मंगलवार, 3 अगस्त 2010

सामाजिक मोनोपॉज है मनमोहन कोड

          मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि उन्हें सार्वजनिक राजनीतिक वक्ता के रूप में कोई नहीं जानता। उनका प्रभावशाली वक्ता के रूप में सभा ,मंच,मैदान , संसद और टीवी में अनुस्थित रहना, उनकी इमेजों का अनुपस्थित रहना और इन सबके बीच में उनका असरदार प्रधानमंत्री बने रहना, अपने आपमें बड़ी उपलब्धि है। अनुपस्थिति को उपलब्धि में उन्होंने कैसे बदला है ? इस तरह का बाना क्यों बनाया है ? इसकी विचारधारात्मक क्या परिणतियां हो सकती हैं ? इत्यादि सवालों के बारे में हम अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचे हैं।
      मनमोहन की इमेजों की अनुपस्थिति यह आभास देती है कि वे नहीं हैं। लेकिन उनका प्रधानमंत्री के रूप में प्रभावशाली भूमिका निभाना यह संदेश देता है कि वह हैं। वह हैं भी और नहीं भी के द्वंद्व में फंसे हैं। इस क्रम में उनकी पहचान का बने रहना और उसके पीछे समूची कांग्रेस पार्टी और कारपोरेट लॉबी का एकजुट भाव से बने रहना इस बात का संकेत है कि उनकी राजनीतिक साख है। उनकी राजनीतिक साख निजी व्यक्ति के रूप में नहीं है बल्कि सामूहिक तौर पर कांग्रेस की साख का ही वे प्रतिबिम्बन करते हैं।
   मनमोहन कोड ने व्यक्तिगत राजनीति,व्यक्ति केन्द्रित राजनीति,पार्टी केन्द्रित राजनीति की बजाय सूचना केन्द्रित राजनीति को स्थापित किया है। वे सूचना की रूपान्तरणकारी भूमिका देखते हैं। यही वजह है कि सबसे पहले सूचना अधिकार कानून को उन्होंने लागू किया और लगातार अपनी सरकार के कामों की सूचनाएं और खबरें जारी करते रहते हैं।
      एक जमाना था किसी भी राजनीतिक ,आर्थिक फैसले को लागू करने के साथ बड़े जोर-शोर से प्रचार किया जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं होता अब बड़ा से बड़ा नीतिगत फैसला सिर्फ खबर के रूप में,सूचना के रूप में आता है। यह सिलसिला मनमोहन सिंह सरकार के प्रथम कार्यकाल के साथ शुरू हुआ था और जमकर इसी दिशा में सरकार चल रही है। अब सरकार के प्रत्येक कामकाज को खबर में रूपान्तरित करके पेश किया जा रहा है। खबर में पेश करने का यह लाभ हुआ है कि अंदर के किसी भी किस्म के मतभेदों के प्रचार की कोई जगह नहीं रह गयी है।
    हाल ही में राष्ट्रमंडल खेलों के प्रसंग में उठे भ्रष्टाचार के आरोप और उन पर केन्द्र सरकार की संस्थाओं के द्वारा जारी एक्शन की सूचनाओं का अहर्निश फ्लो, हिन्दू आतंकवाद की सूचनाओं का सरकार की ओर से अबाधित फ्लो,मंहगाई के सवाल पर सूचनाओं का साप्ताहिक बुलेटिन आदि इस बात के संकेत है कि मनमोहन कोड ने अब प्रत्येक चीज को खबर या सूचना में तब्दील कर दिया है। प्रत्येक चीज का सूचना में रूपान्तरण यह मानकर हो रहा है कि सूचना में रूपान्तरण की क्षमता होती।
     मनमोहन कोड आम जनता की कॉमनसेंस आस्था का दोहन कर रहा है। वह मानकर चल रहे हैं कि सूचना या खबर पर लोग विश्वास करते हैं अतः हर चीज को खबर बनाकर पेश करो। सूचना में प्रत्येक घटना,नीति,बयान,हंगामे आदि का रूपान्तरण यह भी संदेश देता है कि खबरों के पीछे कुछ गड़बड़झाला भी चल रहा है।
   मनमोहन कोड द्वारा की जा रही सूचनावर्षा ने आलोचनात्मक विवेक को पंगु बना दिया है। आलोचनात्मक विवेक के आधार पर सोचने और बोलने वाले लोगों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। सूचना की व्यवस्था में जब सब कुछ समाहित कर लिया जाएगा तो उसमें नकारात्मक सूचनाएं भी समाहित हो जाएंगी। यानी सूचना में विकास की खबरें हैं तो भ्रष्ट्राचार, भाई-भतीजावाद,हिन्दुत्व,पृथकतावाद,सिनेमा, स्कैंडल,मासकल्यर आदि की भी खबरें या सूचनाएं सम्प्रेषित हो रही हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि सूचना या खबर की व्यवस्था समाहित करने,सब कुछ हजम कर जाने वाली व्यवस्था है। इसमें सारा कचरा अंदर चला जाता है और रिसाइकिल होकर बाहर आता है।
        सूचना क्रांति के मौजूदा दौर में सामाजिक रूपान्तरण वैसा नहीं होता जैसा पूर्व संचार क्रांति के जमाने में होता था। बल्कि सामाजिक परिवर्तन के अर्थ और महत्ता को अपनी आंखों क्षतिग्रस्त होते देख रहे हैं। किसी भी घटना की अर्थवत्ता का क्षय निजी आंखों देख रहे हैं। सूचनाएं हमें अमूर्तन में फेंक रही हैं। गैर-जिम्मेदार बना रही हैं। सूचनाओं में जिम्मेदारी का अभाव हमें खोखले भावबोध में बांधे रखता है। अब हमारे पास सूचनाएं तो हैं लेकिन हम खोखले हैं। अपंग हैं।
     एक जमाना था बोफोर्स कांड में साधारण से कमीशन खाए जाने के मामले पर सारे देश में राजनीतिक तूफान आ गया था। लेकिन अब प्रतिदिन भ्रष्टाचार की खबरें मीडिया में आ रही हैं लेकिन कोई राजनीतिक तूफान नहीं है। पहले कई बार आलू-प्याज के दाम बढ़ने पर देश में प्रदर्शन-आंदोलन आदि का तांता लग जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं होता। क्योंकि मनमोहन कोड ने सबको सूचना या खबर में रूपान्तरित कर दिया है। सूचना या खबर जब मीडिया स्क्रीन पर आए और फिर दर्शकों के मन की स्क्रीन पर उतरती है तो वह इनडिफरेंस पैदा करती है। इस इनडिफरेंस का तकनीक निर्मित इनडिफरेंस के साथ गहरा संबंध है। सूचना कैसे इनडिफरेंस पैदा करती है यह इस सामान्य तथ्य से समझ सकते हैं कि अब दंगे की खबर,दंगे में मारे गए लोगों की लाशें,जले हुए घर, तबाह इलाकों से गुजरने के बावजूद दर्शकों के ऊपर कोई असर नहीं होता वे इनडिफरेंट बने रहते हैं। यह एकदम नए वर्चुअल युग के आगमन की सूचना है। मैंने बहुत पहले इस संदर्भ की व्यापक चर्चा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के मूल्यांकन से संदर्भ में की थी।
    मनमोहन कोड में हम कब दाखिल हुए यह सटीक रूप में कहना मुश्किल है लेकिन 1991-92 में  नव्य उदार नीतियों को जबसे मनमोहन सिंह ने लागू किया और विकास का नव्य उदार रास्ता पकड़ा तब से यह सिलसिला आरंभ हुआ।
    मनमोहन कोड के कारण अब प्रत्येक व्यक्ति अपनी दुनिया में मगन है। अपनी कक्षा में भ्रमण कर रहा है। अपने निजी उबाल,तबाही,आनंद आदि में व्यस्त है। अब किसी का कोई भवितव्य नहीं है। भाग्य नहीं है। अब भाग्य वही है जहां आपके हित अन्य से मिलते हैं। हित जुड़ते हैं। अब हम सब एक ही हाइवे पर और एक ही दिशा में दौड़ते हुए एक-दूसरे को देख रहे हैं। एक दिशा में जाते हुए लोगों को देखना मछली की तरह देखना है। लगता है सहजजात संवेदनाओं से संचालित होकर एक ही दिशा में दौड़े चले जा रहे हों। एक ही दिशा में दौड़े चले जाने में एक्सीडेंट की संभावनाएं कम होती हैं। लेकिन इसमें सफाए की संभावना है। अस्तित्व के गायब हो जाने की संभावनाएं हैं। अब अन्य का न्यूनतम मूल्य रह गया है।
   मनमोहन कोड सामाजिक मोनोपॉज है। इसमें सामाजिक होने से एलर्जी पैदा हो जाती है। सामाजिक अव्यवस्था से एलर्जी हो जाती है। रेशनल डिसआर्डर हो जाता है। सपने आने बंद हो जाते हैं। बुखार सा रहता है। बेचैनी रहती है। आलस्य बना रहता है। बाल गिरने लगते हैं। इरीटेशन रहता है। अब प्रत्येक चीज इरीटेशन से शुरू होती है। हमेशा आक्रामक मुद्रा में रहने लगते हैं। वे वजह उत्तेजित रहने लगते हैं।   
      
                









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