आर्थिक मंदी ने नव्य-उदारताद को नंगा किया है। अमेरिकी नीति निर्धारकों का वैचारिक दारिद्रय सामने आया है। थोड़ा गंभीरता से जरा पीछे मुड़कर देखें तो पाएंगे कि 11 सितम्बर के बाद ग्लोबलाइजेशन की नीतियां बदली हैं। सारी दुनिया में अमेरिका ने ग्लोबलाईजेशन विरोधी ताकतों को आतंकवादी ताकतों के साथ एकमेक किया है। ग्लोबलाईजेशन विरोधियों को पूंजीवाद के शक्तिशाली प्रतीकों पर हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया जाने लगा है। ग्लोबलाईजेशन विरोधियों के हमलों का केन्द्र बदला है।
मजेदार बात यह है कि आतंकवादी गिरोहों जैसे अलकायदा आदि के हमले भी अमरीकी साम्राज्यवाद के प्रतीक केन्द्रों पर हो रहे थे और ग्लोबलाईजेशन विरोधी ताकतें भी उसके प्रतीक केन्द्रों को निशाना बना रही थीं। इन दोनों के प्रतिरोध और राजनीति में बुनियादी अंतर था।
अलकायदा वगैरह ने अमरीकी प्रतीकों पर प्रतिरोधस्वरूप हमले किए,बम फेंके, लोगों की हत्या की। जबकि ग्लोबलाईजेशन विरोधियों ने न तो कहीं बम फेंके और न कहीं हमला किया,हां प्रतिवाद में मैकडोनाल्ड आदि संस्थाओं के ठिकानों,रेस्तरांओं आदि पर प्रतिवाद जरुर किया,किंतु यह सारा आयोजन राजनीतिक था,इसके पीछे हिंसाचार सक्रिय नहीं था। इस प्रतिवाद के निशाने पर बहुराष्ट्रीय कंपनियां थीं।
ग्लोबलाईजेशन विरोधी प्रतिवाद प्रतीकों के विरोध से शुरू हुआ और ग्लोबलाईजेशन की नीतियों के विरोध तक फैला। आतंकवादी ग्रुपों के द्वारा अमरीकी प्रतीक भवनों पर हमले करके उन्हें बमों से उड़ा दिया गया जबकि ग्लोबलाईजेशन विरोधी ताकतों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया,इसके बावजूद अमरीकी प्रचार अभियान में अमरीकी प्रतीकों पर प्रतिवाद करने वालों को एक ही केटेगरी में रख दिया गया।
अमरीकी साम्राज्यवाद की विचारधारा का ग्लोबलाईजेशन विरोधियों ने एकाधिक दृष्टिकोणों से विरोध किया है। यह विरोध विचारधारात्मक था। विचारधारा का दायरा व्यापक था,उसकी सीमा तय करना मुश्किल है,वह कहीं भी दिखाई नहीं देती बल्कि सब जगह सक्रिय रहती है। मसलन् मैकडोनाल्ड के रैस्तरां का प्रतीकात्मक विरोध यह सवाल पैदा कर ही सकता है कि क्या रैस्तरां का विरोध करने से विचारधारा का विरोध होता है ? जी हां, वह रैस्तरां हैं साथ ही प्रतीक भी है।
ग्लोबल विरोधी मुहिम में प्रतीकों का प्रतिवाद संघर्ष का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। 11 सितम्बर की घटना के पहले ग्लोबलाईजेशन विरोधियों ने अमरीकी साम्राज्यवाद के प्रतीकों पर जमकर प्रतिरोध संगठित किया,किंतु 11 सितम्बर के बाद रणनीति बदल दी। चूंकि अमरीकी प्रतीकों पर प्रतिवादी हमले अलकायदा वगैरह के जरिए भी होने लगे अत: ग्लोबलाईजेशन विरोधियों ने सिम्बल या प्रतीकों पर प्रतिरोध की बजाय सारवान ढ़ंग से प्रतिरोध संगठित करने का फैसला लिया। बड़े मीडिया ने अलकायदा और ग्लोबल विरोधियों को अमरीका के खिलाफ घृणा के प्रचारक की कोटि में रख दिया और इनको एक ही थैली के चट्टे-बट्टे के रुप में पेश किया। ग्लोबलाईजेशन विरोधियों ने प्रतीकों पर प्रतिरोध व्यक्त करने की बजाय न्याय और समानता के आधार पर वैचारिक हमले तेज कर दिए। इसी के आधार पर उन्होंने आतंकवादी और तत्ववादी संगठनों के अमरीकी विरोध से भिन्न छवि पेश की।
11 सितम्बर की घटना के बाद हठात् 'सुरक्षा' के सवाल केन्द्र में आ गए, सुरक्षा को सामाजिक सुरक्षा और फिर राष्ट्रीय सुरक्षा तक फैला दिया गया,इसके बहाने जनता के जनतांत्रिक हितों और अधिकारों पर हमले तेज कर दिए गए, साधारण नागरिकों की गतिविधियों पर निगरानी रखी जाने लगी, उनकी व्यक्तिगत जिन्दगी को जासूसी कैमरों और गुप्तचरों के हवाले कर दिया गया और राष्ट्रीय सुरक्षा को सरकारी राष्ट्रवाद में वैचारिक तौर पर तब्दील कर दिया गया। इस तरह सुरक्षा से शुरू हुआ सिलसिला सरकारी राष्ट्रवाद तक पहुँच गया। यही वह बिंदु है जहां ग्लोबलाईजेशन विरोधियों के साथ अमरीकी प्रशासन की सीधी तकरार नजर आती है।
11 सितम्बर की घटना ने दूसरा वैचारिक परिवर्तन यह किया कि ग्लोबलाईजेशन की बहस अचानक मीडिया से गायब हो गयी और उसकी जगह लोकतंत्र पर बहस होने लगी। जनतंत्र के बहाने जो बहस सामने आई उसमें देशों से कहा गया कि वे सार्वजनिक कल्याण के लिए जो धन खर्च करते हैं उसमें कटौती करें,श्रम कानून बदलें,पर्यावरण संरक्षण के नाम पर लगी बंदिशें हटा लें। शिक्षा बजट में कटौती करें। यह सब जब तक नहीं करते वे विश्व बाजार में व्यापार नहीं कर सकते,निवेश के लिए अनुकूल माहौल नहीं बना सकते,विश्व प्रतिस्पर्धा में भाग नहीं ले सकते। यदि देशों की सरकारे उपरोक्त रास्ते का पालन करती हैं तो उनके देश का तेजी से विकास होगा देश तरक्की करेगा। ज्यादा से ज्यादा जनतंत्र होगा। यह अमरिकी साम्राज्यवाद का एकदम नया विश्व एजेण्डा था। इसके खिलाफ प्रतीकात्मक प्रतिरोध से कुछ भी होने वाला नहीं था,यही वजह है कि ग्लोबल विरोधी संघर्ष ने सामाजिक न्याय और समानता के नजरिए के आधार पर अमरीकी प्रचार अभियान के जनतंत्र के स्वांग को वैचारिक और राजनीतिक तौर पर नंगा किया। इसके साथ इस प्रसंग में वैचारिक वैविध्य को बनाए रखा।
ग्लोबलाईजेशन के राजनीतिक विमर्श में वैचारिक एकरुपता पैदा करने की बजाय वैचारिक वैविध्य पर जोर दिया गया। इस अर्थ में यह प्रतिरोध पहले के अमरीकी प्रतिवादों की तुलना में ज्यादा व्यापक और जनतांत्रिक था। इसके विपरीत नव्य-उदारतावाद प्रत्येक स्तर पर आर्थिक केन्द्रीकरण पर जोर देता है। केन्द्रीकरण और एकरुपता पर जोर देता है। यह वैविध्य के खिलाफ युद्ध की घोषणा है।
नव्य-उदारतावाद के खिलाफ आंदोलन संगठित करने के लिए जरुरी है कि राजनीतिक, वैचारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक वैविध्य की रक्षा की जाय,भिन्न-भिन्न किस्म की राजनीति करने के माहौल को बनाए रखा जाय,इसका अर्थ नियमों को न मानना नहीं हैं,प्रशासन को अस्वीकार करना नहीं, बल्कि जनतंत्र के बंद दरवाजों को खोलना है,जनतंत्र का विस्तार करना है। जिन क्षेत्रों में जनतांत्रिक अधिकार नहीं हैं वहां जनतांत्रिक अधिकारों को प्रतिष्ठित करना है। यह स्थिति पैदा करने के लिए जरुरी है कि विभिन्न क्षेत्रों में जो संघर्ष चल रहे हैं उनकी आवाजों को अपने घरों में आने दें,उन संघर्षों के साथ अपनी एकजुटता का प्रदर्शन करें। विविधता,प्रगति और जनतंत्र को सामाजिक संघर्षों की धुरी बनाएं, और इसके आधार पर अलग-अलग कार्यक्रमों के आधार पर विभिन्ना वर्गों और सामाजिक समुदायों को संगठित और आंदोलित करें।
ग्लोबलाईजेशन का वास्तविक प्रतिवाद तब ही हो सकता है जब ग्लोबलाईजेशन की एकरुप बनाने और केन्द्रीकरण की नीतियों का प्रत्येक स्तर पर विरोध किया जाय।
ग्लोबलाईजेशन ने ग्लोबल विरोधियों के सामने तीन रास्ते छोड़े हैं 1.वे हाशिए पर चले जाएं अथवा 2.आत्मसात् करें अथवा 3.अपराधीकरण के शिकार बनें। हम इन तीनों ही विकल्पों को एकसिरे से ठुकराएं और अपनी सुविधा और समझ के अनुसार विकल्प तय करें।
ग्लोबलाईजेशन का विरोध करने का यह अर्थ नहीं है कि आप ग्लोबलाईजेशन के बाहर हैं,उसके नेटवर्क के बाहर हैं,बल्कि इसका अर्थ यही है कि ग्लोबलाईजेशन के खिलाफ गंभीरता के साथ संघर्ष करते हुए जनतंत्र को और भी ज्यादा व्यापक अर्थवान,प्रभावी और गंभीर बनाएं,ग्लोबलाईजेशन के जनविरोधी फिनोमिना और नीतियों का विरोध करें।
हम जनतंत्र का ऐसा वातावरण और संरचनाएं बनाएं जो स्थानीय,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जनतंत्र को अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति दे। ग्लोबल विरोधी होने का अर्थ कूपमंडूक होना नहीं है, तत्ववादी और राष्ट्रवादी होना नहीं है। बल्कि सच्चे अर्थ और वैज्ञानिक समझ के साथ जनतंत्र,समानता और सामाजिक न्याय के पक्ष में समझौताविहीन संघर्ष को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ले जाना है। इसी अर्थ में ग्लोबलाईजेशन विरोधी ताकतें अंतर्राष्ट्रीयतावादी हैं और अन्तर-संबंधों पर जोर देने का काम करती हैं। मानवाधिकारों को लागू करने की मांग करती हैं।
ग्लोबलाईजेशन का अर्थ अमेरिका उसके अनुयायियों के लिए सिर्फ व्यापार और बहुराष्ट्रीय निगमों का राष्ट्रीय सीमाओं के पार से अबाध प्रवेश करने और व्यापार करने की आजादी है। सार्वजनिक संपदा का निजीकरण करना इसका लक्ष्य है। जबकि ग्लोबलाईजेशन विरोधियों का बुनियादी लक्ष्य है राष्ट्रीय,स्थानीय संपदा की लूट-खसोट को रोकना,मानवाधिकारों की रक्षा करना,संप्रभु राष्ट्र की रक्षा करना,राष्ट्र के आत्मनिर्भर विकास पर जोर देना। सभी राष्ट्रों के बीच समानता की धारणा का प्रसार करना और शोषण,गुलामी,विस्थापन और शरणार्थी बनाने के सभी प्रयासों का विरोध करने के साथ युध्द की राजनीति का विरोध करना ग्लोबल विरोधी संघर्ष की धुरी है। यही वे बिंदु हैं जिन पर तत्ववादियों के साथ ग्लोबल विरोधियों का वैचारिक अंतर है।
दूसरा बड़ा अंतर है बम और जनता की हिस्सेदारी का। तत्ववादी-आतंकवादी संगठन बम-बंदूक की राजनीति के जरिए हिंसाचार पैदा करके अमरीका का विरोध करते हैं,जबकि ग्लोबल विरोधी ताकतें अपने राजनीतिक कार्यक्रम के आधार पर जनता की शिरकत,संघर्ष और कुर्बानियों के जरिए विरोध करते हैं,वे हिंसा के उपायों का सहारा नहीं लेते अपितु राज्य के हिंसाचार का शिकार बनते हैं। आतंकवादियों -तत्ववादियों का लक्ष्य है हिंसा का समाज स्थापित करना, ग्लोबलपंथियों का लक्ष्य है लूट,फूट और उपभोग का समाज स्थापित करना,इन दोनों से भिन्ना ग्लोबल विरोधी ताकतों का लक्ष्य है समानता, जनतंत्र और सामाजिक विकास केन्द्रित सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना, शोषण के सभी किस्म के रुपों का विरोध करना और मानवाधिकारों के प्रति सामाजिक चेतना और जिम्मेदारी के भावबोध का निर्माण करना।
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