अमिताभ बच्चन ने जब से गुजरात के विकासदूत का जिम्मा लिया है तब से कांग्रेस बौखलाई घूम रही है। कल कांग्रेस के प्रवक्ता ने अमिताभ से जबाव मांगा कि वह गोधरा-गुजरात के 2002 के दंगों के बारे में अपनी राय व्यक्त करें ? पहली बात यह है कि अमिताभ से जबाव मांगने का कांग्रेस को कोई हक नहीं है। किसी भी नागरिक को यह हक है कि वह किसी मसले पर बोले या न बोले। जिस बेवकूफी के साथ कांग्रेस प्रवक्ता ने अमिताभ से जबाव मांगा है, उस सिलसिले को यदि बरकरार रखा जाए तो क्या किसी उद्योगपति से कांग्रेस यह सवाल कर सकती है ? क्या टाटा से नैनो का कारखाना गुजरात में लगाते वक्त यह सवाल कांग्रेस ने पूछा कि आप गुजरात क्यों जा रहे हैं ? वहां तो 2002 में दंगे हुए थे,क्या कांग्रेस ने उन उद्योगपतियों से सवाल किया था जिन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री को कुछ अर्सा पहले प्रधानमंत्री के पद हेतु ‘योग्य’नेता घोषित किया था, मूल बात यह है कि कांग्रेस जो सवाल अमिताभ से कर रही है वही सवाल देशी-विदेशी उद्योगपतियों से क्यों नहीं करती ? आखिरकार वे कौन सी मजबूरियां हैं जो कांग्रेस को देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों से गोधरा-गुजरात के दंगों पर सवाल करने से रोकती हैं ?कांग्रेस ने आज तक उन कारपोरेट घरानों से पैसा क्यों लिया जिन्होंने गुजरात दंगों के बाद मोदी और भाजपा को चंदा दिया था। खासकर उन घरानों से पैसा क्यों लिया जिन्होंने मोदी को योग्यतम प्रधानमंत्री कहा था।
इससे भी बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस कब से दूध की धुली हो गई ? कौन नहीं जानता कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी के महानायकत्व के निर्माण में अमिताभ बच्चन के सिनेमा की बड़ी भूमिका रही है।
संघ के सारे कारनामों को जानने के बावजूद कांग्रेस का संघ के प्रति साफ्टकार्नर रहा है। यह भी एक खुला सच है कि कांग्रेस ने राजीव गाँधी के जमाने में अमिताभ से खुली राजनीतिक मदद ली थी उन्हें इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़वाया गया और उस समय अमिताभ से यह नहीं पूछा था कि सिख-जनसंहार पर क्या राय है ? भारत-विभाजन पर क्या राय है ? कांग्रेस के द्वारा भारत-चीन युद्ध के समय संघ से मदद लेने और बाद में संघ की एक कार्यकर्त्ता टोली को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल करने पर क्या राय है ? यह फेहरिस्त काफी लंबी है।
मूल समस्या यह नहीं है कि अमिताभ बताएं कि 2002 के दंगों पर उनकी राय क्या है ? समस्या यह है कि अमिताभ बच्चन जैसे सैलीबरेटी के एक्शन को कैसे देखें ?
अमिताभ साधारण नागरिक नहीं हैं और नहीं राजनेता हैं,बल्कि सैलीबरेटी हैं। सैलीबरेटी की एकायामी भूमिका नहीं होती,सैलीबरेटी के एक्शन,बयान आदि का एक ही अर्थ नहीं होता। सैलीबरेटी अनेकार्थी होता है,एक का नहीं अनेक का होता है। उसमें स्थायी इमेज और कोहरेंट अर्थ खोजना बेवकूफी है।
सैलीबरेटी हमेशा अर्थान्तर में रहता है। यही वजह है गप्पबाजी,चटपटी खबरें,खबरें,अनुमान,स्कैण्डल आदि में वह आसानी से रमता रहता है। आज के जमाने में किसी भी चीज का एक ही अर्थ नहीं होता फलतः अमिताभ बच्चन के गुजरात के विकासदूत बनने का भी एक ही अर्थ या वही अर्थ नहीं हो सकता जैसा कांग्रेस सोच रही है।
अमिताभ का गुजरात का विकासदूत बनना कोई महान घटना नहीं है यह उनकी व्यापार बुद्धि, खासकर फिल्म मार्केटिंग की रणनीति का हिस्सा है। साथ ही उनके देशप्रेम का भी संकेत है।
अमिताभ ने सभी दलों की मदद की है ,यह काम उन्होंने नागरिक और सैलीबरेटी के नाते किया है। इससे अमिताभ की इमेज कम चमकी है अन्य लोगों और दलों की इमेज ज्यादा चमकी है, बदले में अमिताभ को तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा है।
आज भाजपा ने अमिताभ का लाभ उठाने की कोशिश की है यही भाजपा वी.पी.सिंह के साथ मिलकर अमिताभ-अजिताभ को बोफोर्स का एजेण्ट कहकर अपमानित कर रही थी, कांग्रेस के साथ उस समय अमिताभ को अपमान के अलावा क्या मिला था ? यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में अमिताभ ने अप्रत्यक्ष ढ़ंग से समाजवादी पार्टी के लिए काम किया था हम जानते हैं कि बाद में मायावती और कांग्रेस ने उन्हें किस तरह परेशान किया ।
आज कांग्रेस के लोग अमिताभ पर हमले कर रहे हैं तो वे संभवतः यह सोच रहे हैं कि शायद मोदी की इमेज या साख को सुधारने में अमिताभ से मदद मिले, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता,अमिताभ कोई पारस नहीं हैं कि उनका स्पर्श करते ही लोहे के मोदी सोने के हो जाएं। सवाल यह है कि कांग्रेस सैलीबरेटी संस्कृति से इतना आतंकित क्यों है ?
उल्लेखनीय है फिल्मी नायक की इमेज बहुआयामी और बहुअर्थी होती है। इंटरनेट,ब्लॉग और ट्विटर के युग में हीरो अपनी इमेज को नियंत्रित रखने की कोशिश भी करते हैं। लेकिन साइबर फिसलन में पांव टिका पाना संभव नहीं होता। फलतःसैलीबरेटी अपना विलोम स्वयं रचने लगता है।
सही चिन्तन...
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