गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

इंटरनेट का पाखण्डशास्त्र



(वर्चुअल रियलिटी का जनक जरोन लेनियर)                                                   
         भारतीय समाज में तकनीक और विधाओं का प्रयोग हमेशा देर से शुरु होता है। नेट पर जब से ट्विटर आया है  चर्चित व्यक्तित्वों का धीरे-धीरे जमघट बढ़ रहा है। ये लोग अपने व्यापार और व्यक्तित्व का बाजार बनाने के लिए ट्विटर का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। ट्विटर पर आने वाले ज्यादातर वे लोग हैं जो गंभीर संकट में हैं, अलगाव से परेशान हैं अथवा बाजार की उठा-पटक में पिछड़ गए हैं।
     आम तौर पर यह मान लिया जाता है कि जो चर्चित व्यक्तित्व है उसके सामने सुख भोगने के अलावा और कोई काम नहीं है। सच इसके एकदम उलट है। इस युग में सबसे ज्यादा संकटग्रस्त कोई है तो वह चर्चित व्यक्तित्व है। झूठी शानो-शौकत ने उसकी सच्चाई पर मोटा पर्दा ड़ाला हुआ है। उसकी इमेज सत्य से नहीं बनी है बल्कि वह तो मीडिया निर्मित नकली इमेज है। चर्चित व्यक्तित्व पर लिखते समय अथवा उसका लिखा पढ़ते समय अथवा उस पर पढ़ते समय यह ध्यान रखें कि लिखे का कभी एक ही अर्थ नहीं होता। खासकर स्टार या अभिनेता की इमेज बहुआयामी होती है। संचार क्रांति के कारण हम इमेजों की महामारी के शिकार बनकर रह गए हैं।   
   इंटरनेट के आने के साथ बड़े पैमाने पर खुलेपन की बहस चली और दुनिया में तरह-तरह के विचारकों ने इस पर काम किया था। इंटरनेट के खुलेपन के हिमायतियों में एक हैं जरोन लेनियर। लेनियर को वर्चुअल रियलिटी का जनक माना जाता है और उनका संचार की उन्नत तकनीक के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान भी है।
    लेनियर की हाल ही में एक किताब आयी है जिसका नाम है ‘‘ यू आर नॉट गजट’’,इस किताब में उन्होंने लिखा है मैंने आरंभ में इंटरनेट के फ्री इस्तेमाल की हिमायत की थी और साहित्य,संगीत,कला आदि का आम यूजरों ने इंस्टेंट इस्तेमाल किया था ,जो भी रचना हम तैयार करते थे उसका यूजरों के द्वारा इंस्टेंट इस्तेमाल होता था। आज हमें इस पर नए सिरे से सोचने की जरुरत है।
    लेनियर ने लिखा है कि इंटरनेट पर गुटबाजी हो रही है ,उन्मादी गिरोह सक्रिय हैं, और घटिया किस्म के सामजिक-असामाजिक गुट बन रहे हैं। औसत बुद्धि के लोगों ने नेट पर जमघट लगा लिया है। लेनियर ने लिखा है हमने मुफ्त सॉफ्टवेयर का महिमामंडन किया और व्यक्तिगत सर्जनात्मकता की फ्री सूचना और सामुदायिक सेवाकार्य के नाम पर उपेक्षा की।  लेनियर ने इसके लिए वेब की ‘अनाम’ परंपरा को दोषी ठहराया है।
    ब्लॉग,फोरम और सोशल नेटकर्क आदि ने  ‘अनाम’ की परंपरा और औसत सृजन के बढ़ावा दिया है।इसका आदर्श उदाहरण है विकीपीडिया। लेनियर ने लिखा है कि ‘‘खुली संस्कृति’’ और ‘‘मुफ्त सूचना’’ ने विध्वंसक सामाजिक संपर्कों को जन्म दिया है। इस संपर्क के कारण यह धारणा बलबती हुई है कि लेखकों,पत्रकारों, कलाकारों,पत्रकारों आदि से मुफ्त में सामग्री ली जा सकती है। अब सब कुछ सेल्फ प्रमोशन यानी विज्ञापन बनकर रह गया है।
     आम तौर पर फोकटिया ज्ञान पाने वाले यह भूल ही जाते हैं कि ज्ञान के निर्माण में धन,कल्पना,बुद्धि,विवेक आदि का भी खर्चा होता है और हमें ज्ञान को फ्री में पाने की मानसिकता से बचना चाहिए। उल्लेखनीय है कि जरोन लेनियर ने ही फोकट में ज्ञान बांटने की हिमायत की थी आज उन्हें इसमें कारपोरेट हितों की रक्षा के कारण समस्या नजर आ रही है।
     यह सच है कि इंटरनेट पर गुणवत्तापूर्ण और विश्वसनीय लेखन में गिरावट आयी है और यूजर के पास सही क्या है और गलत क्या है इसका अभाव बार-बार महसूस किया गया है । हिन्दी में अनेक बेवसाइट हैं जो विशुद्ध सनसनी फैलाने और ब्लेकमेलर छुटभैय्या पत्रकार की भाषा और सामग्री का इस्तेमाल करती रहती हैं। हिन्दी में ही क्यों अन्य भाषाओं में भी यही स्थिति है। लेनियर ने स्वयं एक जमाने में बेव पर आने वालों को ‘डिजिटल किसान’ कहा था।
    जिस तरह आम जीवन में हम आए दिन किसान को मुफ्त पानी,मुफ्त बिजली प्रदान करने की वकालत करते हैं ठीक वैसे ही नेट के यूजर के लिए भी मुफ्त ज्ञान और सामग्री देने की मांग कर रहे हैं।
    साफ्टवेयर की शोषक प्रकृति होती है और इसका साक्षात प्रमाण है गूगल। जो लोग सोचते हैं कि सॉफ्टवेयर की तटस्थ प्रकृति होती है वे भोले हैं। तकनीक खासकर संचार और परिवहन की तकनीक की शोषक प्रकृति होती है। यही वजह है कि नेट,मीडिया,परिवहन के क्षेत्र में बड़ी-बड़ी इजारेदारियां पैदा हुई हैं।
     नेट पर दूसरी बड़ी समस्या है बौद्धिक चोरी की। बौद्धिक चोरी को नेट ने वैध बनाया है। फोटोकॉपी से यह सिलसिला आरंभ हुआ था और आज नेट बौद्धिक चोरों का महासमुद्र बन गया है। आप जब किसी किताब की फोटोकॉपी करते हैं तो लेखक के अधिकारों का हनन कर रहे होते हैं और इस तरह लेखक का नुकसान कर रहे होते हैं। बाद में यह सिलसिला ऑडियो-वीडियो की प्रतिलिपि तैयार करने में चल पड़ा। अब हम चोरी करना गलत नहीं मानते बल्कि सही मानते हैं। इसी को कहते हैं शोषकों की कतार में जाने-अनजाने शामिल होना। यह सारा गड़बड़झाला उपभोक्ता को फायदा पहुँचाने के नाम पर चल रहा है।
      बौद्धिक पाइरेसी से सर्जक और निर्माता को गंभीर नुकसान हो रहा है। कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति बौद्धिक चोरी को स्वीकृति नहीं देगा। बौद्धिक चोरी या प्रतिलिपि तैयार करने के कारण सर्जक और निर्माता का नुकसान होता है साथ ही समूचा बौद्धिक वातावरण भी खराब होता है और बौद्धिक गिरावट आती है।
    हम गौर करें कि जीरोक्स मशीन आने के बाद से प्रतिलिपि निर्माण का काम तेज हुआ है और इससे बौद्धिक उत्पादन और पुनर्रुत्पादन में गिरावट आयी है। औसत और निम्न कोटि की बौद्धिकता का उन्माद पैदा हुआ है। इस उन्माद ने एक खास किस्म का बेबकूफों,औसत लेखकों और चमचामार्का बुद्धिजीवियों की सारी दुनिया में लहलहाती फसल तैयार की है। ज्ञान,संवाद,संपर्क ,ज्ञान के प्रति सम्मान और बंधुत्व में तेज गिरावट आयी है। संस्कृति और ज्ञान को फ्रिज कर दिया है आज जरुरत इस बात की है कि इस हिमालय जैसे ठंड़े फ्रिज कर देने वाले संचार क्रांति के वातावरण से कैसे निकलें।     











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