कल तक हिन्दीवाले पत्रिका का पता पूछते थे अब ब्लॉग और बेवसाइट का पता पूछ रहे हैं। ब्लॉग लेखकों में जो उत्साह है वह भी प्रशंसनीय है। हिन्दी में साइबर लेखकों की गोलबंदी हो रही है। साइबर लेखकों की चुनौतियां सामान्य लेखक से थोड़ा भिन्न हैं।
साइबर ब्लॉगरों की खूबी है कि ये विकेन्द्रित हैं। इनमें किसी एक किस्म के विषय का लेखन नहीं मिलता बल्कि वैविध्यपूर्ण विषयों पर ब्लॉग लिखे जा रहे हैं। हिन्दी में ज्यादातर ब्लॉगर युवा हैं ,जबकि अमेरिका आदि देशों में अधिकांश ब्लॉगर 50 साल के ऊपर के लोग हैं।
ब्लॉगरों का अच्छा गुण है कि वे एक-दूसरे का लिखा पढ़ते हैं और बहस करते हैं,टिप्पणियां करते हैं,इस तरह वे शिरकत करते हैं,साइबर लेखकीय बंधुत्व का निर्माण करते हैं। ब्लॉग पर चल रही बहसें असमान होती हैं। इसका अर्थ यह है कि सभी ब्लॉगों पर समान शिरकत नहीं हो रही है,ऐसा होना संभव भी नहीं है। प्रत्येक ब्लॉगर कितना लिखेगा या बहस में भाग लेगा यह निर्भर करता है कि उसके पास कितना समय है,किस विषय में रुचि है, अन्य ब्लॉगों पर चल रही बहसों के बारे में कितनी समझ है,ब्लॉगर की क्षमता क्या है,ब्लॉगर की विचारधारा,लिंग,उम्र,निवास स्थान,सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां आदि क्या हैं,ये सारी चीजें मिलकर ब्लॉगर जगत का निर्माण करती हैं।
ब्लॉग के संदर्भ में यह ध्यान रहे कि यहां चलने वाली बहसें और लेखन सार्वजनिक के रुप में कम व्यक्तिगत या निजी अभिव्यक्ति के पैराडाइम में आते हैं। यहां साइबर लेखकों के समूह या ग्रुप हैं। ये आपस में बहस करते रहते हैं। हेबरमास जिसे पब्लिक स्फेयर या सार्वजनिक वातावरण कहते हैं उससे यह भिन्न है।
सार्वजनिक वातावरण का हेबरमास का मॉडल मूलतः मासमीडिया के वर्चस्वशाली वातावरण पर निर्भर है। ब्लॉगिंग में ऐसा नहीं है। ब्लॉगिंग का संघर्ष तो अभिव्यक्ति के विकेन्द्रीकृत वातावरण के निर्माण के लिए है। यह प्रचलित सार्वजनिक वातावरण का विकल्प है। हेबरमास का पब्लिक स्फेयर केन्द्रीकृत और वर्चस्ववादी है।इसके विपरीत ब्लॉग जगत विकेन्द्रित और वर्चस्वहीन है।
ब्लॉग में क्या लिखा जा रहा है यह चीज आसानी से देखी जा सकती है कितनी मात्रा में लिखा जा रहा है यह भी पता चल जाता है लेकिन इसकी गुणवत्ता क्या है इसके बारे में कहना मुश्किल है।
ब्लॉग स्थानीय गतिविधियों के संचार और संप्रेषण का प्रभावशाली माध्यम है। ब्लॉग के माध्यम से किसी भी स्थानीय समस्या को लोकप्रिय बनाया जा सकता है, राजनीतिक लामबंदी के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ब्लॉग मध्यवर्गीय युवाओं के लेखन का दर्पण है। जिस तरह ब्लॉग का व्यक्तिगत लेखन और संप्रेषण से संबंध है,उसी तरह बेव पर सामुदायिक लेखन और संवाद का मंच भी बन गए हैं। जिस पर सामुदायिक समस्याओं पर खुले मन से चर्चा की जा सकती है।
साइबर साक्षरता का जितनी तेजी से छोटे शहरों और कस्बों से लेकर गांवों तक विकास होगा उतनी ही जल्दी हमें नेट पर उभरकर आ रहे निजी और सार्वजनिक मंचों की सार्थकता का एहसास होगा, साइबर संचार की ताकत महसूस होगी। हिन्दी में ऐसे ब्लॉगर कम हैं जिनके पीछे किसी संस्थान, कारपोरेट घराने या कंपनी या राजनीतिक दल की शक्ति काम कर रही हो। ज्यादातर ब्लॉगर स्वतंत्र हैं और कारपोरेट या दलीय लेखकों से ज्यादा अनुयायी उनके पास हैं। ब्लॉग,ट्विटर, फेसबुक आदि की अंतर्वस्तु को साझे माल के रुप में इस्तेमाल कर रहे है। अंतर्वस्तु का साझा बनना यह नया फिनोमिना है। बेव जगत में रीमिक्सिंग खूब हो रही है। लेखन के लिहाज से शुभ लक्षण है।
ब्लॉगिंग की महत्ता है इसमें संदेह नहीं है लेकिन सब समय नियमित लिखना भी संभव नहीं होता। लिखते समय यह सतर्कता बरतने की जरुरत है कि ब्लॉग लेखन से कोई मर्माहत न हो। ब्लॉगर की पोस्ट किसी प्रकल्प को नकारात्मक ढ़ंग से प्रभावित न करे। ब्लॉग लिखते हुए बेवकूफी से बचना चाहिए। ऐसा न लिखें जो प्रेरणादायक न हो। किसी चीज के बारे में आपकी अगर बुरी राय है तो उसे व्यक्त न करें। किसी भी प्रतिस्पर्धी विवाद पर न लिखें। आपको जो अच्छा लगे उस पर लिखें, आक्रामक या तेज धारदार लिखें। ब्लॉग को विभिन्न स्तर और विभिन्न देशों के लोग पढ़ते हैं।
ब्लॉग लिखना एक कौशलपूर्ण कला है,फैशन है। हिन्दी में ब्लॉगिंग अभी अनुभवों और जीवनशैली के विषयों पर केन्द्रित है। यहां तक कि ब्लॉग के एग्रीगेटर या सर्चईंजन अवधारणा के आधार गर ब्लॉगों का वर्गीकरण नहीं कर पाए हैं। सर्चईंजनों में अवधारणात्मक वर्गीकरण का अभाव हमें यही संदेश देता है कि अभी हिन्दी में ब्लॉगिंग आरंभिक दौर में है।
ब्लॉग की संरचना मासमीडिया के विकल्प मॉडल पर आधारित है अतः उस पर मीडिया ने नियमों को लागू करना संभव नहीं है। मीडिया के एथिक्स को ब्लॉगर के एथिक्स नहीं समझना चाहिए। दोनों की दुनिया अलग है। मीडिया में प्रसारित और प्रकाशित किसी गलत टिप्पणी पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती जबकि ब्लॉग में ऐसा करना सही नहीं होगा। ब्लॉग पर गलत अथवा भ्रमित करने वाली पोस्ट या टिप्पणी को पहले तो रोका नहीं जा सकता,अथवा किसी भी किस्म के दिशा-निर्देशों को ब्लॉग पर लागू करना संभव नहीं है। इसका प्रधान काण है कि ब्लॉग की संरचना ठीक-ठीक वैसी नहीं है जैसी मीडिया की है। अतः ब्लॉगर के लिए बनाए दिशा निर्देश बहुत दूर तक मदद नहीं करते।
कुछ अर्सा पहले अमेरिका के फेडरल ट्रेड कमीशन ने ब्लॉगरों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ये दिशा निर्देश उनके लिए हैं जो व्यापारिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर ब्लॉगिंग करते हैं। इनका लक्ष्य है उपभोक्ता को ब्लॉगर की ठगई से बचाना। साथ ही व्यापार के संचार को फेयर रखना। उल्लेखनीय है अमेरिका में ब्लॉगरों का एक बड़ा समूह है जो व्यापारिक प्रचारतंत्र का हिस्सा है,वस्तुओं की बिक्री बढ़ाने के लिए ब्लॉगरों के द्वारा असत्य का व्यापक प्रयोग हो रहा है इससे अमेरिका के व्यापार जगत में खलबली मची हुई है।
समग्रता में देखें तो बेवसाइट और ब्लॉग ने प्रसिद्ध मीडिया गुरु मार्शल मैकुहान की धारणा को ही साकार किया है। मैकलुहान ने लिखा था कि अब प्रत्येक व्यक्ति प्रकाशक हो सकता है। एल्विन टॉफलर यहां परास्त हो गए हैं। टॉफलर मानता था कि उपभोक्ता पेसिव होता है। अनुत्पादक होता है।
जबकि आज उपभोक्ता सक्रिय उत्पादक और सर्जक है। विभिन्न माध्यमों ने उसकी चेतना में इजाफा किया है। आज विकीपीडिया जैसे विराटमंच को कोई भी व्यक्ति संपादित कर सकता है। आज ब्लॉगर या नेट लेखक प्रोड्यूसर है। ब्लॉगिंग इंटरनेट लेखकों का आलोचनात्मक मंच है। सन् 1930 के आसपास प्रसिद्ध मार्क्सवादी सिद्धांतकार बाल्टर बेंजामिन ने लेखक की प्रोड्यूसर के रुप में अवधारणा दी थी जिसका मार्शल मैकलुहान ने विस्तार किया और आज बाल्टर बेंजामिन का सपना साकार हो चुका है।
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