पश्चिम बंगाल के शिक्षाजगत में वफादारों और बाहुबली गिरोहों में जंग छिड़ी हुई है। राज्य में छात्रसंघ चुनावों का सच है कि वाम छात्र संगठन अपने विरोधी को नामांकन जमा नहीं करने देते। फलतःहिंसा हो रही है। एक-दूसरे पर हिंसक हमले किए जा रहे हैं। मीडिया प्रबंधन ने हिंसा को अर्थहीन और रूटिन घटना में तब्दील कर दिया है। हिंसा करने वाले शर्मिंदा होने की बजाय गर्वित महसूस कर रहे हैं। बढ़-चढ़कर बयान दे रहे हैं। असल में शिक्षा में नंदीग्राम के प्रेत घुस आए हैं। इन प्रेतों के हमलों के कारण ही हावड़ा के अंदूल में एक छात्र की मौत हो गयी, एक छात्र को अपनी आंखों से हाथ धोना पड़ा। नंदीग्राम के प्रेत किसी एक दल में नहीं है बल्कि एकाधिक दलों में हैं। इनकी पद्धति है शिक्षामंदिरों में नंदीग्राम की तर्ज पर नकली मसले उठाना और हिंसा करना। पश्चिम बंगाल के विभिन्न कॉलेज और विश्वविद्यालयों में नंदीग्राम के प्रेत जिस तरह हिंसाचार कर रहे हैं उसने उच्चशिक्षा से लेकर प्राथमिक शिक्षा तक सभी स्तरों पर अराजकता ,भय और असुरक्षा के वातावरण की सृष्टि की है। सारे राज्य में विवेकहीन बहादुरी के नारे के आधार पर हिंसा का तांडव चल रहा है। इसके कारण अपराधी गिरोहों की बल्ले-बल्ले हो गयी है। भय और असुरक्षा का वातावरण बना है।
विवेकहीन बहादुरी की राजनीति पहले हाशिए पर थी आज केन्द्र में है। पश्चिम बंगाल में उच्चशिक्षा का स्तर देश के विभिन्न राज्यों से कईगुना बेहतर है। परीक्षाएं और कक्षाएं समय पर होती है। परीक्षाफल समय पर निकलते हैं। उच्चशिक्षा की कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्र भरे रहते हैं। कम फीस ली जाती है। विभिन्न विषयों में सालाना भर्ती होने वाले छात्रों की संख्या बढ़ी है। चंद अपवादों को छोड़कर शिक्षा संबंधी सभी फैसले नियमों के आधार पर लिए जाते हैं। शिक्षा में शांति का वातावरण है। लेकिन कुछ सालों से शिक्षा विवेकहीन बहादुरों के निशाने पर है।
विवेकहीन बहादुरों का मानना है शिक्षा में राजनीति नहीं चलेगी। यह नकारात्मक माफिया नारा है। इसके बहाने शिक्षा के लोकतांत्रिक ढ़ांचे पर भीतर और बाहर से हमले हो रहे हैं। वामदल अंदर से हमले कर रहे हैं तो गैर वामदल बाहर से हमले कर रहे हैं। दोनों उत्तेजक नारे और नकली मांगों के आधार पर सीधे एक्शन में हैं। यह सिलसिला विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में देखा जा सकता है।दोनों पक्ष सीधे एक्शन में हैं। सीधे एक्शन का अर्थ है तोड़फोड़,मारपीट, धमकी, हिंसा, बमबाजी आदि। इसका मकसद है शिक्षादखल। शिक्षादखल माफिया फंडा है। इससे शिक्षा माफिया पैदा होगा। अनुयायी और माफिया दोनों की राजनीति का यही मूल साझा लक्ष्य है। दोनों एक-दूसरे को हिंसा के हथियार से मारना चाहते हैं। एकबार हिंसा या विवेकहीन बहादुरी का फिनोमिना युवाओं के दिमाग में घुस गया तो बाद में उससे समूची शिक्षा व्यवस्था को ही खतरा पैदा हो जाएगा। चाकू और बम की नोंक पर चुनाव जीतने वाले कितनी भी जेनुइन मांगें उठाएं अंततः सारे फैसले चाकू की नोंक पर ही होंगे। इन दिनों सुनियोजित ढ़ंग से कॉलेज और विश्वविद्यालयों के आसपास जितने भी विभिन्न दलों के पार्टी दफ्तर हैं उनमें काम करने वाले सक्रिय कार्यकर्ता ऐसे लोगों को रखा गया है जो बाहुबली हैं। जिनका अपराधी अतीत है। ये छात्रों-शिक्षकों और कर्मचारियों में भय और आतंक की सृष्टि कर रहे हैं।
राज्य की शहरी आम राजनीति का मूलाधार है छात्र राजनीति । पश्चिम बंगाल के अर्द्घ-फासी आतंक के हिंसक माहौल को नष्ट करके सामान्य शांति का वातावरण बनाने और राज्य में सुव्यवस्था स्थापित करने में छात्र राजनीति की केन्द्रीय भूमिका रही है। कम से कम 35 साल के शासन में पश्चिम बंगाल की छात्र राजनीति ने गुण्डे-अपराधी छात्रनेता पैदा नहीं किए । फलतः पश्चिम बंगाल में ईमानदार और सभ्य इमेज के वामनेताओं का आज भी राज्यस्तर पर दबदबा है, स्वयं मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य साफ-सभ्य और सुसंस्कृत छात्र राजनीति का आदर्श नमूना हैं। उनकी अनेक बातों पर आलोचना की जा सकती है लेकिन उनकी व्यक्तिगत इमेज एक ईमानदार, सुसंस्कृत आदमी की है।
उच्चशिक्षा में इन दिनों जो हिंसा हो रही है उसके अनेक कारण हैं उसमें सबसे बड़ा कारण है छात्र राजनीति में अधूरा जनतंत्र। इसके लिए वामदल जिम्मेदार हैं। वामदलों ने शिक्षा के लोकतांत्रिकीकरण का जो मॉडल यहां लागू किया है उसने विपक्ष के सफाए का काम किया है,लोकतंत्र का अर्थ विपक्ष को हजम कर जाना नहीं है। शिक्षा में लोकतांत्रिकीकरण ने भिन्न मतों और दलों के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी है। इसके कारण विभिन्न स्तरों पर छात्रों-शिक्षकों की फैसलेकुन कमेटियों में शिरकत घटी है। पक्षपात और गैर पेशेवर लोगों का मनमानापन बढ़ा है। इसके कारण शिक्षा में व्यापक असंतोष पैदा हुआ है। इसका गैर वामदल फायदा उठा रहे हैं फलतःहिंसक टकराव हो रहे हैं।
वामदलों ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को इस कदर सजाया है कि उसमें अन्य के लिए कोई जगह नहीं है। ध्यान रहे अन्य के बिना लोकतंत्र निरर्थक है। यह स्थिति बदलनी चाहिए। गैर वाम विचारों के छात्रों-शिक्षकों और कर्मचारियों के प्रति दोस्ताना और समान नजरिया व्यवहार में विकसित किया जाना चाहिए। विभिन्न स्तरों पर अकादमिक पेशेवर कुशलता ,अनुभव और श्रेष्ठता को बढ़त मिलनी चाहिए। शिक्षा में लोकतंत्र के नाम पर अकादमिक वरिष्ठता के उल्लंघन से बचना चाहिए। शिक्षा में वफादार और माफिया दोनों से लड़कर ही लोकतंत्र स्थापित हो सकता है। शिक्षा में लोकतांत्रिकीकरण के नाम पर वाम ने वरिष्ठता और सामयिक अकादमिक जरूरतों की उपेक्षा की है। शिक्षा में लोकतंत्र को पार्टीतंत्र में रूपान्तरित किया है इसके कारण हिंसा पैदा हो रही है। उच्चशिक्षा में गैर पेशेवरों को महिमामंडित किया है ,पद दिए हैं,नौकरियां दी हैं ,इससे उच्चशिक्षा व्यवस्था गंभीर संकट में फंस गयी है। शिक्षा में अकादमिक श्रेष्ठता की बजाय पार्टी बफादारी पर बल दिया है। जिसके कारण उच्च शिक्षा में मंदमतियों की बाढ़ आ गयी है।वाम राजनीति को बचना है तो वफादारों के गिरोहों से बाहर आना होगा। ये बातें वाम सरकार के उच्चशिक्षा पर बने अशोक मित्र कमीशन की अप्रकाशित रिपोर्ट में रेखांकित की गयी हैं।
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