पोर्न का प्रभाव उन पर भी होता है जो शिक्षित हैं। पोर्न को जो देखेगा वह प्रभावित होगा। अमेरिका की नारीवादी लेखिका और आंदोलनकारी आंद्रिया द्रोकिन ने ‘‘स्त्री रचनाकार और पोर्नोग्राफी’’ (1980) नामक निबंध में इस तथ्य को रेखांकित किया है। द्रोकिन ने लिखा है ‘मैं अपने समय की कुछ सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण, बुद्धिमान तथा दृढ़ महिलाओं को जानती हूँ जो पोर्नोग्राफी से प्रभावित रहीं हैं। पोर्नोग्राफी का मुझ पर प्रभाव कोई अपवाद नही है।’ किसी लेखिका ने पोर्न पर इतना गहराई में जाकर विचार नहीं किया जितना आंद्रिया द्रोकिन ने किया है। हमारे पास ज्ञानी औरतों के पोर्न के बारे में क्या विचार हैं ,इसकी कम जानकारी है। वे किस दुविधा और दुश्चिन्ता में जीती हैं। हम नहीं जानते।
एक औरत का लेखन मर्द के लेखन जगत से बुनियादी तौर पर भिन्न होता है। द्रोकिन ने लिखा है ‘ लेखिका/लेखक के लिए लेखन करना प्रसन्न होना नहीं होता। बहुत सारे लोगों से घिरे होने के बावजूद वह निर्जनता में जीती और कार्य करती है। उसका सबसे महत्वपूर्ण और प्रेरक समय स्वयं के साथ बीतता है। लेखन के सुख एवं दुख से भरी रचनाकार के चारों ओर यही अनुभूतियाँ होती हैं जिन पर वह बात तो करती है पर उनका साझा नही करती। उसके मित्र भी नहीं जानते, वह क्या करती हैं या वह इसे कैसे करती हैं। अन्यों की तरह वे भी केवल परिणाम ही देख पाते हैं। उसके काम से जुड़ी समस्याएँ विचित्र होती हैं। किसी एक वाक्य का समाधान किसी अन्य वाक्य का समाधान नही होता। जब दूसरे परिणामों पर मनन कर रहे होते है, वह पुन: अकेले अगले विषय पर कार्यरत हो जाती है। उसके लिए उसके सहकर्मी और प्रतिस्पर्धी लगभग मृतप्रायः होते हैं। क्योंकि लेखन के कार्य में उसका मस्तिष्क तीव्र कष्ट से जूझता है। लिखते हुए वह भीतर और बाहर निर्मम एकांत से भरी होती है। शायद ही कोई इतना अकेला एवं स्व-निर्मित जीवन जीता होगा।’
औरत के मन और जीवन में जिस तरह का एकान्त होता है उसे कोई नहीं जानता। उस एकान्त को आप औरत से बात करके भी महसूस नहीं कर सकते। उसकी दैनन्दिन जिंदगी की वास्तविकता है कि वह अकेले कभी नहींं जीती। सिर्फ अपने लिए कभी नहीं जीती। वह स्वभाव से स्वार्थी नहीं होती। आंद्रिया द्रोकिन ने लिखा-
‘वह पुरुष लेखक नही होती इसका मतलब है कि उसे शौचालय की सफाई, कपड़े धोना तथा अन्यान्य कार्य भी स्वयं करने पड़ते हैं। यदि वह क्रूर और एकांगी विचारों की (स्वार्थी) होगी तो वह केवल अपने हिस्से का गृहकार्य करेगी, किसी और का नहीं।’
‘ उसके काम का पुरस्कार काम से ही संबद्ध होता है। कोई साप्ताहिक वेतन नहीं, कोई स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं, पदोन्नति नही, जीवन स्तर में सुधार नही, कहने लायक नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं।’
‘ जब वह धन अर्जित करती है तो यह मान लिया जाता है कि उसके धन का जख़ीरा ताउम्र चलेगा। यदि वह शोहरत प्राप्त कर लेती है या प्रसिद्ध हो जाती हैं तो उसे प्रकाशन तथा धन जैसे संसाधनों की कमी नहीं होगी लेकिन इससे उसका ईमानदारी भरा एकांत बाधित होगा। जिसके बिना उसकी तथाकथित लेखकीय निर्जनता किसी काम की नहीं। जितने ज्यादा से ज्यादा लोग उसके लेखन को जानते हैं, उन्हें लगता है कि वे उसे जानते हैं।’
औरत का लिखना क्रांतिकारी कदम है। वह कैसा लिखती है,उसका नजरिया क्या है आदि बातें बाद में आती हैं,पहले उसके लिखने पर ही लोग सवाल खड़े करते हैं। वह जब लिखने बैठती है तो एकदम नया संसार रच रही होती और अपने ऊपर आरोपित दुनिया को नष्ट कर रही होती है। औरत के लिखते ही समाज में हलचल आरंभ होजाती है। हंगामा आरंभ हो जाता है। द्रोकिन के शब्दों में -
‘ अपने कमरे में बैठी रचनाकार जब खाली, सफेद पन्ने के रूबरू होती है, उसका हठी लेखन सभी वर्जनाओं और नैतिकताओं के परे चला जाता है। पुराना किया-धरा भूल चुकी लेखिका के विरूद्ध संसार आलोचना करता है, उसपर थूकता है। जबकि जीवन, ज्ञान, सर्जनात्मकता से जूझते हुए वह अपने विचार व कल्पना को पैना कर रही होती है। लेखन भीषण रूप से निरपेक्ष होता है, कभी-कभी सामाजिक और वैयक्तिक सुधार से परे भी। कोई भी रचनाकार नहीं बता सकती है कि वह कैसे व क्या लिखती है। न ही लेखन प्रक्रिया की नकल के द्वारा कोई उसी प्रकार की कृति का सृजन कर सकता है। केवल साहसी और मौलिक रचनाकारों को पढ़कर ही कोई वास्तविक लेखन सीख सकता है।’
( ‘स्त्री रचनाकार और पोर्नोग्राफी’ निबंध के अनुदित अंश विजया सिंह के सौजन्य से )
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