सोमवार, 19 जुलाई 2010

अज्ञानता की भूलभुलैय्या है ग्लोबलाइजेशन

       सारी दुनिया में सन् 1995 का बड़ा महत्व है यह वह साल है जब सारी दुनिया में ग्लोबलाईजेशन और ग्लोबल कंपनियों के खिलाफ बड़े आंदोलनों की शुरूआत हुई,यही वह साल है जब बड़े पैमाने पर ग्लोबलाईजेशन विरोधी संघर्ष और प्रचार के लिए इंटरनेट का व्यापक इस्तेमाल शुरू हुआ,अब ग्लोबलाईजेशन के खिलाफ संघर्ष सिर्फ परंपरागत मीडिया में स्थानीय स्तर तक सीमित नहीं रह गया बल्कि उसने विश्वव्यापी प्रचार अभियान की शक्ल अख्तियार कर ली।
     पीटर विर्हिली ने लिखा कि '' दबाव ग्रुपों की विशेषता है कि वे ताकतवर कंपनियों का मुकाबला करते हैं और कौशल के साथ दूरसंचार क्रांति के उपकरणों का इस्तेमाल करना जानते हैं। इंटरनेट जैसे विश्वव्यापी माध्यम का वे जिस तरह इस्तेमाल करते हैं उसका बड़े बजट के कारपोरेशन भी मुकाबला नहीं कर पाते।'' नेट की खूबी है कि इसका सभी सक्रिय ग्रुप अपने आंदोलन के एकीकरण और एकता के लिए व्यापक इस्तेमाल करते हैं।
     टोनी जुपीटर (ब्रिटेन के पर्यावरणवादी) का मानना है वेब '' सबसे प्रभावी अस्त्र है प्रतिरोध के अस्त्रों में।'' वेब संगठित करने का अस्त्र ही नहीं अपितु संगठन का मॉडल भी है। वेब मॉडल है विकेन्द्रित किंतु कोपरेटिव फैसलेकुन प्रक्रिया का। यह सूचनाओं के प्रसार और शेयरिंग को संभव बनाता है,जिसके कारण अनेक किस्म के ग्रुप एक ही साथ अपने को सही दिशा में रखकर काम कर सकते हैं।
     ग्लोबलाइजेशन का मंत्र है सोचो मत दौड़ो। बगैर सोचे चलो। चलते हुए सोचो मत। उपभोग करो विचार मत करो। आज हमारे सामने झूठी घटनाओं का अम्बार लगा है ,हम सच्ची घटनाओं की बजाय झूठी घटनाओं में मशगूल कर दिए गए हैं। ग्लोबलाईजेशन ने झूठ को मूल्य की बजाय उद्योग में बदल दिया है। अब हम झूठ के उद्योग में जी रहे हैं,उसी का आस्वाद ले रहे हैं,उसी को सच मान रहे हैं। 
      सत्य और बुनियादी तथ्यों से हमारा संबंध कटता चला जा रहा है। हम ऐसी इमेजों के कायल हैं जो हमारे लिए परायी हैं अथवा छद्म हैं। हम अपनी अज्ञानता की भूलभुलैंया में खो गए हैं। आज हम कुसूचना अथवा विकृत सूचना में ही मशगूल हैं बल्कि धीरे धीरे ये सारी चीजें अपराध की शक्ल लेती जा रही हैं। अमेरिका के द्वारा इराक पर किया गया हमला और बुश का उसे लेकर किया गया प्रचार इस नजरिए की पुष्टि करता है। अमेरिका के लिए आज सफेद झूठ का शायद ही कोई अर्थ हो !
       ग्लोबलाईजेशन एक काम यह भी किया है कि उसने राजनीति का पूरी तरह व्यवसायीकरण कर दिया है। कारपोरेट घरानों ने राजनीति-संस्कृति -अर्थव्यवस्था आदि को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया है। वे ही तय कर रहे हैं कि हम क्या करें,क्या खएं कितना खाएं,कैसे कपड़े पहनें,किसे वोट दें,किसे वोट न दें। इस पूरी प्रक्रिया में जनतांत्रिक प्रक्रिया पूरी तरह प्रभावित हुई है।अब राज्य के व्यसायिक हित बड़े हो गए हैं। ग्लोबलाईजेशन पर होने वाली बहसों का अभूतपूर्व प्रभाव पड़ा है,इसने अनंत संभावनाओं को उजागर किया है। ग्लोबलाइजेशन की बहसों में सिर्फ आर्थिक-राजनीतिक प्रश्न ही नहीं उठे हैं,बल्कि तकनीकी,कानूनी,पर्यावरण के सवाल भी उठे हैं।
     अपराधियों की गतिविधियों,शांति और युध्द की तैयारियों के सवाल,सुरक्षा और रक्षा के विषय, अकाल-सूखा, असमानता,गरीबी,स्वास्थ्य,महामारी,बीमारियों,आधुनिकीकरण और विकास की रणनीतियोंसामाजिक जीवन के साथ व्यक्तिगत संबंधों में आए परिवर्तन,काल और स्थान का अन्तस्संबंध आदि के अलावा भी अनेक प्रश्न हैं जिन पर बहस चल रही है,संघर्ष चल रहे हैं।ये वे मसले हैं जो ग्लोबलाईजेशन से सीधे प्रभावित हुए हैं।
      आज कारपोरेट जगत ने हमारे समूचे जीवन को अपनी जद में ले लिया है।जगह-जगह कारपोरेट घराने कब्जा जमाने या हथियाने में लगे हैं। ग्लोबलाईजेशन के दौर की राजनीति की विशेषता है कि जब कोई राजनीतिक दल सत्ता में आ जाता है तो वह यह सोचना बंद कर देता है कि बहुराष्ट्रीय निगमों के पूंजी निवेश का क्या असर होगा। यहां तक कि वे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में भी बहुराष्ट्रीय निगमों के बारे में नहीं बोलते। अधिकांश समय ग्लोबलाईजेशन के नाम पर सिर्फ आर्थिक-राजनीतिक पक्ष पर विचार किया जाता है। किंतु ग्लोबलाईजेशन का इससे भी व्यापक प्रभाव पड़ रहा है उसकी हम अनदेखी कर रहे हैं।
     ग्लोबलाईजेशन की नीतियां चंचल अथवा अस्थिर होती हैं,उनके बारे में सुनिश्चित राय बनाने में जल्दी मदद नहीं मिलती। वे सच्चे जनतंत्र के नाम पर हमारे बीच आती हैं। पारदर्शिता ,स्वच्छ प्रशासन आदि के नारे इस्तेमाल करते हुए आती है। ग्लोबलाईजेशन इनकी बातें करता है किंतु वास्तव अर्थों में जनता को अधिकार नहीं देता। फैसले लेने का अधिकार नहीं देता। 
    ग्लोबलाईजेशन ने हमारे चारों ओर सूचनाओं की ऐसी सीमा बांधी है जिसमें दुनिया के अंधेरे इलाकों की हमें कोई खबर तक नहीं मिलती। ग्लोबल मीडिया सूचना की इतनी सख्त दीवार खड़ी करता है कि हम उसके परे जाकर सोच नहीं पाते। हमें अपने देश के ही उन लोगों के बारे में कोई जानकारी  नहीं मिलती जो अपार कष्ट में जी रहे हैं। 
    हमारे यहां गरीब की मौत की खबर कभी-कभार आत्महत्या की खबर के रुप में आती हैगरीबी,सूखा,अकाल के ब्योरे और निरंतर रिपोटिंग हमारे माध्यमों से गायब है। हम ग्लोबल मीडिया की कैद में इस कदर बंद हैं कि हमें अपरिचित दुनिया से परिचय का मौका ही नहीं मिलता। ग्लोबल मीडिया की यह सार्वभौम कांटेदार तारों की सूचना नाकेबंदी है।
   ग्लोबल मीडिया वातावरण बनाने में विज्ञापन का महत्वपूर्ण अवदान है। विज्ञापन का समूचा ढ़ांचा झूठ पर टिका है। विज्ञापन का आनंद लेते समय अथवा देखते समय हम सब समय झूठ के दायरे में घिरे होते हैं। झूठ के माहौल में सत्य का पक्षधर बने रहना,सत्य की अभिव्यक्ति करना दुर्लभ हो जाता है। झूठ हमारे मानसिक माहौल को बनाने लगता है,मनोदशा को प्रभावित करता है।
     अब हम झूठ में ही सोचते और भूमिका अदा करने लगते हैं। अब हम झूठ को अनिवार्य जरूरत के रूप में अपना लेते हैं। यह हमारी जीवनशैली का अपरिहार्य हिस्सा बन जाता है। हममें से ज्यादा लोग इसे स्ट्रेंज चीज नहीं समझते। किंतु यह स्ट्रेंज चीज है। यह हमारे लिए कोई अच्छी चीज नहीं है।  हम अपनी अर्थव्यवस्था को बेचने के लिए उसे झूठ के तूफान से भर लेते हैं। क्या यह चीज हमें भयभीत नहीं करती
    सच यह है हमारी राजनीति जिंदगी झूठ के नियमों से ही संचालित है। यदि यह झूठ हमें छल नहीं रहा है तो कम से कम संशयवादी जरुर बना देता है। एक तरफ हम सत्य को पहचान नहीं पाते वहीं दूसरी ओर जब हम सत्य को देखते हैं तो भ्रमित हो जाते हैं। सत्य को स्वीकार ही नहीं पाते।
       

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