रविवार, 18 अप्रैल 2010

सानिया तुम महान हो तुमने धर्म को पछाड़ दिया

           (सानिया मिर्जा)
       औरत का इमेजों के जरिए वस्तुकरण सबसे खतरनाक होता है। यह औरत की मानवीय अस्मिता पर बर्बर हमला है। कारपोरेट मीडिया और उसके चाकर मीडिया गुरू आए दिन मीडिया के अंदर स्त्री का वस्तुकरण करते रहते हैं आम तौर पर ऑडिएंस को भी इस वस्तुकरण में मजा आता है। औरत के वस्तुकरण का सबसे ताजा किस्सा है सानिया-शोहेब की शादी का मीडिया ड्रामा और शादी का वस्तुकरण।
   ज्यादातर खबरिया चैनल यह भूल गए कि वे जो कर रहे हैं वह घनघोर स्त्री विरोधी एक्शन है। सानिया की शादी की खबरें देने की आड़ में मुनाफा कमाने और रेटिंग बढ़ाने के लिए कारपोरेट मीडिया स्त्री विरोधी वातावरण बनाने में अहर्निश लगा रहा । जो लोग यह सोचते हैं कि वे सानिया की शादी की सिर्फ खबर दे रहे थे ,वे झूठे हैं,यह शादी की खबर नहीं औरत के वस्तुकरण और शादी के वस्तुकरण की खबर थी।
   सानिया की शादी का वस्तुकरण कारपोरेट मीडिया की सबसे घृणिततम हरकत है। यह औरत के वस्तुकरण और उपभोक्तावाद का नग्न महिमामंडन है। क्या कारपोरेट मीडिया को इस सामजिक अपराध के लिए माफ किया जा सकता है ?
     सानिया की शादी असल में हॉलीवुड संस्कृति का उत्सव है। सानिया की शादी के साथ कारपोरेट मीडिया ने भारतीय घरों में हॉलीवुड विवाह संस्कृति को एक ही झटके में संप्रेषित कर दिया है। हॉलीवुड की विवाह संस्कृति का हमारे घरों में आना सबसे बुरी खबर है। गंभीरता के साथ सानिया की शादी से पैदा हुई विवाह संस्कृति को देखें।
   पहली बात यह है कि सानिया की एक अस्मिता नहीं है। वह अपने अंदर कई अस्मिताओं को समेटे हुए है। मसलन् सानिया मुसलमान है,स्त्री है,भारतीय है, खिलाडि़न है, हैदराबादी है,सैलीबरेटी है। इसमें से सानिया की प्रधान अस्मिता है सैलीबरेटी की। सैलीबरेटी कैसे शादी करते हैं यह तथ्य बार-बार संप्रेषित किया गया है। सैलीबरेटी की शादी का सानिया मॉडल हॉलीवुड से लिया गया है।
   सैलीबरेटी के लिए शादी एक सामाजिक रस्म नहीं है बल्कि ‘घटना’ है। कारपोरेट मीडिया ने शादी को घटना की तरह सम्पन्न किया है। सानिया के द्वारा पहले एक सगाई  की गयी फिर उसे तोड़ा गया,यह सगाई दो परिवारों की सहमति,सानिया के बालसखा से तय हुई थी, शादी जब करते हैं तो जड़ों या मूल की ओर जाते हैं। लेकिन शोहेब का मामला एकदम भिन्न है। यहां जड़ों के बीच संबंध नहीं हुआ है बल्कि दो सैलीबरेटी मिले हैं और शादी कर रहे थे,इस शादी की सारी व्यूह रचना का सूत्रधार विज्ञापन और मीडिया जगत था। सानिया-शोहेब में मार्केटिंग ही प्रेम और शादी का आधार है।
     हॉलीवुड में सैलीबरेटी लोगों की शादी शॉप ऑपेरा की तरह चलती है सानिया की शादी भी वैसे ही संपन्न हुई है। शादी एक निजी पीरिवारिक कार्य-व्यापार है, यह सार्वजनिक उत्सव नहीं है।
    सानिया की शादी शुरु से आखिर तक सार्वजनिक बनायी गयी,दोनों परिवार जानते थे कि शोहेब शादीशुदा हैं और इस सबको वाकायदा नाटकीय अंदाज में सुनियोजित स्क्रिप्ट के जरिए संपन्न किया गया,मीडिया में सानिया की शादी का तयशुदा रणनीति के तहत उन्माद पैदा किया गया। सानिया की शादी को एक आदर्श मॉडल बनाया गया। शादी में सादगी की बजाय वैभव प्रदर्शन,मंहगे कपड़े, कीमती गहने,फाइवस्टार होटल में शादी और फिजूलखर्ची को महिमामंडित किया गया। सानिया कैसे सजी ,किस ड्रेस डिजायनर ने किस तरह के कपड़े बनाए और कितने कीमती तोहफे उपहार में दिए गए इत्यादि चीजों के मीडिया प्रदर्शन पर खास ध्यान दिया गया।
    भारत में ऐश्वर्या राय की शादी के बाद यह दूसरी सैलीबरेटी स्टाइल की हॉलीवुड मार्का शादी है। भारत में सैलीबरेटी लोग जब भी शादी करते थे तो वह नितांत वैयक्तिक और पारिवारिक कार्य-व्यापार रहा है। उनके लिए शादी घटना नहीं रही है। लेकिन अब शादी में हॉलीवुड घुस आया है।
      ध्यान दें अभिषेक बच्चन ने करिश्मा कपूर के साथ सगाई की उसे घटना बनाया ,बाद में यह सगाई टूट गयी ,और ऐश्वर्या राय के साथ सैलीबरेटी पद्धति से अभिषेक ने शादी की। यही पैटर्न सानिया मिर्जा की शादी का है इसका लक्ष्य था ऐश्वर्या राय की मार्केटिंग करना। उल्लेखनीय है ऐश्वर्या राय-अभिषेक बच्चन के पहले वैभव प्रदर्शन का ऐसा वल्गर रूप किसी भी बड़े अभिनेता की शादी में नहीं देखा गया। ऐसा वल्गर प्रदर्शन सहारा ग्रुप के सुब्रतरॉय के परिवार की शादी में देखा गया था जिसमें दौलत का वल्गर प्रदर्शन करते हुए 300 करोड़ों रुपये खर्च किए गए थे,और ये जनाब सानिया को आशीर्वाद देने पहुँचे थे।
   शादी को जब घटना बनाया जाता है तो शादी गौण हो जाती है और संबंधित व्यक्ति की मार्केटिंग प्रधान बन जाती है। इस प्रक्रिया में वर-वधू एक माल और वस्तु में तब्दील हो जाते हैं। वे अब मनुष्य नहीं रहते बल्कि वस्तु बन जाते हैं और वस्तु की बिक्री के सारे नियम,वस्तु प्रदर्शन के सारे एथिक्स उन पर लागू किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में सानिया की शादी में इस्लामिक रीति-रिवाज गौण बन गए और मासकल्चर का वल्गर प्रदर्शन प्रधान तत्व बन गया। इस प्रकिया में इस्लाम को भी मासकल्चर में डुबकी लगानी पड़ी। लग ही नहीं रहा था कि इस्लाम में शादी का सादगी का कोई महत्व है। मासकल्चर के आगे,वस्तुकरण के आगे इस्लाम बेहद कमजोर नजर आ रहा था,मासकल्चर के सामने इस्लामिक संस्कृति बौनी नजर आ रही थी,यह सानिया की शादी का सकारात्मक तत्व है कि उसने इस्लाम धर्म को कमजोर दिखाया और मासकल्चर को महान दिखाया। यह प्रतीकात्मक रुप में इस्लाक की पराजय है और पूंजीवादी वस्तुकरण की जीत है। इस अर्थ में सानिया ने एक बड़ी विचारधारात्मक जंग जीती है। उसने अपनी इमेज के जरिए मासकल्चर की नई औरत को जन्म दिया है जो धर्म के आगे नतमस्तक नहीं हुई उलटे इस्लाम धर्म को उसने पछाड़ दिया।  
     शादी का सैलीबरेटी रुप युवाओं को भयानक खतरों की ओर ठेलता है। शादी के प्रदर्शनप्रिय रुपों को मानने पर जोर देता है शादी को और भी खर्चीला बना देता है। शादी के वस्तुकरण का कारपोरेट मीडिया में औरत के वस्तुकरण की बृहत्तर प्रक्रिया के साथ गहरा संबंध है।     
   आज कारपोरेट मीडिया में स्त्री के हाव-भाव,भंगिमा,शरीर ,साज-सज्जा आदि को मासकल्चर का प्रधान रुप बनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है, औरत के शरीर का महिमामंडन चल रहा है। औरत की ज्ञानक्षमता और मानवीय इमेज की उपेक्षा की जा रही है। इस प्रक्रिया में औरत का वस्तुकरण हो रहा है। हमारे सभी विज्ञापन ,सीरियल, टीवी एंकर स्त्रियां आदि औरत की भाव-भंगिमा, स्टाइल, लुक आदि पर जोर दे रहे हैं।
    औरत के लुक वगैरह का प्रस्तुति के केन्द्र में आना स्त्री का वस्तुकरण है। अब हम शरीर को उसके चेहरे की भाव-भंगिमाओं के आधार पर देखने लगे हैं। मीडिया में दिखने वाली औरत की बुद्धि कभी भी दिमाग में स्ट्राइक नहीं करती,जो चीज स्ट्राइक करती है वह है औरत का लुक। सोचने की बात यह है कि लुक इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया ? यही वह बृहत्तर मीडिया फ्लो है जो सानिया की इमेज का सर्जक है और उसकी शक्ति और फेकनेस का आधार भी है। इस इमेज के सामने धर्म बौना है। सानिया तुम महान हो तुमने धर्म को पछाड़ दिया।   






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