बुश ने अपने प्रसिद्ध निबंध 'एज वी मे थिंक'(1945) में मशीन को थ्योरी में 'मिमिक्स' नाम दिया। इसमें ऐसी मशीन की परिकल्पना की गई थी जो मानव स्मृति के लिए संचय का काम करे, यह ऐसी मशीन थी जिसमें असंख्य दस्तावेज सुरक्षित रखे जा सकते थे।उन्हें खोजा जा सकता था।इसे 'मेमोरी' और 'एसोसिएटेड लिंक' का नाम दिया।यही कालान्तर में 'हाइपर टेक्स्ट' का आधार बना। 'मिमिक्स' की धारणा के आधार पर ही कालान्तर में टेड नेल्सन ने 'हाइपर टेक्स्ट' का निर्माण किया।जिसमें उन्होंने वन्नेवर बुश को ही इसका श्रेय दिया।
बुश पहला वैज्ञानिक है जिसने 'स्वचालित मानवीय स्मृति' की परिकल्पना पेश की। यही खोज डिजिटल युग के लिए बुनियादी आधार साबित हुई।इस खोज ने आधुनिक ज्ञान,विज्ञान,संचार,राजनीति,संस्कृति,बाजार सबका बुनियादी चरित्र बदल दिया।बुश के अनुसंधान कार्यों ने विज्ञान अनुसंधान के क्षेत्र में खासकर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी प्रशासन के समूचे नजरिए को ही बदल दिया।
सन् 1930 के आसपास बुश ने 'एनालॉग कम्प्यूटर ' पर काम शुरू किया।उस समय यह बड़ा काम था।सन् 1931 में उन्हें 'डिफरेंशियल एनलाइजर' बनाने में मदद मिली।
सन् 1930 के आसपास ही 'माइक्रोफिल्म' का प्रयोग बढ़ गया।स्टोरेज की नयी तकनीक के रूप में उसका इस्तेमाल तेजी से होने लगा। वन्नेवर बुश की रूचि फोटोग्राफी में थी। उसने अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफ.बी.आई. को प्रस्ताव भेजा कि वह ऐसी मशीन बनाना चाहता है जो एक मिनट में एक हजार फिंगरप्रिण्ट का परीक्षण कर सके।किन्तु बुश के प्रस्ताव को एफ.बी.आई. ने अस्वीकार कर दिया।
किंतु बुश ने अपना कार्य जारी रखा और इस तकनीक को 'रेपिड सलेक्टर' नाम दिया। इसे डेस्क में लगाया जा सकता था। इससे बड़ी मात्रा में माइक्रोफिल्म एवं सूचनाएं स्टोर की जा सकती थीं।
सन् 1930 के अंत तक बुश ने चार ' रेपिड सलेक्टर' बनाए।जिनमें बाद में तकनीकी खामी आ गई और काम रुक गया। उल्लेखनीय है कि बुश पहला वैज्ञानिक था जिसने व्यक्तिगत सूचना प्रोसेसर का निर्माण किया। इसी के आधार पर उन्होंने बाद में 'एज वी मे थिंक' शीर्षक चर्चित लेख लिखा था।
सन् 1933 में बुश को कारनेजी इन्स्टीटयूशन का अध्यक्ष बनाया गया।यह संस्थान रिसर्च के काम पर सालाना 1.5 मिलियन डालर खर्च करता था।इस संस्थान के अध्यक्ष बनने के बाद बुश की प्रतिष्ठा बढ़ गई।साथ ही अध्यक्ष होने के नाते वह अमेरिकी सरकार को विज्ञान संबंधी विशयों पर अनौपचारिक सलाह भी देते रहते थे।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमेरिका युद्ध के लिए तैयार नहीं था। उस समय वह सैन्य अनुसंधान पर बहुत कम खर्चा करता था। सैन्य अनुसंधान के काम को सैन्य अधिकारी देखते थे। इनके कामकाज में काफी घालमेल भी था।कई संस्थान एक ही किस्म का काम करते रहते थे। सेना के लोग इंजीनियरों को सेल्समैन से ज्यादा कुछ नहीं समझते थे। सन् 1940 तक आते-आते बुश और उनके सहयोगी वैज्ञानिकों ने यह महसूस किया कि अमेरिकी सैन्य शक्ति के विकास के लिए नए किस्म के संगठन की जरूरत है।इसमें वैज्ञानिक,व्यापारी,सरकार और सेना सब एक साथ होने चाहिए।
12जून1940 को राष्ट्रपति रूजवेल्ट से बुश ने मुलाकात की और सैन्य अनुसंधान के बारे में अपनी विस्तृत योजना पेश की। जिसे रूजवेल्ट ने मान लिया। उन्होंने एक नए संगठन ' नेशनल डिफेंस रिसर्च कमेटी'(1941) को यह योजना सौंपी। इस कमेटी का यह कार्य था कि वह सेना,व्यापारी,सरकार और वैज्ञानिकों के बीच संयोजन करे। वन्नेवर बुश को इस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। इस कमेटी के अध्यक्ष के नाते बुश का सीधे राष्ट्रपति कार्यालय से संबंध रहता था।
इस संगठन को राष्ट्रपति के आपातकालीन कोष से धन मिलता था।बुश चर्चित मैनहट्टन प्रोजेक्ट से भी जुड़े थे। जिसने परमाणु बम बनाया था।बुश का अमेरिकी विज्ञान के इतिहास में सबसे बड़ा अवदान यह है कि उन्होंने विज्ञान की भूमिका को ही बदल दिया।विज्ञान को सैन्य संरचना और बड़ी पूंजी के मालिकों के हवाले कर दिया। बुश को अमेरिकी सरकार के विज्ञान अनुसंधान का दादागुरू माना जाता है।
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