सामान्यत: पोर्न फिल्मों अथवा फिल्म में गैर-परंपरागत सेक्स के दृश्य रहते हैं। गैर-परंपरागत सेक्स की कोटि में मुख मैथुन, गुदा मैथुन,समूह मैथुन, मैथुन के वे रूप जो सामान्य मैथुन से भिन्न हैं और जिसमें शरीर को काफी कसरत करनी पड़े,अथवा जिसमें जटिल आसन आदि को रखा जा सकता है। जबकि गैर-परंपरागत सेक्स के स्थानों में घर ,होटल या बिस्तर के अलावा स्थानों को रखा जा सकता है। मसलन् किसी फर्नीचर पर सेक्स को गैर-परंपरागत सेक्स स्थान की कोटि में रखा जा सकता है। इस तरह के सेक्स को आए दिन फिल्मों और पोर्न फिल्मों में देखा जा सकता है। रोमैण्टिक संबंध में उन्मादी संबंध,पहली मुलाकात,यदाकदा मिलना,सुचिन्तित रूप में मिलना आदि को रखा जा सकता है।
विगत पच्चीस वर्षों में जिस तरह कम्प्यूटर नेटवर्क का प्रसार हुआ है उसके कारण कम्प्यूटर और स्त्री के अन्तस्संबंध से जुड़े सवालों ध्यान गया है।इस प्रसंग में मुख्य सवाल यह है कि कम्प्यूटर साइंस और नेटवर्किंग में औरतों की हिस्सेदारी का स्वरूप क्या है ? सामाजिक संपर्क में स्त्री की क्या भूमिका है ? पोर्नोग्राफी में स्त्री की क्या भूमिका है ?
सामान्यत: कम्प्यूटर साइंस के नेटवर्क से औरतों का अच्छा-खासा हिस्सा जुड़ा है। किन्तु शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी कम लड़कियां कम्प्यूटर साइंस पढ़ रही हैं। कम्प्यूटर नेटवर्क के कामकाज में लगी औरतों को आए दिन अनेक किस्म के शारीरिक उत्पीड़न और परेशानियों से गुजरना पड़ता है।खासकर सेक्सुअल उत्पीडन उसमें प्रमुख है। इंटरनेट ने सामाजिक संपर्क और संबंध की एक नई दुनिया का उदघाटन किया है। इससे कम्प्यूटिंग में भी मूलगामी बदलाव पैदा किया है , शिक्षा और सामाजिक संपर्क में मूलगामी परिवर्तनों की शुरूआत की है।
अमेरिका में जहां सूचना क्रांति का श्रीगणेश हुआ,वहां पर कम्प्यूटर साइंस पढ़ने वालों में लड़कियों की संख्या नगण्य है। जेनेट कॉटरेल के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में 97 फीसदी फैकल्टी सदस्य (कम्प्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग विभाग) मर्द हैं, दो-तिहाई विभाग ऐसे हैं जहां एक भी औरत काम नहीं करती। अमेरिकी समाज में इस तरह के आंकड़े चौंकाने वाली बात नहीं है।
बल्कि यह स्वाभाविक लगता है खासकर बच्चों में खिलौनों के प्रयोग के पीछे छिपे लिंगभेद को देखें तो बात समझ में आ जाएगी। अमेरिका में लड़कों में गणित के खिलौने और लड़कियों में बारवी डॉल का चलन है। इसके कारण बच्चों की मानसिकता बनाने में बड़े पैमाने पर मदद मिली है। वीडियोगेम और शिक्षा संबंधी सॉफ्टवेयर में आक्रामक खिलौनों जैसे बंदूक, मशीनगन, सैटेलाइट,मिसाइल,स्पेशशिप आदि को लड़कियां पसंद नहीं करतीं। लड़कियां कम्प्यूटर के एयरकंडिशंन लॉकरनुमा बंद कमरे का माहौल देखकर भी इस पेशे को नहीं अपनातीं। क्योंकि लॉकरनुमा बंद कमरा मूलत: मर्दवादी प्रकृति को व्यक्त करता है। यही वजह है कि कम्प्यूटर साइंस के माहौल को औरतों के स्वागतयोग्य बनाने,अनुकूल बनाने, स्त्री के लिए शारीरिक तौर पर सुरक्षित बनाने, कम्प्यूटर वाले कमरे में या स्क्रीन पर पोर्न के दृश्यों को न लगाने,औरतों के प्रशिक्षण की अलग से व्यवस्था करने पर खास तौर पर ध्यान देने की जरूरत है।
कम्प्यूटराइज संपर्क खासकर चित्रमय संपर्क बेहद खतरनाक है।इसका कभी भी दुरूपयोग हो सकता है। शिक्षा के मकसद से किया गया संपर्क जिसमें पाठ की भूमिका हो, वह उपयोगी है। किन्तु चित्र के माध्यम से किया गया संपर्क कभी भी खतरा पैदा कर सकता है।
कम्प्यूटर और इंटरनेट में पोर्न का इस्तेमाल नैतिक रूप से सही है या गलत है,यह सवाल अभी तक हल नहीं हो पाया है। पोर्न का अबाध प्रसारण जारी है। यह जानते हुए भी कि पोर्न सामाजिक तौर पर और खासकर स्त्री के लिए घातक है,सारी दुनिया के देश इसका प्रसारण कर रहे हैं।
पोर्न क्या है ? क्या पोर्न समाज के लिए घातक है ? पोर्न के संदर्भ में अभिव्यक्ति की आजादी और सेंसरशिप का अर्थ क्या है ? कम्प्यूटर पोर्नोग्राफी,कामुक उत्पीडन, कामुक हिंसाचार के बीच किस तरह का संबंध होता है ? इत्यादि सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं।
औरतों के संदर्भ में इतनी परेशानियों के बावजूद औरतें बड़ी तादाद में कम्प्यूटर और इंटरनेट का प्रयोग कर रही हैं। क्योंकि यह तकनीक मूलत: औरतों के अनुकूल माहौल बनाती है। आज औरतों के लिए सबसे अच्छे संसाधन नेट पर उपलब्ध हैं।औरतों की समस्याओं पर काम करने वाले संगठनों की सामग्री और संपर्क उपलब्ध हैं। इसके कारण महिला सशक्तिकरण की दिशा में समाज आगे बढ़ा है। जरूरत इस बात की है कि औरतों को ज्यादा से ज्यादा नेट का उपयोग करना सिखाया जाए। यह सच है कि अभी भी नेट का पूरा माहौल मर्दवादी है,किन्तु यह स्थिति बदलनी चाहिए,इसके लिए स्त्रियों को आगे आना होगा, समाज के बाकी हिस्सों को उनमें साहस का संचार करना होगा।
नेट का वर्चुअल जगत यूटोपिया के लिए आदर्श जगत है। यूटोपिया में जीने वालों के लिए इससे सुंदर जगह कहीं नहीं है। इसीलिए कुछ लोग इसे न्यूटोपिया भी कहते हैं। साइबरस्पेस हमारे पाठ की प्रकृति को बदल रहा है। इलैक्ट्रोनिक टेक्स्ट हमें गैर-टेक्स्ट के युग में ले जा रहा है।इसका अर्थ यह है कि अब हमें लिखने के लिए कागज की जरूरत नहीं होगी।अब लेखन पूरी तरह इलैक्ट्रोनिक अनुभव होकर रह जाएगा। साइबरस्पेस में मुद्रित सामग्री की आवश्यकता नहीं होगी। साइबर स्पेस स्वायत्त व्यक्ति का संसार बनकर रह जाएगा।इसका अर्थ है स्वयं की ईमानदारी ही सामाजिक प्रतिष्ठा का एकमात्र निर्धारक तत्व बन जाएगी।
मुद्रित शब्द की सत्ता के लोप के बाद और ईमेल के विकेन्द्रीकृत रूप के आने के बाद लेखक और पाठक के नए संबंधों की शुरूआत हुई है। एक जमाना था मुद्रित सामग्री का मालिक संपादक हुआ करता था,यह सिलसिला अभी भी जारी है किन्तु भविष्य में ऐसा नहीं होगा।
अब मुद्रित शब्द का मालिक लेखक ही होगा। वही उसका नियन्ता होगा।अब किसी भी बड़े लेखक के साथ कोई भी गुमनाम लेखक / लेखिका यूजनेट के खुले मंच पर अपनी रचना प्रकाशित कर सकता है। इसके कारण उसकी सामाजिक हैसियत भी बदल सकती है। लेखकों में छोटे-बड़े का भेदभाव ,महान् लेखक का बोध,रचना के चौकीदार के रूप में संपादक की भूमिका आदि में भी परिवर्तन आ गया है। लेखकों के बीच में नए किस्म का सामुदायिक भावबोध पैदा हो रहा है। यही स्थिति स्त्रीवाद की भी है।
आज स्त्रीवाद के बारे में जितनी जानकारियां नेट पर उपलब्ध हैं उतनी जानकारियां पहले कभी नहीं थीं।महिला आन्दोलन और स्त्री के उत्पीडन का जितने व्यापक स्तर पर नेट ने उद्धाटन किया है वैसा पहले कभी नहीं हुआ। आज महिला आन्दोलन और स्त्री विमर्श सारी दुनिया के साथ संवाद और विमर्श कर रहा है। दूसरी ओर स्त्री विरोधी ताकतों के हमले भी तेज हुए हैं। पितृसत्ता के खिलाफ हमला करने वालों के खिलाफ एक तरह का जेहाद छेड़ दिया गया है।
लड़कियों के साथ खासकर कॉलेज / विश्वविद्यालय मे पढ़ने वाली लड़कियों के साथ उनके सहपाठियों के द्वारा की गई छेड़खानी अथवा गंदे चुटकुले सुनाने की प्रवृत्ति का भी मीडिया में अध्ययन किया गया है। इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण है परिभाषा। लड़की के साथ छेडखानी किसे कहा जाए ? यह छेड़खानी ऐसे सहपाठियों के द्वारा होती है जो साथ ही पढ़ते हैं। इन्हें प्रत्यक्षत: कोई विशेष अधिकार हासिल नहीं हैं। ये अपने साथ पढ़ने वाली लड़की को गंदे-गंदे चुटकुले ,कामुक आक्रामक टिप्पणियां या फब्तियां ,आवाजकशी , चिढ़ाना, कामुक ढ़ंग से निहारना,गंदे हावभाव का प्रदर्शन करना,अवांछित स्पर्श और चुम्बन के जरिए परेशान करते हैं,उत्पीडित करते हैं।
मीडिया पंडितों में पोर्न के प्रभाव को गंभीर बहस चल रही है। पोर्न का दर्शकों के एटीटयूट्स और व्यवहार पर किस तरह का प्रभाव होता है ? सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि मीडिया में प्रसारित पोर्न सामग्री दर्शक के अन्दर कामुक झगड़ा और बलात्कार को जन्म देती है। हिंसक कामुकता का प्रदर्शन हिंसक प्रभाव पैदा करता है। प्रत्यक्ष नग्न सामग्री का आस्वाद औरतों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करता है।ऐसी सामग्री के दर्शकों में औरतों के प्रति हिंसाभाव ज्यादा पाया जाता है। हिंसक पोर्न के दर्शकों पर किए एक बड़े अनुसंधान से यह तथ्य सामने आया कि दर्शक यह मानते थे कि कामुक औरत के प्रति जो हिंसा दर्शायी गयी ,वह सही थी, क्योंकि वह औरत इसी के लायक थी। हिंसक वीडियो,फिल्म आदि के दर्शकों पर किए गए अनुसंधान बताते हैं कि इनका दर्शकों में हिंसाबोध पैदा करने में महत्वपूर्ण अवदान रहा है। कुछ ऐसे भी अनुसंधान हुए हैं जो यह मानते हैं प्रत्यक्ष कामुकता वाली मीडिया सामग्री का दर्शकों पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।
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