जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
सोमवार, 26 अप्रैल 2010
कम्प्यूटर क्रांति का महान विज़नरी वन्नेबर बुश -1-
( संचार क्रांति के पितामह वन्नेबर बुश)
इन दिनों विमर्श का पैराडाइम बदल गया है। कम्प्यूटर और सूचना तकनीकी ने सभी किस्म के विमर्श को अपनी जद मे ले लिया है।अब कोई भी विमर्श इस पहलु से अछूता नहीं है। वन्नेवर बुश के शब्दों में यह ऐसा युद्ध है जिसमें हम सब शिरकत कर रहे हैं।यह वैज्ञानिकों के बीच का ही युद्ध नहीं है। इसने हमारे दैनन्दिन जीवन को अपना रणक्षेत्र बना लिया है।
नए युग की तकनीक की धुरी है 'दबाव'। जो कुछ घटित या निर्मित हो रहा है वह सब 'दबाव' में हो रहा है।बुश ने अपने विश्वविख्यात निबंध 'एज वी मे थिंक' में 'दबाव' के तत्व का व्यापक तौर पर इस्तेमाल करते हुए 'मिमिक्स' का निर्माण किया।
वह कहता है कि दबाव का ही परिणाम है कि इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका को एक माइक्रोफिल्म में बंद कर सकते हैं। इसकी कीमत सुई की कीमत के बराबर होगी। इसे चंद पैसों में कहीं भी डाक से भेज सकते हैं। नयी कम्प्यूटर तकनीक के आविष्कारक इस महान् वैज्ञानिक ने 'दबाव' को उन्नत तकनीक को सस्ती तकनीक के निर्माण की धुरी बनाया । यही तत्व कालान्तर में सामाजिक वर्चस्व और वैषम्य स्थापना की धुरी बन गया।आज हम जिस भाषा के अभ्यस्त हैं वह कम्प्यूटर भाषाहै। इसके कई भाषिक रूप हैं।किंतु जो रूप सबसे ज्यादा प्रचलन में है वह है हाइपर टेक्स्ट।वन्नेवर बुश ने इसके बारे में सबसे पहले सोचा। वह कम्प्यूटर के दादागुरु हैं।
वन्नेवर बुश का जन्म 11मार्च 1890 को मैसाचुसेट्स में हुआ ।उनके पिता का नाम रिचर्ड पेरी और माँ का नाम इम्मा लिनवुड था। सन्1913 में टुफ्टस कॉलेज से इन्होंने स्नातक की परीक्षा पास की।इसके बाद मैसाचुसेट्स इन्स्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी के इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में दाखिला लिया।सन् 1923-32 के बीच में इसी संस्थान में प्रोफेसर के रूप में काम किया।
बुश ने'डिफरेंशियल एनलाइजर' पर विस्तार से काम किया। उसके 18 स्वतंत्र रूपों की खोज की।यह कार्य चार्ल्स बावज के 'डिफरेंस इंजिन' पर आधारित था,जिससे बाद में डिजिटल सर्किट डिजायन थ्योरी का जन्म हुआ।इस थ्योरी को बाद में बुश के एक छात्र क्लाउड शेनोन ने विकसित किया।
बुश को आधुनिक संचार तकनीक का सम्राट कह सकते हैं। वह मानता था कि एक दिन ऐसा आएग कि मशीन सोचेगी।इसके कीटाणु मैं अपनी अंगुलियों में महसूस कर रहा हूँ। बुश के जीवन के विविध आयामों का जी.पासकल जचेरी ने ' एण्डलेस फ्रंटियर :वन्नेबर बुश इंजीनियर ऑफ दि अमेरिकन सेंचुरी' में विस्तार से वर्णन किया है।
विडम्बना यह है कि बुश को जीते जी साइबरस्पेस के विजनरी के रूप में लोग नहीं जान पाए।बल्कि उसकी मौत के पच्चीस साल बाद ही साइबरस्पेस के विजनरी के रूप में जान पाए।वही पहला व्यक्ति था जिसने सबसे पहले पर्सनल कम्प्यूटर की कल्पना की थी।साथ कम्प्यूटर भाषा को जन्म दिया। ये दोनों कल्पनाएं 1945 के निबंध में मौजूद हैं।उसी के चिन्तन का तार्किक विकास है कि आज हमारे पास इंटरनेट है।उसी ने ज्ञान-विज्ञान के अंतहीन मोर्चे या सरहदों को खोला। बुश का सबसे बड़ा अवदान यह है कि उसने सेना,शिक्षा,विज्ञान और निजी उद्योग के बीच अन्तस्संबंध स्थापित किया।
वन्नेवर बुश ने अपने जीवन के अधिकांश समय में अमेरिकी सैन्य और विज्ञान संस्थानों में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर काम किया।इनमें नेशनल एडवायजरी कमेटी फॉर एयरोनॉटिक्स, नेशनल डिफेंस रिसर्च कमेटी,ऑफिस ऑफ साइंटिफिक रिसर्च एंड डवलपमेंट आदि प्रमुख हैं।उनका सबसे चर्चित प्रोजेक्ट था मेनहट्टन प्रोजेक्ट। यह प्रोजेक्ट द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान विज्ञान अनुसंधान में लगा हुआ था। बुश को ही अमेरिकी संस्था नेशनल साइंस फाउंडेशन की स्थापना का श्रेय जाता है।इस संस्थान के माध्यम से उसने विज्ञान,उद्योग,शिक्षा और सेना के बीच अन्तस्संबंध बनाकर काम किया।
बुश ने 'मिमिक्स' की धारणा का निर्माण किया।बाद में यही धारणा 'हाइपरटेक्स्ट' की धारणा का आधार बनी।'मिमिक्स' की धारणा के बारे में उन्होंने सबसे पहले 'अटलांटिक मंथली'(1945) में 'एज वी मे थिंक' शीर्षक से एक लेख लिखा। इस लेख में एकदम नए किस्म के इन्साइक्लोपीडिया की धारणा को उन्होंने पेश किया।बाद में 'लाइफ मैगजीन ‘ में एक अन्य लेख 'मिमिक्स मशीन 'के बारे में लिखा।इसी लेख को आधार बनाकर और उससे प्रेरणा लेकर 'माइक्रोसॉफ्ट' के ' गोरदोन बैल्स' प्रोजेक्ट का काम शुरू हुआ।इसी प्रोजेक्ट के गर्भ से बाद में डिजिटल स्टोर से जुडे फ़ोटोग्राफ, डाकूमेंट्स, कम्युनिकेशन आदि का जन्म हुआ। वन्नेवर बुश ने 'मिमिक्स' की सैद्धान्तिकी की खोज के जरिए जिस नयी कम्युनिकेशन प्रणाली की परिकल्पना की थी।उसी का बाद में इंटरनेट के रूप में विकास हुआ।
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