नव्य उदारतावाद के सवालों पर बोर्दिओ की चर्चित किताब है ''फायरिंग बैक: अगेंस्ट दि आयरनी ऑफ दि मार्केट'' । इस किताब में मूलत: तीन मुद्दे उठाए गए हैं,पहला है यूरोप में नव्य -उदारतावाद,दूसरा ,संस्कृति को बाजार से खतरा और तीसरा है बुद्धिजीवियों की भूमिका। इस किताब में बोर्दिओ कहता है बुद्धिजीवियों को अपने को संगठित करना चाहिए और अपनी स्वायत्त सत्ता को बचाना चाहिए। इसके लिए जरुरी है प्रगतिशील और वैज्ञानिक कार्यक्रम बनाया जाए। यह किताब बोर्दिओ के मरने के बाद प्रकाशित हुई थी।
बोर्दिओ ने लिखा है यूरोप में सामाजिक आंदोलनों के द्वारा जितनी भी उपलब्धियां हासिल की गई थीं, वे सब नव्य-उदारतावाद के कारण नष्ट हो रही हैं। इस किताब के साथ ही बोर्दिओ की एक अन्य किताब ''टेलीरामा' देखें,जिसमें वह कर्मचारियों से अपील करता है कि वे जिस पत्रिका में काम कर रहे हैं,वहां पर छोटी सी हैसियत होने पर भी ताकतवर लोगों के खिलाफ संस्कृति की छोटी से छोटी चीज की हिमायत करें। मीडिया का पेरिस में जो विश्व कन्वेंशन हुआ था,उसमें विश्व मीडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शामिल हुए थे,उस कन्वेंशन में बोर्द्रिओ ने हेनरी किसिंगर को सम्बोधित करते हुए कहा था ''दुनिया के मालिको ,क्या तुम्हारा अपने स्वामित्व पर स्वामित्व है ?''इसी बात को सरल रुप में कहें तो क्या तुम जानते हो कि तुम क्या कर रहे हो ?तुम जो कर रहे हो क्या उसके समस्त परिणामों के बारे में जानते हो ?''
बोर्दिओ के बारे में यह प्रसिध्द था कि वह बुध्दिजीवी था। फ्रांस में बुध्दिजीवी वह है जो बौध्दिक कर्म करता है,साथ ही राजनीति में संस्कृति,कला,विद्वता के आधार पर हस्तक्षेप करता है।इसीलिए उसे पब्लिक इंटेलेक्चुअल कहते हैं। बोर्दिओ की मौत पर देरिदा ने कहा था कि बोर्दिओ का सबसे बड़ा अवदान है कि उसने समाजशास्त्र को दर्शन से जोड़ा। खासकर फील्ड,कल्चरल कैपीटल और हैविट्स की धारणा देकर बड़ा काम किया। दूसरी ओर स्थापत्य के क्षेत्र में बताया कि फ्रांस के स्थापत्य पर इस्लामिक स्थापत्य का कितना गहरा असर है। गुंटर ग्रास के साथ बातें करते समय बोर्दिओ ने कहा कि आज हमारे इनलाइटेंनमेंट की सभी परंपराओं का लोप हो गया है।
आज हमारे विजन के ऊपर नव्य-उदारतावाद हावी है, सामयिक नव्य-उदारतावादी क्रांति कंजरवेटिव क्रांति है। कंजरवेटिव क्रांति की बातें जर्मनी में 30 के दशक में हुई थीं, किंतु आज फ्रांस में भी हो रही हैं। बोर्दिओ ने कहा कि कंजरवेटिव क्रांति बड़ी ही विलक्षण चीज है ,यह क्रांति अतीत को पुन: स्थापित कर रही है। अतीत की स्थापना करते हुए यह स्वयं को प्रगतिशील बताती है। यह प्रतिगामिता को प्रगतिशीलता में रुपान्तरित करती है। जो प्रतिगामिता का विरोध करते है वे स्वयं को प्रतिगामी महसूस करते हैं। जो आतंक का विरोध कर रहे हैं वे आतंकवादी नजर आ रहे हैं। हम दोनों पुराने हो गए हैं, अप्रासंगिक महसूस कर रहे हैं। गुंटर ग्रास ने कहा कि हम डायनोसोर हो गए है। बोर्दिओ ने कहा कि तुमने सही कहा डायनोसोर हो गए हैं,यही कंजरवेटिव क्रांति की शक्ति है। अथवा तथाकथित ''प्रगतिशील'' की पुन: स्थापना है।
यह हास्य का अथवा व्यंग्य का युग नहीं है,ऐसी कोई चीज नहीं है जिसका मजाक किया जाए, ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर हंस सकें। गुंटर ग्रास ने कहा कि यह मनोरंजन का युग है, साहित्यकार इसमें व्यंग्य के जरिए सामाजिक अवस्था के बारे में अपने विचारों को व्यक्त कर रहे हैं। प्रतिवाद कर रहे हैं। यह ऐसा युग है जिसमें सर्वसम्मति खत्म हो चुकी है। कम्युनिस्ट सत्ता के पतन के बाद आम सहमति टूट गयी, आज पूंजीवाद यह मानकर चल रहा है कि वह जो चाहे कर सकता है।वह सभी किस्म के नियंत्रण से पलायन कर गया है। आज पूंजीपति दिशाबोध खो चुका है। नव्य -उदारतावादी व्यवस्था साम्यवाद की गलतियों को दोहरा रही है।अपने अंधभक्त पैदा कर रही है।
यूरोप में नव्य उदारतावाद के खिलाफ वैचारिक संघर्ष चलाने वालों में बोर्दिओ सबसे आगे थे, यूरोप में विनियमन या डी-रेगूलेशन की जो मुहिम चली उसका जमकर विरोध किया था। उसी उन्होंने एक जगह लिखा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को स्वर्त:स्फूत्ता ढ़ंग से पेशेवराना नेतृत्व हासिल नहीं करने देना चाहिए। इसके खिलाफ नागरिक शक्तियों को एकजुट किया जाना चाहिए। साथ ही किसी भी ग्रुप के प्रभुत्व की स्थापना नहीं की जानी चाहिए।बोर्दिओ की चिन्ता यह थी कि किसी भी तरह वंचितों की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। उच्च-तकनीकी के विकास के युग में भी वंचितों के हितों की रक्षा के सवालों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
बोर्दिओ का मानना था भूमंडलीकरण मिथ है। यह जनता के लिए तब ही अनिवार्य है जब जनता इसे मान ले। वे पुनरावृत्ति के जरिए उसे अपनाने के लिए मजबूर कर रहे हैं।यानी जनता इकोनॉमिक्स के प्रति अपना विचार बदल ले। भूमंडलीय पूंजीवाद उत्पादन की पध्दति नहीं है। बल्कि यह तो 'डोक्सा' है। इसमें '' आर्थिक शक्तियां प्रतिरोध नहीं कर सकतीं।'' नव्य उदारतावाद के तर्कों का प्रत्युत्तर देते हुए बोर्दिओ की एक किताब 1993 में '' दि वेट ऑफ दि वर्ल्ड'' प्रकाशित हुई। इसमें विस्तार के साथ बताया गया कि किस तरह नव्य उदारतावाद सामाजिक वैषम्य लेकर आया है, सामाजिक सुरक्षा के लिए खतरे पैदा कर रहा है। रोजगार के अवसरों को कैसे खत्म किया जा रहा है। बेकारी में किस तरह इजाफा हो रहा है,श्रम को उदार बनाकर श्रम के हालातों को और भी बदतर बनाया जा रहा है। यह किताब जनता के अनुभवों का दर्पण है।साथ ही जनता का प्रतिवाद भी है। सन् 1995 में फ्रांस जब गंभीर राजनीतिक संकट से गुजर रहा था, नव्य-उदारतावाद के खिलाफ व्यापक असंतोष व्यक्त हो रहा था,ऐसे में बोर्दिओ ने सभी वर्ग और विचारधारा के लोगों के बीच व्यापक एकता स्थापित करने के प्रयास किए और इसी प्रयास की कड़ी के तौर पर मजदूर संगठनों,बुध्दिजीवियों,सामाजिक कार्यकर्त्ताओं आदि के साझा मंच का मांगपत्र या पिटीशन तैयार किया। बोर्दिओ ने हड़ताल का समर्थन किया, बोर्दिओ ने रेल हड़ताल का समर्थन करते हुए रेल मजदूरों की सभा में रेल मजदूरों का आंदोलन सभ्यता की हिमायत है। जो बुध्दिजीवी इस हड़ताल का समर्थन नहीं कर रहे हैं मैं उनकी निन्दा करता हँ।वे इस आंदोलन को समझ नहीं पाए हैं। यह संकट की घड़ी है। यह निर्णायक क्षण है उनके लिए जो नव्य उदारतावाद का विरोध करना चाहते हैं,जो बर्बरता का विकल्प बनाना चाहते हैं।
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