सोमवार, 16 अगस्त 2010

मुद्रित पाठ और हाइपर पाठ की रीडिंग का अंतर

    हाइपर टेक्स्ट की रीडिंग मुद्रित पाठ की रीडिंग से भिन्न होती है।हाइपर टेक्स्ट रीडिंग सिर्फ दर्शनीय ही नहीं होती।बल्कि यदि आप उसे मुद्रित करना चाहें तो वह रेखीय क्रम में ही सामने आएगी।जबकि लिखते समय यह गैर-क्रमिक होता है। किंतु मुद्रण के समय हाइपर टेक्स्ट रेखीय क्रम से सामने आता है।इसका अर्थ यह है कि हाइपर टेक्स्ट में अपना स्वरूप बदलने का गुण है।मुद्रित सामग्री में यह गुण नहीं है। यही बुनियादी वजह है कि हाइपर टेक्स्ट को हमें मुद्रित पाठ से विकसित समझना चाहिए।
     पुस्तक का सामान्य तौर पर स्वागत होता है किंतु उसमें रूपान्तरण का गुण नहीं होता।वह 'इंटरेक्टिव' की भूमिका से वंचित होती है।इसके विपरीत इलैक्ट्रोनिक पाठ जीवंत,आवयविक होता है। जबकि प्रिण्ट रूप अपनी अंतर्वस्तु से विच्छिन्न नजर आता है।
     हाइपर टेक्स्ट वस्तुत: विज्ञान और कला का संगम है। इंजीनियरों और कम्प्यूटर वैज्ञानिकों  ने अपने सूचना उपकरणों को हमारी मेज तक पहुँचा दिया है।इसके कारण लेखकों की सघन अनुभूतियों ,कल्पनाशीलता की आक्रामक अभिव्यक्ति की संभावनाएं बढ़ गई हैं। इस प्रक्रिया में लेखन का नया जीनियस पैदा हुआ है। 
   हाइपर टेक्स्ट को लेखकों और वैज्ञानिकों का मिलन केन्द्र भी कह सकते हैं। तकनीकीविद खुश हैं कि उनके यूजर ग्रुप का विस्तार हुआ है।वहीं दूसरी ओर लेखक खुश हैं कि उनके लेखन में कलात्मकता आई है। किंतु इन दोनों में 'असामान्य' तनाव भी पैदा हो गया है।वैज्ञानिक महसूस करते हैं कि तकनीकी शोध के विकास के लिए यह जरूरी है कि कलात्मक रचनात्मकता का तेजी से विकास हो। लेखक विस्मयभाव से कम्प्यूटर पर बैठा रहता है,उस पर काम करते हुए संदेह करता रहता है।वह असल में उस अनिवार्यता से वाकिफ है जिसे तकनीकी उसके ऊपर थोपती है।इन दिनों लेबोरेटरी में ऐसा लेखन लिखा जा रहा है जिससे विज्ञान अपरिचित है।असल में यह कला और विज्ञान दोनों के लिए संक्रमण काल है।दोनों ही इससे लाभ उठा रहे हैं।दोनों ही एक-दूसरे के सरोकारों को गंभीरता से महसूस करते हैं।
डेविड जिलिनटेर ने '' मेचिंग ब्यूटी :एलीगेंस एण्ड हार्ट आर्ट ऑफ टैक्नोलॉजी''(1998,बेसिक बुक्स, न्यूयार्क) में लिखा है कि कम्प्यूटर साइंस अमूमन सौन्दर्य की अवहेलना करता है।वह हमेशा उससे विमुख रहता है।वह अपनी प्रोग्रामिंग गणितीय आधार पर बनाता है।यह बेहद जटिल और संश्लिष्ट नजरिया है। गणितीय नजरिए का सॉफ्टवेयर निर्माण के समय इस्तेमाल करना बहुत मुश्किल है। गणित के फार्मूलों के जरिए सौन्दर्य सृष्टि संभव नहीं है। जबकि साफ्टवेयर में सौन्दर्य का महत्व है।असल में कम्प्यूटर वैज्ञानिकों को अपनी भावानुभूतियों को सौन्दर्यबोधीय बनाना होगा।उन्हें अपने अंदर कलाकार जैसी सौन्दर्यानुभूति पैदा करनी होगी।यदि वे अपनी भावानुभूतियों को सौन्दर्यबोधीय बना पाते हैं,भव्य रूप दे पाते हैं,उसे उपयोगी माल में तब्दील कर पाते हैं तो बड़ी बात होगी।यहीं पर यह सवाल पैदा होता है कि इंजीनियर के लिए हाइपर टेक्स्ट साहित्य क्या कर सकता है।समग्रता में देखें तो पाएंगे कि वह सॉफ्टवेयर को कला क्षेत्र में ले आएगा।तब सौन्दर्य अपने चरमोत्कर्ष पर होगा।उसे भुलाना संभव नहीं होगा।इसी अर्थ में हाइपर टेक्स्ट साहित्य विलक्षण होता है। वह अपने यूजर की सौन्दर्यबोधीय आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति देता है।सफल हाइपर टेक्स्ट कहानी या कविता वह है जो सफलता के साथ रीडिंग अनुभव के सभी विवरणों को अपने अंदर संतुलित ढ़ंग से समायोजित करे।यह खोज का अंत नहीं है बल्कि स्वयं में ही अंत है।हाइपर टेक्स्ट डिजायनर परंपरागत जरूरतों और आकांक्षाओं की पूर्ति करता है।यहां पाठ खास किस्म की कल्पना की खोज करता है।वह समग्र को हजम करना नहीं चाहता।वह पाठ के अधिकांश की उपेक्षा करता है।उससे भागता है।वह सिर्फ अपनी तात्कालिक जरूरत की चीज खोजता है,उसे ही पढ़ता है।इस क्रम में पाठक का पाठ से न्यूनतम संबंध बनता है।वह सिर्फ आवश्यक पाठ से ही संपर्क करता है।जबकि साहित्य का पाठक कृति को समग्रता में पढ़ता है।वह उच्चस्तरीय रीडिंग अनुभव से गुजरता है। उसमें रीडिंग सहिष्णुता होती है। जबकि हाइपर टेक्स्ट पाठक  में इसका अभाव होता है। हाइपर टेक्स्ट को खोजते समय पाठ में इस तरह के संकेत होते हैं जो पाठक की एकाग्रता को, एकनिष्ठ रीडिंग को भंग करते हैं।उसकी स्मृति को नष्ट करते हैं।जबकि पुस्तक में ऐसा नहीं होता।रीडिंग का मतलब सिर्फ पढ़ना नहीं है बल्कि यह तो स्वयं में कला है।साहित्य पाठक की अबाधित रीडिंग की इच्छाओं को हाइपर टेक्स्ट अपने अंदर अभी विकसित नहीं कर पाया है।असल बात यह है कि साहित्य में तकनीकी को लागू करने से हाइपर टेक्स्ट के लक्ष्य को बदला नहीं जा सकता।वह पाठक की अंगुलियों के नीचे पाठ को ले आता है और यह सबसे आनंददायी चीज है।
गैर-कथात्मक हाइपर टेक्स्ट हमारी समग्र रीडिंग को ईमानदारी से शायद ही प्रभावित करे। यह उसका लक्ष्य भी नहीं है।पाठक के लिए जरूरी है ज्यादा से ज्यादा सूचनाएं प्राप्त करना। उसके लिए यह जानना जरूरी नहीं है कि सूचनाएं कैसे प्राप्त की गईं।उसके लिए कलात्मक रीडिंग उपहार है।वह ज्यादा प्रभावशाली होती है।ज्यादा लंबे समय तक स्मृति में रहती है।कलात्मक रीडिंग के लिए कलात्मक संवेदनाओं का होना जरूरी है।जिससे आप रीडिंग के सौन्दर्य को समझ सकें। कलात्मक संवेदना, सिस्टम के पीछे से काम करती है। वह पाठक को पाठ के माध्यम से निर्देशित करती है।यही वजह है कि साहित्यिक सौन्दर्यबोध का हमेशा हाइपर टेक्स्ट डिजायन में इस्तेमाल किया जाता है।हाइपर टेक्स्ट रिसर्च के लिए साहित्यिक दृष्टिकोण का मूल्य है।क्योंकि हाइपर टेक्स्ट अवधारणा जगत की चीज है।ठोस विज्ञान के क्षेत्र की चीज नहीं है।
जब कवि या कहानीकार इलैक्ट्रोनिक पाठ में रमण करते हैं तो वे अपने को साहित्य के रचयिता महसूस करते हैं कि सॉफ्टवेयर डिजायनर।लेकिन कम्प्यूटर की भाषा में वे सिर्फ यूजर ही कहलाएंगे। सॉफ्टवेयर डिजायन एवं कलात्मक सृजन में अन्तर्विरोध है।
    उल्लेखनीय है कि प्रत्येक किस्म का लेखन सूचना है।लिखित भाषा में तकनीकी का प्रयोग भाषा को पारदर्शी और श्रेष्ठ बनाता है।सॉफ्टवेयर डिजायनर जिस तकनीकी के साथ काम करता है वह कम विश्वसनीय एवं कम परिपक्व होती है।इसका मुख्य जोर प्रोग्राम के तत्वों की वस्तुगत प्रक्रिया पर होता है।जो सामान्यत: सही ढ़ंग से काम नहीं करते।जबकि रचना की परीक्षा पाठक करता है।उसकी त्रुटियों को सामने लाता है। भूलों को दुरूस्त करता है। ज्यादातर समय लेखक को लोगों की राय को सुनना होता है।वहां रचना का नहीं बल्कि रचना की व्याख्या का महत्व है।
   हाइपर टेक्स्ट सही अर्थों में पाठ और सॉफ्टवेयर की वर्णशंकर संतान है।इसलिए हाइपर टेक्स्ट के सरोकारों के बारे में और भी संवेदनशील होने की जरूरत है।हाइपर टेक्स्ट पाठक अभी भी पाठ का सब्जेक्टिव व्याख्याता है।वह कुल मिलाकर कुछ कुछ उपयोगी चीज पैदा करता है। मसलन् पाठ को हासिल करने के लिए विशेष किस्म के पाठात्मक अनुभवों की जरूरत होती है।उन्हें खास व्यवस्था के तहत देखना होता है।यह खोज के चयन पर निर्भर करता है। इसके कारण हाइपर टेक्स्ट के सामने नए किस्म की चुनौती पैदा होती है। वह सभी पाठकों को समान रूप से संतुष्ट कर पाता है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। 
    हाइपर टेक्स्ट के लेखक को यह पता ही नहीं है कि किस तरह के शब्द पाठक की आंखों को आकर्षित करेंगे। उसकी संवेदनाओं को अच्छे लगेंगे।यही वह बिन्दु है जहां वैज्ञानिक की जरूरत होती है कि वह ऐसी भाषा रचे जिसे पाठ पढ़ते समय बदला जा सके।हाइपर टेक्स्ट में फॉण्ट की भूमिका इसी अर्थ में महत्वपूर्ण हो उठती है।पाठक अपनी सुविधानुसार शब्द रूप बदल सकता है।हाइपर टेक्स्ट की प्रक्रिया रीडिंग से शुरू होती है।इससे अकल्पनीय समस्याएं सामने आती हैं।हाइपर टेक्स्ट पढ़ते समय हमें 'देखने' के नजरिए को विकसित करना होगा।तब ही इसे समझ पाएंगे।










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