'अस्मिता' के दायरे में ही सोचें और यदि उसके बाहर रहकर सोचेंगे तो बहिष्कृत हो जाएंगे। यह फिनोमिना भारत में भी नजर रहा है।
   ओबामा ने अश्वेत और परिवर्तन के प्रतिनिधि के रूप में परिभाषित किया। संदेश दिया बुश प्रशासन गलत मार्ग का अनुसरण कर रहा है। महायथार्थ के फ्रेमवर्क में प्रस्तुतियों और प्रचार अभियान का यह असर हुआ कि किसी ने पलटकर आलोचनात्मक नजरिए से ओबामा के 'अश्वेत और परिवर्तन के प्रतिनिधि' की धारणा को चुनौती ही नहीं दी। 'अस्मिता के सम्मोहन' के साँचे में सजाकर जब चीजें पेश की जाती हैं तो आप आलोचनात्मक नजरिए से मूल्यांकन करने में असमर्थ होते हैं।

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