संचार क्रांति धुरी है साम्राज्यवादी वर्चस्व, धंधा और झूठ। जो लोग इसे सत्य से जोड़ते हैं वे मासूम हैं और इस तकनीक की वैधता को अभी भी खिलंदड भाव से ले रहे हैं। संचार क्रांति की पारदर्शिता के खोखलेपन का आदर्श उदाहरण है हाल में आई आर्थिकमंदी और अमेरिका में सैंकड़ों बैंकों दिवालिया हो जाना। आश्चर्य की बात यह है कि आम जनता और मीडिया को उसकी भनक तक नहीं लगी।
पारदर्शिता का आलम यह है कि अमेरिका आज सारी दुनिया के सामने नंगा खड़ा है,400 से ज्यादा अमेरिकी बैंक दिवालिया हो चुके हैं लेकिन अभी तक एक भी अपराधी नहीं पकड़ा गया।
सबसे ज्यादा सुरक्षा देने वाली नयी उन्नत तकनीक का इस्तेमाल जब से हुआ है तब से साइबर सफेदपोश अपराधियों की संख्या हठात् आसमान छूने लगी है। साइबर लूट और अपराध में सैंकड़ों गुना वृद्धि हुई है।
फेक मेल, फेक दोस्त ,फेक सेक्स और फेक प्रेम की भी बाढ़ आ गयी है। कहने का तात्पर्य यह है कि इंटरनेट की संचार प्रणाली पर शक की सुई जिस तरह घूम रही है वैसी स्थिति अन्य किसी माध्यम की नहीं हुई थी।
आज नेट प्रामाणिकता के संकट से गुजर रहा है। मानव सभ्यता के इतिहास में संचार के किसी भी उपकरण को इस तरह के संकट का सामना नहीं करना पड़ा था। आखिरकार इंटरनेट अपने वायदे पूरे क्यों नहीं कर पाया ? ऐसा क्या हुआ कि नेट की प्रामाणिकता और खूबियों के बारे में जितने दावे नेटगुरुओं ने किए थे वे धीरे-धीरे हवा हो गए।
मसलन् कागजरहित ऑफिस के वायदे का क्या हुआ ? आज अमेरिका में पहले की तुलना में कागज की खपत ज्यादा हो रही है। हमारी बैंकों से लेकर अन्य संस्थानों में कागज की खपत कम होने की बजाय बढ़ी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आज कारपोरेट नेट कंपनियों और विभिन्न देशों की सरकारों के द्वारा की जा रही साइबर निगरानी के दायरे में आ गयी है। बैंक खाते जो कल तक गुप्त थे आज साइबर निगरानी के दायरे में हैं और साइबर डकैतों के लिए खुले हैं। पारदर्शिता के वायदे को भी नयी संचारप्रणाली निभा नहीं पायी है।
फेक में मजा और फेक का ही संचार यही संचार क्रांति की अब तक की सबसे बड़ी देन है। देखने वाली बात यह है कि नयी संचार प्रणाली क्या मनुष्य को सत्य और यथार्थ करीब ले जाती है या सत्य से दूर ? संचार क्रांति के हाहाकार में सत्य से हम कोसों दूर चले गए हैं,सत्याभास को ही सत्य समझने लगे हैं।
संचार क्रांति का दूसरा बड़ा योगदान है कि हम सचार तकनीक के गुलाम होकर रह गए हैं। आम जीवन में सत्य की हलचलों की बजाय पाखण्ड की बाढ़ आ गयी है खासकर मनोरंजन और धर्म का बिगुल बज उठा है। मनोरंजन और धर्म के कोलाहल में हमें सिर्फ धमाकों की आवाजें दिखती हैं, हमने जीवन के सत्य से मुखातिब राजनीति की ओर देखना बंद कर दिया है। विज्ञापन के शोर में हमने गरीबों का क्रंदन सुनना,देखना और पढ़ना बंद कर दिया है। संचार क्रांति की सुनामी ने हमें बहरा बना दिया हैं। संचार सुनामी में हम निर्जीव प्राणी बनकर रह गए हैं। यह सारा उलटा-पुलटा इसलिए हुआ है क्योंकि हमने संचार क्रांति की गुलामी स्वीकार कर ली है। काश ! हम संचार क्रांति के गुलाम न होते ।
आप सही कह रहे हैं...
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति......
http://laddoospeaks.blogspot.com/
nice
जवाब देंहटाएं