इंटरनेट आने बाद से सर्वसत्तावादी राज्यतंत्र की जड़ें कमजोर हुई हैं। कल तक जिन देशों में एक पार्टी का शासन था और वहां पर अभिव्यक्ति की आजादी नहीं थी वहां पर लिखना,पढना और स्वतंत्र विचार व्यक्त करना मुश्किल था। 1995 के बाद से सारी दुनिया में सेंसरशिप की नेट ने कमर तोड़ दी है। आज सिर्फ दो देश हैं जहां सेंसरशिप है,वे हैं-उत्तरी कोरिया और बर्मा। बाकी सारी दुनिया से सेंसरशिप की विदाई हो चुकी है। यह एक तरह से शीतयुद्ध के पुराने तंत्र के टूटने की सूचना भी है।
संचार की तकनीक के विकास और प्रसार ने वह काम कर दिखाया है जो सारी दुनिया के बौद्धिक और राजनीतिक संघर्ष नहीं कर सके। संचार की तकनीक हमारे बीच में ऐसे बह रही है जैसे पानी बहता है। बेव पर लिखा बृहत्तर समुदाय तक तीव्रतम गति से पहुँच रहा है। बेव लेखन उन सबको दबाब में ले रहा है जो अभिव्यक्ति की आजादी के शत्रु हैं।
बेव क्रांति का ईरान का अनुभव बेहद महत्वपूर्ण है।हार्वर्ड विश्वविद्यालय के बिर्कमैन सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी के अनुसार सारी दुनिया में अरबी भाषा के पैंतीस हजार नियमित अपडेट होने वाले ब्लॉग हैं। इसके अलावा फारसी में सत्तर हजार सक्रिय ब्लॉग हैं। सारी दुनिया में 75 मिलियन लोग फारसी बोलते हैं। टेक्नोराती के अनुसार ईरान में फारसी में नेट पर लिखने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। सारी दुनिया में फारसी 10 सबसे जनप्रिय ब्लॉग भाषाओं में से एक है। ब्लॉगिंग में हजारों लोग आलोचनात्क नजरिए से लिख रहे हैं। भारत में भी ऐसा ही घटित हो रहा है।
ब्लॉगर कैसे सत्ता,समाज और संचार को बदल रहे हैं इसका एक ही उदाहरण काफी है। मिस्र में डब्ल्यू.अब्बास ने फरवरी 2005 में ब्लॉगिंग आरंभ की और उसने घरेलू हिंसा पर केन्द्रित किया। आरंभ में थोड़े लोग पढ़ते थे। लेकिन ज्योंही उसने 2006 में पुलिस यातना के वीडियो को अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया तो उस पर बड़ा हंगामा मचा। इसके कारण अनेक पुलिस अफसरों को सजा हुई। नबम्वर 2008 में अब्बास ने कहा कि मेरे ब्लॉग पर लाखों पाठक आ चुके हैं। वह उन विषयों पर लिखता है जिन पर मीडिया में कवरेज का अभाव होता है। ब्लॉगिंग के कारण अब्बास को पुलिस उत्पीड़न का बार-बार सामना करना पड़ा है।
यह भी देखा गया है कि ब्लॉगिंग और सोशल नेटवर्क का उन देशों में तेजी से विकास हो रहा है जहां दमन सबसे ज्यादा है। बेव संस्कृति का दबाब ही कहा जाएगा कि चीन जैसा देश यह मानने के लिए मजबूर है कि आर्थिक विकास के लिए बेव का बने रहना अनिवार्य और अपरिहार्य है। वे यह भी महसूस करते हैं कि बेव पर सेंसरशिप बेहद मुश्किल और खर्चीला काम है।
नेटक्राफ्ट के द्वारा जनवरी 2010 में कराए सर्वे से पता चलता है कि बेब लेखन में तेजी से इजाफा हो रहा है। नेटक्राफ्ट को 206,741,990 बेवसाइट वालों ने जबाब भेजा,इसमें तकरीबन सभी बेव सर्वर वालों ने अपनी सूचनाएं प्रदान कीं। इससे यह भी तथ्य सामने आया है कि सभी बेवसर्वर का बाजार में हिस्सा बढ़ा है। इसमें Apache के सन् 2009 की तुलना में 3 मिलियन होस्टनेम दर्ज हुए हैं। अब उसके पास 111.3 मिलियन ग्राहक हैं। इसके बाद दूसरा स्थान माइक्रोसॉफ्ट का है।-
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