ब्लॉग की चारित्रिक विशेषता के बारे में चीन के प्रख्यात इंटरनेट विद्वान और बीजिंग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हु यंग ने लिखा है कि ब्लॉगिंग नए किस्म का संचार है। इसकी चार विशेषताएं हैं,ये हैं, प्रथम ,गति केन्द्रितकता , यह इंटरनेट के नए संचार विकासक्रम का द्योतक है।
परंपरागत माध्यम में समाचार चक्र चलता है जिसके तहत अखबार हमें दिन में एकबार मिलता है जबकि ब्लॉगिंग में किसी भी किस्म के समयचक्र का चक्कर नहीं है। यह रीयल टाइम नेटवर्क है। इसमें जिस गति से सूचनाएं सप्लाई की जाती हैं उसे परंपरागत मीडिया कभी नहीं दे सकता।
ब्लॉग की दूसरी विशेषता है फ्रेगमेंटशन, इसका चिंतन पर बड़ा असर हो रहा है। पहले हम मासमीडिया के जरिए केन्द्र से बाहर की ओर सूचनाएं सम्प्रसारित करते थे। मसलन् पहले कोई घटना होती थी तो घटनास्थल से सामग्री संकलन करके अखबार के ऑफिस भेजते थे। उसके बाद वह संपादित होकर छपती थी। उसके बाद उसे नेटवर्क पर पुनर्प्रस्तुत किया जाता था। इस समूची प्रक्रिया में मीडिया का आरंभ बिंदु ‘केन्द्र’ हुआ करता था।
आज स्थितियां बदल गयी हैं। आज यह संभव है कि ब्लॉगर किसी घटना को देख रहा हो और वह तुरंत ही सूचना या खबर अपने ब्लॉग पर प्रसारित कर दे। कल तक जो नागरिक महत्वहीन और अज्ञात था आज वह अचानक महत्वपूर्ण हो गया है। आज वह सूचना का बाजार हो गया है। यह इंस्टेंट के जबर्दस्त प्रभाव का सूचक है।
ब्लॉगिंग की तीसरी विशेषता है प्रत्यक्ष या सीधे संचार। इस संचार में कोई मध्यस्थ नहीं है। मसलन् आप अपने फेन और स्टार के बारे में सूचना पाना चाहते हैं तो पहले किसी न किसी मध्यस्थ की जरुरत हुआ करती थी। आज ऐसा नहीं है आज सीधे संप्रेषित कर सकते हैं। पहले अनेक मध्यस्थ होते थे आज ब्लॉगर वगैर किसी मध्यस्थ के सीधे विषय पर जाकर संवाद स्थापित कर सकता है। जिन लोगों ने ब्लॉग बना लिए हैं वे वगैर सेंसर के संवाद के लिए जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं।
ब्लॉग की चौथी विशेषता है छोटे या लघु शक्ति का उदय। लघुशक्ति और कुछ नहीं बल्कि इसका अर्थ है प्रत्येक व्यक्ति जिम्मेदारी उठाए। लघु का अर्थ है साधारण नागरिक। और शक्ति का अर्थ है कि संसार में हजारों भाषाएं हैं, लेकिन बदलेगी सिर्फ शब्द की भूमिका,समाज पर इस लघु सूचना और लघु आदान-प्रदान का चीन के समाज पर व्यापक असर हो रहा है।
ब्लॉग क्या कर सकता है और इसकी शक्ति क्या है ? ब्लॉग लेखन सार्थक है या निरर्थक है ? यह सवाल भारत के संदर्भ में ज्यादा प्रासंगिक नहीं है। भारत में ब्लॉगिंग और नेट संस्कृति शैशवावस्था में है।
भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों के लिए ब्लॉग लेखन अभिव्यक्ति का सबसे प्रभावशाली मीडिया बन सकता है, इसके व्यापक फैलाव के लिए जरुरी है कि ब्रॉण्डबैण्ड कनेक्शन और इंटरनेट सेवाओं का विस्तार हो, भारत में जिस गति से नेट कनेक्शन बढ़ने चाहिए वह अभी तक बढ़ नहीं पाए हैं।
दूसरी बड़ी बाधा है बिजली का अभाव भारत के महानगरों को छोड़ दें तो छोटे शहरों में बिजली की निरंतर सप्लाई अभी भी एक बढ़ी समस्या बनी हुई है।
तीसरी बड़ी बाधा है कम्प्यूटर का सस्ता न होना। भारत के साधारण नागरिक की अनिवार्य जरुरत अभी कम्प्यूटर नहीं बन पाया है। जिस तरह टेलीविजन ने अपनी दैनिक जीवन में जगह बनायी है वैसी ही जगह जब तक कम्प्यूटर नहीं बनाता तब तक ब्लॉगिंग का दायरा बड़ा नहीं हो पाएगा।
भारतीय समाज की केन्द्रीय विशेषता है कि इसमें वाचिकयुगीन संरचनाओं पर प्रिंट ,इलैक्ट्रोनिक मीडिया और संचार क्रांति की संरचनाएं सवार हैं,आरोपित हैं। हमारे समाज के अधिकांश हिस्से को अक्षरज्ञान नहीं हुआ ,लेकिन संचार और मीडिया की सभी किस्म की ‘क्रांतियां’ जरुर हो गईं।
वाचिकयुगीन संप्रेषण पद्धतियां अभी भी गांवों से लेकर शहरों तक अपनी जड़ें जमाए हुए हैं। राजनीति से लेकर कृषि तक के सारे संचार में वाचिकयुग के संप्रेषण उपकरणों का अभी भी वर्चस्व बना हुआ है। वाचिकयुग से समूचे समाज को लेखन के पैराडाइम में लाने में हमारी असमर्थता के कारण ही प्रिंट क्रांति और संचार क्रांति सिर्फ मध्यवर्ग के द्वार पर जाकर रुक गयी है।
भारत का आज भी अधिकांश हिस्सा प्रिंट क्रांति और संचार क्रांति के दायरे के बाहर खड़ा है। जिस दिन हम वाचिक समाज को कलम के समाज में तब्दील कर देंगे उसके बाद हमारी संचार क्रांति छलांगें मारने लगेगी।
वाचिकयुगीन मानसिकता को टीवी,रेडियो,फिल्म, फोन या मोबाइल सहज ही अपील करते हैं लेकिन इंटरनेट नहीं। नेट के विकास के लिए समाज को लेखन के युग में लाना बेहद जरुरी है।
जो समाज लेखन के युग में आ चुके हैं वहां पर यदि नेटसेवाओं का जाल बिछाया गया है तो वहां तेजी से नेट लेखन और नेट संचार का विकास हुआ है।चीन इसका आदर्श उदाहरण है।
नेट क्रांति में एक अन्य बाधा है राजनीतिक दलों और बौद्धिकों में नेट अज्ञान ,मीडिया साक्षरता और साइबर साक्षरता का अभाव। गंभीरता के साथ विचार करें तो मीडिया और साइबर साक्षरता के अभाव का ही यह दुष्परिणाम है कि राजनीतिक दल पैसे से मीडिया खरीद लेते हैं लेकिन अपने ऑफिस,दल, अनुयायी और कार्यकर्त्तामंडली में मीडिया और साइबर संस्कृति की शिक्षा-दीक्षा का अभी भी कोई ठोस इंतजाम नहीं कर पाए हैं। सभी राजनीतिक दलों के नेताओं का जनता और कार्यकर्त्ता के साथ नियमित बेव संवाद नहीं है।
अभी राजनीतिक दल मीडिया और नेट का प्रतीकात्मक रुप में प्रौपेगैण्डा के मकसद के लिए इस्तेमाल करते हैं। आज भी राजनीतिक संचार परंपरागत संचार के रुपों पर ज्यादा निर्भर है। इस स्थिति को ध्यान में रखकर सोचें तो सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि सन् 2009 में संसद के चुनावों के समय लालकृष्ण आडवाणी का इंटरनेट प्रचार क्यों टांय-टांय फिस्स होकर रह गया।
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