जॉन स्कॉट ने रेखांकित किया है कि जेण्डर का अर्थ है सेक्स और सेक्सुअल डिफरेंस में अन्तर्निहित बायोलॉजिकल निर्धारणवाद का अस्वीकार। तिरिसा दे लॉरिटीज ने लिखा सेक्सुअल डिफरेंस पदबंध स्त्रीवादी चिन्तन को सार्वभौम सेक्स विलोम के सीमित अर्थ में बांधता है। इसके कारण स्त्रियों के बीच में जो भिन्नता है उसे देखने में असुविधा होती थी। त्रिन-मिन्ह हा ने लिखा है कि जेण्डर पदबंध साम्राज्यवादी सोच को अस्वीकार करता है। यह भी कहा कि जेण्डर सेक्साधारित व्यवहार को तय करता है। यह असमानता पैदा करता है।
मोनिका वीटिंग इससे एक कदम आगे जाकर घोषणा करती है कि हमें सेक्स और जेण्डर दोनों ही पदबंधों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मोनिका की राय में जेण्डर ''सेक्स के राजनीतिक विलोम के भाषायी अनुक्रम में स्त्री के वर्चस्व '' की अभिव्यक्ति है। जबकि सेक्स दार्शनिक और राजनीतिक केटेगरी है। जिसमें समाज हेट्रोसेक्सुअल है। यही वजह है कि भाषा में स्त्री को जेण्डर कहते हैं,समाज में सेक्स कहते हैं। चूंकि समाज में वह पितृसत्तात्मक अर्थव्यवस्था का हिस्सा है अत: मोनिका के नजरिए से स्त्री का भाषा में लेस्बियनाइजेशन किया जाना चाहिए।
सिकसाउस ने भिन्न नजरिया व्यक्त किया है वह जेण्डर और सेक्सुअल डिफरेंस की बात करते हुए बताती है कि सेक्सुअल डिफरेंस आनंद के रूप में ही सामने आता है। स्त्री की सहजजात अवस्था को मर्द या पुंसवादी व्यवस्था के संदर्भ में परिभाषित नहीं किया जा सकता। इस समस्या का बेहतर समाधान बायसेक्सुअलिटी की थ्योरी में है। बायसेक्सुअलिटी की बात करते हुए सिकसाउस कोई नयी धारणा नहीं देती।अपितु शिश्नकेन्द्रिकता के सेक्सुअल डिफरेंस वाले वायनरी अपोजिशन में चली जाती है। स्त्री और पुरूष के भेद में चली जाती है। सिकसाउस कहती है कि इसमें अनंत संभावनाएं हैं,व्यापक आनंद है।अनंत इच्छाएं हैं।
जूडी बटलर की राय है जेण्डर विमर्श की अवधारणा है।जेण्डर संस्कृति नहीं है। बल्कि सेक्स प्रकृति है। जूडी बटलर की नजर में जेण्डर हमारी चेतना में सेक्स के पहले आता है,सेक्स बाद में आता है। यही वजह है कि जेण्डर को उसके सांस्कृतिक-राजनीतिक तत्वों से अलग किया जा सकता है।
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