मंगलवार, 6 जुलाई 2010

पोर्नोग्राफी का आधार है रंगभेद,पुंसवाद और मुनाफा

(प्रसिद्ध नारीवादी नेत्री आंद्रिया द्रोकिन)
     संयुक्त राष्ट्र संघ के खोजी-शोधार्थी नजत माज़िद माल्ला के अनुसार इंटरनेट पर 40 लाख से ज्यादा बेवसाइट हैं जहां पर बच्चों पर बनी पोर्नोग्राफी ,सेक्सुअल शोषण,बाल वेश्यावृत्ति आदि की सामग्री और इमेज मिलती हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि पोर्न बेवसाइट की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। एक ब्रिटिश इंटरनेट वाच ग्रुप की रिसर्च के आधार यह तथ्य सामने आया है कि सन् 2003 से 2007 के बीच में जो इमेजें नेट पर दिखाई गयी हैं उनमें बर्बर बलात्कार,बंधक,मुख मैथुन और इसी किस्म के अनाचार को दर्शाया गया। आंकड़े बताते हैं कि इंटरनेट पर किसी भी एक समय में साढ़े सात लाख लोग बाल पोर्नोग्राफी का इस्तेमाल करते हैं। इंटरनेट चाटरूम एक बड़ा जरिया है बाल पोर्नोग्राफी का। अमेरिका के नेशनल सेंटर आन मिसिंग एंड एक्स्प्लॉयटेड चिल्ड्रन संगठन के अनुसार 83 प्रतिशत बाल पोर्न रखने वालों के पास 6-12 साल की उम्र के बच्चों पर बनी पोर्न पायी गयी हैं। 39 प्रतिशत के पास 3-5 साल उम्र के बच्चों पर बनी पोर्न मिली हैं।19 प्रतिशत के पास 3 साल से कम उम्र के बच्चों पर बनी बाल पोर्नोग्राफी मिली हैं। माल्ला ने यह भी कहा कि पोर्न उद्योग 3 से 20 बिलियन डॉलर की कमाई कर रहा है। माल्ला ने कहा कि विभिन्न देशों को बाल पोर्न से संबंधित पोर्नोग्राफी बेवसाइट के बारे में तेजी से सूचनाओं का आदान-प्रदान करना चाहिए। जिससे उन्हें जल्दी बंद किया जा सके।
    पोर्नोग्राफी को लेकर अमेरिकी मीडिया में खूब हल्ला मचता रहता है। अमेरिका के छह राज्यों में पोर्नोग्राफी दिखाए जाने के खिलाफ कड़े कानून भी हैं इसके बावजूद इंटरनेट से लेकर केबल टेलीविजन पर पोर्नोग्राफी का अबाध प्रदर्शन जारी है। कहीं पर भी अमरीकी प्रशासन और पुलिस सक्रिय नजर नहीं आती। स्थिति इतनी खराब है कि अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय का आदेश है कि हार्डकोर पोर्न न दिखाए जाएं। ऐसे पोर्न न दिखाए जाएं जिनमें सीधे संभोग करते दिखाया जाता है। इस आदेश के बावजूद अमेरिका में पोर्न का धंधा और प्रसारण खुलेआम हो रहा है। आखिर इसका प्रधान कारण क्या है ? अमेरिकी नस्लवाद,पुंसवाद और मुनाफा।  
   अमेरिका की प्रसिद्ध नारीवादी आंद्रिया द्रोकिन ने 'भाषा, समानता और अपकार: पोर्नोग्राफी का स्त्रीवादी कानूनी परिप्रेक्ष्य और घृणा का प्रचार'(1993) में लिखा है कि
‘‘ मिनीयापोलिस में कुछ बड़े पोर्नोग्राफर है, कुछ भयानक जातिवादी सेंट पॉल में है और दोनों ही शहरों में कुछ गंभीर नागरिक भी हैं जो पोर्नोग्राफी व जातिवाद को समाप्त करना चाहते है। यह अध्यादेश उस राजनीतिक संस्कृति की उपज था जो लोगों के खिलाफ किसी भी प्रकार की क्रूरता के खिलाफ थी।’’
     ‘‘सन्  1983 में कैथरिन और मुझे आसपास के सक्रिय कार्यकर्त्ताओं द्वारा स्थानीय कमिटी मीटिंग की जाँच करने के लिए कहा गया। यह मिनीयापोलिस का गरीब, अफ्रीकन-अमेरिकन लोगों का छोटा सा क्षेत्र था। नगर परिषद के अंतर्गत पोर्नोग्राफी कई क्षेत्रों में फलफूल रही थी। वे विगत सात वर्षों से इन क्षेत्रों के कानून एवं नीतियों से लड़ रहे हैं। जिनके समर्थन से पोर्नोग्राफी ने आसपास के जीवन को नारकीय बना दिया है। जरूरी है कि आसपास की इन गतिविधियों को खारिज किया जाए इससे पोर्नोग्राफी को झेल रही निर्धन, काली जनता प्रसन्न होगी। क्योंकि अमीर श्वेतों को छोड़कर उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा हैं।’’
  द्रोकिन ने रेखांकित किया कि पोर्न के जरिए औरतों के खिलाफ फैलायी जा रही घृणा को खत्म करने और पोर्न के खिलाफ कड़े कानून बनाने और फिर उसे लागू कराने के लिए स्थानीय जनता को जागृत करना और संगठित करना बेहद जरूरी है।
   द्रोकिन ने आगे लिखा है कि ‘‘ ये कार्यकर्त्ता हमारे पास आए और उन्होंने रेखांकित करते हुए कहा: हम जानते है कि यहाँ का सबसे बड़ा मुद्दा स्त्री के प्रति घृणा है। हम इसके लिए कुछ करना चाहते है, हम क्या कर सकते है ? वे जानते थे उन्हें क्या करना है। उन्होंने मुझे और मैकिनॉन को ही नहीं पूरे शहर को संगठित किया। स्त्री घृणा पर आधारित पोर्नोग्राफी के खिलाफ पूरा शहर एकजुट हो गया। गरीब, हर वर्णं के लोग स्त्री जीवन के पक्ष में खड़े होने लगे। अमेरिका के एक शहर में राजनीतिक नारीवादी कार्यकर्त्ताओं का जन सैलाब तैयार हो गया  जिसमें मजदूर स्त्रियाँ, नई व पुरानी वेश्याएँ, शिक्षाविद्, लेस्बियन, छात्रों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार के पीड़ितों की छोटी सेना भी शामिल थी। इन्होंने नगरपालिका नागरिक अधिकार कानून में पोर्नोग्राफी के विरूद्ध नया प्रावधान लाने की माँग की। पोर्नोग्राफी युक्त लिंग भेद को स्त्री के नागरिक अधिकारों का उल्लंघन माना गया। कैथरिन और मैंने अध्यादेश में पोर्नोग्राफी पर अलग, स्वायत्त कानून की माँग की।’’
     ‘‘यह अध्यादेश औचित्यपूर्ण, वाजिब था, वंचितों तथा शोषितों के पक्ष में था इसलिए इसे व्यापक समर्थन मिला। उच्च से निम्न और निम्न से उच्च सभी वर्गों के लोग इसके साथ थे। क्योंकि यह पोर्नोग्राफी के नारी केंद्रित घृणा, कट्टरतावाद, स्त्री के प्रति दुश्मनी, क्रोध, शोषण के विरोध में था। ऐसा नारी इच्छा के प्रति हमारे बदलते ज्ञान व अनुभव के कारण हो सका। महिला को जब कानून का साथ, सम्मान, शक्ति, अर्थपूर्ण नागरिकता दी जाती है तो पोर्नोग्राफरों की स्वायत्तता समाप्त होने लगती है, उनपर अंकुश लग जाता है। यदि वह कानून द्वारा संरक्षित है तो कोई फर्क नही पड़ता कि पोर्नोग्राफी या पोर्नोग्राफर या उनके ग्राहक उसका कितना तिरस्कार करते हैं। कानून उसका अधिकार है। इसका इस्तेमाल कर वे दलालों और ग्राहकों से कह सकती है: हम तुम्हारा उपनिवेश नही हैं, तुम हमारे मालिक नहीं, न ही हम तुम्हारे अधिकार-क्षेत्र का हिस्सा हैं। इस कानूनी प्रावधान द्वारा वह अपनी इच्छा जाहिर कर सकती है: मुझे यह नहीं चाहिए, मुझे यह नही पसंद, यह कष्टप्रद है, यह बल-प्रयोग कामुक नही है, मैं दूसरों की भाषा नही बनना चाहती, मैं मातहत बनने से इंकार करती हूँ, मैं बोलना चाहती हूँ, मैं अपने लिए बोलना चाहती हूँ, मैं अदालत में तुमसे बात करूँगी और तुम मुझे सुनोगे।’’
 पोर्न देखते हुए भूल जाते हैं कि इसमें औरत के प्रति गहरी घृणा और अमानवीयता भरी हुई है। द्रोकिन ने लिखा  ‘‘हम चाहते है कि पोर्नोग्राफी में औरतों के साथ की गयी अमानवीयता प्रतिबंधित की जाए। सामान्यतया पोर्नोग्राफरों में व्याप्त नारी-नफ़रत के भाव का अनुकरण हमारी वैधानिक व्यवस्था भी करती है। यह व्यवस्था गहरे रूप में लिंग भेद एवं नारी देह की घृणा से प्रेरित है। मानो स्त्री का होना ही नफ़रत करने के लिए पर्याप्त है। साथ ही हमसे यह अपेक्षा भी की जाती है कि हम झूठ बोलें: 'हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचाया गया है।' 'मर्सी' में मेरा एक चरित्र है आंद्रिया, जो कहती है कि कानून के सामने जाने से पहले तुम्हें साफ होना होगा, पवित्र होना होगा। इस अर्थ में कोई भी पीड़ित स्त्री न तो साफ़ है, न ही पवित्र। जब भी बलात्कार के अभियोग को लेकर हम अदालत गए हमें सबसे पहले अपवित्र माना गया। निश्चित तौर पर पोर्नोग्राफी के धंधे में जबरन लाई गई औरतें, सड़कों पर नीलाम औरतें, घरों में मारपीट कर कामुक उत्तेजना के लिए इस्तेमाल की गई औरतें पवित्र नहीं हो सकतीं। स्त्री जब कभी अपने कानूनी अधिकार का उपयोग करती है या उसे अवसर प्राप्त होता है तो ऐसे समय में उसे पवित्र होने की कोई ज़रूरत नही है। वह पूरे सम्मान के साथ साधिकार कह सकती है कि मैं भी हूँ और इसीलिए मैं प्रतिरोध व्यक्त करती हूँ।’’
      आंद्रिया द्रोकिन ने 'भाषा, समानता और अपकार: पोर्नोग्राफी का स्त्रीवादी कानूनी परिप्रेक्ष्य और घृणा का प्रचार'(1993) में लिखा है, ‘‘जब मिनीयापोलिस की नगर समिति ने इस अध्यादेश को पास करते हुए कहा, स्त्रियों का भी अस्तित्व है, उनका महत्व है, वे अपनी लड़ाई लड़ना चाहती हैं। जो उन्हें चाहिए हम देंगे। इस बार कानून नारी-इच्छा के पक्ष में तथा पोर्नोग्राफी के विरोध में खड़ा हुआ। जो औरतें इस विशेषाधिकार का प्रयोग करना चाहती थीं उनसे अनेकानेक नए विचार सामने आए। पोर्नोग्राफी द्वारा प्रताड़ित स्त्रियों की मर्मान्तक तकलीफों के अनुभवों ने इस कानून को अधिक स्पष्ट और  कारगर बनाया। इस अध्यादेश में उनकी प्रतिरोध की इच्छा व्यक्त हुई। सहने की, जीने की विशाल ताकत ने कानूनी अधिकार का रूप ले लिया।’’
     ‘‘इस विशेषाधिकार का उपयोग करती औरतें कहेंगी, मैं वह हूँ जिसने बहुत सहन किया है, मैं जीवित बच गई हूँ, मेरा भी महत्व है, मैं बहुत कुछ जानती हूँ, और जो मैं जानती हूँ उसका बड़ा महत्व है, अर्थवत्ता है, और यह तुम जैसे दलालों को न्यायालय में पता चलेगा। मैं अपनी जानकारियों को तुम्हारे विरूद्ध इस्तेमाल करूँगी। और तुम मेरे ग्राहक, मैं तुम्हारे बारे में भी मेरे पास पक्की जानकारी है जिसका उपयोग मैं करूँगी। मैं तुम्हें तब से जानती हूँ जब तुम मेरे शिक्षक, मेरे पिता, मेरे वकील, मेरे डॉक्टर, मेरे भाई, मेरे पुरोहित थे। अब मैं जो जानती हूँ उसका इस्तेमाल करूँगी।’’
 (आंद्रिया दोर्किन ने शिकागो विश्वविद्यालय लॉ स्कूल में आयोजित सम्मेलन में 6 मार्च,1993 को 'भाषा, समानता और अपकार: पोर्नोग्राफी का स्त्रीवादी कानूनी परिप्रेक्ष्य और घृणा का प्रचार'  विषय पर व्याख्यान दिया था, इस लेख में उद्धृत अंश इसी व्याख्यान से साभार लिए गए हैं, इस व्याख्यान का अनुवाद विजया सिंह ने उपलब्ध कराया है।)




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...