संघ जिस हिन्दू संस्कृति की बात करता है वह मूलत: हिन्दू संस्कृति नहीं है। साम्प्रदायिक संस्कृति है। इसकी ही जीरोक्स कापियां प्रचलन में हैं। संघ वालों ने ब्रिटिशशासकों के द्वारा बतायी हिन्दू संस्कृति का अनुकरण करके हिन्दू संस्कृति और हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा बनायी ,अब वे लोग अमरीका के भक्त हो गए हैं और अमरीकी सांस्कृतिक कारखाने में तैयार अस्मिता की धारणा को उछाल रहे हैं।
उल्लेखनीय है भारत में अस्मिता की राजनीति के जनक ब्रिटिशशासक थे। उनके विचारकों ने अस्मिता के विमर्श की शुरूआत की, वे ही लोग थे जिन्होंने अस्मिता के अवैज्ञानिक आधार को निर्मित किया। आज के दौर में भी अस्मिता का सारा विश्वव्यापी प्रपंच साम्राज्यवाद के कारखानों में ही तैयार किया जा रहा है और वे उसकी जीरोक्स कापी से काम चला रहे हैं।
साम्राज्यवाद को असल नहीं नकल से प्यार होता है। कृत्रिम अथवा बनाबटी से प्यार होता है। वे जबभी किसी धारणा,अवधारणा अथवा संस्कृति के रूप की बात करते हैं तो पहले उसकी इच्छित छवि और धारणा बनाते हैं और उसके बाद उसे सारी दुनिया पर थोप देते हैं। ''पांच करोड़ की गुजराती अस्मिता'' मूलत: संस्कृति उद्योग के अस्मिता के कारखाने का उत्पादन है। मीडिया का सांस्कृतिक उत्पादन है। इसे असल गुजराती अस्मिता समझना भूल होगी। यह नकल की नकल है। परम सुंदर है,हाइपररीयल है।
मोदी का गुजरात अब संघ का गढ़ है। यह गांधी का राज्य नहीं रहा। गुजरात में अब घटनाएं नहीं होतीं बल्कि हिंसा होती है। अब गुजरात का इतिहास हिंसा के जरिए निर्मित हो रहा है। ऑक्टोवियो पाज ने एक बार कहा था अमरीका का जन्म इतिहास से पलायन के लिए हुआ है। यूटोपिया का निर्माण इतिहास से पलायन कराता है। यही बात संघ परिवार के बारे में कही जा सकती है कि संघ परिवार का जन्म इतिहास से पलायन के लिए हुआ है। जहां-जहां भाजपा का शासन आया है और खासकर गुजरात में तो इतिहास को एकदम खदेड़ दिया गया है।
हम जब संस्कृति पदबंध का प्रयोग करते हैं तो इसमें किसी भी किस्म के प्रतिबंध की बात शामिल नहीं होती। संस्कृति में प्रतिबंध शामिल नहीं होता। किंतु ''पांच करोड़ की गुजराती अस्मिता'' में जिस संस्कृति का आख्यान शामिल है वहां प्रतिबंध ही प्रतिबंध हैं। संस्कृति के लिए स्वतंत्रता चाहिए,सहिष्णुता चाहिए।
हमने संस्कृति को 'अच्छी' और 'बुरी' के नाम से वर्गीकृत, प्रदूषित और सीमित कर दिया है। संस्कृति में किसी भी किस्म की बाधाएं नहीं होतीं। किंतु संघ परिवार की हिन्दू संस्कृति प्रतिबंधों से भरी है। संस्कृति में चुनने की आजादी होती है। संघ की संस्कृति में चुनने की आजादी नहीं है। वहां पर जो तय कर दिया गया है उसे हर हालत में मानना होगा। अस्वीकार करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। संस्कृति में स्वतंत्रता होती है और प्रत्येक किस्म की व्यवस्था को अपना अस्तित्व बनाए रखने की आजादी होती है। संघ परिवार इन सब बातों को नहीं मानता। वैसे ही जैसे अमरीका नहीं मानता। अमरीका की भी यही समस्या है वह सभी किस्म की व्यवस्थाओं के अस्तित्व को मानने को तैयार नहीं है।
बौद्रिलार्द ने ''अमरीका'' नामक किताब में यही लिखा कि अमरीका का जन्म ही इतिहास से पलायन के लिए हुआ। यही वजह है कि अमरीका का कोई इतिहास नहीं है। वह सिर्फ उनका ही प्रतिनिधित्व करता है जो उसके यूटोपिया में शरण लेना चाहें।
बहुत सारे लोग हैं जो अमरीका के सपने में खोए रहते हैं।निहित आकांक्षाओं में तल्लीन रहते हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि 90 फीसदी लोग तो यूटोपिया में ही जीते हैं और सपने देखते रहते हैं।
अधिकांश सरकारें अपने तरीके से यूटोपिया पैदा करने की कोशिशें कर रही हैं। ठीक उसी रास्ते पर संघ परिवार ने गुजराती अस्मिता के यूटोपिया को उछाला है और इसकी प्रयोगशाला गुजरात को बनाया है।
इसके पहले राम के यूटोपिया का सारे देश में इस्तेमाल किया गया। अब संघ ने नई रणनीति के तहत प्रत्येक राज्य के लिए अलग-अलग किस्म के यूटोपिया बनाने शुरू कर दिए हैं। इनमें उसे काफी हद तक सफलता मिली है। लोगों और राज्यों को विभाजित करने में सफलता मिली है। राम के यूटोपिया की सफलता के बाद संघ परिवार ने छोटे राज्यों के यूटोपिया को प्रचारित किया और आज हमारे बीच में उत्तराखंड,छत्तीसगढ़ और झारखंड उपलब्धि के तौर पर मौजूद हैं। इसके बाद गुजरात का प्रयोग चल रहा है और इससे अन्य राज्यों को भी प्रेरणा मिल रही है। गुजराती अस्मिता का प्रयोग विगत दस सालों में काफी जनप्रिय रहा है और आशाओं के अनुरूप परिणाम निकले हैं। संघ का यूटोपिया खोखला यूटोपिया है वह जिस लक्ष्य का वायदा करता है उस तक कभी नहीं पहुँचता और इसका साक्षात् प्रमाण है राममंदिर आन्दोलन, तीन नए राज्यों का गठन। इन राज्यों के गठन के बावजूद भी इनकी समस्याएं ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। बल्कि वास्तविकता यह है कि समस्याएं और भी ज्यादा जटिल हुई हैं। संघ का यूटोपिया लोगों को अंधानुकरण के रास्ते पर ले जाता है ,लोगों में यथार्थ समस्याओं से पलायन की भावना पैदा करता है।
संघ की हिंदु संस्कृति हिंदी हिंदू,हिंदुस्तान,गाय,और भारत माता से है.....इसमें खोखला पन समझ से परे हैं....कृपया प्रकाश डालें...
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