ग्लोबलाइजेशन की गति को उपग्रह संस्कृति,इंटरनेट और उन्नत सूचना तकनीकी ने नई ऊँचाईयां दी हैं। सवाल यह है कि ग्लोबलाइजेशन क्या है ? इसका ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में धडल्ले से प्रयोग हो रहा है। किंतु अवधारणात्मक स्पष्टता के अभाव में इसकी भ्रमात्मक व्याख्याएं की जा रही हैं।
हाल के वर्षों में ग्लोबलाइजेशन के नाम पर जो नीतियां लाई जा रही हैं उनमें नव्य उदारतावाद के नाम पर मुक्त व्यापार,मुक्त व्यापार और व्यक्तिगत चयन के अधिकार और सरकारी नियमों और कानूनों में ढील देने पर जोर है। उल्लेखनीय है कि 'ग्लोबलाइजेशन' पदबंध को 'ग्लोबलिज्म' के साथ गड्डमडृड नहीं करना चाहिए। ये दोनों अलग हैं।'ग्लोवलिज्म' का अर्थ है ग्लोबलाइजेशन एक सामाजिक प्रक्रिया है। इसमें राजनीति,आर्थिक,सांस्कृतिक पहलू शामिल है। यह बेहद जटिल प्रक्रिया है।यही वजह है कि ग्लोबलाइजेशन के सही-सही अर्थ के बारे मेंमतभेद हैं।सामान्य तौर पर 'ग्लोबल संपर्क' पर जोर है। इसमे व्यक्तियों,पूंजी और विचारों के राष्ट्र की सीमाओं के परे ले जाकर आदान-प्रदान पर जोर है। आंकड़े बताते हैं कि इंटरनेट का उपयोग करने वाले आधे से ज्यादा उपभोक्ता अंग्रेजीभाषी हैं।
एक अनुमान के अनुसार 68.4 फीसदी से लेकर 80 फीसदी साइट अंग्रेजी में हैं। इंटरनेट में इतने बड़े पैमाने पर अंग्रेजी के इस्तेमाल के बावजूद अंग्रेजी सिर्फ आठ देशों (ब्रिटेन-आयरलैंड,अमेरिका,कनाडा,ऑस्ट्रेलिया,न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका,फिलीपींस, और भारत) में ऑनलाइन कारोबार अंग्रेजी में होता है। कुछ देश ऐसे भी हैं जिनकी एक राष्ट्रभाषा नहीं है। उदाहरण के तौर पर स्विटजरलैंड की चार राष्ट्रीय भाषाएं (जर्मन,फ्रेंच,इटली,रोमनिक) हैं। सारी दुनिया में कुल 43 फीसदी लोग अंग्रेजी बोलते हैं।
विश्वस्तर पर भाषाओं के प्रयोग के बारे में पाएंगे कि जापानी भाषा के सारी दुनिया में 134 मिलियन बोलने वाले हैं। जिन देशों में जापानी भाषा बोली जाती है वे हैं-जापान,अमेरिका,जर्मनी,ब्राजील इसके अलावा कई यूरोपीय देशों में भी जापानी बोलने वाले रहते हैं।जापानी बोलने वाले कुल 8.9 फीसदी लोग हैं।
चीनी भाषियों की 1999 में चीन में जनसंख्या 1.261बिलियन थी। इसके अलावा ताइवान की 22.2मिलियन,हांगकांग में 7.1 मिलियन,इसके अलावा अमेरिका में 1.3 मिलियन चीनी भाषाभाषी रहते हैं। चीनी भाषी 8.8 फीसदी हैं।
जर्मन भाषा जर्मनी,स्विटजरलैंड,आस्ट्रिया, लग्जमबर्ग, इटली,ब्राजील, अर्जेण्टीना, डेनमार्क, पोलैण्ड और फ्रांस। जर्मनभाषियों की तादाद 6.8 फीसदी है।स्पेनिश भाषी लोगों की संख्या 332 मिलियन है।जिन देशों में इस भाषा के बोलने वाले पाए जाते हैं। वे हैं स्पेन,वेनेजुएला, अर्जेण्टीना, चिली,मैक्सिको,सैण्ट्रल अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका (ब्राजील को छोड़कर ) ज्यादातर इलाकों में स्पेनिशभाषा बोली जाती है। कुल स्पेनिशभाषी हैं 6.5 फीसदी। कोरियन भाषी 4.6 फीसदी लोग हैं। कोरिया की जनसंख्या है 47.5 मिलियन है।
इसके अलावा अमेरिका में दस लाख कोरियन भाषी ,इटालियनभाषी 3.8 फीसदी, और कोरियन भाषियों की संख्या 4.6फीसदी है। इटालियन बोलने वालों की सारी दुनिया में तादाद 59.6 मिलियन है। ये इटली,अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। फ्रेंच बोलने वालों की तादाद 3.3 फीसदी है। पोर्तुगीज 161 मिलियन लोग बोलते हैं।यानी 2.2 फीसदी लोग पोर्तुगीज बोलते हैं।
अन्य भाषाभाषियों की तादाद 11.7 फीसदी है। दिसम्बर 2001 मे ऑनलाइन जनसंख्या थी 529 मिलियन। जबकि सारी दुनिया की जनसंख्या है 6.2 विलियन। आंकड़े बताते हैं कि थाई भाषा बोलने वालों की तादाद है 62.4 मिलियन। जबकि इंटरनेट का मात्र 2.3 मिलियन लोग ही इस्तेमाल करते हैं। इण्डोनेशिया और मलेशिया में रहने वाले मलयभाषियों की तादाद है 229 मिलियन। जबकि इंटरनेट का मात्र 4.7 मिलियन लोग ही इस्तेमाल करते हैं।
अरबी लोगों की तादाद है 229 मिलियन। इंटरनेट का मात्र 4.1 मिलियन लोग ही इस्तेमाल करते हैं। डच भाषियों की कुल तादाद है 23.6 मिलियन। जबकि इंटरनेट का मात्र 11.1 मिलियन लोग ही प्रयोग करते हैं।
सारी दुनिया के व्यापारिक समुदाय की यह समझ है कि ऑनलाइन पर आने वाले सभी लोग अंग्रेजी भाषी हैं। यही वजह है कि ज्यादातर कंपनियां बहुभाषी वेबसाइट नहीं बनातीं। वे सिर्फ अंग्रेजी में ही वेबसाइट बनाती हैं। यह स्थिति उन देशों के संदर्भ में सही हो सकती है जो अंग्रेजीभाषी हैं। किंतु जिन देशों में ज्यादातर लोग गैर अंग्रेजी भाषी हैं वहां के संदर्भ में स्थानीयभाषाओं को महत्व दिया जाना चाहिए। यह स्थिति तेजी से बदली है। स्थानीय भाषाओं का नेट पर प्रयोग बढ़ा है।
आज सच्चाई यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के 90 फीसदी दस्तावेज अंग्रेजी में तैयार किए जाते हैं। यहां तक कि जर्मन नेशनल बैंक भी अंग्रेजी का इस्तेमाल करता है। जबकि उसका अमेरिका या ब्रिटेन से कोई संबंध नहीं है। भारत में अंग्रेजी ही सरकारी कामकाज की प्रमुख भाषा है। प्रथम विश्वयुद्ध के पहले फ्रेंच भाषा व्यापार और विनिमय की विश्वभाषा थी। किंतु आज अंग्रेजी है।
अधिकांश कपनियों द्वारा बहुभाषी वेबसाइट न बनाने के पीछे प्रधान कारण है अनुवाद का मंहगा होना और अच्छे अनुवादकों का अभाव। अनुवाद सस्ता हो और ज्यादा से ज्यादा तादाद में अच्छे अनुवादक उपलब्ध हों तो शायद इस स्थिति में थोड़ा बदलाव आए।
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