शनिवार, 24 अप्रैल 2010

अमेरिकी परमाणु युद्धोन्माद का शंखनाद

     अमेरिका में जब से ओबामा प्रशासन ने सत्ता संभाली है तब से कारपोरेट घरानों की बल्ले-बल्ले हो रही है और आम अमेरिकी नागरिक को भयानक तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है। आर्थिकमंदी के बावजूद अमेरिकी कारपोरेट घरानों के मुनाफों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। वहीं दूसरी ओर आम अमेरिकी की पामाली और बेकारी बढ़ी है, जीवनशैली में गिरावट आयी है। ओबामा के सत्ता संभालने के साथ जिस तरह की आशाएं पैदा हुई थीं वे धीरे-धीरे गायब हो गयी हैं।
    ओबामा का सबसे बड़ा वायदा था अमेरिका को युद्धवादी नीतियों से हटाने का। लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई भी सकारात्मक कदम ओबामा प्रशासन ने नहीं उठाया है, इसके विपरीत अमेरिकी विदेश नीति को पूरी तरह युद्धपंथी ताकतों की सेवा में लगा दिया है। ईरान पर हमले की तैयारियां चल रही हैं। अफगानिस्तान में अमेरिकी सेनाओं की संख्या बढ़ा दी गयी है। इराक में अमेरिका और मित्र देशों की सेनाओं की आक्रामक कार्रवाईयां जारी हैं।
    आश्चर्य की बात है कि सारी दुनिया के ताकतवर देश अमेरिका के खिलाफ मुँह बंद किए बैठे हैं। सारी दुनिया में पैदा हुई इस नपुंसकता का दूर-दूर तक कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है। हमें सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ कि अमेरिकी युद्धोन्माद और बर्बरता का सारी दुनिया तमाशा देख रही है। आज कोई भी राष्ट्र पहल करके अमेरिकी बर्बरता के खिलाफ राजनीतिक जागरण पैदा करने का काम क्यों नहीं कर रहा ? क्यों सारी दुनिया के देश अमेरिका के स्वतःठीक होने का इंतजार कर रहे हैं ? आज संयुक्त राष्ट्र संघ और सुरक्षा परिषद का स्वायत्त अस्तित्व खत्म हो गया है। आज यह विश्व संस्था अमेरिका के  फरमानों को जारी करने के मंच के रुप में सिकुड़कर रह गई है।
    क्या अमेरिका बर्बरता में जाने-अनजाने भारत के शासनाध्यक्षों की कोई भूमिका है ? हमें सचेत नागरिक के नाते अमेरिकी बर्बरता और युद्धपंथी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए।
    अमेरिकी बर्बरता का ताजा कदम है ओबामा प्रशासन के द्वारा तैयार कराए जा रहे दो नए शक्तिशाली परमाणु युद्धास्त्र। ये ऐसे युद्धास्त्र हैं जिनके माध्यम से सारी दुनिया में कहीं पर भी एक घंटे से भी कम समय में हमला करके तबाही मचायी जा सकती है। इस तरह के जनसंहारक दो युद्धास्त्रों का अमेरिकी ने 22 अप्रैल 2010 को सफल परीक्षण किया है। इनमें एक का परीक्षण कैलीफोर्निया के वेनडेनवर्ग वायुसेना केन्द्र और दूसरे का फ्लोरिडा के केपकेनविरल वायु सेना केन्द्र पर किया गया। 
    पहले युद्धास्त्र को Conventional Prompt Global Strike अथवा CPGS कहते हैं। यह अस्त्र सारी दुनिया में एक घंटे से भी कम समय में कहीं पर भी जाकर हमला करके तबाही मचा सकता है। इसका अंतर्महाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल के जरिए किसी भी लक्ष्य पर इस्तेमाल किया जा सकता है। यह अस्त्र इतना शक्तिशाली है कि एक सैकिण्ड में 4000 फीट की गहराई तक जाकर तबाही मचा सकता है। यह 8000 पॉण्ड वजनी है। यह 3000 हजार फुट के क्षेत्र में सारी चीजों को पूरी तरह तबाह कर सकता है। इस अस्त्र को तैयार करने के लिए ओबामा प्रशासन ने अमरीकी कांग्रेस से सन् 2011 तक के लिए 240मिलियन डॉलर की मांग की है। यह बजट में 45 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। सन् 2015 तक इस कार्यक्रम पर 2 बिलियन डॉलर खर्चा आएगा। यह युद्धास्त्र 13 हजार किलोमीटर प्रति घंटा की गति यानी ध्वनि की गति से 20 गुना ज्यादा तेज गति से हमला कर सकता है। इस युद्धास्त्र के प्रयोग से यह भी सिद्ध होता है कि अमेरिका की परमाणु अस्त्रों को कम करने,हथियारों की दौड़ कम करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। स्मरणीय है इस युद्धास्त्र का परीक्षण ऱुस और अमेरिका के बीच में हाल में संपन्न परमाणु अस्त्र परिसीमन संधि के बाद हुआ है।
     दूसरे नये युद्धास्त्र का नाम है X-37B । इस अस्त्र के विवरण पेंटागन ने अभी तक बताए नहीं हैं। इसकी लागत भी कई बिलियन डॉलर में आएगी। यह अमेरिका के ब्लैक बजट का हिस्सा है। इस युद्धास्त्र का लक्ष्य है अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ को तेज करना, अंतरिक्ष का सैन्य लक्ष्यों के लिए इस्तेमाल करना। यह एक तरह का अंतरिक्ष प्लेटफॉर्म है जिसे अंतरिक्षयान के जरिए आकाश में स्थापित किया जाएगा। यह अब तक की अंतरिक्ष में सबसे महत्वाकांक्षी परमाणु सैन्य परियोजना के क्रियान्वयन की दिशा में अमेरिका के द्वारा उठाया गया सबसे खतरनाक कदम है। 
     आश्चर्य की बात है कि भारत,चीन आदि देशों ने अभी तक इस तरह के परीक्षणों पर कुछ भी नहीं कहा है। जबकि रुस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इससे अंतरिक्ष में परमाणु शस्त्रों की दौड़ तेज होगी और पृथ्वी और भी असहाय बनेगी। उल्लेखनीय है ओबामा प्रशासन ने परमाणु अस्त्रों की दौड़ ऐसे समय में तेज की है जब अमेरिका गंभीर आर्थिक संकट में फंसा हुआ है और अमेरिकी कारपोरेट घरानों की लूटलीला नग्नतम रुप में सामने आ चुकी है। इन दोनों अस्त्रों के बनाने का अर्थ है कि सारी दुनिया में कभी भी परमाणु युद्ध छिड़ सकता है।                         





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