नव्य-उदारतावाद का दौर कम्प्यूटर ग्राफिक्स इमेजिंग अथवा सीजीआई की पकड़ में पूरी तरह आ चुका है। इस तकनीकी का विकास द्वितीय विश्वयुध्द के दौरान राडार तकनीक के रुप में हुआ था। साठ के दशक में सेना के लिए आवंटित धन के इस तकनीक में नए आयाम सामने आए,खासकर रीगन प्रशासन के दौरान सीजीआई तकनीक को व्यापक रुप में इस्तेमाल करने की तरफ ध्यान दिया गया और मनोरंजन से लेकर विज्ञान तक के क्षेत्र में इसका प्रयोग हो रहा है। सीजीआई तकनीक जन्म से स्त्रीमुखी तकनीक है। चूंकि आरंभ में इसका विज्ञान,गणित और सेना में इस्तेमाल शुरू हुआ था और वहां औरतें कम काम करती थीं अथवा बिलकुल काम नहीं करती थीं। यह स्त्रीमुखी तकनीकी है जिसका मर्द इस्तेमाल करते थे। इसके इस्तेमाल में प्रयोग में लायी जाने वाली भाषा '' किल- टेक नो होस्टेजज'',''एक्सक्यूट'',''टर्मिनेट'' और '' पॉइण्ट एंड शूट'' आदि भाषिक प्रयोग बताते हैं कि इस तकनीक में हिंसाचार की भाषा का व्यापक इस्तेमाल होता था। इस तकनीकी का काम '' घटनाओं के सम्मिश्रण'' पर टिका हुआ है।''घटनाओं के सम्मिश्रण'' के लिए यूजर को डिजिटल विस्फोट,आग, उड़ती हुई झोंपड़ी आदि की रचना करनी होती थी,आज यही तकनीकी वीडियोगेम की बुनियादी शक्ति है। आज आप वीडियोगेम के जरिए युध्द,हिंसाचार,विस्फोट आदि का संगठित हिंसाचार का मनोरंजन ले सकते हैं। इसी इमेजरी में कामुक औरत की छवि पेश की गई यह ऐसी औरत थी जो आक्रामक थी, आज हमारे बीच में ऐसे सैंकडों वीडियोगेम आ गए हैं जो आक्रामक और कामुक औरत के चरित्रों से भरे हैं। इन औरतों की दो नियति हैं सेक्स और मौत।कम्प्यूटर गेम की इन वर्चुअल हीरोइनों ने बाद में हॉलीवुड सिनेमा को अपनी जद में ले लिया है और इनकी हूबहू नकल करती हीरोइनों को मैदान में उतारा है ये ऐसी औरतें हैं जिन्हें आप एकशन टीवी पर भी अनेक धारावाहिकों में भी देख सकते हैं। ये ऐसे महिला चरित्र हैं जिनका कसा हुआ शरीर है,ये मद्र से भी ज्यादा शक्तिशाली हैं,आत्मनिर्भर हैं,निर्भय हैं,आत्मविश्वास से भरी हैं।ये सारी चीजें जब पर्दे पर दिखाई देती हैं तो आनंद देती हैं,किंतु हिंसाचार में सिध्दहस्त अथवा सफल या लिप्त ऐसे स्त्री चरित्र एक महत्वपूर्ण सवाल की ओर ध्यान खींचते हैं,सवाल यह है कि हिंसा से अंतत: क्या हासिल होता है ? हिंसा से अंत में कुछ भी हासिल नहीं होता। अमेरिकी समाज के विगत पच्चीस साल के अनुभव बताते हैं कि औरतों के अपराधी गिरोह बने हैं,औरतों में हिंसाचार बढ़ा है,जेल में बंद अपराधी औरतों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। जिस तरह पहले की कमनीय काया वाली औरत किसी काम की थी उसी तरह नयी धाकड़ बंदूक ख्चलाने वाली,मजबूत पुट्ठे और दण्ड वाली औरत भी किसी काम की नहीं है। पहली वाली औरत की इमेज उसकी कामुक असमर्थता की द्योतक थी तो नयी औरत की इमेज औरत की नजर से निर्मित विजन को व्यक्त नहीं करती बल्कि ह वह औरत है जिसे मर्द के विजन ने निर्मित किया है। यह वह औरत है जिसे सीजीआई आौ फिल्म उद्योग ने निर्मित किया है,इस औरत का जन्म स्त्री के विजन के गर्भ से नहीं हुआ है।दूसरी बड़ी बात यह है नयी औरत आक्रामक (एग्रेसर) हे,उसके इस रुप की मर्द पहले आलोचना कर चुके हैं। हिंसा और सशक्तिकरण पर्यायवाची नहीं हो सकते। नयी औरत हिंसा का प्रतीक बनकर आई है,आक्रामकता का प्रतीक बनकर आई है उसे सशक्तिकरण समझना गलत होगा। गेम और फिल्म काल्पनिक होते हैं। वे जीवन की नकल करते हैं।इन्हें जीवन की सच्चाई के रुपमें नहीं देखा जाना चाहिए।
हिंसा और उत्पीडन के आनंद का एक अन्य आयाम है जो हाइपर मर्दानगी और मीसोजिनिस्ट हिंसाचार में अभिव्यक्त हो रहा है। हमारे बीच में ऐसा रैप संगीत आ रहा है जे एक-दूसरे को मारते रहते हैं,पुलिस वाले को मारते रहते हैं,औरतों को मारते और दुर्व्यवहार और शोषण करते रहते हैं।पहला सवाल यह पैदा होता है कि आखिरकार ये मर्द बैठकर इस तरह के कहंसाचार के बारे में इस तरह सोचने पर समय कैसे खर्च करते हैं ? और हिंसा की कहानियों के बारे में कैसे लिखते,सोचते और बातें करते रहते हैं।रेप या पॉप संगीत की धुरी हिंसा और शोषण से पलायन रहा है किंतु आज यही संगीत हिंसा,सेक्स और शोषण का प्रतीक बन गया है। बाजार की सेवा अंतत: नरके के द्वार तक ले जा सकती है।रेप लंबे समय तक लोगों को एकजुट करने,आत्माभिव्यक्ति करने,अपने शरीर और अपनी आवाज की अभिव्यक्ति का माध्यम रहा है। यह सच है कि ब्रेकडांस में के दौरान कभी -कभी झगड़े हो जाया करते थे। लोग पार्टी में ही भिड़ जाया करते थे। फिर अचानक रेप और पॉप संगीत में हिंसा कहां से गयी। असल में हम जिन रेप को अमूमन टीवी पर्दे पर देखते हैं खासकर काले युवा गायकों और नर्तकों की प्रस्तुतियों को देखते हैं यह मूलत: मैक्सिको मूल के काले लोगों का चीकानो नाच है,यह मैक्सिको की पुंस संस्कृति की अभिव्यक्ति है। काले लोगों की पुंस संस्कृति और प्रभुत्वशाली संस्कृति है। अमरीकी समाज और खासकर काले लोगों का समाज गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है।संकट के समय मर्दानगी अपील करती है। पुरुष हिंसक पापुलर संस्कृति को हजम करते हैं और पेश करते हैं। यह ऐसा पुंसवाद है जो अन्य से मांग करता है।खासकर औरतों से मांग करता है। रेप और गैंग के फिल्मों में रुपायन के क्रम में काली संस्कृति का वस्तुकरण हुआ है।इसी के गर्भ से हाइपर पुंसवाद के काले मॉडल उभरकर सामने आए हैं। काले और मैक्सिकन मर्द मॉडलों की इसी क्रम में मांग बढ़ गयी और ये दोनों ही किस्म के मद्र हिंसक मर्द की इमेज लेकर सामने आए हैं।ये देखने में ताकतवर और नयी उत्तार आधुनिक डकैत संस्कृति की अभिव्यक्ति करते हैं।गैंगेस्टर की शैली इसी कारण रेप में स्वाभाविक तौर पर चली आई है। उल्लेखनीय है कि रीगन युग में काले लोगों को अपराध जगत में ठेलने के सचेत प्रयास किए गए,गैंग संस्कृति,मादक पदार्थों की तस्करी,बंदूक संस्कृति,बम संस्कृति,हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी में अभाव और मजबूरी में बड़े पैमाने पर काले लोगों को ठेल दिया गया।यह दौर एक तरह से गोरों की संस्कृति का काले लोगों के खिलाफ झेड़ा गया युध्द था।इस क्रम में पुलिस का सैन्यीकरण किया गया।अब यही हाईटैक पुलिस है। पुलिस के मनमाने अत्याचारों को इस तर्क के आधार पर वैधता प्रदान की गई कि काले युवा अपराध के प्रतीक हैं और इन्हें घेरना और हत्या करना पुण्य का काम है,यहां तक कि मीडिया भी इस मामले में चुप रहता था।बड़े पैमाने पर काले लोगों की संपत्तिा नष्ट की गई,अपराधी बनाया गया,जेलों में बंद कर दिया गया।इस तरह पूरी की नूरी पीढ़ी को अपराधीकरण की गोद में ठेल दिया गया। यही वह हिंसाचार है जो सभी बंदिशें तोड़कर हमारे घरों में टीवी के जरिए अभिव्यक्ति पा रहा है। काले लोग हिंसा से नफरत और प्यार एक ही साथ करते हैं। काले लोगों में भी नरमदिल के अच्छे लोग हैं किंतु उनका चित्रण नहीं किया जाता। हिंसक मर्दानगी काली संस्कृति का अभिन्ना हिस्सा है। काले लोगों का यह रुप कारपोरेट मीडिया को पसंद है।मर्दानगी से भरा सुपर हीरो उसका नायक है,वही पॉप कल्चर में वर्चस्व बनाए हुए है।ये काले लोगों के पुंसत्व के प्रतीक हैं।काले लोगों में औरत की दोयमदर्जे के नागरिक की अवस्था है। उन्हे बधिया स्त्री पसंद है,व्यक्तित्वहीन औरत पसंद है। इसीलिए वे औरत के साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं,अमानीय रुप में संगीत वीडियो में पेश करते हैं।स्त्री के खिलाफ हिंसाखर को वैधता हमारी पापुलर कल्चर ने दिलायी है।आज बड़े पैमाने पर हॉलीवुड फिल्मों ,धारावाहिको और रेप ने स्त्री के उत्पीड़न को वैधता प्रदान की है। साथ ही वस्तु के रुप में स्त्री की अमानीय इमेज को प्रतिष्ठित किया है।इससे पुरुषों की वरीयता में इजाफा हुआ है। मीडिया में सेक्स,हिंसा और दौलत सबसे ज्यादा बिकाऊ तत्व है।प्रेम,भलमनसाहत,उदारता को कोई नहीं खरीदता। यही वजह है कि अस्सी के दशक के बाद रैप करोड़ों डालर का उद्योग बनकर उभरा है। इसमें राजनीति,सामाजिक आलोचना और वैकल्पिक जीवन शैली हाशिए पर है जबकि लोभ,लालच और हिंसा केन्द्र में हैं।युवा काले युवाओं की आज यही पहचान का प्रतीक है। हमें सवाल करना चाहिए काले युवा कलाकार हिंसा का ही रूपायन क्यों कर रहे हैं ? साथ ही स्वयं से भी सवाल करना चाहिए कि हम हिंसा का ही सेवन क्यों कर रहे हैं ? यह काल्पनिक हिंसा नहीं है,बल्कि काले लोगों की जिन्दगी की वास्तविकता के साथ उसका गहरा संबंध है।
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