मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

परमाणु सुरक्षा सम्मेलनः ईरान के खिलाफ अमरीकी सैन्यवाद का नया मोर्चा

       अमरीकी सैन्यवाद आज सबसे ज्यादा आक्रामक है। इन दिनों अमेरिका में परमाणु सुरक्षा सम्मेलन हो रहा है,इस सम्मेलन की आड़ में अमेरिका का ओबामा प्रशासन ईरान के खिलाफ सारी दुनिया के स्तर पर राजनीतिक ध्रुवीकरण कर रहा है। परमाणु सुरक्षा सम्मेलन का लक्ष्य है परमाणु सुरक्षा के बहाने ईरान और उत्तरी कोरिया के खिलाफ विभिन्न देशों को अमेरिकी सैन्यवाद के झंड़ेतले एकजुट करना है।
     दुर्भाग्य की बात है कि सभी किस्म के अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को धता बताते हुए अमेरिका संयुक्तराष्ट्र संघ के मंच का ईरान के खिलाफ वैसे ही दुरुपयोग करना चाहता है जिस तरह इराक के खिलाफ किया गया था। अमेरिकी प्रशासन के द्वारा कहा जा रहा है कि इस सम्मेलन का मकसद है परमाणु अस्त्रों की सुरक्षा पर ध्यान देना,परमाणु सामग्री कहीं आतंकी संगठनों के हाथ न लग जाए,उसे रोकना। साथ ही गैर जिम्मेदार परमाणु  शक्ति संपन्न देश के द्वारा इसका दुरुपयोग रोकना।
    जाहिरा तौर पर ईरान और उत्तरी कोरिया को अमेरिका ने परमाणु क्षमता का दुरुपयोग करने वाले देशों की सूची में डाला हुआ है। जबकि इस सूची से इस्राइल और पाकिस्तान को बाहर रखा गया है। ईरान पर जितना हंगामा मच रहा है उतना हंगामा इस्राइल और पाकिस्तान पर नहीं मच रहा। पाकिस्तान का परमाणु प्रशासन चोरी छिपे परमाणु ज्ञान और तकनीक की तस्करी करता रहा है। सारी दुनिया जानती है कि इस्राइल के पास अवैध परमाणु अस्त्र हैं लेकिन कोई भी देश इस्राइल के परमाणु कार्यक्रम के बारे में नहीं बोल रहा है।
    ईरान का परमाणु कार्यक्रम अगर अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की अवहेलना करके जारी है तो इसका फैसला ईरान पर आर्थिक पाबंदी से नहीं किया जा सकता। ईरान के खिलाफ आर्थिक पाबंदी की अमेरिकी मांग सीधे ईरान के खिलाफ युद्ध की घोषणा है। इसका हर हालत में विरोध करना चाहिए।
     मजेदार बात यह है कि ईरान और उत्तरी कोरिया को परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में निमंत्रित ही नहीं किया गया है। यह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का खुला असभ्य अमेरिकी आचरण है। अमेरिकी मूल रणनीति है कि परमाणु असुरक्षा के बहाने मध्य-पूर्व में अमेरिकी-इस्राइली सैन्यवाद का विस्तार करना और ईरान के तेल के कुंओं पर कब्जा जमाना। सारी दुनिया जानती है कि इन दिनों परमाणु बम बनाने की सामग्री खुले तौर पर पाक के माध्यम से स्मगल हो रही है और पाक प्रशासन यह काम चीन और अमेरिका के इशारे पर कर रहा है। उत्तरी कोरिया को परमाणु जानकारियां पाक ने बेचीं और चीन ने इस काम में खुलकर मदद की। रही बात ईरान की तो ईरान ने आत्मनिर्भर तरीके से अपनी परमाणविक क्षमता का शांतिपूर्ण कार्यों के लिए विकास किया है। यह काम वैसे ही चल रहा है जैसे भारत में चल रहा है।
    अमेरिकी परमाणु नीति का विरोध करते हुए ईरान आगामी 17-18 अप्रैल 2010 को एक विश्व सम्मेलन करने जा रहा है जिसका नारा है ‘‘ दुनिया को परमाणु बम नहीं परमाणु ऊर्जा चाहिए।’’ देखना है उसमें सारी दुनिया के कितने देश भाग लेते हैं ?
    अमरीकी प्रशासन ने जिस तरह इराक पर हमले  के पहले इराक में जनसंहारक अस्त्र होने का हौव्वा खड़ा किया था और इराक पर हमला करके उसे तबाह कर दिया । ठीक उसी पैटर्न पर ईरान के खिलाफ अमेरिकी कूटनीतिक गोलबंदी चल रही है। ईरान के खिलाफ चल रही साजिशों को आम लोगों में उदघाटित किया जाना चाहिए।
    अमेरिका परमाणु सुरक्षा के नाम पर मध्य-पूर्व में अपने सैन्य-आर्थिक हितों का विस्तार करना चाहता है और इस योजना को असफल बनाने की हरसंभव कोशिश की जानी चाहिए। अमेरिका की जरा परमाणु ‘ईमानदारी’ को अमेरिकी प्रशासन के ही एक व्यक्ति के जरिए देख लें। कैनेडी शासन के दौरान अमेरिका के रक्षा मंत्री रहे रॉबर्ट मैकनमारा ने कहा है कि अमेरिका की परमाणु नीति अनैतिक,अवैध,सैन्य दृष्टि से गैर जरूरी और खतरनाक है। सन् 1999 से अमेरिका ने परमाणु परीक्षण निषेध संधि को जब से खारिज किया है,तब से अमेरिका ने छोटे किस्म के परमाणु हथियार बनाने शुरू कर दिए हैं,परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण के ऊपर अमेरिका सालाना 40 विलियन डालर से ज्यादा खर्च कर रहा है। इस तरह के उसके पास 10 हजार परमाणु युध्दास्त्र हैं।इनमें 2000 सब समय तैयार रहते हैं। इसके अलावा यूरोप में अमेरिका के 480 परमाणु हथियार केन्द्रित हैं। इनमें से 180 परमाणु हथियार गैर परमाणु राष्ट्रों में लगाए हुए हैं। ओबामा साहब जरा अपने परमाणु जखीरे को पहले नष्ट करो फिर सारी दुनिया को परमाणु निषेध की सीख दो।        







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