साइबरयुग में प्रतिक्रांति के तरीके वे ही नहीं हैं जो शीतयुद्ध के जमाने में थे। साइबरयुग की केन्द्रीय उपलब्धि है समाजवाद का अंत। इस अंत को संभव बनाने में समाजवादी देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों के आंतरिक कलह ,भ्रष्टाचार,बर्बर व्यवहार की प्रमुख भूमिका रही है। लेकिन सारी दुनिया में सूचना क्रांति और साइबर संस्कृति के प्रसार ने समाजवाद के खिलाफ नए किस्म की चुनौतियों को प्रस्तुत किया है। इन चुनौतियों का सबसे अच्छा रूप समाजवादी देशों में ही नजर आ रहा है और दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सूचना के अबाधित प्रवाह में नजर आ रहा है।
साइबरयुग में अभिव्यक्ति को बाधित करना प्रतिक्रांतिकारी कार्य है। परवर्ती पूंजूवाद के पहले अभिव्यक्ति को नियंत्रित करना संभव था। इसलिए वह तार्किक भी लगता था। उस जमाने में सेंसरशिप का तर्क पूंजीवाद और समाजवाद दोनों की ही संगति में था। लेकिन परवर्ती पूंजीवाद ने सेंसरशिप को आत्म-सेंसरशिप में बदल दिया है। यही वजह है कि पूंजीवाद बड़े पैमाने पर इन दिनों आत्म-सेंसरशिप पर जोर दे रहा है।
आत्म-सेंसरशिप कारपोरेट संस्कृति का आज अभिन्न हिस्सा है। मीडिया को भी आत्म-सेंसरशिप अपनाने के लिए कारपोरेट घरानों ने बाध्य कर दिया है। इसके चलते सतह पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महसूस होती है वास्तव में आत्म-सेंसरशिप जारी है। सतह पर हम आजादी महसूस करते हैं लेकिन वास्तव जिंदगी में साइबर निगरानी के दायरे में रहते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो पाएंगे कि जिस तरह क्रांति का मुहावरा बदला है वैसे ही प्रतिक्रांति का मुहावरा भी बदला है।
समाजवादी चीन और क्यूबा में ऐसा बहुत कुछ घट रहा है जो प्रतिक्राति की कोटि में आता है। परवर्ती पूंजीवाद के पहले समाजवाद के खिलाफ बाहर से सैन्य और गैर-सैन्य हमले संगठित किए जाते थे। लेकिन परवर्ती पूंजीवाद के दौर में समाजवाद के अंदर से प्रतिक्रांतिकारी हमले संगठित किए जा रहे हैं। पहले पूंजीपतिवर्ग और अमेरिका आदि साम्राज्यवादी देश इन हमलों को नियोजित करते थे,लेकिन परवर्ती पूंजीवाद में स्वयं साम्यवादी कतारों के अंदर से क्रांति के खिलाफ संगठित हमले हो रहे हैं। सोवियत संघ और अन्य समाजवादी देशों में साम्यवादी शासन के पराभव का यह बुनियादी कारण है।
स्वयं से नफरत करना,अपनी भाषा,अपने विचार.अपनी संस्कृति और अपनी सभ्यता से नफरत करना परवर्ती पूंजीवाद का बुनियादी मंत्र है। एक वाक्य में कहें कि परवर्ती पूंजीवाद स्वयं से नफरत पैदा करने के चक्कर में व्यक्ति को स्वयं के खिलाफ खड़ा कर देता है और इसके चलते मानव मात्र के प्रति नफरत.बेगानापन,उपेक्षा आदि को एक आमफहम फिनोमिना बना देता है। व्यक्ति का व्यक्ति के ऊपर से विश्वास खत्म हो जाता है। अब एक-दूसरे पर अविश्वास और संदेह करने लगते हैं। यह फिनोमिना समाजवादी देशों में परवर्ती पूंजीवाद की विश्वव्यापी प्रक्रिया के माध्यम से प्रवेश करता है और समाजवाद धराशायी हो जाता है। लेकिन जिन देशों में अभी साम्यवादी दलों का शासन है ,खासकर चीन और क्यूबा में उन्हें तो कम से कम इन चीजों से बचना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि चीन और क्यूबा में परवर्ती पूंजीवाद के प्रतिक्रांतिकारी संस्कार तंजी से फल फूल रहे हैं।
प्रतिक्रांति का पहला रूप है साइबरयुगीन वास्तविकताओं से इंकार। साइबरयुग की विश्वव्यापी प्रवृत्तियों की अनदेखी से प्रतिक्रांति की प्रबल संभावनाएं हैं। मसलन नागरिकों को रीयल टाइम कनेक्टविटी से वंचित करना प्रतिक्रांति है। साइबर जासूसी प्रतिक्रांति है। सरकारी एक्शन को हमेशा सही ठहराना,टीवी या मीडिया में सरकारी भोंपू के रूप में काम करना, यानी सरकारी प्रचारक के रूप में काम करना प्रतिक्रांति है।
चीन में नागरिकों को सरकार के पक्ष में लिखने के लिए पैसा दिया जाता है। खासकर इंटरनेट पर लिखने लिए लेखकों को प्रति पोस्ट पचास सेंट दिए जा रहे हैं। इस पद्धति के जरिए आम जनता का मुँह बंद करने वालों का नेटवर्क तैयार किया गया है। उन लोगों को खासकर निशाना बनाया जा रहा है जो कम्युनिस्ट पार्टी के विचारों से असहमत हैं। साइबरयुग में असहमति को कुचलना प्रतिक्रांति है, व्यर्थ का प्रयास है।
साइबर संस्कृति का प्रभाव है कि आज चीन में इंटरनेट पर दस लाख से ज्यादा फोरम हैं और 20 करोड़ से ज्यादा ब्लॉग हैं। हजारों चाटरूम हैं। प्रतिदिन हजारों नए ब्लॉग बन रहे हैं। चीन परेशान है इस साइबर संस्कृति के प्रसार से। चीन के बारे में प्रतिदिन सत्य के नए रूप इंटरनेट में सबसे पहले उद्घाटित हो रहे हैं।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की बेवसाइट पर किसी भी किस्म की टिप्पणियां नजर नहीं आतीं अथवा एक-दो टिप्पणियां नजर आती हैं। मसलन् पीपुल्स डेली ऑन लाइन,झिंहुआ ऑनलाइन पर इक्का-दुक्का कमेंट हैं। सीना डॉट कॉम जैसे चीन के सबसे बड़े कॉमर्शियल इंटरनेट पोर्टेल पर 373 कमेंट हैं।
मजेदार बात यह है कि चीन में यूजर वही राय व्यक्त कर सकते हैं जिसकी कानून इजाजत देता है। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के पक्ष में लिखने वालों को प्रति पोस्ट पचास सेंट देने का रिवाज चलाकर अभिन्यक्ति को एक तरह से खरीदा जा रहा है। सवाल यह है कि पैसे के लालच में लिखी बातें क्या सच पर रोशनी डाल पाएंगी ?
इसी तरह सरकारी प्रयासों से आधिकारिक तौर पर नेट पर राय देने वालों की ऑनलाइन टीमें पार्टी के द्वारा बनाई जा रही हैं। गंगजू प्रदेश में ऐसी ही ऑनलाइन कमेंट लिखने वालों की 650 लोगों की टीम बनाई गई है जिसका वेस्टर्न बिजनेस पोस्ट नामक अखबार ने खुलासा किया है। इन लोगों का काम है नेट पर जाना और विभिन्न स्थानों पर टिप्पणियां लिखना। बेवसाइट,ब्लॉग,बेव बुलेटिन आदि पर कमेंट लिखना। चीन में इंटरनेट और साइबर संस्कृति का इतना व्यापक विस्तार साम्यवाद के कारण नहीं हुआ है बल्कि साइबरसंस्कृति और संचार क्रांति के कारण हुआ है। संचार क्रांति परवर्ती पूंजीवाद की देन है। साम्यवादी क्रांति की नहीं।
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