पोर्नोग्राफी पुरूष में कामुक उत्तेजना पैदा करती है और स्त्री के मातहत रूप को सम्प्रेषित करती है। यह संदेश भी देती है कि औरत को पैसे के लिए बेचा जा सकता है। मुनाफा कमाने के लिए मजबूर किया जा सकता है। स्त्री का शरीर प्राणहीन होता है। उसके साथ खेला जा सकता है।बलात्कार किया जा सकता है।उसे वस्तु बनाया जा सकता है। उसे क्षतिग्रस्त किया जा सकता है।हासिल किया जा सकता है।पास रखा जा सकता है। असल में पोर्नोग्राफी संस्कार बनाती है,स्त्री के प्रति नजरिया बनाती है। यह पुरूष के स्त्री पर वर्चस्व को बनाए रखने का अस्त्र है।
पोर्नोग्राफी के पक्षधर मानते हैं कि उन्हें भी अभिव्यक्ति की आजादी हासिल है। पोर्न के खिलाफ किसी भी किस्म की पाबंदी अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है। इसके विपरीत पोर्न विरोधी स्त्रीवादी विचारकों का मानना है पोर्न के खिलाफ सिर्फ अश्लील दृश्यों के कारण ही कानून नहीं बनाना चाहिए अपितु उसकी प्रैक्टिस के कारण भी कानून बनाया चाहिए। इससे व्यक्ति और समूह के रूप में स्त्री क्षतिग्रस्त होती है।
पोर्न को वही सुरक्षा और संरक्षण नहीं दिया जा सकता जो अभिव्यक्ति की आजादी के लिए दिया जाता है। अभिव्यक्ति की आजादी के पक्षधर समाज में किसी के शोषण अथवा सम्मान को नष्ट करने या किसी के अधिकार छीनने लिए अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल नहीं करते,जबकि पोर्न का निशाना औरत है। यह औरत के सम्मान,अस्मिता,जीने के अधिकार, आजादी और स्वायत्तता के खिलाफ की गई हिंसक कार्रवाई है।
पोर्न को यदि अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के नाम पर संरक्षण दिया जाता है तो इसका अर्थ होगा स्त्री की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार को सुरक्षित रखने में राज्य अपनी जिम्मेदारी निबाहना नहीं चाहता। पोर्नोग्राफी अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है ,बल्कि सांस्कृतिक आतंकवाद है। यह स्त्री के अधिकार हनन, चुप कराने, लिंगभेद और शारीरिक शोषण का अस्त्र है।
ए.गेरी ने '' पोर्नोग्राफी एंड रेस्पेक्ट फॉर वूमेन'' में सवाल उठाया है कि क्या पोर्नोग्राफी को लिंगभेदीय हिंसा और भेदभाव के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ? क्या औरत को सेक्स ऑब्जेक्ट की तरह देखना हर समय गलत है ? इन दोनों सवालों पर विस्तार से विचार करने बाद लिखा कि पोर्नोग्राफी स्त्री को हानि पहुँचाने में सफल रही है।
इस निष्कर्ष के बावजूद गेरी का मानना है कि पोर्न पर पाबंदी उसका समाधान नहीं है। डायना स्कूली ने '' अण्डस्टेंण्डिंग सेक्सुअल वायलेंस: ए स्टैडी ऑफ कनविक्टेड रेपिस्ट'' में लिखा है कि पोर्नोग्राफी ने सांस्कृतिक माल के रूप में पुरूष फैंटेसी के हिंसाचार को मात्रात्मक और गुणात्मक तौर पर बढावा दिया है।
पोर्न में स्त्री केन्द्रित हिंसा के माध्यम से आनंद की सृष्टि की जाती है। बलात्कार का महिमामंडन किया जाता है। वह पुरूष को अपनी फैंटेसी के लिए प्रोत्साहित करती है।हिंसक पोर्न में मिथ का महिमामंडन किया जाता है। मसलन् पोर्न इस मिथ महिमामंडन करता है कि स्त्री चाहती है कि उसके साथ गुप्त रूप में बलात्कार किया जाए। बलात्कारी पुरूष यह मानने लगता है कि उसका बलात्कारी व्यवहार संस्कृति के वैध नियमों के तहत आता है।
स्कुली ने अपने अनुसंधान में पाया बलात्कार के दोषी और सजा याफ्ता अपराधी पोर्न देखने के अभ्यस्त थे। बड़े पैमाने पर पोर्न देखते थे। स्कुली की इस धारणा के पीछे यह तर्क काम कर रहा है कि पोर्न देखकर पुरूष अपना नियंत्रण खो देता है। पोर्न का विवेकहीन अनुकरण करता है। इसमें यह धारणा भी निहित है कि जो आदमी पोर्न देखता है वह सीधे उसकी नकल करता है। अथवा उसकी खास तरह की मनोदशा तैयार होती है जिसके कारण वह खास किस्म का व्यवहार करता है।
इसका यह भी अर्थ है कि पुरूष आलोचनात्मक नजरिए से पोर्न देख नहीं पाता। वह बगैर सोचे जो देखता है उसका अनुकरण करता है। पोर्न देखते हुए कामुक हिंसाचार का आदी हो जाता है,पोर्न की लत लग जाती है। कामुक हिंसाचार पोर्न की वजह से होता है। जो कामुक हिंसाचार कर रहा है उसके लिए वह नहीं पोर्न जिम्मेदार है। अथवा उसकी बीमार मनोदशा जिम्मेदार है।
इस तरह की सैद्धान्तिकी को 'केजुअल थ्योरी' कहा जाता है। यह सैद्धान्तिकी मानती है कि 'नकल' या 'लत' के कारण व्यक्ति अपना नियंत्रण खो देता है। इस दृष्टिकोण की स्त्रीवादी विचारकों ने तीखी आलोचना की है।
स्त्रीवादी विचारकों का लक्ष्य है कामुक हिंसाचार ,उसके सांस्कृतिक नियम एवं संरचनात्मक असमानता में पोर्न की भूमिका का उद्धाटन करना। वे मानसिक विचलन या बीमारी की ओर ध्यान खींचना नहीं चाहती।
असल में 'केजुअल मॉडल' कामुक हिंसकों के प्रति सहानुभूति जुटाता है।ऐसी अवस्था में उन्हें दण्डित करना मुश्किल हो जाता है।इसके विपरीत स्त्रीवादी चाहती हैं कि कामुक व्यवहारों का आलोचनात्मक दृष्टि से मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
कुछ स्त्रीवादी यह भी मानती हैं कि पोर्नोग्राफी स्त्री को चुप करा देती है।मातहत बनाती है।पोर्नोग्राफी असल में शब्द और इमेज का एक्शन है।यहां एक्शन यानी भूमिका को शब्दों और इमेजों के जरिए सम्पन्न किया जाता है।इसका देखने वाले पर असर होता है।
मसलन् किसी पोर्नोग्राफी की अंतर्वस्तु में काम-क्रिया व्यापार को जब दरशाया जाता है तो इससे दर्शक में खास किस्म के भावों की सृष्टि होती है। स्त्री के प्रति संस्कार बन रहा होता है।आम तौर पर पोर्न में स्त्री और सेक्स इन दो चीजों के चित्रण पर जोर होता है। इन दोनों के ही चित्रण की धुरी और लक्ष्य है स्त्री को मातहत बनाना। उसके गुलामी का बोध पैदा करना।पोर्न का संदेश उसके चित्र,भाषा,इमेज के परे जाकर ही समझा जा सकता है।इसमें प्रच्छन्नत: खास तरह की भाषा और काम क्रियाओं का रूपायन किया जाता है। इसमें हमें वक्ता की मंशा का भी अध्ययन करना चाहिए।पृष्ठभूमि में प्रदर्षित चीजो,वस्तुओं,परंपराओं ,रिवाजों आदि को भी समझना चाहिए। क्योंकि उनसे ही असल अर्थ सम्प्रेषित होता है।सामाजिक अभ्यास सम्प्रेषित होते हैं।पोर्न की वैचारिक शक्ति इतनी प्रबल होती है कि वह आलोचक की जुबान बंद कर देती है।यही वजह है कि सेंसरशिप उसके सामने अर्थहीन है।
जेनोफर होर्न सवे ने वक्तृता सैद्धान्तिकी के आधार पर पोर्न का मूल्यांकन करते हुए लिखा पोर्न स्त्री को चुप करती है। स्त्री संबंधी विचारों को थोपती है,अभिव्यक्ति से वंचित करती है।सामाजिक नियमों को आरोपित करती है।पोर्नोग्राफी पुरूष को यह अवसर देती है कि पुरूष उसे निरंतर गलत ढ़ंग से पढ़े और स्त्री के बोलने को नोटिस ही न ले।औरत की चुप्पी तोड़ने के लिए अनुकूल माहौल का होना जरूरी है। पृष्ठभूमि का होना जरूरी है। पोर्न का प्रसार यह माहौल और पृष्ठभूमि नष्ट कर देता है। पोर्न स्त्री की सम्प्रेषण क्षमता में हस्तक्षेप करती है।यही वजह है स्त्री पोर्न को चुनौती नहीं दे सकती।बल्कि वह पोर्न सामग्री को छिपाने की कोशिश करती है।[1]
नादीनि स्ट्रोसीन का मानना है पोर्न का एक अर्थ नहीं होता। वह सिर्फ सेक्स संबंधी समझ ही नहीं देती बल्कि अनेकार्थी होती है। यह संभव है कि कुछ लोग पोर्न को अच्छा मानें और कुछ लोग बुरा मानें। कुछ इसके नकारात्मक और कुछ सकारात्मक प्रभाव को मानें। यदि भिन्न नजरिए से देख जाए तो पोर्न में दरशाए गए बलात्कार के ट्टश्य राजनीतिक मकसद पूरा करते हैं।जो लोग उन्हें गंभीरता के साथ देखते हैं ,उसके खिलाफ हो जाते हैं। अपने प्रतिरोधभाव को व्यक्त करते हैं। इस नजरिए से देखें तो पोर्न के शब्द और इमेजों का शाब्दिक असर स्त्री को शक्तिहीन दरशाता है।किन्तु व्यवहार में स्त्री दर्शकों में प्रतिरोधी चेतना पैदा करता है।पोर्नोग्राफी की विभिन्न व्याख्याएं यह बताती हैं कि उसका एक ही संदेश या अर्थ क्षतिकारक होता है।यही वजह है कि उसका एक ही अर्थ ग्रहण नहीं किया जाना चाहिए।पोर्न के क्षतिकारक प्रभाव के अध्ययन के लिए उसकी पृष्ठभूमि का अध्ययन किया जाना चाहिए,सम्प्रेषण की पृष्ठभूमि का अध्ययन किया जाना चाहिए। पृष्ठभूमि का अध्ययन किए बगैर यह कहना मुश्किल है कि पोर्न चुप करता है या मातहत बनाता है।यह बात सभी संदर्भों पर लागू होती है। कई संदर्भो में स्त्री के असुरक्षित सम्मान के पक्ष में बगावत का भाव पैदा करती है।
पोर्न पर आपका विस्तृत लेखन आकर्षित कर रहा है -मगर मनुष्य की इस प्रवृत्ति का गंभीर वस्तुनिष्ठ अध्ययन अभी पूरा हुआ नहीं लगता .मनुष्य में कई जैविक प्रवृत्तियों विकास अपने चरम पर पहुंचा हुआ है -हिंसा ,.विध्वंस, प्रेम ,घृणा,यौनोंमत्तता,सब कुछ परवान पर चढी हुयी है यहाँ -वह फिल्मों में विध्वंस देखकर जहां अपनी इस चाह के शमन का एक शंतिपरक रास्ता ढूंढ लेता है उसी तरह उसकी अन्वेषी प्रकृति ने और भी राहत केंद्र (आउट लेट ) बना डाले हैं जहाँ वह जाकर अपने को सहज कर लेता है और सार्वजनिक जीवन का अनुकरणीय शख्सियत बन उभरता है .
जवाब देंहटाएंपता नहीं आप तटस्थ अकादमीय दृष्टि से पोर्न देखते हैं या नहीं या फिर संत परम्परा में बिना दृश्य को देखे ही अंतर्ज्ञान/अंतर्दृष्टि से सच का साक्षात्कार करते हैं -इधर उत्तरोत्तर पोर्न भी बहुत मानवीय हो चला है जहाँ शिष्टाचार के भी तकाजे हैं -भले ही वह मिथ्याचार हो मगर वहां भी नारी अब दबंग है सबला है और खुद उन्मुक्त प्रफुल्ल हो काम केलि में योगदान करती है -दरअसल हम पोर्न को बहुत कुछ वैसा ही व्याख्यायित करते हैं जैसा की खुद हमारे लालन पालन के संस्कार होते हैं -और हाँ संस्कार कभी अच्छे बुरे नहीं बस वे संस्कार होते हैं अलग अलग परिस्थितियों के ....
आपकी यह श्रृंखला बहुत कुछ सोचने को आमंत्रित करती है -आभार !