शनिवार, 11 सितंबर 2010

वर्चुअल वर्ल्ड का नकली जगत

        सुपरहाइवे,इंटरनेट,हाइपर रियलिटी,वर्चुअल वर्ल्ड आदि पदबंध हमारे दैनिक व्यवहार का हिस्सा बन गए हैं। बौद्रिलार्द्र के अनुसार रीयल से हाईपररीयल में रूपान्तरण तब होता है जब मिथ्याभास का जन्म होता है। आज हम जिस वर्चुअल वर्ल्ड की बात कर रहे हैं यह मिथ्याभास है। वर्चुअल वर्ल्ड ने यह आश्वासन दिया कि नाटकीय ढ़ंग से बहुत जल्दी ही अमेरिकी जनता के जीवन में बुनियादी बदलाव जाएगा। किंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। सामान्य तौर पर अमेरिकी जनता के जीवन स्तर में गिरावट आई है। जेलों में कैदियों को रखने की जगह नहीं है।गरीबी और बेकारी मे इजाफा हुआ है।बाजार में मंदी है।उद्योगों में मंदी है।सारा समाज राज्य की निगरानी में जी रहा है।अमेरिका में रहने वाले नागरिकों,विशेषकर मध्य-पूर्व,एशिया,अफ्रीका आदि देशों के लोगों को दूसरी श्रेणी के नागरिकों से भी बदतर हालात में जीना पड़ रहा है।
      सूचना सुपरहाइवे के नाम पर अमेरिकी लोगों को नया कुछ भी नहीं मिला।बल्कि पहले से सक्रिय इंटरनेट से इसे जोड़ दिया गया। असल में सूचना हाइवे एक रूपक है।इसमें तीव्रगामी स्पीड,मोशन और डायरेक्शन संभव है।एक मर्तबा रोलां बार्थ ने लिखा था कि जब हम ड्राइवर / दर्शक की नजर से इमेजों को देखते हैं तब हमारे सहज मोशन दृश्य अनुभव में बदलते हैं।ऐसे में इमेजों का रूपान्तरण करते है।वास्तव जगत का नहीं।
    साइबरस्पेस  मिथ्याभास पैदा करता है ,वह स्क्रीन के परे होता है। यहां वास्तव जगत का कोई संदर्भ नहीं होता।सब कुछ अवास्तविक,काल्पनिक,इमेज़री होता है।यह गहराई रहित सतह है।बौद्रिलार्द्र के शब्दों में यह यथार्थ का सैटेलाइजेशन है।जिसे हाईपर रियलिटी की तेज गति से पलायन करके उपलब्ब्ध किया जाता है।
     यह ऐसी दुनिया है जहां रूपक और इमेज के बीच किसी खेल की अनुमति नहीं है।यहां रूपक का परिवर्तन के लिए इस्तेमाल नहीं हो रहा।अपितु मिथ्याभास की दुनिया में भ्रमण के लिए तरह-तरह के रूपकों का इस्तेमाल हो रहा है।हाईपर रियलिटी के रूपकों की इमेजों में हम विचरण करते हैं।पॉल विरलियो के शब्दों में कम्प्पयूटर अथवा टेलीकम्युनिकेशन आखिरी वाहन है,जो हमारे सभी तरह के टोपोलॉजिकल या संस्थिति विज्ञान संबंधी सरोकारों से मुक्त कर देता है। मोशन,स्पीड,एवं पर्यटन अपना असली अर्थ खो देते हैं।यह अपनी शक्ति मिथ्याभास से अर्जित करता है।आभासी जगत की जगह गतिमान जगत  जाता है। यह भी कह सकते हैं कि वास्तव की जगह गतिमान( काईनेटिक)ऊर्जा जन्म ले लेती है।साइबर ट्रेवल के नामपर हम जिस दुनिया में भ्रमण करते हैं वह रूपकों की दुनिया है,यह कम्प्यूटर स्क्रीन के परे है।आज 'ग्लोब' का अर्थ 'विश्व' नहीं रह गया है।क्योंकि वह अब 'वर्ल्ड' मात्र रह गया है।यदि इस परिप्रेक्ष्य में मीडिया इमेजों और इंटरनेट के बारे में विचार किया जाए तो पाएंगे कि साइबरमेटिक वर्ल्ड के 'स्पेस' के जितने भी तर्क हैं वे जगत से जुड़े नहीं हैं।वह ऐसे जगत से वंचित कर देता है जिसे देखा जा सकता था,महसूस किया जा सकता था,जो पारदर्शी था,तत्क्षण उपलब्घ था।
टैक्नोलॉजी का यह कार्य था कि वह दूरियां कम करे।किंतु इसने तो दूरी की अवधारणा को ही खत्म कर दिया।इसने स्पेस और टाइम को खत्म कर दिया।आज वह निरंतर किसी किसी विषय का खास समय और स्थान के संदर्भ से अपहरण कर रही है।
    आज हम अंतरिक्ष युग में हैं।हमें कहीं भी शारीरिक तौर पर जाकर यात्रा करने की जरूरत नहीं है।बल्कि अपनी जगह पर बैठे-बैठे ही हम यात्रा कर सकते हैं।इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो इंटरनेट ने समय को सर्वोच्च संभावनाओं तक पहुँचा दिया है।जिसमें दूरी,स्थान और अलगाव का पूरी तरह खात्मा हो चुका है।सच यह है कि कम्प्यूटर के खिलाडियों को आज विशेष किस्म की दूरी से गुजरना पड़ रहा है।यह ऐसी दूरी है जिसे खत्म नहीं किया जा सकता।जिसे शारीरिक तौर से पाट नहीं सकते।
     कम्प्यूटर स्क्रीन आभासी है।इसे भरा नहीं जा सकता।इसका अतिक्रमण नहीं कर सकते।आप इसमें मीडिया के जरिए सर्कुलेट कर सकते हैं।वास्तव दूरी का विस्फोट की तरह गायब हो जाना असल में इसे पानेकी हमारी चुनौतियों को बढ़ा देता है।स्थान और दूरी के अंतराल को शरीर से नहीं भरा जा सकता।अपितु स्वयं की आभासी यात्राओं से ही भर सकते हैं।
        आभासी संसार वास्तव नहीं होता।इस संसार की शुरूआत सभी किस्म के संदर्भों के खात्मे से होती है। यहां संकेतों की कृत्रिम दुनिया का बोलवाला है।संकेतों की दुनिया में अर्थ सबसे ज्यादा अस्थिर होता है।वहां अर्थ से ज्यादा वस्तु का महत्व होता है।यहां व्यवस्थाएं बराबर हैं।यहां सभी विरोधाभासी चीजें,धारणाएं भी बराबर हैं।यहां नकल या पुनरावृत्ति का सवाल ही नहीं उठता।और पैरोडी का ही प्रश्न उठता है।यह मॉडलों का युग है।इसमें यथार्थ के बगैर मॉडल मिलेगा।यह आभासी मॉडल है।

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