शनिवार, 7 अगस्त 2010

इंटरनेट अकेलेपन की सामाजिकता

         इंटरनेट का अतिरिक्त इस्तेमाल और इंटरनेट एटीट्यूट का युवाओं में विकास उनके अंदर एकाकीपन को बढ़ाता है। यह बात तुर्की के 1049 युवाओं में किए गए अनुसंधान में सामने आयी है। युवाओं में एकाकीपन की अनुभूतियों के विकास में नेट विचरण, ऑनलाइन गेम, तत्क्षण संदेश देने की आदत, ईमेल, इंस्टेंट एटीट्यूट, स्त्रियों की तुलना में पुरूषों में इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति देखी गयी है। फलतः औरतों की तुलना में मर्दों में एकाकीपन ज्यादा पाया जाता है। औरतों की तुलना में पुरूषों में ही नेट विचरण और  ऑनलाइन गेम का प्रचलन देखा गया है। जबकि औरतों में पुरूषों की तुलना में ईमेल ज्यादा करने की प्रवृत्ति मिली है।
     इंटरनेट का अत्यधिक इस्तेमाल करने वालों का समाज से संबंध विच्छेद आम फिनोमिना है। वे सामान्य सामाजिक संपर्क से कटे होते हैं। इंटरनेट गतिविधियों ने सामाजिक गतिविधियों को अपदस्थ किया है। मजबूत सामाजिक संबंधों को अपदस्थ किया है। सामाजिक की पहचान को यूजर की पहचान में रूपान्तरित किया है।
     पूंजीवाद ने नागरिक की पहचान से अपनी विजययात्रा आरंभ की थी लेकिन साम्राज्यवाद की अवस्था में प्रवेश करने साथ ही पूंजीवाद ने नागरिक की पहचान को उपभोक्ता की पहचान में रूपान्तरित कर दिया। परवर्ती पूंजीवाद के दौरान उपभोक्ता की पहचान यूजर की पहचान में बदली है ।
   व्यक्ति जब उपभोक्ता था तब आधुनिक था, लेकिन जब यूजर बना तो उसका मुंडन कराकर उत्तर आधुनिक की पहचान का टीका लगा दिया गया। आधुनिकता के दौर में सामाजिक संबंधों का क्षय हुआ,परवर्ती पूंजीवाद ने सामाजिक संबंधों को ही अपदस्थ कर दिया और यह कार्य किया संचार क्रांति ने। संचार क्रांति ने सामाजिक संबंधों को ऑनलाइन संबंधों में तब्दील कर दिया। पहले आमने-सामने मिलते थे अब ऑनलाइन मिलते हैं।
    पूंजीवाद ने बौद्धिक संपदा पर जोर दिया था,बौद्धिक सवालों पर आम बातचीत में बुद्धिजीवी उलझे रहते थे लेकिन परवर्ती पूंजीवाद ने बौद्धिक विमर्श की बजाय संपदा विमर्श को आम बातचीत का विषय बना दिया है। पहले पूछते क्या पढ़ा, क्या लिखा, अब पूछते हैं कार कब ली, कहां फ्लैट ले रहे हैं ,किसका फ्लैट कैसा है वगैरह।   
     कुछ विचारकों का मानना है कि इंटरनेट पर मिलने वाले ज्यादातर वे लोग हैं जिनके सामाजिक सर्किल खत्म हो गए हैं। एकाकीपन और अवसाद के शिकार हैं। इंटरनेट का उपयोग नार्मल स्तर तक करना लाभकारी है। उससे एकाकीपन पैदा नहीं होता। लेकिन इंटरनेट का अधिक उपभोग एकाकीपन को बढ़ा देता है। इंटरनेट का अत्यधिक उपयोग अनेक किस्म की मनोवैज्ञानिक समस्याओं को भी जन्म देता है। मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को क्षतिग्रस्त करता है। संबंधों में तनाव पैदा करता है। सामाजिक संबंध विच्छेद करता है।
   इंटरनेट यूजर का स्वभाव एकाकीपन के साथ अकेले व्यक्ति की मनोदशा तैयार करता है। साथ ही सामाजिक तौर पर जुड़े होने का भाव नष्ट करता है। इंटरनेट हमेशा अकेले व्यक्ति को शिकार बनाता है। अकेला आदमी इंटरनेट का अति इस्तेमाल करता है। इंटरनेट का यूजर यथार्थ जगत से कटा होता है। ऑनलाइन या रीयल टाइम कनेक्टविटी का पहला सामाजिक परिणाम है कि आदमी वास्तव जिंदगी,वास्तव संपर्क और यथार्थ समय से कट जाता है। वास्तव जगत से उसका संबंध कट जाता है। वास्तव जगत में वह जिस मनोदशा और सामाजिक संबंधों की अवस्था में रहता है रीयल टाइम कनेक्टविटी उसे खत्म कर देती है।
     स्टेनफोर्ड यूनीवर्सिटी के द्वारा कराए गए एक सर्वे से भी इसी तरह के परिणाम मिले हैं। एक सर्वे में पाया गया कि इंटरनेट का अत्यधिक उपयोग एकाकीपन में वृद्धि करता है। यह सर्वे 4113 लोगों में किया गया जिससे पता चला है कि जो लोग इंटरनेट का ज्यादा समय इस्तेमाल कर रहे थे वे ज्यादा अकेले थे। यूजरों में 5 घंटे इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या ज्यादा थी। उन लोगों ने अपने ऑनलाइन समय में सप्ताह में 5 घंटे की कटौती की और ये 5 घंटे नाते-रिश्तेदारों और दोस्तों में गुजारने का फैसला किया।
        एक मान्यता यह भी है कि अकेला व्यक्ति इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करता है। ऐसी अवस्था में उसे इंटरनेट के जरिए आदर्श सामाजिक वातावरण मिलता है जिसमें वह अन्य लोगों के साथ संपर्क,संबंध और संवाद करता है। इसी संदर्भ में कहा गया कि इंटरनेट एक पृथ्क्कृत तकनीक है। अकेलेपन की तकनीक है। जो लोग अकेले होते हैं, बेचैन रहते हैं ,उन्हें इंटरनेट संवाद का अवसर देता है। कुछ लोग ऐसे हैं जो आमने-सामने बात करने में परेशानी महसूस करते हैं। लेकिन ऑनलाइन बात करने में परेशानी महसूस नहीं करते। रीयल टाइम संचार रूपों के माध्यम से बात करने में परेशानी महसूस नहीं करते। इस तरह के अध्ययन भी सामने आए हैं कि इंटरनेट का उपयोग करने से लोगों का अकेलापन टूटा है,सामाजिकता में इजाफा हुआ है। सामाजिक शिरकत बढ़ी है। इंटरनेट के संदर्भ में जितनी नकारात्मक बातें पहले के अनुसंधान कार्यों में सामने आयी थीं उनसे ठीक विपरीत परिणाम बाद के अनुसंधान के दौरान सामने आए हैं।
     इंटरनेट पर आरंभ में प्रत्येक समाज में नकारात्मक प्रभाव देखे गए। लेकिन बाद में सकारात्मक प्रभाव दर्ज किए गए। मसलन अमेरिका में आरंभ में एकाकीपन के कारक के रूप में इंटरनेट को देखा गया लेकिन बाद में इसकी सकारात्मक भूमिका देखी गयी। सामाजिकता में इजाफा करने वाली भूमिका देखी गयी। यह भी देखा गया कि अकेले व्यक्ति के एकाकीपन को इंटरनेट ने खत्म किया है। उसकी मनोदशा को और भी सुंदर बनाया। समाज में हाशिए पर पड़े समूहों की दशा में सुधार किया है। उनको सामाजिक एक्सपोजर और कनेक्टिविटी दी है। माता-पिता और बच्चों के संबंध,अपंग लोग, एक ही लिंग के लोगों के संपर्क और संबंध में इजाफा किया है। यह भी देखा गया कि जो इंटरनेट पर रहते हैं वे कम से कम अकेलेपन को भोगते हैं।  
       
      
     
   

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