ओबामा की ताजपोशी के समय साधारण लोग सोच रहे थे यह लोकतंत्र की ताजपोशी है या किसी राजा का राजतिलक है। यहां राजतिलक का शाही तामझाम था। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में धर्मनिरपेक्षता का उपहास हो रहा था। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के पहले प्रार्थना के लिए ओबामा सपत्नीक चर्च गए। शपथ मंच पर सबसे कंजरवेटिव पादरी ने ईश प्रार्थना की। बाद में ओबामा ने बाइबिल हाथ में लेकर शपथ ली।
अमेरिका की तुलना में भारत की धर्मनिरेपक्षता ज्यादा सारवान है। भारत अनेक अर्थों में सार्थक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। भारत में शपथ ग्रहण के पहले प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति मंदिर,मस्जिद अथवा चर्च नहीं गया। राष्ट्र से बड़ा कभी भगवान को दरजा नहीं दिया। राष्ट्राध्यक्ष की समस्त शपथ कार्रवाई गैर धार्मिक रीति-रिवाजों के जरिए सम्पन्न होती है।
ओबामा के शपथ ग्रहण समारोह के दो छोर हैं एक छोर पर कारपोरेट घराने के प्रमोटर हैं दूसरे पर चर्च है। ओबामा के कारपोरेट प्रमोटरों ने बड़े पैमाने पर विज्ञापन देकर, समारोह के टिकट खरीदकर,प्रायोजन में हिस्सा लेकर शपथग्रहण समारोह को संभव बनाया। दूसरी ओर चर्च को महत्ता देकर ओबामा ने कट्टरपंथी ईसाईयों का दिल जीतने की कोशिश की। 'टाइम्स ऑफ इण्डिया' (21 जनवरी 2009) के अनुसार शपथ ग्रहण समारोह पर 170 मिलियन डालर से ज्यादा का खर्चा हुआ । सबसे ज्यादा पैसा उन कारपोरेट घरानों ने दिया जिनके लिए हाल ही में आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई । खासकर वित्तीय संस्थानों से जुड़े लोगों ने सबसे ज्यादा चंदा दिया । इस चंदे की राशि को देखकर नहीं लगता कि ये वित्तीय संस्थान संकट की अवस्था में हैं। इस समारोह में बीस-तीस डालर चंदा देने वालों के नाम तो नाममात्र के हैं असली दानदाता वे हैं जिन्होंने 50 हजार डालर से ज्यादा चंदा दिया है। शपथग्रहण समारोह का जलसा 19 और 20 जनवरी दो दिन का था।[1]
ओबामा ने अपने भाषण में कहा अमरीका के सामने भयानक 'आर्थिक संकट' है। 'आर्थिक संकट' पदबंध का इस्तेमाल करते हैं तो 'संकट' कम दिखता है। 'संकट' वायवीय बन जाता है। सच यह है कि 'आर्थिक संकट' को किसी पैमाने से आंकना संभव नहीं है। इसे 'संकट' कहना सही नहीं होगा। बल्कि अमरीकी-ब्रिटेन की समूची अर्थव्यवस्था दिवालिएपन के कगार पर है।
अमेरिका के ऊपर अघोषित तौर पर 56 ट्रिलियन डालर की जिम्मेदारियां हैं। इन्हें चुकाना किसी एक पीढ़ी के वश का काम नहीं है। पीटरसन फाउंडेशन के वाइस प्रेसीडेंट के अनुसार अमरीकी के ऊपर इस समय 56 ट्रिलियन डॉलर का कर्जा है। इसका ब्याज चुकाना अमेरिका के बूते के बाहर है। सामयिक सार्वजनिक कर्जे 6.3 ट्रिलियन डालर के हैं। यानी सकल घरेलू अर्थव्यवस्था के 40 फीसद के बराबर कर्जे हैं। यह अमरीकी इतिहास का सबसे बड़ा सार्वजनिक कर्ज आंकड़ा है।
ओबामा के शपथग्रहण का कवरेज संदेश दे रहा था ओबामा का राष्ट्रपति बनना अमरीका में नस्लवाद की 'विदाई' का संकेत है। यह नस्लवाद विरोधी आन्दोलन की 'प्रतीकात्मक जीत' है। अमरीका में पत्रकारों से लेकर नस्लवाद विरोधी आन्दोलनकारियों तक सभी के प्रेरणा स्रोत मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) हैं। अल्पसंख्यकों से लेकर श्वेत विचारकों -बुध्दिजीवियों तक सबके प्रेरणा स्रोत हैं। ओबामा बनाम हिलेरी क्लिंटन के बीच डेमोक्रेटिक पार्टी के नामांकन को लेकर जिस समय प्रतिस्पर्धा चल रही थी उस समय ओबामा के पक्ष में प्रेस ने ओबामा के प्रति पक्षधरता दिखाई। फलत: ओबामा को डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया। मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) ने जब 60 के दशक में नस्लवाद विरोधी संघर्ष का नेतृत्व किया था तो उन्होंने प्रौपेगैण्डा अस्त्र के तौर पर रेडियो का इस्तेमाल किया था। खासकर दक्षिण के रेडियो स्टेशनों का जमकर इस्तेमाल किया।
अमरीका में लंबे समय तक अश्वेतों की मीडिया प्रस्तुति सिर्फ अपराध खबरों तक सीमित थी। कालान्तर में नस्लवाद विरोधी संघर्ष के कारण यह स्थिति क्रमश: बदली। भारत में भी तकरीबन यही स्थिति है। भारत के मीडिया में दलितों-अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व नगण्य है। इसके कारण इन समुदायों के बारे में आमतौर पर नकारात्मक कवरेज आता है। अमरीका में नस्लवादी आंदोलन के प्रभाववश मीडिया में अश्वेतों को व्यापक स्तर पर शिरकत का अवसर मिला। अश्वेतों की मीडिया में व्यापक शिरकत का परिणाम था कि ओबामा के पक्ष में हिलेरी की तुलना में व्यापक कवरेज संभव हुआ। यदि अश्वेत पत्रकारों की प्रेस में मौजूदगी न होती तो ओबामा संभवत: डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार नहीं बन पाते। अमरीका में अश्वेत और श्वेत समुदाय के बीच में जिस तरह का वैषम्य है उसे देखते हुए अश्वेत पत्रकारों की निश्चित रूप से बड़ी भूमिका रही है।
ओबामा के शपथग्रहण के मौके पर दिए गए भाषण की मूल दिशा सकारात्मक थी। ओबामा ने सबसे जटिल संकट की अवस्था में 'सद्भावना और धैर्य' के साथ काम करने और '' विभिन्न देशों के बीच व्यापक समझ और सहमति'' पर जोर दिया। गंभीर आर्थिक संकट के खिलाफ 'सख्त' और 'शीघ' कार्रवाई का वायदा किया। ओबामा अच्छी तरह जाते हैं कि आर्थिकसंकट ने संचित पूंजी को घरों के बाहर निकाल दिया हैं यही वजह है कि ''विकास की नयी आधारशिला'' रखने की बात कही।
ओबामा ने कहा अमरीका के सत्तर साल के इतिहास का यह सबसे भयानक आर्थिक संकट है। इराक और अफगानिस्तान युध्द ने नयी जिम्मेदारियां सौंपी हैं। ओबामा की स्वीकारोक्ति थी अमरीकी अर्थव्यवस्था ' बुरी तरह कमजोर है।' इसे दुरूस्त करना सर्वोच्च प्राथमिकता है। आर्थिक संकट से निकलने के लिए ओबामा प्रशासन को 825 बिलियन डालर के आर्थिक सहायता पैकेज की जरूरत है।
ओबामा ने भाषण में विगत नीतियों की तीखी आलोचना भी की। ओबामा ने कहा अर्थव्यवस्था 'लालच और गैर जिम्मेदारी ' की शिकार हो गयी है। अर्थव्यवस्था का संकट बताता है कि बाजार उछलकर ' सतर्क आंखों के परे ' चला गया। विदेशनीति पर प्रशासन का रवैयया व्यक्त करते हुए ओबामा ने कहा अमरीका इराक से 'जिम्मेदाराना' ढंग से निकलना चाहता है। अफगानिस्तान में शांति स्थापित हो। ओबामा ने यह नहीं बताया कि अमरीकी सेनाएं कब तक इराक से वापस लौटेंगी। अमरीका-इराक समझौते के अनुसार अमरीकी सेनाओं को सन् 2011 के अंत तक इराक छोड़ देना है। ओबामा ने अफगानिस्तान में तालिबान की तेज सरगमियों को देखते हुए अमरीकी सैनिकों की संख्या में इजाफा करने का आदेश दिया है।
ओबामा का नयी '' आधारशिला'' से क्या तात्पर्य है ? यह चीज कुछ अर्से के बाद ही साफ हो पाएगी। ओबामा ने कहा ''कानून का शासन और मानवाधिकारों'' को संरक्षित करने की जरूरत है। '' आदर्श और सुरक्षा'' के बीच में से चुनने की पाखण्डी कोशिशों को एकसिरे खारिज करके बुश प्रशासन की नीति को अस्वीकार किया और सुरक्षा और आदर्श के संतुलन पर जोर दिया।
ओबामा का शपथग्रहण समरोह 90 मिनट चला जिसमें ओबामा का भाषण 15 मिनट का था। समारोह स्थल पर लाखों लोगों ने कड़कड़ाती ठंड़ में अलस्सुबह से ही जमा होना आरंभ कर दिया था। अमरीका के विभिन्न प्रान्तों से लाखों लोगों ने आकर शिरकत की। युध्द और आर्थिकसंकट ये दो सबसे बड़ी समस्या हैं जिनके समाधान की ओर साधारण लोग आंखें लगाए बैठे हैं। इसके अलावा अमरीका की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा का पूरी तरह कबाड़ा हो चुका है। इन सबको प्राथमिकता के साथ कैसे ओबामा हल करते हैं इसकी ओर सबकी नजरें लगी हैं।
ओबामा ने अपने भाषण में इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य परिसेवा,परिवहन, संचार वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में ज्यादा बडे कार्यों की ओर ध्यान देने की बात कही। बुश प्रशासन में विज्ञान का दर्जा कम हुआ। विज्ञान को ओबामा पुन: सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहेंगे। ओबामा को बुश प्रशासन से युध्द की विरासत मिली है उससे अमरीका कैसे निकलता है यह सबसे मुश्किल जगह है जिसकी ओर सारी दुनिया का ध्यान लगा है। अमरीका अपने युध्दपंथी इरादों के बाहर निकल पाता है तो यह मानवता की सबसे बड़ी सेवा होगी।
अमरीका का वायदा है कि इराक से आगामी डेढ़ साल में सेनाएं वापस आ जाएंगी। किंतु अफगानिस्तान से कब सेनाएं लौटेंगी ? कोई नहीं जानता। दुनिया के सौ देशों में 750 से ज्यादा सैन्य ठिकानों से अमरीकी सैनिक स्वदेश कब लौटेंगे कोई नहीं जानता। अफगानिस्तान,ईरान और पाकिस्तान को लेकर नयी मोर्चेबंदी शुरू हो गयी है। इससे भविष्य में भारतीय उपमहाद्वीप में स्थितियां और भी बिगड़ सकती हैं।
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